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प्लास्टिक सर्जरी की खोज किसने और किस देश ने की थी?

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भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है. यही वजह है कि भारतीय एक लंबे समय से कला, विज्ञान, तकनीकी और गणित के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे हैं. चाहे जीरो का अविष्कार हो या अणुओं की बातें, भारतीय वैज्ञानिक आज से कई हजार वर्ष पहले ही दुनिया को वो आधार प्रदान कर चुके थे जिसपर मॉडर्न विज्ञान की शिला रखी गई.  ईसा से पूर्व ही भारत में कई आविष्कार हो चुके थे जिन्हें कई सदियों बाद दुनिया ने भी माना.

प्लास्टिक सर्जरी: आज के दौर में ऑपरेशन, प्लास्टिक सर्जरी और कॉस्मेटिक सर्जरी बहुत आम हो चले हैं. हालाँकि इन्हें करवाने का खर्च बहुत अधिक है लेकिन मॉडर्न तकनीकों के साथ यह बहुत आसान हो गए हैं. लेकिन सोचिये, आज से 1000 इसा-पूर्व पहले, जब दुनिया की बहुत सी संस्कृतियां सिर्फ अंगड़ाई ही ले रही थीं, भारत के आचार्य सुश्रुत ने इसमें महारथ हासिल कर ली थी. इससे जुडी एक किवदंती के हिसाब से 1780-84 के बीच मे अंग्रेजों ने हयदर अली के ऊपर कई बार हमले किये और एक हमले का जिक्र एक अंग्रेज की डायरी मे से मिला है। एक अंग्रेज का नाम था कोर्नेल कूट उसने हयदर अली पर हमला किया पर युद्ध मे अंग्रेज परास्त हो गए और हयदर अली ने कोर्नेल कूट की नाक काट दी। 

सुश्रुत ने उसको थोड़ी शराब पिलाई, जिससे इस दर्द का एहसास कम हो, और गाल का कुछ मांस काटकर उसकी नाक पर लेपों के सहारे बाँध दिया. कुछ ही दिनों में उसकी नाक और गाल दोनों ही स्थानों पर पहले जैसा मांस और चमड़ी आ गयी. यह थी दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी. आचार्य सुश्रुत बहुत गहरे आतंरिक ऑपरेशन भी करते थे. उनके ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में उनके द्वारा की गयीं 300 शल्यचिकित्साओं और 150 यंत्रों का भी जिक्र है.

प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी को क्या कहा जाता था तथा उसकी खोज कौन से ऋषि ने की थी

प्लास्टिक सर्जरी में, जैसा की इसका नाम है, प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं होता. असल में प्लास्टिक ग्रीक शब्द “प्लास्टिको” (Plastico) से लिया गया है जिसका मतलब होता है, “बनाना या तैयार करना.” इसमें शरीर के एक उत्तक को उठाकर दूसरे जगह पर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. मेडिकल के हिसाब से, पहली बार प्लास्टिक सर्जरी का इस्तेमाल दूसरे विश्व युद्ध में घायल सैनिको को ठीक करने के लिए हुआ. इसका श्रेय हैराज़ गिलीज़ को दिया जाता है जिन्होंने इसका अविष्कार किया। 

भारत में प्लास्टिक सर्जरी – 

भारत में प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत मानी जाती है. हालांकि आज का मेडिकल साइंस इस बात की पुष्टि नहीं करता लेकिन ऐसे बहुत से प्रमाण हैं जो ये सिद्ध करते है की भारत में सदियों से इसका इस्तेमाल किसी न किसी तरह होता आ रहा है। 

भारत में प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत शुश्रुत द्वारा मानी जाती है. शुश्रुत एक विख्यात प्राचीन भारत के आयुर्वेदिक चिकित्सक थे. तब प्लास्टिक सर्जरी को “शल्य चिकित्सा” के नाम से जाना जाता था. “शुश्रुत संहिता” इनकी बहुत प्राचीन लिखित किताब है जिसमे शल्य चिकित्सा के अलावा और भी बहुत सारे आयुर्वेदिक और अन्य उपचारों के बारे में बताया गया है. आज भी ये किताब भारतीय चिकित्सा इतिहास में मील का पत्थर है. यह किताब 1000 इसा-पूर्व लिखी गयी थी। 

