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सुषिर वाद्य यंत्र लिस्ट संख्या-चार

 ये वायु से बजने वाले वाद्य होते हैं। इनमें ध्वनि उत्पन्न करने के लिए, बिना तारों या झिल्ली के इस्तेमाल के और यंत्र के बिना कम्पित हुए, वायु के टुकड़े को कम्पित किया जाता है,जिससे ध्वनि में बढोत्तरी  होती है। इन उपकरणों की तान संबंधी गुणवत्ता उपयोग किए गए ट्यूब के आकार और आकृति पर निर्भर करती है। वे गहरे बास से लेकर कर्णभेदी तेज़ सुरों तक, जोर की और भारी ध्वनि उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। ये खोखले वाद्य हैं जिनमें हवा से ध्वनि उत्पन्न की जाती है। वाद्य में छिद्र खोलने और बंद करने के लिए उंगलियों का उपयोग करके ध्वनि के स्वरमान को नियंत्रित किया जाता है। शहनाई भारत का एक लोकप्रिय सुषिर वाद्य है। इन्हें बजाने के तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है:
  • हवा की यंत्रवत् रूप से आपूर्ति की जाती है जैसे कि हारमोनियम में
  • हवा की आपूर्ति श्वास द्वारा शहनाई या बांसुरी में की जाती है (मुंह से फूंककर) 

40-बाँसुरी

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बाँसुरी राजस्थान और बिहार में पाया जाने वाला एक वायु वाद्य यंत्र है। यह एक लंबी लकड़ी की बेलनाकार नली के समान होती है, इस यंत्र को लंबवत रूप में बजाया जाता है। यह लोक संगीत और नृत्यों में प्रयुक्त होती है। यह बिहार के चरवाहा और ग्वाला समुदायों द्वारा उपयोग की जाती है।
  • राजस्थान में बाँसुरी-एक दरार के साथ लंबी लकड़ी की बेलनाकार नली। इसका दूसरा छोर खुला होता है। चंचु के ठीक आगे एक संकीर्ण मुखनाल होता है। दूसरे छोर पर छह उँगलियों के लिए छिद्र जोड़ियों में और एक जोड़ी में तीन छिद्र होते हैं। बाँसुरी को एक छोर से लंबवत रूप में बजाया जाता है।
  • बिहार में बाँसुरी-फूँक मारने वाले छिद्र के साथ चोंच के आकार की बाँस की नली। इस पर छह अंगुलछिद्र होते हैं और एक संकीर्ण मुखनाल होता है। यह लोक संगीत और नृत्यों में उपयोग किया जाता है। इसे बिहार के चरवाहा और ग्वाला समुदायों द्वारा उपयोग किया जाता है।

41-बंकिया

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बांकिया काँसे से निर्मित एक वायु वाद्य यंत्र है। राजस्थान में पाया जाने वाला एक धार्मिक वाद्य यंत्र। यह सामाजिक समारोहों और शोभायात्राओं में प्रयुक्त एक तुरही के आकार का वाद्य यंत्र है।बांकिया काँसे से निर्मित एक वायु वाद्य यंत्र है। 

दो भागों में निर्मित एक काँसे की तुरही। बिगुल की तरह नली और संकलित मुखनाल सहित एक तश्तरी के आकार की घंटी। यह राजस्थान और पड़ोसी क्षेत्रों में शोभायात्राओं, धार्मिक और सामाजिक समारोहों में उपयोग की जाती है।

42-बंपाथ्यूट

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बंपाथ्यूट सिक्किम का एक वायु वाद्य यंत्र है। बाँस से बनी हुई एक पक्षी के आकार की सीटी। यह यंत्र मुख्य रूप से संकेतन के लिए जंगल में उपयोग किया जाता है।

