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बैरोमीटर की खोज किसने और कब किया ?

 
bairomeetar

दोस्तों, आज हम दुनिया भर के मौसम का हाल अपने स्मार्टफोन में उपलब्ध एक एप से जान जाते हैं लेकिन आज से लगभग 400 साल पहले दुनिया में ऐसा कोई यंत्र नहीं था जिससे घटते-बढ़ते वायुमंडलीय दबाव और मौसम का अनुमान लगाया जा सकता था। लेकिन 16वीं शताब्दी के मध्य में एक वैज्ञानिक ने बैरोमीटर व वायुदाबमापी की खोज कर इस समस्या को हमेशा के लिए हल कर दिया। क्या आपको पता है इस वैज्ञानिक उपकरण Barometer ki khoj kisne ki ? उस वैज्ञानिक का क्या नाम था ? तो हम बता दे कि इस वायुदाबमापी की खोज इटली के वैज्ञानिक इवान जेलिस्टा टोरिसेली (Evangelista Torricelli) द्वारा सन् 1643 में किया गया था।

बैरोमीटर खोज की रोचक कहानी

वायुदाबमापी के आविष्कारक के रूप में तो टोरिसेली को बच्चा-बच्चा जानता है लेकिन इस आविष्कार के पीछे जो कहानी है उसे संभवतः बहुत ही कम लोग जानते हैं।

इस कहानी के अनुसार सन् 1640 में टस्कनी के ग्रैंड ड्यूक ने अपने महल के अहाते में एक कुआं खुदवाया। कुआं खुद गया और पानी लगभग 40 फुट की गहराई पर मिला। पानी को ऊपर लाने के लिए एक पम्प लगाया गया, जिसकी नली पानी में डूबी हुई थी। पम्प के हैंडल को बार-बार ऊपर नीचे करने पर भी पानी टूटी से बाहर नहीं आया। यह केवल 33 फुट की ऊंचाई तक ही चढ़ पा रहा था। मजदूरों ने सोचा कि पम्प में कुछ खराबी है लेकिन काफी जांच करने पर उसमें कोई गड़बड़ी नहीं मिली। इस घटना की सूचना ड्यूक को दी गई। उनकी समझ में भी यह बात नहीं आ पाई कि आखिर पम्प काम क्यों नहीं कर रहा है।

उन दिनों गैलीलियो ड्यूक के विशिष्ट दार्शनिक और गणितज्ञ थे। अतः यह समस्या गैलीलियो को सुलझाने के लिए दी गई। गैलीलियो ने इस समस्या की कुछ व्याख्या की लेकिन वे स्वयं इस व्याख्या से पूरी तरह संतुष्ट न थे। वृद्ध होने के कारण गैलीलियो ने इस समस्या को अपने होनहार शिष्य टोरिसेली को सुलझाने के लिए दे दिया। टोरिसेली उन दिनों गैलीलियो के सचिव के रूप में कार्य कर रहे थे। गैलीलियो की कुछ ही दिनों में मृत्यु हो गई और उनके स्थान पर टोरिसेली की नियुक्ति कर दी गई। इसके बाद टोरिसेली ने इस समस्या पर काम करना आरंभ किया।

टोरिसेली का विश्वास था कि पम्प द्वारा भारी द्रव को इतनी ऊंचाई तक नहीं उठाया जा सकता, जितना कि किसी हल्के द्रव को। इसलिए उसने अपने प्रयोग के लिए पारे को चुना। पारा, पानी की तुलना में साढ़े तेरह गुना अधिक भारी होता है। अतः पानी की तुलना में पारे को साढ़े तेरह गुना कम ऊंचाई तक ही उठाया जा सकता है। चूंकि पम्प से पानी को 33 फीट की ऊंचाई तक उठाया जा सकता था, इसलिए पारे को केवल 30 इंच की ऊंचाई तक ही उठा पाना संभव था। यह संख्या 33 फुट को 13.5 से विभाजित करने पर प्राप्त होती है। पानी के स्थान पर पारे को इस्तेमाल करने में सबसे बड़ी सरलता यह थी कि 33 फुट लम्बी नली के स्थान पर केवल 1 गज लम्बी नली ही पर्याप्त थी।

