कहा जाता है की आयुर्वेदिक हर इलाज की जननी है। आयुर्वेद से ही दूनिया मे मेडिकल आज चरम पर है। आयुर्वेद का इतिहास तो काफी पुराना है, आयुर्वेद के माध्यम से ही दूनिया मे मेडिकल का विस्तार हुआ है और आज मेडिकल की वजह से ही दुनिया मे कई घातक बीमारियां ठीक होती है।आज के इस लेख में आयुर्वेद का आविष्कार किसने किया,आयुर्वेद क्या है ?,आयुर्वेद का इतिहास,आयुर्वेद की खोज, आयुर्वेद का काल विभाजन,इस तरह की सारी जानकारिया इस लेख में मिलेंगे।
आयुर्वेद क्या है ?
ऐसा माना जाता है की आयुर्वेद सर्वाधिक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है जिसे मानव जीवन से पूर्व देवताओं द्वारा भी इस्तेमाल किया जाता था। आयुर्वेद का सामान्य अर्थ है ‘‘जीवन का विज्ञान है’’। यह एक चिकित्सा प्रणाली है जिसके कई सालों से इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद का इस्तेमाल केवल रोगों से संबंधित निवारण के लिए ही नहीं बल्कि शारीरिक व मानसिक इलाज हेतु उपयोग मे आता है। आयुर्वेद का उपयोग खाने से संबंधित चीजों मे भी किया जाता है जिससे की खाना स्वादिष्ठ तो बनता है ही साथ इससे शरीर स्वस्थ भी रहता है।
आयुर्वेद का इतिहास
आयुर्वेद का इतिहास काफी प्राचीन है। आज के जीवन में आयुर्वेद का महत्व काफी ज्यादा है। आयुर्वेद का आज से नही बल्कि कई हजारों सालों पहले मानव जानने लगा था। भारत के प्राचीन इतिहास की शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से मानी जाती है एवं सिंधु घाटी सभ्यता से भी आयुर्वेद के कई सारी प्रमाण मिले है जिससे यह कहा जा सकता है की आयुर्वेद का ज्ञान मानव को शुरुआती दौर मे ही हो गया था। आयुर्वेद मे निवारण एवं उपचारक दोनो प्रकार की पद्धति काम मे ली जाती है। आयुर्वेद का ज्ञान मानव द्वारा पीढी दर पीढी ज्ञात होता गया एवं इससे मानव द्वारा कई सारी नई – नई खोजे भी की जाने लगी। यही वजह है की वर्तमान मे भी आयुर्वेद का वर्चस्व काफी ज्यादा है। आज के आयुर्वेद का ज्ञान मुख्यतः 3 प्राचीन ग्रंथों मे मिलता है जिसमे ‘‘चरक संहिता’’, ‘‘अष्टांग हृदय’’, सुश्रुत संहिता इत्यादि शामिल है।
आयुर्वेद की खोज
वैसे तो आयुर्वेद की खोज के पूर्व प्रमाणित प्रमाण नहीं मिलते है परन्तु ऐसा कहा जाता है की आयुर्वेद की खोज ब्रह्मा जी भगवान ने सर्वप्रथम आयुर्वेद का ज्ञान एक दक्ष प्रजापति नामक व्यक्ति को दिया था जो की आज से करीब 18575 साल पहले इस दूनिया मे निवास करते थे। दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद मे आयुर्वेद के बारे मे जानकारी मिलती है जो की काफी महत्वपूर्ण है आयुर्वेद के बारे मे। धन्वन्तरि को आयुर्वेद का देवता माना जाता है। चरक के एक मत के अनुसार प्राचीन आयुर्वेद का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्माजी भगवान से एक दक्ष नामक प्रजापति ने, प्रजापति से फिर अश्विनी कुमारों को बाद मे, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से आगे भरद्वाज ने प्राप्त किया। इतिहासकारों की मानें तो च्यवन नामक ऋषि का कार्यकाल भी अश्विनी कुमारों का समकालीन