साथियों आज हम बात करेंगे लालटेन की यह आज भी भारतीय गाँवो के कुछ घरों में देखने को मिल जाएगी। यह माना जाता है कि इसकी खोज लगभग 1300 वर्ष पूर्व हुयी थी ओर इसके आविस्कार का मुख्य कारण है मिट्टी का तेल जब मिट्टी के तेल कि खोज हुयी और पता चला कि मिट्टी के तेल का उपयोग हम किन किन कार्यों मे कर सकते हैं तो प्रकाश के श्रोत के रूप मे इसका आविष्कार हुआ।
प्रारम्भ में इसका उपयोग सिर्फ सेना करती थी। इसको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना आसान था और रात्रि के समय प्रकाश का बहुत अच्छा श्रोत था क्योंकि बारिश और आँधी में भी इसका उपयोग किया जा सकता था। इसीलिए भारत में यह प्रकाश का मुख्य साधन बन गया। धीरे - धीरे इसका उपयोग परिवहन रेल के सिगनल के रूप मे होने लगा । इसका उपयोग रंगीन प्रकाशीय सजाबाट के रूप में भी होने लगा।
प्रकाश देने वाले साधनों में लालटेन सबसे प्राचीन साधन का सुधरा रूप है। पाषाण काल से आगे बढ़ने पर जब मानव ने धरती पर झोपड़ियां बनाकर रहना आरम्भ किया तब उसने रात्रिचर प्राणियों से रक्षा के लिए अपने चारों ओर आग जलाकर रखने का कार्य किया। उसके रहने का निवास स्थान जब इस लायक मजबूत बना लिया कि जंगली जानवरों से रक्षा हो सके तब भी उसे रात के समय प्रकाश की आवश्यकता बनी रही।
उसने पशु की चर्बी से दीपक रूपी पात्र को रोशन किया। बाद में चर्बी का स्थान मिट्टी का तेल (केरोसिन ऑयल) ने ले लिया। केरोसिन ऑयल ने दक्षिण भारत में घासलेट का नाम पाया। जलते दीपक की लौ को तेज हवा के झोंके से बुझने से बचाने के लिए मानव ने उसे ऐसा आवरण दिया जो प्रकाश का पारदर्शी हो। यह कांच का आवरण था। इस आवरण को पाते ही प्रकाश के इस स्रोत ने लालटेन का नाम पाया।
पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां अभी बिजली का पहुंचना मुमकिन नहीं हो पाया वहां आज भी लालटेन घर-घर में पायी जाती है।
लालटेन का आविष्कार ब्रिटिश सैनिकों की सुविधा के लिए ब्रिटिश टेक्नीशियनों ने किया। उस समय लालटेन का रंग हरा रखा गया। सैनिकों के ज्यादहतर उपकरणों, इस्तेमाल की चीजों, वर्दियों का रंग हरा इसलिए रखा गया है ताकि हवाई हमले के समय दुश्मन को जमीन पर पड़ाव डाले सैनिक टुकड़ी का सही अनुमान न हो सके; पेड़-पौधों, घास की हरियाली एक हिस्से के रूप में वे भ्रामक स्थिति में रहे। अंग्रेजी में इसने लैन्टर्न (lantern) नाम पाया।
प्रकाश स्रोत के अतिरिक्त इसका उपयोग संकेत देने (सिगनलिंग) के लिए भी किया जाता है। रेलगाड़ी के सिगनल देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। चीन, जापान में कागज की लालटेन सजावट के लिए, कंदील (लटकाने) की शक्ल में इस्तेमाल में आती है।
केरोसीन लालटेन में ज्वलनशील ईंधन विषाक्त गैसों का उत्सर्जन करता है, इसलिए आधुनिक रूप में बैटरी संचालित लालटेन भी इस्तेमाल में लायी जाने लगी है। बैटरी संचालित लालटेन, केरोसिन लालटेन की तुलना में आसानी से उपायेग में आने वाली और अपेक्षाकृत अधिक टिकाऊ है।
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