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बारूद का आविष्कार किसने और कब किया

 
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बारूद एक विस्फोटक रासायनिक मिश्रण है। इसे गन पाउडर (gunpowder) या अपने काले रंग के कारण काला पाउडर (black powder) भी कहते हैं। बारूद गंधक, कोयला एवं शोरा (पोटैसिअम नाइट्रेट या साल्टपीटर) का मिश्रण होता है और यह मानव इतिहास का सर्वप्रथम निर्मित विस्फोटक था। बारूद का प्रयोग पटाखों एवं नोदक (प्रोपेलन्ट) के रूप में अग्निशस्त्रों (firearms) में किया जाता है। बारूद चिंगारी पाकर तेजी से जलता है जिससे भारी मात्रा में गैस एवं गरम ठोस पैदा होता है।

आधुनिक काल में बारूद एक "कमजोर विस्फोटक" (low explosive) के रूप में जाना जाता है क्योंकि विस्फोट होने पर यह अपश्रव्य तरंगें (subsonic) पैदा करता है न कि पराश्रव्य तरंगें (supersonic)। इसलिये बारूद के जलने से उत्पन्न गैसे इतना ही दाब पैदा कर पाती हैं जो गोली को आगे फेंकने में सहायक होती है किन्तु बन्दूक की नली को क्षति नहीं पहुंचा पाती। किसी चट्टान के विध्वंस या किसी किले को तोडने के लिये बारूद का प्रयोग उपयुक्त नहीं होता बल्कि इनके लिये "टी एन टी" आदि अच्छे रहते हैं। वर्तमान समय में बारूद के मानक मिश्रण में ७५% शोरा, १५% कोमल लकड़ी का कोयला तथा १०% गंधक होता है।

बारूद का   इतिहास-

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बारूद का आविष्कार न होता तो न ही बम-पटाखे बनते और न ही रौकेट अंतरिक्ष में भेजे जा सकते। बारूद को  गन पाउडर (Gunpowder) या अपने काले रंग के कारण काला पाउडर (Black powder) भी कहते हैं।

बारूद बनाने के लिए शोरा, गंधक और लकड़ी के कोयले का चूरा मिलाया जाता है। बारूद बनाने के लिए सब से आवश्यक रसायन है शोरा, अंगरेजी में शोरा को ‘साल्ट पीटर’ कहते हैं। वैज्ञानिक शोरा को ‘पोटैशियम नाइट्रेट’ कहते हैं।

वैज्ञानिकों ने परीक्षणों से ज्ञात किया है कि कोई भी वस्तु औक्सीजन के बिना नहीं जल सकती, लेकिन बारूद औक्सीजन के बिना जलता है। कुछ वस्तुएं ऐसी भी होती हैं जो जलने के लिए स्वयं औक्सीजन उत्पन्न करती हैं, बारूद भी ऐसी ही वस्तु है। इस में मिलाए गए गंधक और कोयले के चूरे को जलाने के लिए औक्सीजन शोरे से मिलती है, ऐसी स्थिति में बारूद को जलाने के लिए वायुमंडल की औक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती। बारूद का आविष्कार पक्के तौर पर किसने किया था, यह आज भी एक विवादित मुद्दा है। इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ सका है। बारूद की खोज के लिए सबसे पहला नाम चीन के एक व्यक्ति ‘वी बोयांग‘ का लिया जाता है। कहते हैं कि सबसे पहले उन्हें ही बारूद बनाने का आईडिया आयास। माना जाता है कि प्राचीन काल में चीन में कीमियागार पारसमणि की गोलियां बनाने के लिए दिनरात रासायनिक प्रयोग किया करते थे। कई हजार वर्ष पहले कीमियागरों के प्रयोग से बारूद का जन्म हुआ, किसी कीमियागर ने शोरे, गंधक और लकड़ी के कोयले के चूरे को मिलाया तो अचानक विस्फोट हुआ बाद में इसको ही उन्होंंने ‘बारूद’ का नाम दिया।

300 ईसापूर्व में ‘जी हॉन्ग’ ने इस खोज को आगे बढ़ाने का फैसला किया और कोयला, सल्फर और नमक के मिश्रण का प्रयोग बारूद बनाने के लिए किया। इन तीनों तत्वों में जब उसने पोटैशियम नाइट्रेट को मिलाया तो उसे मिला दुनिया बदल देने वाला ‘गन पाउडर।

चीन के एक चिकित्सक सुन सिम्याओ की 618 में लिखी एक पुस्तक से बारूद की जानकारी मिलती है। उस समय चीन में बारूद को ‘हुओयाओ’ कहा जाता था, एक हजार ईस्वी में बारूद को हथगोलों और रौकेटों में इस्तेमाल किया जाने लगा था।

बारूद पर 13 वीं सदी तक चीन का ही अधिकार रहा, माना जाता है कि चीन ने इस बात को गुप्त रखा था। किन्तु धीरे-धीरे दुनिया भर में एक नए आधुनिक आविष्कार की बात तेज़ी से फैल गयी, जब दुनिया को इसका पता चल गया तो चीन ने इसका फायदा उठाया और इसे अपने व्यापार का एक हिस्सा बना लिया।

कुछ वर्ष बाद लोहे की नलियों में बारूद भर कर हथियार बनाए जाने लगे, लोहे की तोपें भी बारूद से बनने लगीं, मंगोल योद्धाओं के माध्यम से बारूद की जानकारी 13वीं सदी में यूरोप में पहुंची, भारत में भी बाबर तोपों के साथ आया था।


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