प्लास्टिक सर्जरी की खोज भारत में हुई--

प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) जो आज की सर्जरी की दुनिया मे आधुनिकतम विद्या है इसका अविष्कार भारत मे हुअ है।  सर्जरी का अविष्कार तो हुआ हि है प्लास्टिक सर्जरी का अविष्कार भी यहाँ हि हुआ है। प्लास्टिक सर्जरी मे कहीं की प्रचा को काट के कहीं लगा देना और उसको इस तरह से लगा देना की पता हि न चले यह विद्या सबसे पहले दुनिया को भारत ने दी है। 

1780 मे दक्षिण भारत के कर्णाटक राज्य के एक बड़े भू भाग का राजा था हयदर अली। 1780-84 के बीच मे अंग्रेजों ने हयदर अली के ऊपर कई बार हमले किये और एक हमले का जिक्र एक अंग्रेज की डायरी मे से मिला है। एक अंग्रेज का नाम था कोर्नेल कूट उसने हयदर अली पर हमला किया पर युद्ध मे अंग्रेज परास्त हो गए और हयदर अली ने कोर्नेल कूट की नाक काट दी। 

कोर्नेल कूट अपनी डायरी मे लिखता है के “मैं पराजित हो गया, सैनिको ने मुझे बन्दी बना लिया, फिर मुझे हयदर अली के पास ले गए और उन्होंने मेरा नाक काट दिया। ” फिर कोर्नेल कूट लिखता है के “मुझे घोडा दे दिया भागने के लिए नाक काट के हात मे दे दिया और कहा के भाग जाओ तो मैं घोड़े पे बैठ के भागा।  भागते भागते मैं बेलगाँव मे आ गया, बेलगाँव मे एक वैद्य ने मुझे देखा और पूछा मेरी नाक कहाँ कट गयी? तो मैं झूट बोला के किसीने पत्थर मार दिया, तो वैद्य ने बोला के यह पत्थर मारी हुई नाक नही है यह तलवार से काटी हुई नाक है, मैं वैद्य हूँ मैं जानता हूँ। तो मैंने वैद्य से सच बोला के मेरी नाक काटी गयी है।  वैद्य ने पूछा किसने काटी? मैंने बोला तुम्हारी राजा ने काटी| वैद्य ने पूछा क्यों काटी तो मैंने बोला के उनपर हमला किया इसलिए काटी|फिर वैद्य बोला के तुम यह काटी हुई नाक लेके क्या करोगे? इंग्लैंड जाओगे? तो मैंने बोला इच्छा तो नही है फिर भी जाना हि पड़ेगा। 

यह सब सुनके वो दयालु वैद्य कहता है के मैं तुम्हारी नाक जोड़ सकता हूँ, कोर्नेल कूट को पहले विस्वास नही हुआ, फिर बोला ठेक है जोड़ दो तो वैद्य बोला तुम मेरे घर चलो।  फिर वैद्य ने कोर्नेल को ले गया और उसका ऑपरेशन किया और इस ऑपरेशन का तिस पन्ने मे वर्णन है।  ऑपरेशन सफलता पूर्वक संपन्न हो गया नाक उसकी जुड़ गयी, वैद्य जी ने उसको एक लेप दे दिया बनाके और कहा की यह लेप ले जाओ और रोज सुबह शाम लगाते रहना।  वो लेप लेके चला गया और 15-17 दिन के बाद बिलकुल नाक उसकी जुड़ गयी और वो जहाज मे बैठ कर लन्दन चला गया। 

फिर तीन  महीने बाद ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे खड़ा हो कोर्नेल कूट भाषण दे रहा है और सबसे पहला सवाल पूछता है सबसे के आपको लगता है के मेरी नाक कटी हुई है? तो सब अंग्रेज हैरान होक कहते है अरे नही नही तुम्हारी नाक तो कटी हुई बिलकुल नही दिखती।  फिर वो कहानी सुना रहा है ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे के मैंने हयदर अली पे हमला किया था मैं उसमे हार गया उसने मेरी नाक काटी फिर भारत के एक वैद्य ने मेरी नाक जोड़ी और भारत की वैद्यों के पास इतनी बड़ी हुनर है इतना बड़ा ज्ञान है की वो काटी हुई नाक को जोड़ सकते है। 