एक पक्षी के आकार की बाँस से निर्मित सीटी, जिसका ऊपरी छोर खुला, और निचला छोर एक प्राकृतिक गाँठ द्वारा बंद होता है। बजाते समय, हाथ में पकड़ा जाता है, खुले सिरे को निचले होंठ पर रखा जाता है और फूँका जाता है।

43-बरगू
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बरगू काँसे से निर्मित एक वायु वाद्य यंत्र है। एक 'एस' आकार की तुरही जिसे ज़्यादातर राजस्थान के 'सरगरा' समुदाय द्वारा उपयोग किया जाता है।

यह दो भागों में बनी एक काँसे की तुरही है। कप के आकार की घंटी और संकलित मुखनाल सहित ‘एस' आकार की नली। राजस्थान के 'सरगरा' समुदाय द्वारा उपयोग किया जाता है।

44-भुंगल
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भुंगल काँसे से बना एक वायु वाद्य यंत्र है। राजस्थान में पाया जाने वाला एक धार्मिक वाद्य यंत्र है। तुरही के आकार का वाद्य, प्रायः शादियों और त्योहारों के अवसरों पर धार्मिक और सामाजिक शोभायात्राओं में प्रयोग किया जाता है।

काँसे की लंबी सीधी तुरही, दो भागों में बनाई जाती है। कटोरे के आकार का मुख और एक संकलित मुखनाल। शादियों और त्योहारों के अवसरों पर धार्मिक और सामाजिक शोभायात्राओं में प्रयोग किया जाता है

45-मशक
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मशक बकरी की खाल और मोम से निर्मित एक वायु वाद्य यंत्र है। यह लोक वाद्य यंत्र राजस्थान में पाया जाता है। मुख्य रूप से लोक संगीत और नृत्य में संगत के लिए उपयोग किया जाता है।

"एक मशकबीन जो पूर्ण आकार की बकरी की खाल से बनी होती है। एक अलंकृत बाँस से बनी फूँकने वाली नली जिसपर पाँच अंगुल छिद्र होते हैं, जिन्हें मोम की मदद से मशक में डालकर स्थित किया जाता है। इस वाद्य यंत्र को मुँह से फूँका जाता है। हवा से फूली हुई मशक एक वायु कक्ष के समान कार्य करती है और बाज़ुओं के दबाव से संचालित की जाती है। लोक संगीत और नृत्य में उपयोग किया जाता है।"

46-मसक तिट्टि
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मसक तिट्टी चमड़े से बना एक वायु वाद्य यंत्र है। यह मशकबीन के आकार का वाद्य यंत्र आंध्र प्रदेश में पाया जाता है।

मसक तिट्टि एक मशकबीन है जो केवल एक ड्रोन तान देती है। कहानीकार थैले (बैग) में तब तक हवा फूँकता है जब तक कि वह पूरी तरह से फूल न जाए। फिर वह छोर पर लगी नलिका को खोलता है और धीरे-धीरे थैले को दबाता है। इस प्रकार छोड़ी जा रही हवा ड्रोन नलिका के माध्यम से बाहर निकलती है और इस प्रक्रिया के दौरान कंपिका को कंपित कर देती है। जैसे ही ड्रोन तान बजता है, कहानीकार श्रुति के अनुरूप गाता है और कहानी सुनाता है।

47-महुरी
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महुरी लकड़ी और धातु से निर्मित वायु वाद्य यंत्र है। यह धार्मिक वाद्य यंत्र उड़ीसा में पाया जाता है। मुख्यतः मांगलिक, सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर उपयोग किया जाता है। यह 'दलखा' प्रस्तुति में एक प्रमुख संगत है।

एक लकड़ी की नली जिसमें दो आघाती कंपिका और उँगलियों के सात छिद्र होते हैं और आगे एक धातु की घंटी लगी होती है। इसे कंपिका के माध्यम से फूँका जाता है। मांगलिक, सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर उपयोग किया जाता है। ‘दलखा’ प्रस्तुति में एक प्रमुख संगत।

