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वैज्ञानिक उपकरणो का संगीत शिक्षा में प्रभाव

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संगीत एक कलात्मक विषय हैं जिसके अन्तर्गत गायन वादन एवम नृत्य तीनो कलायें आतीं हैं। शिक्षा एक सीखने एवम सिखाने की प्रक्रिया हैं ‘और संगीत शिक्षा का अर्थ हैं कि शिक्षक , पुस्तक या अन्य ऐसे साघन जिससे ज्ञान प्राप्त हो सके ‘से शिक्षार्थी को स्वर ,लय ताल के विषय में विस्तृत ज्ञान प्राप्त होऔर शिक्षार्थी अपने क्षमतानुसार संगीत की योग्यता प्राप्त कर सके।

संगीत शिक्षा के इतिहास पर दृष्टिकरे तो यह स्पष्ट होता हैं कि प्राचीन काल से मध्य काल तक संगीत शिक्षा गुरू – शिष्य परम्परा द्वारा दी जाती थी , मध्यकाल में जब राजनैतिक परिवर्तन के कारण राजाओं द्वारा संगीत के कलाकारों को राजश्य मिलना प्रारम्भ हुआ तब गुरु शिक्षा परम्परा की शिक्षा में नया मोड़ आया , अब राजश्य प्राप्त कलाकार अपने पश्चात अपने पुत्रों या शिष्यों को राजश्य प्राप्त हो , कि लालसा में शिक्षा प्रदान करने लगे और घराना परम्परा प्रारम्भ हो गयी जिसके कारण संगीत शिक्षा सभी को मिलना कठिन हो गयी । संगीत की यह दशा देखकर स्वं प० वि ० दी ० पुलस्क़र तथा स्वं वि० ना ० भातखंडे इन दोनो संगीत विभूतियों ने संगीत शिक्षा के प्रचार प्रसार का कार्य करने के उद्देश्य से संगीत विधालयो की स्थापना की जिससे संगीत कि शिक्षा सभी के लिये सहज- सुलभ हो सकी।

19वीसदी में जब वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रारम्भ हुआ तब संगीत कला भी इससे अछूती नहीं रह सकी । इन वैज्ञानिक आविष्कारों ने संगीत जगत में उथल पुथल मचा दी जब फ़ोनोग्राफ़ और ग्रामोफ़ोन का आविष्कार हुआ तो संगीत को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाले मुख्य रूप से कारण रहे ‘वैज्ञानिक खोजो से उत्पन्न वैज्ञानिक उपकरण द्वारा संगीत सीखने की सर्वसुलभता। वैज्ञानिक उपकरणो के विकास से भारतीय संगीत को कई तरह से प्रभावित किया जिस कारण प्राचीन काल से चली आ रही गुरु शिष्य परम्परा या घराना परम्परा तक ही संगीत शिक्षा सीमित ना रह सकी । इन वैज्ञानिक उपकरणो का आविष्कार हुआ जिससे किसी भी प्रकार के या किसी भी संगीत प्रस्तुति को रिकार्ड कर उसे जनसाधारण के लिए उपलब्ध किया जाने लगा । सर्वप्रथम फ़ोनोग्राफ़ी ,ग्रामोफ़ोन , रिकार्ड प्लेयर , टेप रिकार्ड , रेडियो , ट्रजिस्टर, स्टीरियो , मूजिक सिस्टम आदि वैज्ञानिक उपकरणो द्वारा अन्य किसी का संगीत सुनने के लिये या अपना संगीत स्वयं को सुनने सुनाने के लिये सर्वसूलभ हो गया।

आज के वैज्ञानिक युग में Electronic technology की अत्याधुनिक Electronic ध्वनि तथा छाया उपकरणो ने संगीत की अपार सहायता की , अब तो गायन , वादन की सभाओं में अपनी कला प्रस्तुत करने वाले कलाकारी की ध्वनि एवम उसकी प्रत्यक्ष प्रस्तुति ( life telecast) हम सुन या देख सकते हैं अब तो Electronic तकनीकी के माध्यम से तानपुरा , तबला स्वरपेटि , लहरा आदि उपकरण का उपयोग सहज एव सरल हो गया हैं।

आज विज्ञान संगीत में अनेक आविष्कार कर संगीत को सरल तो कर रहा हैं परन्तु साथ ही एसे वाधो का आविष्कार भी कर रहा हैं जिनसे वर्तमान पीढ़ी बहुत प्रभावित हो रही है और परम्परा गत वाधो के प्रति थोडे उदासीन हो रही हैं । सिंथसाइज़र जैसे वाध वे वाध हैं जिनको बजाना बहुत सरल हैं इससे वाध तो क्या पूरा orchestra बजाया जा सकता हैं । वैज्ञानिक संगीत का प्रभाव समाज पर हावी हो रहा हैं फलतः इलैक्ट्रिक गिटार , आकटोपैड , कीबोड व ट्रमसैट संगीत के क्षेत्र में सहजता से प्रवेश करते जा रहे हैं जो परंपरागत वाधो का वादन गुरु के समक्ष बैठकर कठिन अभ्यास , कठोर अनुसाशन से सिखा जाता है और जिसके लिये लम्बी समय अवधि की आवश्यता है उतना धैर्य नवीन पीढ़ी में नहीं रह गया है । सहजता से बटन दबाकर तबले की आवाज़ निकल कर युवा पीढ़ी थिरकने लगती हैं तो फिर पँ अनोखेलाल , गुदई महाराज ,उ०ज़ाकिर हुसैन , इत्यादि कलाकारों के समान रियाज़ कोन करेगा ।

प्रश्न यह उठता हैं की हमारे परम्परागत वाधो में जो गुनवंता,कलात्मकता,रचनात्मकत और सरजनात्मकता हैं क्या Electronic उपकरण उनके विकल्प हो सकते हैं।

यद्यपि विज्ञान के आश्चर्यजनक उपकरण की संगीत में अहम् भूमिका हैं परन्तु फिर भी जिस प्रकार रोबोट सभी कार्य करने पर भी मनुष्य की जगह नहीं ले सकता , उसी प्रकार वैज्ञानिक उपकरण परम्परागत वाधो की बराबरी नहीं कर सकते हैं क्योंकि इन उपकरणो में जो ध्वनि हैं वो एक प्रकार की कृत्रिम ध्वनि है को स्वभाविक ध्वनि से समानता रखती है परन्तु उनमें प्राकृतिक सोंदर्य नहीं मिलता जो परम्परागत वाधो में उत्पन्न होता हैं । परम्परागत वाध सहजता से संगीत में नवरसों की सृष्टि कर सकते हैं जो वैज्ञानिक उपकरण से सम्भव नहीं हैं।

इसलिये हमें विज्ञान के इन नवीन उपकरण को परम्परागत उपकरण से जोड़ देना चाहिये, यदि परम्परागत उपकरण और नवीन उपकरण का प्रयोग साथ ही किया जाये तो वे भारतीय संस्कृति में संस्करिक ही होगा अथवा फ़्यूज़न संगीत की तरह ही एक नयी दिशा एक नया मार्ग बना लेगा , दोनो ही दिशा में भारतीय परम्परागत संगीत को हानि नहीं होगी और संगीत की अमृत धारा सदैव भारतीय संस्कृति की आत्मा से जुड़ी रहेगी।

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