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लेड-एसिड बैटरी का आविष्कार किसने और कब किया ?

 
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प्रकाश स्रोत के लिए लेड-एसिड बैटरी आज भी बहुतायत में प्रयोग होकर हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

इसका आविष्कार सन् 1859 ई० के फ्रांसिसी भौतिकशास्त्री गैस्टन प्लेन्टी ने किया था। पुनः आवेशित (चाज) करने योग्य बैटरियों में लेड-एसिड बैटरी का आज भी महत्वपूर्ण स्थान है। सबसे कम ऊर्जा भार के अनुपात दृष्टि से निकिल कैडमियम बैटरी के बाद यह दूसरे स्थान पर महत्वपूर्ण है। 

इसमें थोड़े समय के लिए उच्च धारा प्रदान करने की क्षमता होती है। यह काफी सस्ती भी होती है। यह कारों, ट्रकों, अन्य गाड़ियों तथा व्यवधान रहित शक्ति स्रोतों में बहुतायत से प्रयोग की जाती है।

इसमें एक या अधिक सेल श्रेणी क्रम में जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए 12 वोल्ट की बैटरी में 6 सेल श्रेणीक्रम में होते हैं। प्रत्येक सेल दो प्लेटो-धनात्मक, ऋणात्मक (+,-) से मिलकर बना होता है। इन दोनों प्लेटों के बीच कोई विद्युत कुचालक रखा जाता है ताकि दोनों प्लेटें आपस में सटने न पाएं। प्लेटें और उनके विलग रखने वाला कुचालक आदि सब कुछ जल और तन्तु गंधकाम्ल में डूबा रहता है। धनात्मक प्लेट लेट पेराक्साइड की बनी होती है और ऋणात्मक प्लेट लेड होती है।

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