माना जाता है। आयुर्वेद के विकास मे इन महान ऋषि च्यवन का अतिमहत्त्वपूर्ण योगदान है। इसके बाद भारद्वाज ने आयुर्वेद के प्रभाव से अति दीर्घ सुखी और काफी महत्वपूर्ण आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार – प्रसार किया। इसके बाद पुनर्वसु आत्रेय ने ( Agnivesh, Bhel, Jatu, Parashar, Harit or Shaarpani ) अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक 6 शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया। इन 6 शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता का निर्माण किया
आयुर्वेद का काल विभाजन
आयुर्वेद के काल विभाजन को सामान्यतः 3 भागों मे बांटा जाता है जिसमें संहिता काल, व्याख्या काल, विवृतिकाल मुख्य है।
- संहिता काला का समय 5वी से 7वी शताब्दी के मध्य माना जाता है। ऐसा माना जाता है की इस काल मे आयुर्वेद के मौलिक आधारों का विकास हुआ है। इस आयुर्वेदिक काल मे कई प्रकार के आयुर्वेदिक ग्रंथों का विकास हुआ जिसमें आयुर्वेद के बारे मे बताया गया है। विश्व के सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद मे भी आयुर्वेद के बारे मे बताया गया है एवं इसमें यह भी बताया गया है धन्वन्तरि को ही आयुर्वेद का देवता माना जाता है।
- व्याख्या काल इस काल के बारे मे यह भी कहा जाता है की यह काल आलोचनाओं व टिकाकारों के लिए जाना जाता है। इस काल का समय 7वी से 15वी शताब्दी के मध्य माना जाता है इस काल को आयुर्वेद का व्याख्या काल भी कहा जाता है। आयुर्वेद के इस काल की सबसे महत्वपूर्ण टीका सुश्रुत संहिता मानी जाती है।
- विवृतिकाल आयुर्वेद का इस काल का समय 14वी शताब्दी से लेकर आधुनिक काल तक माना जाता है। इस काल को आयुर्वेद के संदर्भ मे विशिष्ट ग्रंथों के आविष्कार का काल माना जाता है। माधवनिदान, ज्वरदर्पण यह दोनों ग्रंथ इस काल के महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो की इस काल मे लिखे गये एवं आधुनिक आयुर्वेद के बारे मे भी इन ग्रंथों मे बताया गया है।
आयुर्वेद की दुनिया के मुख्य व्यक्तियों के बारे मे एक बार जरूर जानना चाहिए जिनके नाम नीचे बताए गए है।
- ब्रहमा — आचार्य सिद्ध नागार्जुन
- दक्ष प्रजापति — आचार्य क्षारपाणि
- भगवान भाष्कर — आचार्य निमि
- अश्वनी कुमार — आचार्य भद्रशौनक
- इन्द्र — आचार्य काकांयन
- महर्षि कश्यप — आचार्य गार्म्य
- महर्षि अत्रि — आचार्य गालव
- महर्षि भृगु — आचार्य सात्यकि
- महर्षि अंगिरा — आचार्य औषधेनव
- महर्षि वरिष्ठ — आचार्य सौरभ
- महर्षि अगस्त्य — आचार्य पौठक लावत
- महर्षि पुलस्त्य — आचार्य करवीर्य
- ऋषि वाम देव — आचार्य गोपरु रंक्षित
- ऋषि गौतम — आचार्य वैतरण
- ऋषि असित — आचार्य भोज
- ऋषि भरद्वाज — आचार्य भालुकी
- आचार्य धन्वन्तरि — आचार्य दारूक
- आचार्य पुनर्वसु आत्रेय — आचार्य कौमारभृत्य
- आचार्य अग्निवेश — आचार्य जीवक
- आचार्य भेल — आचार्य काश्यप
- आचार्य जातुकर्ण — आचार्य उशना
- आचार्य पाराशर — वृहस्पति
- आचार्य हारीत — आचार्य पतंजलि
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