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प्रेम की बिरादरी (व्यंग्य)- हरिशंकर परसाई

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उनका सबकुछ पवित्र है । जाति में बाजे बजाकर शादी हुई थी । पत्नी ने 7 जन्मो में किसी दूसरे पुरुष को नहीं देखा । उन्होंने अपने लड़के-लड़की की शादी सदा मण्डप में की । लड़की के लिए दहेज दिया और लड़के के लिए लिया। एक लड़की खुद पसन्द की और लड़के की पत्नी बना दिया

सबकुछ उनका पवित्र है । प्रापर्टी है । फुरसत में रहते हैं । दूसरों की कलंक-चर्चा में समय काटते हैं । जो समय फिर भी बच जाता है उसमें मूँछ के सफेद बाल उखाडते हैं और बर्तन बेचनेवाली की राह देखते हैं ।

पवित्रता का मुँह दूसरों की अपवित्रता के गन्दे पानी से धुलने पर ही उजला होता है । वे हमेशा दूसरों की अपवित्रता का पानी लौटे में ही लिये रहते हैं । मिलते ही पवित्रता का मुँह धोकर उसे उजला कर लेते हूँ । वे पिछले दिनों 2 लड़कियों के भागने, 3 सित्रयों के गर्भपात, 4 की गैर -बिरादरी में शादी और 2 पतिवर्ताओ के प्रणय-प्रसंग बता चुके हैं अभी उस दिन दांत खोदते आये। भोजन के बाद कलंक-चर्चा का चूर्ण फाँकना जरूरी होता है। हाजमा अच्छा होता है । उन्होंने चूर्ण फकिना शुरू कर दिया- आपने सुना, अमुक साहब की लड़की अमुक लड़के के साथ भाग गयी और दोनों ने इलाहाबाद में शादी कर ली । कैसा बुरा जमाना आ गया । मैं जानता हूँ कि वे बुरा जमाना आने से दुखी नहीं, सुखी हैं । जितना बुरा जमाना आयेगा वे उतने ही सुखी होंगे - तब वे यह महसूस करके और कहकर गर्व अनुभव करेंगे कि इतने बुरे जमाने में भी हम अच्छे के अच्छे हैं" । कुछ लोग बडे चतुर होते हैं । वे सामूहिक पतन में से निजी गौरव का मुद्दा निकाल लेते हैं और अपने पतन को समूह का पतन कहकर बरी हो जाते हैं

मैंने अपनी दुष्ट आदत के मुताबिक कहा - इसमें परेशान होने की क्या बात है। देश में अच्छी शादियाँ लड़की भगाकर ही हुई हैं । कृष्ण ने रुक्मणी का हरण किया था और अर्जुन ने कृष्ण की बहन सुभद्रा का । इसमें कृष्ण की रजामन्दी थी। भाई अगर कोआपरेट करे तो लड़की भगाने में आसानी होती है।

वे नहीं जानते थे कि मैं पुराण उनके मुँह पर मारूँगा । संभलकर बोले, "भगवान कृष्ण की बात अलग है ।" मैंने कहा, "हाँ, अलग तो है । भगवान अगर औरत भगाये तो वह बात भजन में आ जाती है 1 साधारण आदमी ऐसा करे तो यह काम अनैतिक हो जाता है। जिस लड़की की आप चर्चा कर रहे हैं, वह अपनी मर्जी से घर से निकल गयी और मर्जी से शादी कर ली, इसमें क्या हो गया ?" वे कहने लगे, "आप हमेशा उल्टी बातें करते हैं-रीति, निति, परम्परा,विश्वास क्या कुछ नहीं है ? आप जानते हैं, लड़का-लड़की अलग जाति के हैं?"

