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घन वाद्य यंत्र लिस्ट संख्या-दो

 ये ठोस वाद्य होते हैं। ध्वनि उत्पन्न करने के लिए कंपन करते हैं जैसे कि घंटी, गोंग या खड़खड़ जिन पर आघात किया जाता है, हिलाया जाता है या इन पर खुर्चा जाता है।  इडियोफ़ोनिक वाद्य या स्वयं-कम्पित्र, अर्थात ठोस पदार्थ के वाद्य, जिनकी अपनी लोचदार प्रकृति के कारण उनकी स्वयं की एक गूँज होती है, जो इन पर आघात किए जाने, खींचे जाने, या घर्षण या वायु से उत्तेजित किए जाने पर तरंगों में उत्सर्जित होती है।

इस समूह के वाद्य आमतौर पर प्रहारक या हथौड़े से बजाए जाते हैं। ये वाद्य स्पष्ट स्वरमान उत्पन्न करने में सक्षम नहीं हैं जो एक राग बनाने के लिए आवश्यक होता है। यही कारण है कि इनका उपयोग शास्त्रीय संगीत में सीमित है।

13-जगते

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जागते धातु से निर्मित एक ठोस वाद्य यंत्र है। यह कर्नाटक क्षेत्र के नृत्य नाटक - यक्षगान में लयबद्ध संगत के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

भिक्षुकों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक चपटी धात्विक चकती होती है, इस पर लकड़ी से आघात किया जाता है। यह कर्नाटक क्षेत्र के नृत्य नाटक - यक्षगान में लयबद्ध संगत के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जगते का व्यास लगभग 21 सेंटीमीटर होता है।

14-चिमटा

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चिमटा लोहे और धातु से बना एक ठोस वाद्य यंत्र है। यह पंजाब में पाया जाने वाला एक लोक वाद्य यंत्र है। इसका उत्तर भारत में लोक, पारंपरिक और भक्ति संगीत में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। यह विशेष रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में उपयोग किया जाता है।

एक लंबा लोहे का चिमटा। इसमें धातु से बनी प्लेटों की बारह जोडियाँ ढीले रूप से प्रत्येक ब्लेड से जुड़ी होती हैं। लोहे का एक छल्ला इसके मोड़ पर स्थित होता है। इसे दोनों हाथों में पकड़ा जाता है, झंकार ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इसे लयबद्ध ढंग से हिलाया जाता है। यह उत्तर भारत में लोक, पारंपरिक और भक्ति संगीत में उपयोग किया जाता है। विशेष रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में।

15-जलरा

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जलरा धातु से बना एक ठोस वाद्य यंत्र है। प्यालों के आकार के ये झांझ दक्षिण भारत में पाए जाते हैं।
सबसे बड़े झांझ के अनुपात में भी जलरा मोटा होता है। इनको बिजली से बजने वाली घंटी के समान आवाज़ उत्पन्न करने के लिए बजाया जाता है। ये इनके बीच से हो कर गुज़रने वाली डोर से बंधे होते हैं। प्लेट की बाईं ओर लगे प्याले-नुमा झांझ को ताल कहते हैं और इनको इस तरह से बनाया जाता है कि बजाने पर केवल इनका किनारा ही भिड़ा करे।

16-झांझ
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झांझ कपास और घंटे धातु से बना एक ठोस वाद्य यंत्र है। यह मंदिर वाद्य यंत्र उड़ीसा में पाया जाता है। उड़ीसा में संगीत की 'पाला' और 'कीर्तन' शैलियों में द्वितीयक लयबद्ध संगत के रूप में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है।
घंटे धातु की बनी दो मध्यम आकार की चकतियाँ (डिस्क)। लगी हुई कपास की रस्सी द्वारा पकड़ी जाती हैं और एक दूसरे के अग्र-भाग (मुख) से टकराई जाती हैं। उड़ीसा में संगीत की 'पाला' और 'कीर्तन' शैलियों में द्वितीयक लयबद्ध संगत के रूप में उपयोग किया जाता है।

17-झांझ
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झांझ धातु और कपडे से निर्मित एक ठोस वाद्य यंत्र  है यह लोक वाद्य यंत्र सिक्किम में पाया जाता है।
झांझ सिक्किम के लोक नृत्यो के लिए एक महत्वपूर्ण संगत  है ढोल और झांझ के साथ ताल दी जाती है।

18-टपेट्टा गुल्लू-
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“टपेट्टा गुल्लू टिन से निर्मित एक ठोस वाद्य यंत्र है। यह जनजातीय वाद्य यंत्र आंध्र प्रदेश में पाया जाता है। इस वाद्य यंत्र को आंध्र प्रदेश की जनजातियों द्वारा मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है।“

“शंक्वाकार ढाँचा, चपटा तल, केंद्र में बड़ा ध्वनि छिद्र, टिन से बना एक वाद्य यंत्र। चौड़ा मुख टिन की चादर से ढका हुआ। इस वाद्य यंत्र को बजाते समय कमर पर बाँधकर और नृत्य की लय पर इसके मुख को हाथों से पीटा जाता है। यह आंध्र प्रदेश की जनजातियों द्वारा उपयोग किया जाता है।“

