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टेलीफोन का आविष्कार किसने और कब किया ?

 
teleephon

दोस्तों, आज भले ही मोबाइल फोन दूर संचार का सबसे आधुनिक साधन बन गया है लेकिन मोबाइल फोन की शुरुआत भी टेलीफोन के एडवांस रूप वायरलेस टेलीफोन से ही हुई है। टेलीफोन विज्ञान की ऐसी महत्वपूर्ण खोजों में से एक है जिसने 21वीं सदी में दूरसंचार का रूप ही बदल डाला है।  लेकिन क्या आप जानते है इस Telephone ka avishkar kisne kiya और किस वर्ष? तो हम बता दें कि इस युगप्रवर्तक यंत्र का आविष्कार स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (Alexander Graham Bell) ने 2 जून, 1875 में किया था।


टेलीफोन के आविष्कार होने की कहानी तथा इसके आविष्कारक ग्राहम बेल की जीवनी बड़ी दिलचस्प है। तो आइए जानते है टेलीफोन के आविष्कार होने की कहानी को विस्तार से…

ग्राहम बेल तथा टेलीफोन के आविष्कार की दिलचस्प कहानी

लेकिन बेल के इस युगांतकारी आविष्कार पर पहले लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया। इसलिए बेल ने सोचा कि यंत्र के सार्वजनिक प्रदर्शन की तैयारी की जाए। इस तरह का पहला प्रदर्शन 10 मई, 1876 को बोस्टन में “अमेरिकन एकेडमी ऑफ साइंसेस” के विद्वानजनों के आगे किया गया। यहां विशेषज्ञों ने उन्हें सुझाव दिया कि फिलाडेल्फिया में होने वाले अमेरिकी स्वतंत्रता शताब्दी समारोह में वह अपने यंत्र का प्रदर्शन करें। इस समारोह द्वारा बेल को मिली प्रसिद्धि की चर्चा हम शुरू में कर चुके हैं। इसके बाद तो टेलीफोन की चर्चा सब जगह होने लगी।

लेकिन टेलीग्राफ कम्पनियां टेलीफोन को व्यावसायिक रूप से बाजार में उतारने के लिए तैयार नहीं थी। शायद उन्हें डर था कि टेलीफोन कहीं Telegraph यंत्र का प्रतिद्वंद्वी न बन जाए। यह देखकर बेल और उनके सहयोगी वाटसन ने निश्चय किया कि टेलीफोन की उपयोगिता को वे जन-साधारण के सामने लाकर ही दम लेंगे।

टेलीफोन के प्रचार-प्रसार के लिए बेल और वाटसन ने एक के बाद एक कई सार्वजनिक प्रदर्शन किए। उन्हें पूरी आशा थी कि लम्बी दूरी के संचार यंत्र के रूप में टेलीफोन के महत्व के बारे में जनता को खुद व खुद ही समझ आ जाएगा।

जल्दी ही टेलीग्राफ के तार के माध्यम से आवाज को 13 किलोमीटर की दूरी तक संप्रेषित करने में बेल और वाटसन सफल रहे। साल खत्म होने से पहले ही इस दूरी को 229 किलोमीटर तक बढ़ा पाने में उन्हें कामयाबी मिली।

लेकिन टेलीग्राफ कंपनियां अब भी सार्वजनिक उपयोग के लिए टेलीफोन को बढ़ावा देने के लिए तैयार नहीं थी। यह देखकर बेल ने स्वयं अपने नाम से एक टेलीफोन कम्पनी खोलने का निश्चय किया। गौरतलब है कि आज बेल की वह ऐतिहासिक कंपनी ‘एटी एंड टी’ के नाम से जानी जाती है और दूरसंचार के अपने साधनों के लिए विश्व भर में मशहूर है। विगत सदी में बेल प्रयोगशालाओं में विशेष रूप से दूर संचार के क्षेत्र में बहुत महत्वूपर्ण अनुसंधान हुए हैं। इलेक्ट्रॉनिकी के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले ट्रांजिस्टर का आविष्कार भी एक बेल प्रयोगशाला में ही हुआ था।

बेल द्वारा स्थापित टेलीफोन कंपनी का पहला विज्ञापन 1877 में बोस्टन के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ। इस विज्ञापन द्वारा बेल ने 32 किलोमीटर की दूरी तक आदमी की बोली को भेजने की पेशकश की थी। घरेलू उपयोग के लिए टेलीफोन शुल्क की दर को बीस डॉलर प्रति वर्ष जबकि व्यावसायिक उपयोग के लिए चालीस डॉलर प्रति वर्ष रखा गया था। इस तरह सर्वप्रथम 1877 में लोगों को व्यावसायिक टेलीफोन बाजार में उपलब्ध हुआ।

इसी दौरान बेल ने अमेरिका की वेस्टर्न यूनियन टेलीग्राफ कंपनी को टेलीफोन के राष्ट्रव्यापी विकास के लिए राजी करने की कोशिश की। लेकिन कम्पनी ने यह कह कर बेल को मना कर दिया कि एक “वैद्युतिक खिलौने” के इस्तेमाल से जुड़े कारोबार में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है।

निराश होकर बेल अपने जन्म स्थान इंग्लैंड जाकर वहां अपना भाग्य आजमाने की सोची। और सचमुच यहां उनका भाग्य रंग लाया जब जनवरी, 1878 में रानी विक्टोरिया के सामने टेलीफोन के प्रदर्शन का उन्हें निमंत्रण मिला। बेल द्वारा आविष्कृत यंत्र से प्रभावित होकर रानी ने शाही महल में दो यंत्रों को लगाए जाने की मंजूरी दे दी।

बस फिर क्या था! देखते-देखते टेलीफोन इंग्लैंड में लोकप्रिय हो गया। यह अन्य यूरोपीय शहरों में भी पहुंचा तो वहां के लोगों में भी इसने अपनी लोकप्रियता के झंडे गाड़ दिए।

दूसरे देशों में टेलीफोन इस तरह लोकप्रिय हो रहा था तो अमेरिका आखिर कब तक बचा रहता! अमेरिकियों को टेलीफोन की उपयोगिता साफ नजर आने लगी। सभी को टेलीफोन अचनाक अलादीन के चिराग जैसा लगने लगा। और लगता भी क्यों न? इसके जरिए व्यापारी अपने ग्राहकों से, वकील अपने मुवक्किलों से, डाक्टर अपने मरीजों से तथा अन्य विभिन्न तबकों के लोग भी घर बैठे ही आपस में सीधा संपर्क जो स्थापित कर सकते थे।

धीरे-धीरे टेलीफोन का व्यावसायिक उपयोग बढ़ता गया। इस बीच बेल के सहयोगी वाटसन ने टेलीफोन को अधिक उपयोगी और कार्यदक्ष बनाने के लिए उसमें कई परिवर्तन भी कर डाले थे। शुरू में टेलीफोन काॅल आने पर घंटी नहीं बजती थी। काॅल पाने वाले का ध्यान आकर्षित करने के लिए टेलीफोन में ‘थम्पर’ नामक युक्ति लगी होती थी। इसे वाटसन पहले ‘बजर’ में बदला जिसका स्थान अंततः घंटी ने ले लिया।

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