गामा किरणों (Gamma Rays) की तरह ही एक्स किरणों को भी न तो देखा जा सकता हैं न महसूस किया जा सकता हैं। यधपी ये किरणें त्वचा, हड्डियों तथा धातु को बड़ी सहजता से पास करते हुए गुजर जाती है तथा उनके ऐसे चित्र भी बना देती है जिन्हें हमारी आंखों से देख पाना असंभव है। एक्स किरणों का प्रयोग आज टूटी हुई हड्डियों की तसवीर लेने में, रेडिएशन थेरेपी में तथा हवाई अड्डों की सुरक्षा आदि में किया जा रहा हैं। लेकिन x ray ki khoj kisne ki ? तो हम बता दे, इन किरणों का आविष्कार जर्मनी के भौतिकशास्त्री विल्हेल्म कोनराड रॉन्टजन (Wilhelm Conrad Rontgen) ने सन् 1895 में 50 वर्ष की उम्र में किया था।
18वीं शताब्दी के अंत तक वैज्ञानिकों को इन किरणों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए इन किरणों का नामकरण एक्स (X) से किया गया, जिसका मतलब होता है अज्ञात किरणें। रॉन्टजन के नाम इन किरणों को रॉन्टजन रेज (Rontgen Rays) भी कहा जाता हैं। इन किरणों की खोज के लिए प्रोफेसर रॉन्टजन को 1901 में भौतिकी का पहला नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।
एक्स किरणों की खोज की कहानी
प्रोफेसर रॉन्टजन द्वारा इन X-किरणों की खोज की कहानी बड़ी रोचक है। प्रोफेसर रॉन्टजन अपनी प्रयोगशाला में एक विद्युत विसर्जन नलिका अर्थात Cathode Ray Tube (CRT) पर कुछ परीक्षण कर रहे थे। उन्होंने पर्दे गिराकर प्रयोगशाला में अंधेरा कर रखा था और इस नलिका को काले रंग के गत्ते के डिब्बे से ढक रखा था।
राॅन्टजन ने देखा कि नलिका के पास में ही रखे कुछ बेरियम प्लेटीनों साइनाइड के टुकड़ों से एक प्रकार का प्रकाशपुंज जगमगाहट के साथ निकल रहा है। तब उन्होंने चारों ओर देखा तो पाया कि उनकी मेज से कुछ फुट की दूरी पर एक प्रतिदीप्तशील पर्दा भी चमक रहा है। यह देखकर उनकी हैरानी का ठिकाना न रहा क्योंकि नली तो काले गत्ते से ढकी हुई है और कैथोड किरणों का बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। उन्हें यह विश्वास हो गया कि निश्चय ही नलिका से कुछ अज्ञात किरणें निकल रही हैं, जो मोटे कागज से भी पार हो सकती हैं।
चूंकि उस समय इन किरणों के विषय में कुछ ज्ञान न था इसलिए कोनराड रॉन्टजन ने इनका नाम एक्स-रे रख दिया। एक्स शब्द का अर्थ है अज्ञात। अपने प्रयोगों के दौरान उन्हें इन किरणों के कुछ विशेष गुण पता लगे। उन्होंने देखा कि ये किरणें कागज, रबर तथा धातुओं की पतली चादर के आर-पार निकज जाती हैं।
तब उन्हें एक बहुत ही महत्वपूर्ण किन्तु सरल विचार सूझा। उन्होंने सोचा के जैसे साधारण प्रकाश से फोटो फिल्म प्रभावित हो जाती है, हो सकता है इन रहस्यमयी किरणों का भी फोटो फिल्म पर कुछ प्रभाव पड़े। इस विचार को प्रयोगात्मक रूप से परखने के लिए उन्होंने एक फोटो फिल्म को डेवलप किया तो इन दोनों ने देखा कि प्लेट पर हाथ की हड्डियां स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हैं और उनके चारों ओर मांस धुंधला सा दिखाई दे रहा है।
प्रोफेसर राॅन्टजेन की पत्नी ने अंगूठी पहन रखी थी। एक्स किरणों के लिए गए चित्र में यह अंगूठी भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। यह पहला अवसर था जब किसी जीवित व्यक्ति के ढांचे का चित्र लिया गया था। निश्चित ही वह महिला इस चित्र को देखकर कम्पायमान हुई होगी।
