1925 ई.वी. से पहले दुनिया में ऐसी कोई दवा नहीं थी जिसे जीवाणुओं से होने वाले रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जा सकता था। पेनिसिलिन ही विश्व की वो पहली प्रतिजीवाणु दवा (antibiotic) है जिसे चिकित्सकों ने इंसानों को हाने वाली कई संक्रामक बीमारियों के लिए जिम्मेदार जीवाणुओं को नष्ट करने लिए प्रयोग किया था तथा इस एंटीबायोटिक दवा का उपयोग आज भी निरंतर बड़े स्तर पर विश्व भर में किया जा रहा हैं। अगर आपको नहीं मालूम कि Penicillin ki khoj kisne ki की और कब? तो हम बता दे कि इसकी खोज 1928 में स्कॉटिश चिकित्सक और माइक्रोबायोलोजिस्ट अलेक्जेंडर फ्लेमिंग (Sir Alexander Fleming) ने किया था।
अलेक्जेंडर फ्लेमिंग और पेनिसिलिन की खोज की कहानी
अलेक्जेंडर फ्लेमिंग विश्व के पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने सन् 1928 में पेनिसिलिन का आविष्कार करके संक्रामक रोगों से लड़ने और उन पर काबू पाने का रास्ता दिखाया। स्कॉटलैंड में जन्मे इस वैज्ञानिक ने सन् 1906 में सेंट मैरी हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल से डिग्री प्राप्त करने के बाद प्रतिजीवी पदार्थों पर काम करना आरम्भ किया। इसके बाद वे रॉयल आर्मी मेडिकल कॉर्प्स में चले गए लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर सन् 1928 में वे फिर सेंट मैरी मेडिकल स्कूल स्कूल लौट आए। सन् 1928 की बात है जब वे रोगों के जीवाणुओं के साथ कुछ प्रयोग कर रहे थे तो आकस्मिक रूप से उन्होंने पेनिसिलिन जैसी जीवनदायी औषधि का आविष्कार कर डाला। पेनिसिलिन के आविष्कार की कहानी बड़ी दिलचस्प है।
फ्लेमिंग अपने प्रयोगों के लिए एक पेट्री डिश काम में ला रहे थे। एक दिन फोड़ों से प्राप्त पीप में मौजूद जीवाणुओं पर प्रयोग करते समय प्रोफेसर फ्लेमिंग ने एक आश्चर्यजनक बात देखी। उन्होंने देखा कि पेट्री डिश में पड़ी जैली में फफूंद उग आई थी। जहां पर भी यह फफूंद उगी थी, वहां सभी बैक्टीरिया मर गए थे। इस फफूंद का जन्म शायद हवा में उड़ कर आए हुए उन बीजाणुओं से हुआ था जो उनकी प्रयोगशाला में खुली खिड़की से प्रवेश करके खुली पेट्री डिश पर जम गए थे। उन्होंने इस फफूंद का पता लगाया और पाया कि यह पेनिसिलियम नोटाटम (Penicillium Notatum) थी। यह फफूंद परिवार की एक विरल किस्म थी।
इस अकस्मात हुई घटना को फ्लेमिंग ने कई बार दोहराया। सबसे पहले उन्होंने पेनिसिलियम की उस विरल किस्म के नमूने उगाये। फिर इस फफूंद से निकाले गए रस द्वारा रोग जीवाणुओं पर प्रभाव कर अध्ययन किया। प्रयोग को कई प्रकार के जीवाणुओं के साथ दोहराकर उन्होंने पता लगाया कि इस फफूंद से निकले रस का रोग-जीवाणुओं पर घातक प्रभाव पड़ता है। वे इस रस से मर जाते हैं।
यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण आविष्कार था क्योंकि उन्होंने एक ऐसा द्रव प्राप्त कर लिया था, जो रोगाणुओं को पैदा होने से रोकता था। चूंकि यह रस पेनिसिलियम फफूंद से प्राप्त किया गया था इसलिए इसका नाम पेनिसिलिन रखा।
फ्लेमिंग ने पेनिसिलिन घोल के साथ अनेक प्रयोग किए। उन्होंने पाया कि इस घोल को हल्का कर लेने पर भी इसका प्रभाव जीवाणुओं पर पड़ता है। अपने प्रयोगों के दौरान उन्होंने देखा कि पेनिसिलिन एक विचित्र पदार्थ है, जो प्रयोग करते समय दूसरे पदार्थ में बदल कर स्वयं प्रभावहीन हो जाता है। इसके इस गुण विशेष के कारण कई वर्षों तक इसके अध्ययन में प्रगति न हो पाई। अंत में इस समस्या का समाधान किया सन् 1938 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हावर्ड फ्लोरे (Howard Florey) और अर्नेस्ट चेन (Ernst Chain) ने। उन दोनों ने एक जटिल प्रक्रम द्वारा इस औषधि को स्थिर कर दिया। इस प्रक्रम को ‘फ्रिज ड्राइंग’ (Freeze Drying) कहते हैं।
जून, 1941 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पेनिसिलिन का 6 रोगियों पर परीक्षण किया गया। इस इलाज के बड़े अच्छे परिणाम प्राप्त हुए लेकिन दुर्भाग्यवश पेनिसिलिन की कमी हो जाने से दो रोगियों की मृत्यु हो गई। तब यह आवश्यक हो गया कि इस औषधि को अधिक मात्रा में तैयार करने के लिए तुरन्त प्रयत्न किए जाए।
सन् 1941 में फ्लेमिंग अमेरिका गए और वहां उन्होंने पेनिसिलिन को पृथक करने की विधि के विषय में अनेक वैज्ञानिकों से विमर्श किया। अमेरिका के औषधि निर्माताओं ने इस दिशा में उन्हें हार्दिक सहयोग दिया। अनेक महीनों की सक्रियता और प्रयासों के बाद पेनिसिलिन को बहुत अधिक मात्रा में पृथक करने की विधि मालूम कर ली गई। शीघ्र ही इस औषधि का निर्माण और प्रयोग विस्तृत रूप से होने लगा। देखते ही देखते यह औषधि चिकित्सा जगत की रीढ़ बन गई।
डिप्थीरिया, निमोनिया, रक्त विषाक्तता, गले का दर्द, फोड़े और गंभीर घावों के लिए पेनिसिलिन को आदमी के खून में इंजेक्ट किया जा सकता है। सामान्यतः ऑपरेशन के समय सर्जन इसे रोगियों को देते हैं। पेनिसिलिन कई प्रकार के जीवाणुओं को पैदा होने या फैलने से रोकता है। यौन रोगों पर नियंत्रण करने के लिए यह बहुत ही प्रभावकारी औषधि है।
पेनिसिलिन के आविष्कार के बाद स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेरामाइसिन आदि अनेक एंटीबायोटिक औषधियों का आविष्कार हुआ। आज इन एंटीबायोटिक औषधियों द्वारा लाखों लोगों को मौत के मुंह से बचाया जाता है।
इस आश्चर्यजनक और आकस्मिक खोज और विश्लेषण के लिए सन् 1945 का चिकित्सा क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार फ्लेमिंग, फ्लोरे और चेन को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया। इस खोज से फ्लेमिंग का नाम विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया। 11 मार्च, 1955 को लंदन में फ्लेमिंग की मृत्यु हुई।
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