48-मागुडी
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"मागुडी बाँस और तूमड़ी से निर्मित एक वायु वाद्य यंत्र है। नली के जैसा यह वाद्य यंत्र तमिलनाडु में पाया जाता है। मुख्य रूप से सँपेरों और बाजीगरों द्वारा उपयोग किया जाता है।"

"इस वाद्य यंत्र में बल्ब के समान गोल तूमड़ी का वायु कक्ष और फूँकने वाला छिद्र होता है। संभवतः बाँस से बनी दो नलियाँ वायु कक्ष में डाली जाती हैं। नलियों में से एक नली पर उँगलियों के लिए सात छिद्र और एक पिछला भाग और अन्य नलियों पर एक तरफ दो छिद्र होते हैं। यह सँपेरों और बाजीगरों द्वारा उपयोग किया जाता है।"

49-मुखवीणा
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“मुखवीणा बाँस और लकड़ी से निर्मित एक वायु वाद्य यंत्र है। यह पारंपरिक वाद्य यंत्र तमिलनाडु में पाया जाता है। दक्षिण भारत में कावेरी नदी के किनारे उगने वाले बाँस से कुछ सर्वश्रेष्ठ मुखवीणाएँ बनाई जाती हैं।"

“एक द्वि कंपिका वायु नली जिसमें सात बजाने वाले छिद्र होते हैं और पाँच सहायक छिद्र होते हैं। स्वरमान को समायोजित करने के लिए पाँच सहायक छिद्रों का उपयोग किया जाता है। मुखवीणा से उत्पन्न ध्वनि, बजाने वाले छिद्रों के साथ वादक की उँगलियों के संपर्क का परिणाम होता है। स्वर के साथ-साथ मींद, गमक जैसी तकनीकें अंगुलछिद्रों को पूरी तरह से या आंशिक रूप से खोलकर, साँस को नियंत्रित करके कंपिका पर होठ, जीभ और दाँतों के साथ क्रिया करके उत्पन्न की जाती हैं। सात सुरों के उत्पादन के लिए अपनाई गई उँगलियाँ चलाने की प्रणाली बाँसुरी के समान ही होती है। आधा और चौथाई सुर, बुद्धिमत्तापूर्ण उँगलियाँ चलाने और नली में फूँक के दबाव के समायोजन के समकालन का परिणाम होते हैं। दक्षिण भारत में कावेरी नदी के किनारे उगने वाले बाँस से कुछ सर्वश्रेष्ठ मुखवीणाएँ बनाई जाती हैं।"

50-मुरारी सुमुई
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“मुरारी सुमुई बाँस से बना एक वायु वाद्य यंत्र है। यह आदिवासी वाद्य यंत्र त्रिपुरा में पाया जाता है। इसे मुख्य रूप से पश्चिम त्रिपुरा के सामुदायिक नृत्य और संगीत में उपयोग किया जाता है।

“बाँस से बनी एक जनजातीय बाँसुरी, सात अंगुल छेद और फूँकने के लिए एक छेद, दोनों तरफ से खुला। इसे दोनों हाथों से पकड़ा जाता है और फूँकने वाले छेद से बजाया जाता है। इसे पश्चिम त्रिपुरा के सामुदायिक नृत्य और संगीत में उपयोग किया जाता है।

51-मोइबुंग शंख
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मोइबुंग शंख एक वायु वाद्य यंत्र है जो समुद्री जीव के खोल से बना होता है। मोइबुंग का बजना मणिपुर में किसी भी शुभ अवसर की शुरुआत का प्रतीक है।

मोइबुंग या शंख एक सुंदर वाद्य यंत्र है जिसका उपयोग मणिपुर के मंदिरों में वैष्णव अनुष्ठानों में किया जाता है। सफेद पगड़ी पहने हुए, मोइबुंग वादक एक साथ दो शंख बजाते हैं। मोइबुंग का बजना किसी भी शुभ अवसर की शुरुआत का प्रतीक है।

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