संगीत हम सभी को लुभाता है। कहा जाता है कि संगीत के पीछे भगवान चलता है। संगीत की महत्ता इसी बात से पता चल जाती है। शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिसे संगीत पसंद न हो।
प्रचलित संगितिक ग्रन्थ पंडित शारंगदेव कृत “संगीत रत्नाकर” में संगीत की परिभाषा “गीतम, वादयम् तथा नृत्यं त्रयम संगीतमुच्यते” कहा गया है। गायन, वाद्य वादन एवम् नृत्य; तीनों कलाओं का समावेश संगीत शब्द में माना गया है ।
प्राचीन काल से संगीत का बड़ा महत्व रहा है। धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं में संगीत का प्रचलन होता रहा, संगीत हमारी संस्कृति की आत्मा मानी गयी है। वैदिक
काल में अध्यात्मिक संगीत को मार्गी तथा लोक संगीत को ‘देशी’ कहा जाता था। कालांतर में यही शास्त्रीय और लोक संगीत के रूप में दिखता है।
काल में अध्यात्मिक संगीत को मार्गी तथा लोक संगीत को ‘देशी’ कहा जाता था। कालांतर में यही शास्त्रीय और लोक संगीत के रूप में दिखता है।
प्राचीन काल में ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा आरम्भ हुई , यहाँ तक की मन्दिर में यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे ।इसके अतिरिक्त प्राचीन काल में संगीत का प्रदर्शन निम्नलिखित अवसरों के दौरान किया जाता था जैसे कि: शाही दरबार में आयोजित जलसों के दौरान, संगीत समारोहों और त्योहारों में,गांवों में आयोजित मनोरंजिक कार्यक्रमों के दौरान, इत्यादि। वास्तव में संगीत की उत्पत्ति धार्मिक प्रेरणा और अनुष्ठान, सांस्कृतिक और पारंपरिक अभिव्यक्ति के लिए हुई थी,परन्तु संगीत धीरे-धीरे लौकिक जीवन से संबन्धित होने लगा , और इसी के साथ गायन वादन और नृत्य के नये-नये रूपों का आविष्कार होने लगे , कुछ १००एक साल पहले चित्र संगीत का आगमन हुआ, कई श्रेष्ट संगीतदिग्दार्शको ने इन फिल्मो में संगीत दिया,व् शास्त्रीय संगीत को लोकप्रियता के नए शिखरों परपहुचाया, वह फ़िल्म संगीत भी हमारी संगीतात्मकता का,लयात्मकता का,गुणात्मकता का उत्कृष्टनमूना था।
परन्तु प्राचीन समय में संगीत में जो पवित्रता थी वो वर्तमान समय में कम होती जा रही हैं ।पिछले कुछ वर्षो से फ़िल्म संगीत के स्तर में बहुत ही गिरावट आई हैं, जहा कभी मीरा के भजन गूंजा करते थे, पवित्र प्रेम के अफसाने हुआ करते थे, देवो की वंदना हुआ करती थी,व्हीअश्लील शब्दों की भरमार हैं, जहा स्वर,ताल ,लय का सुंदर सम्मिश्रण हुआ करता था की श्रोता सुनकर हीझूम उठे,वही बेसुरपनहैं, गायक को न स्वर से तात्पर्य हैं, न श्रुतियों,रागों से प्रेम फ़िल्म संगीत धिनचक-धिनचक की लय पर चल रहा हैं, और आज के श्रोता उसे सुन रहे हैं, खरे खरेशब्दों में कहा जाए तो पुराने सुंदर गीतों को बुरी तरह तहस नहस किया जा रहा हैं। अपवाद स्वरुप कुछएक गाने अच्छे बन रहे हैं। लेकिन संगीत की समझ दिनों दिन श्रोताओ में कम होती जा रही हैं ,वह संगीत जोपरब्रह्म स्वरुप था, जिसे सुनकर तमाम दुःख अवसाद रोग दूर हो जाते थे, वह संगीत जो अपनी भावपुर्नतासे श्रोता को आनंद की चरमसीमा पर पंहुचा देता था ,रुला देता था.वो संगीत कहा हैं, क्या हो गया हैं लोगो की पसंद को? कम ही लोग संगीत को जानना चाहते हैं,समझाना चाहते हैं, और जिन्हें इसकी समझ हैं वह इसकी स्थिति पर रो रहे हैं।
प्राचीन समय और वर्तमान समय के संगीत के बारे में आम तौर पर एक ही तथ्य सामने आता है की प्राचीन काल के संगीत की अपेछा वर्तमान काल के संगीत में रचनात्मकता की कमी है, और आज लोगों के जीवन में संगीत केवल मनोरंजन करने वाला एक तत्व रह गया है और कुछ नहीं हैं, आज की युवा पीढी बहुत ही गुनग्राही, व् समझदार हैं। कम से कम वह – इस क्षेत्र में अपनी जानकारी बढाये। अपने संगीत को समझे, सीखे, जाने,यह उनका दायित्व ही हैं,तभी हम वर्षो से संजोयी हुई इस श्रेष्ट कला को सहेज पाएंगे।
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