एक्स किरणों के आविष्कारक प्रोफेसर राॅन्टजेन और उनके दो साथियों, जिन्होंने इन किरणों के विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया था, की इनके घातक प्रभाव से बड़ी ही दयनीय मृत्यु हुई। यद्यपि यह किरणें जीवनदायी हैं लेकिन शरीर पर इनके बड़े घातक प्रभाव होते हैं।
विल्हेम राॅन्टजेन का जन्म जर्मनी के लेनेप नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता एक कृष्क थे और मां डच महिला थी। उनकी आरंभिक शिक्षा हॉलैंड में हुई तथा उच्च शिक्षा स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया। सन् 1885 में वे बुर्जबर्ग (Wurzburg) विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर पद पर नियुक्त किए गए। यहीं उन्होंने एक्स किरणों का आविष्कार किया।
रोन्टजेन ने अपना एक्सपेरिमेंट कैथोड किरणों (Cathode Rays) पर किया। अगर बहुत कम दाब पर किसी ट्यूब में दो इलेक्ट्रोड धनात्मक और ऋणात्मक लगा दिए जाएं तो ऋणात्मक इलेक्ट्रोड से विशेष प्रकार की किरणें निकलती हैं जिन्हें कैथोड किरणें कहा जाता है। ये किरणें दरअसल तीव्र वेग इलेक्ट्रानों की धारा होती हैं, जो कैथोड से निकलकर एनोड की तरफ सीधी रेखा में चलती हैं।
रोन्टजेन ने कैथोड किरणों की दिशा बदलने के लिए बीच में एक तिरछी रुकावट लगाई और किरणों की नई दिशा पर उनकी उपस्थिति दर्शाने के लिए फ्लोरेसेंट स्क्रीन (Fluorescent Screen) लगाई। लेकिन यह क्या! स्क्रीन तो कुछ अलग ही तरह की किरणों की उपस्थिति दर्शा रही थी, ऐसी किरणें जो अब तक किसी को ज्ञात नहीं थीं।
रोन्टजेन ने अपना हाथ उन किरणों के सामने रखा तो हाथ की हड्डियां स्क्रीन पर चमकने लगीं। इसका मतलब था कि किरणें हाथ के आर-पार तो निकल रही थीं किन्तु हड्डियों में रुक जा रही थीं।
रोन्टजेन ने इन किरणों को एक्स-किरणें नाम दिया, अर्थात अज्ञात किरणें। आज भी यही नाम इस्तेमाल हो रहा है। दुनिया को एक्स किरणों का तोहफा देने वाले इस वैज्ञानिक का 10 फरवरी, 1923 को आंत के कैंसर के कारण निधन हो गया।
X-Rays का प्रयोग
एक्स किरणों का उपयोग केवल शरीर की हड्डियों को ही चित्रित करने में नहीं किया जाता बल्कि इनके द्वारा कैंसर जैसे भयानक रोग का इलाज भी किया जाता है। इन कारणों से रिंगवार्म जैसे त्वचा रोगों का भी इलाज किया जाता है। इनके द्वारा शरीर में घुसी गोली, गुर्दे की पथरी तथा फेफड़ों के विकार का भी पता लगाया जाता है। इन किरणों के द्वारा अपराधियों द्वारा शरीर के हिस्से में छिपाई गई हीरा-मोती या सोने जैसी मूल्यवान वस्तुओं का पता भी लगाया जाता है।
इन किरणों से कृत्रिम तथा वास्तविक हीरों का अन्तर पता लगाया जा सकता है। एक्स किरणों द्वारा लोहे की वस्तुओं, रबर के टायरों आदि के दोषों का भी पता लगाया जाता है। अनुसंधान प्रयोगशालाओं में एक्स किरणों की सहायता से मणिभों (crystals) की संरचना का पता लगाया जाता है। सन् 1972 में इन किरणों को प्रयोग में लाकर सीटी स्कैनर (CT Scan) नामक मशीन विकसित की गई जिसका प्रयोग आज शरीर की आंतरिक बीमारियों का पता लगाने के लिया किया जाता हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि राॅन्टजेन द्वारा खोजी गई एक्स किरणें हमारे लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुई हैं।
Prof. Rontgen ने एक्स-किरणों के अतिरिक्त और भी कई अनुसंधान किए। वे महान भौतिकशास्त्री थे। 19वीं सदी के अंत में वे वुर्जबर्ग से म्यूनिख आ गए और 77 साल की उम्र में इसी शहर में उनका देहान्त हो गया।
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