टोरिसेली ने कांच की एक नली ली। इसकी लंबाई लगभग एक गज थी और उसका एक सिरा बंद था। पहले उसने इस नली को पारे से भरा और उसके खुले सिरे को अंगूठे से दबाकर और नली को उलटा करके पारे से भरे कटोरे में डुबा दिया ताकि खुला सिरा पारे की सतह के नीचे रहे। जब उसने अपने अंगूठे को नली के खुले सिरे से हटाया तो नली में पारा कुछ नीचे की ओर खिसका और पारे के स्तंभ की लंबाई 30 इंच रह गई। बाद में इसी खाली स्थान का नाम “टोरिसेली निर्वात” (Torricelli Vacuum) के नाम से पुकारा जाने लगा। इस प्रयोग से यह सिद्ध हो गया कि पानी को पम्प द्वारा मात्र इतनी ऊंचाई तक उठाया जा सकता है, जो 30 इंच x 13.6 के बराबर हो। यह ऊंचाई लगभग 33 फुट के करीब होती है।

कुएं में लगे पम्प की विफलता का कारण तो इस प्रयोग द्वारा स्पष्ट हो ही गया, साथ ही साथ टोरिसेली की यह नली वायुदाबमापी के रूप में प्रयोग होने लगी। आज भी विद्यार्थी साधारण Barometer इसी तरह बनाते हैं।

टोरिसेली के बनाए इस वायुदाबमापी को जब पहाड़ की चोटी पर ले जाया गया तो यह पाया गया कि पारे के स्तंभ की ऊंचाई कम हो जाती है। इससे यह सिद्ध हुआ कि ऊंचाई के साथ-साथ वायुदाब घटता है। इसी प्रयोग के आधार पर ब्लेज पास्कल नामक वैज्ञानिक ने गैलीलियो के इस कथन की पुष्टि की कि वायु में भार होता है। आज तो वायुदाबमापी मौसम विज्ञान का एक अत्यावश्यक अंग बन गया है। आज अनेक प्रकार के वायुदाबमापी बनने लगे हैं।

विश्व में अधिकतर लोग टोरिसेली को केवल वायुदाबमापी के आविष्कारक के रूप में जानते हैं। वास्तविकता तो यह है कि उन्होंने वायुदाबमापी के अलावा और भी कई महत्वपूर्ण आविष्कार किये थे। इटली के फ्लोरेंस नामक शहर में विज्ञान से संबंधित एक संग्रहालय (Natural History Museum) है। इसमें रखे बहुत से वैज्ञानिक साजो-सामान के बीच चार इंच व्यास से कुछ अधिक का एक लेंस रखा हुआ है। इस लेंस की सत्यता को देखकर आज के लेंस निर्माता विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाते। यह लेंस 1 मिमी. के 10,000वें भाग की सत्यता के साथ बना हुआ है।

सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह है कि इसे सन् 1646 में बनाया गया था। उस समय तक लेंस-निर्माण के लिए न तो आज की तरह के आधुनिक उपकरण उपलब्ध थे और न ही इस प्रकार की कोई तकनीक विकसित हो पायी थी। इस लेंस का निर्माण टोरिसेली ने किया था। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि इस वैज्ञानिक की प्रतिभा किस ऊंचे दर्जे की थी।

इटली के इस वैज्ञानिक ने कई प्रकार के दूरदर्शी, सूक्ष्मदर्शी और दूसरे प्रकार के प्रकाशीय उपकराणों के नमूने बनाए, जो बहुत ही शुद्धता के साथ बनाए गए थे। टोरिसेली केवल प्रयोगात्मक वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि एक अच्छे गणितज्ञ भी थे। इन्होंने इंटीग्रल कैलकुलस में भी कई आविष्कार किए। 19 साल की उम्र में ही इन्हें रोम विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया था, जहां बाद के वर्षों में वे प्रोफेसर बने। सन् 1641 में इनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसमें गैलीलियो के कार्यों का विवरण था। इने समय में हार्वे, बेकन, पास्कल, गैलीलियो आदि प्रसिद्ध वैज्ञानिक मौजूद थे।

दुर्भाग्य की बात तो यह थी कि यह महान वैज्ञानिक 39 वर्ष की अल्पायु में ही संसार से चला गया। हो सकता है कि यदि ये कुछ वर्ष और जिंदा रहते तो न जाने विज्ञान को क्या-क्या देकर जाते।

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