फिर उस वैद्य जी की खोंज खबर ब्रिटिश पार्लियामेन्ट मे ली गयी, फिर अंग्रेजो का एक दल आया और बेलगाँव की उस वैद्य को मिला, तो उस वैद्य ने अंग्रेजो को बताया के यह काम तो भारत के लगभग हर गाँव मे होता है; मैं एकला नहीं हूँ ऐसा करने वाले हजारो लाखों लोग है।  तो अंग्रेजों को हैरानी हुई के कोन सिखाता है आपको ? तो वैद्य जी कहने लगे के हमारे इसके गुरुकुल चलते है और गुरुकुलों मे सिखाया जाता है। 

फिर अंग्रेजो ने उस गुरुकुलों मे गए उहाँ उन्होंने एडमिशन लिया, विद्यार्थी के रूप मे भारती हुए और सिखा, फिर सिखने के बाद इंग्लॅण्ड मे जाके उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी शुरू की। और जिन जिन अंग्रेजों ने भारत से प्लास्टिक सर्जरी सीखी है उनकी डायरियां हैं। एक अंग्रेज अपने डायरी मे लिखता है के ‘जब मैंने पहली बार प्लास्टिक सर्जरी सीखी, जिस गुरु से सीखी वो भारत का विशेष आदमी था और वो नाइ था जाती का।  मने जाती का नाइ, जाती का चर्मकार या कोई और हमारे यहाँ ज्ञान और हुनर के बड़े पंडित थे| नाइ है, चर्मकार है इस आधार पर किसी गुरुकुल मे उनका प्रवेश वर्जित नही था, जाती के आधार पर हमारे गुरुकुलों मे प्रवेश नही हुआ है, और जाती के आधार पर हमारे यहाँ शिक्षा की भी व्यवस्था नही था। वर्ण व्यवस्था के आधार पर हमारे यहाँ सबकुछ चलता रहा। तो नाइ भी सर्जन है चर्मकार भी सर्जन है। और वो अंग्रेज लिखता है के चर्मकार जादा अच्चा सर्जन इसलिए हो सकता है की उसको चमड़ा सिलना सबसे अच्छे तरीके से आता है। 

एक अंग्रेज लिख रहा है के ‘मैंने जिस गुरु से सर्जरी सीखी वो जात का नाइ था और सिखाने के बाद उन्होंने मुझसे एक ऑपरेशन करवाया और उस ऑपरेशन की वर्णन है।  1792 की बात है एक मराठा सैनिक की दोनों हात युद्ध मे कट गए है और वो उस वैद्य गुरु के पास कटे हुए हात लेके आया है जोड़ने के लिए।  तो गुरु ने वो ऑपरेशन उस अंग्रेज से करवाया जो सिख रहा था, और वो ऑपरेशन उस अंग्रेज ने गुरु के साथ मिलके बहुत सफलता के साथ पूरा किया| और वो अंग्रेज जिसका नाम डॉ थॉमस क्रूसो था अपनी डायरी मे कह रहा है के “मैंने मेरे जीवन मे इतना बड़ा ज्ञान किसी गुरु से सिखा और इस गुरु ने मुझसे एक पैसा नही लिया यह मैं बिलकुल अचम्भा मानता हूँ आश्चर्य मानता हूँ। और थॉमस क्रूसो यह सिख के गया है और फिर उसने प्लास्टिक सेर्जेरी का स्कूल खोला, और उस स्कूल मे फिर अंग्रेज सीखे है, और दुनिया मे फैलाया है। दुर्भाग्य इस बात का है के सारी दुनिया मे प्लास्टिक सेर्जेरी का उस स्कूल का तो वर्णन है लेकिन इन वैद्यो का वर्णन अभी तक नही आया विश्व ग्रन्थ मे जिन्होंने अंग्रेजो को प्लास्टिक सेर्जेरी सिखाई थी। 

प्राचीन भारत में हुए थे ये आविष्कार और खोजें
आयुर्वेद: दुनिया को दवाओं कि पहली समझ भारतीयों ने ही दी. 300 से 200 ई. पू. कुषाण राज्य के राजवैद्य चरक ने अपने ग्रन्थ चरक संहिता में उन्होंने एक से एक प्राकृतिक दवाओं का जिक्र किया है. इनके अलावा उन्होंने सोना, चांदी वगैरह हो पिघलाकर उसके भस्म का प्रयोग भी चरक ने ही बताया. उस दौर में मौजूद ऐसी कोई बीमारी नहीं थी, जिसका तोड़ चरक के पास नहीं था. उन्हें अपने इसी योगदान के लिए भारतीय चिकित्सा और दवाओं का पिता कहा जाता है.

