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इन्सुलिन की खोज किसने और कब किया ?

 
insulin

इन्सुलिन हमारे शरीर के अंदर स्थित अग्नाशय व पाचक ग्रंथि (Pancreas) द्वारा तैयार किया जाने वाला हार्मोन है; जो हमारे द्वारा खाये जाने वाले खाद्य पदार्थों से मिलने वाले कार्बोहाइड्रेट से शर्करा (Sugar) और बाद में प्रयोग करने के लिए संचित किए गये ग्लूकोज (Glucose) को शरीर द्वारा प्रयोग करने की अनुमति देता है। अगर अग्नाशय लंबे समय तक उचित मात्रा में खून में इन्सुलिन का स्राव नहीं करता तो इससे खून में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती हैं और Diabetes (मधुमेह) की बीमारी हो जाती है। इस बीमारी के उपचार के लिए वैज्ञानिकों ने एक दवा तैयार कि जिसे ‘इन्सुलिन’ ही कहा जाता है। अगर आपको नहीं पता कि Insulin ki khoj kisne ki? तो हम बता दे कि इसकी खोज कनाडा के चिकित्सा विज्ञानी सर फ्रेडरिक ग्रांट बैंटिंग (Sir Frederick Grant Banting) द्वारा 1921 में कि गई थी।

इस महत्वपूर्ण खोज के लिए फ्रेडरिक ग्रांट बैंटिंग तथा उनके साथी विज्ञानी प्रोफेसर जाॅन जेम्स रिकर्ड मैकलियोड (J. J. R. Macleod) को संयुक्त रूप से 1923 में चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था।

इन्सुलिन के खोज की कहानी (History of The Discovery of Insulin)

वैज्ञानिकों को पता नहीं था कि मधुमेह रोग कैसे होता है, क्या कारण है, धीरे-धीरे पश्चिमी जगत के लिए यह एक नयी जानकारी थी। सन् 1775 में मैथ्यू डाबसन (Matthew Dobson) ने यह रहस्योद्घाटन किया कि केवल रोगी का मूत्र ही मीठा नहीं होता, बल्कि उसके रक्त में भी शर्करा पायी जाती है। इससे यह बात साफ हुई कि डायबिटीज केवल गुर्दे का रोग ही नहीं है, अपितु शरीर के उपाचय (metabolism) और पाचन से भी इसका संबंध है।

कई छोटी बड़ी खोजें होती रही हैं जो आगे चलकर डायबिटीज के खोज में बड़ी मददगार सिद्ध हुई है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक बर्नार्ड क्लोड ने बताया कि एक एंजाइम की मदद से जिगर (Liver) में शर्करा बनती है। सन् 1869 में पाल लैंगरहेन्स ने अग्नाशय में कुछ विशेष कोशिकाओं का पता लगाया जिन्हें आइसलेट आफ लैंगरहैंस नाम दिया गया।

उपरोक्त खोजों के बावजूद भी इस क्षेत्र में कोई विशेष वैज्ञानिक दिशा नहीं मिल रही थी। आज से 129 वर्ष पूर्व 1889 में संयोगवश एक खोज ने वैज्ञानिकों को सही रास्ता दिखाया। ऑस्कर मिन्स्की और जोसेफ वाॅन मेरिंग नामक वैज्ञानिक यह पता लगाना चाह रहे थे कि क्या कुत्ता बिना अग्न्याशय के जिंदा रह सकता है? एक दिन मिन्स्की ने कुत्ते का अग्नाशय काट कर बाहर निकाल दिया, कुत्ता जिंदा रहा, लेकिन उसमें मधुमेह के सारे लक्षण प्रकट हो गये। यह भी पता लगा कि अब कुत्ता वसा व प्रोटीन ठीक से पचा नहीं पाता है, इससे तय हो गया कि रहस्य अब अग्न्याशय (pancreas) में ही छिपा हुआ है। 

19वीं शताब्दी के शुरूआती दौर में डायबिटीज का सुराग हाथ लग गया। सन् 1901 में यूजीन लिंडसे ओपी ने बताया कि डायबिटीज के शिकार बने लोगों के अग्न्याशय की आइलेट आफ लैंगरहैंस की कोशिकाओं में बदलाव आ जाता है। इसी को आधार मान कर 1908 में बर्लिन में डॉ जार्ज लुडविक ज्यूलजर ने अग्न्याशय का निचोड़ तैयार किया और इसे डायबिटीज के आठ रोगियों पर आजमाया, रोगियों की दशा में काफी सुधार हुआ, लेकिन जहरीले असर भी देखे गये, नतीजतन यह काम यहीं रह गया। इसके बाद सर एडवर्ड शापी लैटिन शब्द आइलैंड से इस रसायन का नाम “इन्सुलिन” (Insulin) रखा।

प्रसिद्ध शरीर क्रिया वैज्ञानिक डाॅ. जे. आर. मैकलियोड ने इन्सुलिन तैयार करने की जिम्मेदारी फ्रेडरिक ग्रान्ट बैन्टिंग और हर्वट बेस्ट नामक वैज्ञानिकों को सौंपी। बैन्टिंग और बेस्ट की जोड़ी को प्रयोगशाला में काम करने के लिए न कोई आर्थिक प्रोत्साहन मिला, और न ही जर्मन भाषा का ज्ञान न होने से उन्हें ज्यूजलर के कार्य के बारे में जानकारी थी। बैन्टिंग और बेस्ट ने अग्न्याशय का निचोड़ तैयार किया और कुत्तों पर आजमाया। उन्होंने पाया कि अग्न्याशय विहीन कुत्तों के मूत्र में शर्करा की मात्रा आश्चर्यजनक रूप से कम हो रही है। मैकलियोड तीन महीने की स्कॉटलैंड यात्रा कर वापस आने पर बहुत खुश हुए। उन्होंने इस पर शोध-वृतांत लिखने को कहा।

इसके बाद पैंक्रियाज के निचोड़ को रोगियों पर आजमाया गया तो कई रोगियों पर इसका जहरीला असर हुआ। एक फिर ऐसा लगा कि समस्या पुनः दोहराई जा रही है, ऐसे में एक कुशल निदेशक के रूप में डॉ. मैकलियोड ने निचोड़ को शुद्ध करने की सोचा, उन्होंने यह जिम्मेदारी जैव रसायन विज्ञानी जेम्स बी काॅलिप को सौंपी। काॅलिप ने कुछ ही दिनों में यह समस्या हलकर शुद्ध इन्सुलिन तैयार कर दिया।

जनवरी 1922 ये इन्सुलिन का उपयोग शुरू हो गया। इसे सबसे पहले बिगड़े मधुमेह रोगियों पर आजमाया गया, इसके बाद इन्सुलिन की अन्नत कहानी चल निकली। इस मानव उपयोगी खोज का नतीजा यह है कि आज करोड़ों लोगों को नया जीवन-दान मिल रहा है, कई मौतें रोकी जा रही हैं। मधुमेही व्यक्ति अब सामान्य जीवन जीने लायक हो गया है और अब डायबिटीज की नकेल मानव हाथ में इंसुलिन के रूप में लगी है, क्योंकि इन्सुलिन अब एक जीवन रक्षक औषधि बन गयी है।

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