मैंने पूछा, "मनुष्य जाति के तो हैं न हैं"

वे बोले, "हाँ, मनुष्य होने में क्या शक है

मैंने कहा, "तो कम-से-कम मनुष्य जाति में तो शादी हुई । अपने यहाँ तो जाति के बाहर भी महान पुरुषों ने शादी की है-जैसे भीम ने हिडिम्बा से। "

ये घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं । क्या कारण है कि लड़के-लड़की को घर से भाग कर शादी करनी पड़ती है ? 24-2 5 साल के लड़के-लड़की को भारत की सरकार बनाने का अधिकार तो मिल चुका है, पर अपने जीवन-साथी बनाने का अधिकार नहीं मिला।

घटनाएं मैं रोज सुनता हूँ । दो तरह की चिट्टियाँ पेटेण्ट हो गयी है । उनके मजमून ये हैं । जिन्हें भागकर शादी करना है वे, और जिन्हें नहीं करना वे भी इनका उपयोग कर सकते है

चिट्टी नं। 1

पूज्य पिताजी,

मैंने यहाँ रमेश से वैदिक रीति के अनुसार शादी कर ली है । हम अच्छे हैं आप चिंता मत करिए । आशा है आप और अम्मा मुझे माफ कर देंगे

आपकी बेटी

सुनीता

चिट्टी नं। 2

प्रिय रमेश,

मैं अपने माता-पिता की इच्छश्वा के विरुध्द नहीं जा सकती । तुम मुझे माफ कर तुम जरूर शादी कर लेना और सुखी रहना । तुम दुखी रहोगे तो मुझे जीवन में सुख नहोंमिलेगा 1 ह्रदय से तो में तुम्हारी हूँ। (4-5 साल से कहूँगी …बेटा, मामाजी को नमस्ते करो)

तुम्हारी

विनीता

इसके बाद एक मजेदार क्रम चालू होता है 1 माँ-बाप कहते है -वह हमारे लिए मर चुकी हे। अब हम उसका मुँह नहीं देखेंगे। फिर कुछ महीने उनके यहां जाता हूँ तो वही लड़की चाय लेकर आती है

मैं उनसे पूछता हूँ-यह तो आपके लिए मर चुकी थी। वे जवाब देते है -आखिर लड़की ही है। और मैं सोचता रह जाता हूँ कि जो आखिर में लड़की है वह शुरु में लड़की क्यों नही थी ?

माता -पिता की भावनाओं को मैं जानता हूँ। विश्वास और परम्परा के टूटने में बड़ा दर्द होता है। जब शेरपा तेनसिंह गौरीशंकर की चोटी पर होकर आया था तब उससे किसी वे पूछा कि क्या वहां शंकर भगवान है ? तो उसने कहा था कि नहीं हे। एक सज्जन बडे दर्द से मुझसे बोले , "देवसिंह को ऐसा नहीं कहना चाहिए था। "मैंने कहा, "वहाँ शंकर भगवान उसे नहीं दिखे तो उसने कह दिया कि नही है" वे बोले, "फिर भी उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था 1" मैंने कहा ," जब है ही नहीं तो।… " वे बोले, "फिर भी उसे नहीं कहना था 1" मैंने उनसे पूछा, " क्या आप मानते है कि वहाँ शंकरजी है?" उन्होंने कहा, "यह हम भी जानते है कि वहाँ शंकरजी नहीं है पर एक विश्वास हृदय में लिये है कि शंकरजी हें, वे औढरदानी है। कभी कोई संकट हम पर आएगा तो वे आकर हमें उबार लेंगे

झूठे विश्वास का भी बड़ा बल होता है। उसके टूटने का भी सुख नहीं , दुःख होता है।

एक सज्जन की लड़की दुसरी जाति के लड़के से शादी करना चाहती थी माँ-बाप का जाति-प्रथा कौ शाश्वतता में विश्वास आड़े आ गया। लड़का अच्छी ऊँवी नोकरी पर था, परन्तु लड़की के माता-पिता ने उसकी उसकी शादी अपनी ही जाती के एक लड़के से कर दी जो कम तो कमाता ही था, अपनी पत्नी तो पीटता भी था। एक दिन मेने उन सज्जन से कहा कि-सुना हे, लड़की बडी तकलीफ में है वह उसे पीटता है। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। जवाब देते भी तो क्या देते , सिवा इसके कि -इतना तो सन्तोष हे कि जातिवाले से पिट रही हे।