गणित: कहा जाता है कि पूरी दुनिया में भारतीय गणित के मामले में सबसे होशियार और तेज होते हैं. बहुत हद तक यह सही भी है. इसका श्रेय हमारे पूर्वजों को जाता है. जीरो का अंक पूरी दुनिया को भारतीयों ने ही दिया था. आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त ने यह नंबर प्रणाली दी जिसका उपयोग पूरी दुनिया में तेजी से हुआ. इससे पहले रोमन अंकों का प्रयोग किया जाता था. लेकिन उनमें संकेतों से लिखने वाली लिपि के चलते बड़ी संख्याएं लिखने में तकलीफ हुआ करती थी. लेकिन जब दशमलव प्रणाली आई, इसने सभी समस्याओं को सुलझा दिया. कंप्यूटर की भाषा कि नीव भी भारतीयों ने ही रखी थी. कंप्यूटर सिर्फ 0 और 1 की भाषा समझता है और 0 का उद्गम भारत से ही हुआ था.

इसके साथ ही आर्यभट्ट ने आज से हजारों साल पहले बिना किसी टेलेस्कोप या यंत्र के पृथ्वी का व्यास लगभग के करीब सही सही नाप लिया था. साथ ही उन्होंने हेलिकोसेंट्रिक थ्योरी भी कॉपरनिकस से पहले ही सिद्ध कर दी थी जिसके मुताबिक पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमने के साथ ही सूरज की भी परिक्रमा करती है. इसके अलावा बोद्धायन ऋषि ने हजारों साल पहले जिस सिद्धांत को प्रमाणित कर दिया था, बाद में पाइथागोरस ने उसे सिद्ध किया और यह सिद्धांत कहलाया बोद्धायन-पाइथागोरस सिस्टम.

अणुओं का सिद्धांत: अगर कोई आपसे पूछे कि केमेस्ट्री में अणुओं की खोज किसने की. आपका जवाब होगा, डाल्टन. लेकिन डाल्टन के जन्म से सदियों पहले भारत में एक ऋषि हुए थे, ऋषि कणाद. उन्होंने हजारों साल पहले ही यह बता दिया था कि कोई भी द्रव्य अणुओं और परमाणुओं से मिलकर बनता है. परमाणु सबसे छोटी इकाई है जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता. बिना माइक्रोस्कोप या किसी अयना यन्त्र के यह पता लगाना वाकई एक चमत्कार जैसा था. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि यह परमाणु या तो स्थिर अवस्था में रहता है या ऊर्जा के रूप में. यही बाद में हेजनबर्ग का अनसर्टेनिटी लॉ बना.

वुट्ज स्टील: मिश्र धातुओं कि नीव तो बहुत सी पुरानी सभ्यताओं में पद चुकी थी लेकिन भारत ने यहां भी अपनी पहचान बनाई. उस दौर में युद्ध और घरेलु उपकरणों के लिए लोहे का ही प्रयोग किया जाता था. लेकिन लोहे के साथ समस्या यह थी कि उसमें बहुत जल्दी जंग लग जाती थी. जैसे ही लोहा वायु के संपर्क में आया, उसमें जंग लगना पक्का था. लेकिन भारतीयों ने दुनिया को ऐसा लोहा प्रदान किया जिसमें जंग लग ही नहीं सकती थी. इसे बनाने का तरीका ही इसका मुख्य प्लस पॉइंट था. कार्बन धातु के साथ लोहे को गलाने से वो जंगनिरोधक हो जाता है, यह पद्दति भारत ने ही पूरी दुनिया को दी. इसी लोहे से बहुत मशहूर तलवारें बनती थी जिन्हें दमिश्क लोहे कि तलवारें कहा जाता था. सम्राट सिकंदर की तलवार भी इसी धातु की बनी थी.

इसके अलावा भारत ने पूरी दुनिया को योग की शक्ति से परिचित करवाया. अपने शरीर, मन और आत्मा को पवित्र रखने के लिए किया जाने वाला योग आज पूरी दुनिया में योगा के नाम से मशहूर हो रहा है.



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