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पैराशूट का आविष्कार किसने और कब किया

parachute


आपने कभी स्काइडाइविंग के दौरान या कभी टीवी या फिल्म देखते समय किसी व्यक्ति को पैराशूट के जरिए उड़ते हुए जरुर देखा होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं ये पैराशूट क्या होता हैऔर कैसे उड़ता है? अगर नहीं तो इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़ें. क्योंकि आज मै आपके साथ पैराशूट की पूरी जानकारी  सांझा करूंगा.

पैराशूट एक ऐसा उपकरण है जो आपातकाल की स्थिति में वायुयान से सफलतापूर्वक जमीन पर उतरने में मदद करता है. इसके आने के बाद मानो लोगों में आसमान में जाने और गिरने का डर खत्म हो गया हो. यह दिखने में भले ही सिंपल लगता है, लेकिन इसे बनाने के पीछे वैज्ञानिको की कड़ी मेहनत छुपी हुई है. 

पैराशूट क्या होता है? –

पैराशूट एक ऐसा उपकरण है जो किसी वस्तु की गति को वातावरण के माध्यम से, घर्षण पैदा करके धीमा कर देता है. पैराशूट को बनाने के लिए हल्के और मजबूत कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है, जो आमतौर पर सिल्क या नायलॉन का बना होता है. पैराशूट के साथ कई तरह के भार को attach किया जा सकता है, जैसे कि कोई व्यक्ति, खाने की वस्तु, उपकरण,अंतरिक्ष कैप्सूल और हथियार.

पैराशूट कैसे बनता है? 

शुरुआत में पैराशूट को कैनवास कपड़े का इस्तेमाल करके बनाया जाता था. लेकिन बाद में सिल्क का इस्तेमाल किया जाने लगा. क्योंकि सिल्क वजन में हल्का, मजबूत और पतला होता है. साथ ही इसे पैक करना आसान होता है और यह लचीला और आग प्रतिरोधी भी होता है.

पैराशूट का इतिहास –

12वीं शताब्दी के शुरुआत में, चीन में एक छतरी जैसे पैराशूट का इस्तेमाल मनोरंजन के तौर पर किया जाता था, जो किसी कठोर मटेरियल से बना हुआ होता था. इसके साथ लोग किसी ऊँची जगह से जम्प करते थे और उड़ते हुए जमीन पर उतरते थे. 

सन 1495 में पैराशूट का पहला डिजाईन लियोनार्डो दा विंसी द्वारा तैयार किया गया था. यह लिनन की बनी एक पिरामिड आकार की कैनोपी थी, जो वर्ग में बने लकड़ी का फ्रेम के माध्यम से खुली रहती थी. इसका निर्माण एक ऐसे उपकरण के तौर पर किया गया था, जिसका इस्तेमाल कर आपातकाल की स्थिति में आग लगी हुई ईमारत से कूदा जा सके.

पैराशूट का विकास वास्तव में 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ था. सन 1783 में लुई-सेबेस्टियन लेनोरमैंडो  नामक एक फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी ने दो छातों को अपने हाथ में लेकर एक पेड़ से छलांग लगाईं.

दो साल बाद एक दूसरे फ्रांसीसी जे. पी. ब्लैंचर्ड  ने सिल्क का इस्तेमाल कर पहला पैराशूट बनाया. जिसे खुला रखने के लिए लकड़ी का फ्रेम  का इस्तेमाल नहीं किया गया था. इसके बाद भी इन्होने हॉट एयर बैलून से कई जम्प लगाए.

आंद्रे जेक्स गार्नेरिन ने भी हॉट एयर बैलून से पैराशूट के माध्यम से कई जम्प लगाए. सन 1797 की शुरुआत में इन्होने पेरिस में लगभग 2000 फुट (600 मीटर) की ऊंचाई से छलांग लगाई. फिर 1802 में इन्होने 8000 फुट (2400 मीटर) की ऊंचाई से छलांग लगाई. वो एक बास्केट, जो एक लकड़ी के पोल के जरिए कैनोपी से जुड़ी में हुई थी, पर सवार हुए थे. यह silk या canvas से बनी हुई थी.

