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रामि बौराणी उत्तराखंड की लोक-कथा

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(पतिव्रता नारी की कहानी)

रामि बौराणी एक पतिव्रता नारी की कहानी है। सालों साल पति से दूर रहकर भी पति के लिये उसका प्रेम और निष्ठा बिल्कुल भी कम न हुई। ऐसा कहा जाता है कि रामि की पतिव्रता सीता और सावि़त्री से कम नहीं थी। रामि बौराणी में बौराणी शब्दह बहु या बहूरानी शब्द का पहाड़ी प्रयाय हो सकता है।

एक गांव में रामि नाम की विवाहिता अपनी सास के साथ रहती थी। कम उम्र में ही रामि की शादी हो गई थी। शादी के बाद ही रामि का पति दिल्लीर हुमायु की फौजी में भर्ती होने चला गया। सास और बहू में काफी प्रेम था। वे दोनों मां बेटी की तरह रहती थी। सास घर के काम करती और रामि बाहर गाय, बकरी को चराने और खेती बाड़ी का काम संभालती थी। रामि अपने पति से बहुत प्रेम करती थी। उसकी याद में रामि काफी उदास रहती। वही हाल रामि की सास का भी था, बुढ़ापे में बेटे के दूर रहने की चिंता उसे खाये जा रही थी। वे दोनों ऐसे ही अपने दिन काट रहे थे। देखते-देखते 11-12 साल बीत गये और रामि का पति ना लौटा ना उसने अपनी खबर भेजी। रामि को यकीन था कि उसका पति एक दिन जरूर वापस आयेगा।

एक दिन रामि तपती गर्मी में खेतों पर काम करते करते थक गई। उसने आस पास के खेतों में नजर दौड़ाई, बाकि औरते घर जा चुकी थी। काम में मग्न रामि को खबर ही नहीं लगी कि सब औरते कब चली गई। काम और गर्मी से वो काफी थक चुकी थी प्यास से उसका गला सूखने लगा। रामि ने सोचा थोड़ा ही काम बचा है पूरा कर के ही जाती हूँ, वो काम में लगी ही थी कि पीछे से उसे कोई आवाज आती सुनाई दी। उसने देखा कि एक साधु अलख निरंजन, अलख निरंजन अलापता हुआ उसी की तरफ आ रहा है। साधु रामि को देख उसके समीप आ रामि से उसका परिचय पूछता है -

रामि कहती है - मैं रावतों के खांदान से हुँ, और मैं बहुत बड़े सेठ की बेटी हुँ। मैं इस गांव में अपनी सास के साथ रहती हुँ, मेरे ससुर का देहांत हो चुका है।

साधु - और तेरा पति कहाँ है?

रामि - मेरे पति कई सालों से परदेश में है और मैं अपने दिन उनकी याद में काट रही हुँ।

साधु - क्यों उस निरमोही के बारे में सोच कर दुखी हो रही है जिसने इतने सालों से तेरी खोज खबर नहीं ली और तो और ना उसे अपनी मां याद आई।

रामि को साधु की बात पसंद नहीं आई उसने उसे अनसुना किया और अपना काम करने लगी। साधु ने फिर उसे टोकते हुये कहा - क्यों अपनी ये अमूल्य जवानी उस निरमोही के याद में बरबाद कर रही है चल बौराणी छांव में बैठ कर अपना मन हल्‍का करते है और रामि को छुने की कोशिश करने लगा।

रामि दूर हट के साधु से कहा - क्या तुझे मेरे सिर का ये सिंदूर और नाख की नथ नही दिखती एक औरत से किस तरह की बात कर रहा है

रामि ने फिर धमकाते हुये कहा - तू जोगी है या ढोंगी जोगी है तू जा यहां से, आगे से यहां दिखा भी तो देख लेना।

साधु मुस्कुराते हुये - अरे! तू तो नाराज हो गई। बौराणी क्या गाली देना रावतों को सोभा देता है। तू काम करते-करते थक गई है चल छांव में बैठ आराम मिलेगा। मेरे साथ अपना सुख दुख भी बांट लेगी।

रामि का पारा चढ़ गया, वो बोली - निर्लज्ज शर्म नहीं आती इस तरह की बात करते हुये, सुख दुख बाटने का इतना ही मन है तो जा अपनी मां बहन के साथ बांट, रामि की बात सुनकर साधु हंसने लगा।

रामि - चुपचाप यहां से चले जा ये देख राहा है ना कुदाली यही तेरे सर में दे दुंगी।

रामि का गुस्सा देख साधु वहां से चला गया। वो उसके गांव पहुंचा, वहां रामि के घर पहुंच कर उसकी सास से भिक्षा मांगने लगा।

माता जोगी को भिक्षा दे दे तेरा भला होगा और १२ साल से खोया हुआ तेरा लड़का घर लौट आयेगा। यहाँ सुन रामि की सास साधु के चरणों में गिर गई और साधु को अपने घर के अंदर ले गई।

रामि की सास ने साधु को आसन में बिठाते हुए कहा साधु बाबा आप बाहर क्या कह रहे कि तेरा लड़का १२ साल बाद घर लौट आयेगा।

साधु हसते हुए - पर मॉं भूके पेट भजन ना होत, सुबह से भूखा हूँ पहले भोजन फीर और बाते।

रामि की सास - साधु बाबा आप बेठो मैं जलदी से भोजन चूल्हे पर चढ़ा देती हुँ।

इतने में रामि भी खेत का काम कर के आ गई, अपने आंगन में उसी साधु को बैठा देख रामि को फिर गुस्सा आ गया। उसने साधु से कहा - अरे कपटी, तू मेरे घर तक पहुंच गया। बहु की आवाज सुनकर सास बाहर आई उसने पूछा बहू क्या हुआ ? बहु ने बताया - मां ये कोई साधु नहीं कपटी है। सास ने बहु से कहा कि एक साधु के बारे में ऐसे नहीं बोलते, तू अंदर जा और भोजन परोस मैं आती हूँ। रामि ने भोजन परोसा, सास को बुलाया, सास भोजन लेकर साधु को देने लगी। साधु ने देखा कि भोजन पत्तों में परोसा है, साधु बोला- ये क्या, अब मैं पत्तों में भोजन करूंगा, मुझे उसी थाली में भोजन दे जिस पर रामि का पति भोजन करता था।

साधु का इतना कहना ही था कि रामि का पारा अब हद से ज्यादा चढ़ गया था, वो गुस्से में पूरी लाल हो गई थी। वो बोली- तूने अब अपनी नीचता की हद पार कर दी है। तेरी हिम्मत कैसे हुई ये कहने की। रामि के गुस्से का यह रूप देख कर साधु भौचक्का रह गया। उसने साधु का चोला उतारा और मां के पैरों में गिर गया और बोला - मां, पहचानों मुझे मैं तुम्हारा बेटा हूँ, ‘बीरू‘। और रामि मुझे माफ कर दो मैंनें तुम्हारे प्रेम और इंतजार की परीक्षा लीं। तुम्हारे पतिव्रत, प्रेम और निष्ठा को दुनिया हमेशा याद रखेगी।

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