दिल की धड़कन को नियंत्रित करने के लिए पेसमेकर (कृत्रिम पेसमेकर) लगाया जाता है जो कि एक चिकित्सा उपकरण है। यह दिल अर्थात हृदय की मांसपेशियों से सम्पर्क करने के लिए इलेक्ट्रोड द्वारा प्रदत्त आवेगों का उपयोग करता है। दिल के पर्याप्त तेजी से काम न करने या फिर दिल की विद्युत चालन प्रणाली में अवरोध आ जाने में हृदय गति को सामान्य बनाए रखता है। इसमें दिल के सुधार हेतु भिन्न-भिन्न अंग विन्यास के उद्दीप्तिकारक के बहुत सारे इलेक्ट्रोड होते हैं।
सन् 1899 में जे.ए. मैकविलियम ने अपने प्रयोगों के बारे में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में लिखा कि कोष्ठक संबंधी संकुचन से दिल की धड़कन बंद हो जाने के मामले में मानव हृदय पर विद्युतीय आवेग या धक्के का संप्रयोग संभव है और आवेगों से 60-70/प्रति मिनट के बराबर के अंतराल में प्रति मिनट 60-70 धड़कन की हृदय की लय फिर से पैदा की जा सकती है।
1936 में, सिडनी के रॉयल प्रिंस अल्फ्रेड अस्पताल के डॉ० मार्क.सी. लिडवेल ने सिडनी विश्वविद्यालय के भौतिकी विज्ञानी एडगर एच. बूथ के सहयोग से एक पोर्टेबल उपकरण आविष्कृत किया, जिसे एक 'विद्युतीय बिंदु में प्लग किया गया' और जिसका ‘एक ध्रुव एक सशक्त लवण घोल सिक्त त्वचा पैड के साथ अनुप्रयुक्त किया था', जबकि दूसरा ध्रुव 'नुकीले बिंदु को छोड़ विद्युत रोधित सुई से युक्त' था जो हृदय के उपर्युक्त कोष्ठ से प्लग किया हुआ था।
1928 में, 'पेसमेकर दर लगभग 80 से 120 प्रति मिनट के हिसाब से परिवर्तनीय था और उसी तरह वोल्टेज भी 1.5 से 120 वोल्ट के बीच परिवर्तनीय था, इस उपकरण का इस्तेमाल सिडनी के क्राउन स्ट्रीट वीमेंस अस्पताल में एक नवजात शिशु को पुनर्जीवित करने के लिए किया गया था, जिसका दिल उद्दीप्तिकरण के 10 मिनट के बाद अपने लय पर धड़कने लगा था।
1942 में स्वतंत्र रूप से कार्यरत् अमेरिकी शरीर-क्रिया विज्ञानी अल्बर्ट हेमैन ने खुद ही एक इलेक्ट्रो मेकेनिकल उपकरण की खोज की, जो एक हस्त-चालित मोटर स्प्रिंग-वुड से संचालित होता था। हेमैन ने खुद ही अपने आविष्कार का उल्लेख एक कृत्रिम पेसमेकर के रूप में किया, इस नाम का इस्तेमाल आज भी हो रहा है।
सन् 1942 ई० से अब तक इसमें एक के बाद एक सुधार हो रहे हैं। पर वर्तमान में अपने अत्यंत सुधरे रूप में हृदय रोग के मरीजों को हृदय की धड़कन सामान्य रखने के लिए बगैर किसी जीवन के खतरे के लगाया जाता है। यह अब वक्ष की दीवार में सर्जिकल चीरा लगाकर दिल की मांसपेशियों से संलग्न इलेक्ट्रोड से जोड़ दिया जाता है। भविष्य में इसमें और भी सुधार होने की दिशा में कार्य हो रहा है।
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