इस पैराशूट सभा का वजन करीब 45 किलोग्राम था. उतराई के समय यह कैनोपी काफी तेजी के साथ हिलती थी, जिसके चलते Garnerin बीमार हो गए थे.

सन 1804 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक जोसेफ लेलैंडेस ने पैराशूट के शीर्ष पर छिद्र (कैनोपी के बीच में गोलाकार छेद) की शुरुआत की, जिससे पैराशूट का दौलन करना बंद हो गया.

अमेरिकन, पैराशूट के विकास में तब शामिल हुए, जब सन 1901 में चार्ल्स ब्रॉडविक ने एक पैराशूट पैक डिजाईन किया, जो एक रस्सी के जरिए बंधा हुआ होता था. जैसे ही पैराशूटिस्ट इसके साथ जम्प करता था, एक line जो रस्सी को हवाई जहाज से जोड़ती थी, रस्सी के टूटने की वजह बनती थी जिससे पैक खुल जाता था और पैराशूट बाहर आ जाता था.

सन 1912 में U.S. आर्मी के कैप्टन अल्बर्ट बेरी ने पहली बार किसी उड़ते हुए विमान से पैराशूट के साथ जम्प को पूरा किया था.

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद तक, पैराशूट अमेरिकन सेना के लिए मानक उपकरण नहीं बना था. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पैराशूट का इस्तेमाल बड़ी संख्या में शुरू हो गया था. यह ना केवल पायलट्स की जान बचाने के काम आता था, बल्कि सेना के जवानों की तैनाती भी इसके जरिए की जाती थी.

सन 1944 में, एक अमेरिकी जिसका नाम फ्रैंक डेरी था, ने एक डिजाईन पेटेंट कराया जिसमें कैनोपी के बाहरी किनारों पर slots को लगाया गया. इनके इस्तेमाल से पैराशूट को मोड़ा जा सकता था.

सन 1960 में, दुनिया के सबसे ऊँचे जम्प का वर्ल्ड रिकॉर्ड सेट किया गया. अमेरिकी एयर फाॅर्स के लिए परियोजना छीलन (पैराशूट जम्प की एक श्रृंखला) के टेस्ट पायलट जो किटिंगर ने 102,800 फुट (31 किलोमीटर) की ऊंचाई से एक बैलून से जम्प किया. 

शुरुआत में उन्होंने खुद को स्थिर और ऊर्ध्वाधर स्थिति में रखने के लिए केवल 6 फुट (1.8 मीटर) के पैराशूट का इस्तेमाल किया और 1150 km/hr की speed से आगे बढ़ते हुए करीब 4 मिनट और 38 सेकंड के लिए free fall को अनुभव किया.

इसके बाद 17,500 फुट (5.3 किलोमीटर) की ऊंचाई पर, 28 फुट (8.5 मीटर) के पैराशूट को खोला गया. इस प्रकार उनका नीचे गिरना करीब 14 मिनट में पूरा हुआ.

पैराशूट कैसे काम करता है?
अगर हम एक पत्थर और एक पंख को ऊंचाई से छोड़ते हैं तो ये दोनों गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरती की तरफ आएंगे. लेकिन पंख की अपेक्षा, पत्थर तेजी के साथ कम समय में धरती पर गिरेगा. इसका कारण यह नहीं है कि पत्थर का वजन ज्यादा है, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि पंख की पंखुड़ियां बाहर की तरफ निकली हुई होती हैं जो हवा में प्रतिरोध (resistance या drag) पैदा करती हैं. और ये वायु प्रतिरोध पंख की गति को धीमा कर देता है.

इसी प्रकार जब आप विमान या किसी ऊँची जगह से कूदते हैं तो आपका शरीर भी पत्थर की तरह तेजी के साथ हवा से होकर गुजरता है. जैसे ही आप अपना पैराशूट खोलते हैं, यह वायु प्रतिरोध (Air Resistance) पैदा करता है और पंख की भांति, हवा में धीमी गति के साथ बहता हुआ आपको धीरे और सुरक्षित तरीके से जमीन पर उतारता है.

