टाइप राइटर को टंकन यंत्र भी कहते हैं। यह अक्षरों को कार्बन टेप द्वारा कागज पर अंकित करती है। टाइप राइटर से हर कोई परिचित है। सम्भव है कि आगामी दस-बीस वर्षों के बाद यह 'शोपीस' या संग्रहालय में सजाने की चीज बन जाए क्योंकि कम्प्यूटर के बढ़ते चलन के साथ इसकी उपयोगिता दिनों-दिन क्षीण होती जा रही है। बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक तक टाइप राइटर हर जगह छाया हुआ था। ऑफिसों में इसके बगैर काम न चलता था। उच्चस्तरीय लेखक अपना लेखन कार्य टाइप राइटर पर करना शान की बात समझते थे।
सन् 1575 से इसके प्रयोग के सूत्र मिलते हैं। इटैलियन प्रिण्टमेकर फ्रांसिस्को रैम्पाजिटो (Francesco Rempazetto) ने कागज पर मशीनों से अक्षर अंकित करने की युक्ति खोज निकाली थी।
सन् 1714 में हेनरी मिल (HenryMill) नामक व्यक्ति का नाम भी इस प्रिण्ट मशीन से जुड़ा है। जिसने ब्रिटेन में टाइप करने वाली मशीन को पेटेन्ट कराया था। सन् 1802 में इटली के अगोस्टीनो फैन्टोनी (Agostino Fantoni) का नाम इस टंकन यंत्र के सिलसिले में सामने आता है, जिसने इसे अपनी नेत्रहीन बहन की लिखाई के लिए इसको विकसित रूप दिया था।
सन् 1808 में एक अन्य इटली निवासी पेलीग्रेनो टुर्सी (Pellegrino Turri) ने कार्बन इंक के साथ इसे विकसित किया। सन् 1829 में विलियम आस्टिन बर्ट (WilliamAustin Burt) ने टाइपोग्राफर (Typographer) नामक मशीन का चलन किया। इसे ही पहला टाइपराइटर नाम दिया जा सकता है। यह साइन्स म्यूजियम (लंदन) में आज भी रखी हुई है।
इसके बाद टाइपराइटर विकास के चरण तय करता गया। यह अपनी कीबोर्ड के इसी रूप स्वरूप के साथ कम्प्यूटर के साथ जुड़ गई। बेशक टाइपराइटर आने वाले दशकों में गायब हो जाए पर इसका कीबोर्ड कम्प्यूटर से जुड़ जाने के बाद यह अपने अस्तित्व को आगे भी तब तक बरकरार रखेगी जब तक कि कम्प्यूटर के कीबोर्ड का स्थान कोई अन्य तकनीक न ले ले।
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