19-टप्पू
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टप्पू धातु से निर्मित एक ठोस वाद्य यंत्र है। खंजीरे के समान, यह वाद्य यंत्र केरल में पाया जाता है।
“यह खंजीरे के समान है लेकिन आकार थोड़ा बड़ा हो सकता है और इस पर छिपकली की खाल के बदले बकरी की खाल मढ़ी हो सकती है। इसके किनारे को एक हाथ में पकड़ा जाता है और दूसरे हाथ से बजाया जाता है। इस वाद्य यंत्र को मुसलामानों द्वारा उनके कुछ लोक गायन जैसे अर्बाना मुट्टू के लिए, और भिक्षुकों आदि द्वारा उपयोग करते देखा जाता है। अत्यधिक चौड़े किनारे और मोटी खाल के साथ एक बड़ा वाद्य यंत्र इसी नाम से पाया जाता है। इसे एक छड़ी से पीटा जाता है और यह काफी बड़ी ध्वनि का उत्सर्जन करता है। कुछ मामलों में, पीपा धातु से बना होता है (आमतौर पर फेंका हुआ रंग या रोगन ड्रम)। त्रिचूर जिले में इसे चेट्टी वाद्यम के नाम से जाना जाता है, कोंकणी बोलने वाले कुडूमी चेट्टी (या मूपन) इसे मग्गोडा कहते हैं। यह कवड़ी अट्टम, पुली काली (ओणम टाइगर) और इसके जैसे लोक उत्सवों के लिए उपयोग किया जाता है। इसे कुछ इलाकों में मूरी चेंदा भी कहा जाता है।"

20-टिंगशाग्स
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टिंगशाग्स धातु से बने ठोस वाद्य यंत्र हैं। यह सिक्किम में पाया जाने वाला तिब्बती संगीत वाद्य यंत्र है।
टिंगशाग्स प्रायः अलंकृत नही होते हैं, लेकिन इसका बाहरी भाग वनस्पतीय और ज्यामितीय रूपांकनों से सजा हुआ है। यह छोटा बूटा एक डंठल से सजा हुआ है जिसमें केवल एक फूल है और तीन या चार ऐसे ही डंठल हैं। एक लंबी पत्ती के साथ दो संयुग्मित डंठल, स्वस्तिक के साथ, फ्लेयर पर उत्कीर्ण किए गए हैं। स्वस्तिक का चित्रण मोटा है और इसमें पूर्णता का अभाव है। समबाहु तिरछे स्वस्तिक में भुजाएँ समकोण पर मुड़ी हैं, सभी एक ही चक्रीय दिशा और दक्षिणावर्त में हैं।

21-चटकुला
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चटकुला लकड़ी और धातु से बना एक ठोस वाद्य यंत्र है। यह मध्य प्रदेश में पाया जाने वाला एक धार्मिक वाद्य यंत्र है। यह मुख्य रूप से भक्ति और पारंपरिक संगीत में उपयोग किया जाता है। 

ऊपर उठे हुए हैंडलों और उंगलियों को डालने के लिए छेदों से युक्त लकड़ी के खटक (क्लैपर्स) की एक जोड़ी। दोनों सिरों पर बंधी हुई बजने वाली घंटियाँ (जिंगल बेल्स)। एक हाथ से बजाया जाता है और आमने-सामने रख कर करताल ध्वनि दी जाती है। भक्ति और पारंपरिक संगीत में उपयोग किया जाता है। 

22-चाढ़
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चाढ़ बेंत से बना एक ठोस वाद्य यंत्र है। यह लोक वाद्य यंत्र राजस्थान में पाया जाता है।
एक जोड़ी सामान्य बेंत की लकड़ी जिनका प्राकृतिक आकार तो बना रहता है लेकिन वो डांडिया से अत्यधिक लंबी होती हैं। चाढ़ का उपयोग गिंदार और गैर नामक लोक नृत्यों में किया जाता है। बेंत की लकड़ियों का उपयोग मैसूर में भी समान उद्देश्य के लिए ही होता है। इस वाद्य यंत्र की लंबाई लगभग 101 सेमी. होती है।

23-चिट्टिका
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चिट्टिका लकड़ी से बना एक ठोस वाद्य यंत्र है। यह कर्नाटक में पाया जाने वाला एक मंदिर का वाद्य यंत्र है। यह लकड़ी के खटक (क्लैपर्स), याचकों और भक्ति गायकों द्वारा सबसे अधिक उपयोग में लाये जाते हैं।

लकड़ी के गोल जोड़ीदार खटक (क्लैपर्स), हैंडल सहित, जिसे एक दूसरे से टकराकर बजाया जाता है। याचकों और भक्ति गायकों द्वारा उपयोग किया जाता है।

24-चिट्टीकटल
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चिट्टीकटल लकड़ी और धातु से बना एक ठोस वाद्य यंत्र है। यह कर्नाटक में पाया जाने वाला एक लोक वाद्य यंत्र है। लकड़ी के जोड़ीदार खटक (क्लैपर्स) को ज़्यादातर भक्ति गायकों द्वारा उपयोग किया जाता है।

टकराने वाली सतहों के साथ लकड़ी के खटक (क्लैपर्स) की जोड़ी। इसके बाहरी छोर पर बजने वाली घंटियाँ लगी होती हैं। इसे एक हाथ से लयबद्ध रूप में ताली की तरह बजाया जाता है। यह भक्ति गायकों द्वारा उपयोग किया जाता है। कभी-कभी लोक संगीत में उपयोग किया जाता है।


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