आखिर ये हमारे लोग किस परम्परा को, किस आदर्श को मान रहे है। मर्यादा पुरुषोत्तम है। सीता महासती हे। इनसे श्रेष्ठ स्त्री -पुरुष की कल्पना और ऐसे अच्छे विवाह की कल्पना इस समाज में नहीं हे। मर्यादा पुरुपोत्तम का निर्माण करने वाले तुलसीदास कहते हें कि पुष्पवाटिका में ‘क्वाण किंकिणि नूपुर' की ध्वनि सुकर लक्षमण के सामने राम "कन्फेस करते है कि ऐसा लगता हे जैसे मदन ने दुन्दभि दे दी हे। यानी राम के मन का धनुष वहीं टुट गपा 1 विवाह-पूर्व प्रेम हो गया फिर विवाह भी हो गया । आज जिन मूल्यों को इस मामले में माना जा रहा है उनको देखकर मुझे लगता है कि तुलसीदास ने जो लिखा हे, वैसा न हुआ होगा हुआ ऐसा होगा -राम ने लक्ष्मण से पूछा होगा कि यह कंकण, किंक्रिणि और नूपुर की ध्वनि किसकी हे ? लक्ष्मण ने कहा होगा-यह जनक की लड़की सीता की है तब राम ने पूछा होगा कि क्या जनक अपनी ही बिरादरी के हें ? लक्ष्मण से कहा होगा -हाँ , राजा जे। के। सिंह अपनी ही बिरादरी के हैं। राम ने कहा होगा --तभी तो मेरा मन डोल उठा । दूसरी बिरादरी के होते तो मेरे मन पर कोई असर नहीं होता

इन लड़के-लड़कियों से क्या कहा जाय ! यही न कि प्रेम की जाति होती है एक हिन्दू प्रेम हे, एक मुसलमान प्रेम, एक बाहाण प्रेम, एक ठाकुर प्रेम, एक अग्रवाल प्रेम । एक कोई जावेद आलम किसी जयन्ती गुहा से शादी कर लेता है, तो सारे देश में लोग हल्ला कर देते हैं और दंगा भी करवा सकते हें

इस सबको देखते हुए आगे चलकर तरुण -तरुणी के प्रेम का दृश्य ऐसा होगा

तरुण-तरुणी मिलते हें औऱ यह वार्तालाप होता हे…-

तरुण - क्या आप ब्राह्मण हें, और बाहाण हें र्ता क्रिस प्रकार के व्रम्हाण हें।

तरुणी -क्यों, क्या बात है

तरुणा - -कुछ नहीं ! ज़रा आपसे प्रेम करने का इरादा है

तरुणी~ -मैं तो खत्री हूँ

तरुमृग ॰ तो फिर मेरा आपसे प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि मैं वाहाण हूँ

लोग कहते हेकि आखिर स्थायी मूल्य और शाश्वत परम्परा र्भा तो कोई चीज है । सही है, पर मूर्खता के सिवाय कोई भी मान्यता शाश्वत नहीं है । मूर्खता अमर है । वह बार बार मरकर फिर जीवित हो जाती है।

इधर मैं लड़के-लड़की से पूछता हूँ कि वेद तो यहाँ भी हैं और यहाँ भी वैदिक रीति है, फिर तुम लोगों ने यहीं क्यों नहीं शादी कर ली ? भागकर दूसरी जगह क्यों गये। वे कहते हें-यहां माता-पिता बाधा डालते मैं समझ गया । क्रान्ति ये तरुण जरूर करेंगे पर यथास्थिति की नजर बचाकर।

वे सज्जन जो मुझे खबर दे गये थे, कह रहे थे कि आखिर हम बुजुर्गों के जीवन-भर के अनुभव का भी तो कोई महत्त्व है । मैंने कहा अनुभव का महत्त्व है। पर अनुभव से ज्यादा इसका महत्त्व है कि किसी ने अनुभव से क्या सीखा। अगर किसी ने 50 -60 साल के अनुभव से सिर्फ यह सीखा हो कि सबसे दबना चाहिए तो अनुभव इस निष्कर्ष की कीमत में शक हो सकता है । किसी दूसरे ने इतने ही सालों के अनुभव से शायद यह सीखा हो कि किसी से नहीं डरना

चाहिए ।

आप तो 50-60 साल की बात करते हें । केंचुए ने अपने लाखों सालों के अनुभव से कुल यह सीखा है कि रीढ़ की हड्डी नहीं होनी चाहिए।

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