पैराशूट कैसे उड़ता है?
आसमान में पैराशूट खुलने पर हवा के दबाव से एक विंग (पंख) जैसी सरंचना बना लेता है, जिसके नीचे कैनोपी पायलट उड़ सकता है. पैराशूट को नियंत्रित करने के लिए स्टीयरिंग लाइन को नीचे खींचा जाता है, जिससे wing का आकार बदल कर इसे मोड़ा जा सकता है और उतराई की दर को कम या ज्यादा किया जा सकता है. चलिए जानते हैं विस्तार से.

पैराशूट कैसे खुलता है?
पैराशूट को सफलतापूर्वक उड़ाने के लिए, पहला कदम इसे उचित तरीके से खोलना होता है. पैराशूट को अच्छे तरीके से एक पात्र के अंदर पैक किया हुआ होता है. जैसे ही पैराशूट को तैनात किया जाता है, हवा तुरंत इसमें प्रवेश करती है और पैराशूट खुल जाता है.

पैराशूट कैसे मुड़ता है?
पैराशूट अपने कंटेनर से पंक्तियां के जरिए जुड़ा हुआ होता है. ये काफी मजबूत स्ट्रिंग्स होती हैं जो पैराशूट के नीचे की ओर विभिन्न बिंदुओं से जुड़ी हुई होती हैं.

ये स्टीयरिंग पंक्तियां पैराशूट के पीछे लगी हुई होती हैं. इनपर टॉगल लगे हुए होते हैं, जिन्हें पकड़कर skydiver आसानी से पैराशूट को नियंत्रित कर सकता है. स्काइडाइवर दोनों या एक पक्ष के टॉगल को खींचकर पैराशूट को मोड़ सकता है. उदाहरण के लिए अगर दाएं तरफ के टॉगल को खिंचा जाए तो पैराशूट दाएं तरफ मुड़ेगा और अगर बाएं तरफ के टॉगल  को खिंचा जाए तो पैराशूट बाएं तरफ मुड़ेगा. 

दोनों टॉगल को एक साथ खींचने पर पैराशूट की उतराई दर (Descent Rate) कम हो जाती है और पैराशूट धीमी गति से जमीन पर आने लगता है.

पैराशूट नीचे कैसे आता है?
पैराशूट का डिजाईन स्वाभाविक रूप से कुछ ऐसा होता है कि वह एक प्रबंधनीय गति के साथ नीचे की तरफ आता है. जब स्काइडाइवर पैराशूट को टॉगल  के जरिए खींचकर मोड़ता है तो यह अपने आप थोड़ा तेजी के साथ नीचे आने लगता है. 

अधिक उन्नत पायलट, की ओर झुका नाम की एक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जो पैराशूट को तेजी के साथ नीचे की तरफ लाती है और जमीन पर भूमि  करते समय एक झूमने की आवाज पैदा करती है.

पैराशूट जमीन पर लैंड कैसे करता है?
जब स्काइडाइवर जमीन के नजदीक पहुँचता है, वह टॉगल  का इस्तेमाल कर पैराशूट की उतराई (descent) को कम-से-कम धीमा कर देता है और soft touch के साथ जमीन पर उतर जाता है.

रिज़र्व पैराशूट
एक स्काइडाइवर  हमेशा दो पैराशूट के साथ छलांग लगाता है. इनमें एक मुख्य पैराशूट होता है जबकि दूसरा रिज़र्व पैराशूट होता है. वैसे तो पैराशूट बहुत बेहतर तरीके से बनाए गए होते हैं और समय पर खुलते हैं. लेकिन पैकिंग प्रक्रिया के दौरान उपयोगकर्ता की गलती से पैराशूट में प्रॉब्लम आ सकती है. इसलिए आपातकालीन की स्थिति में बचने के लिए रिज़र्व पैराशूट का इस्तेमाल किया जाता है.


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