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महर्षि शालिहोत्र पशुचिकित्सा के जनक

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शालिहोत्र (6000 ईसापूर्व) हयगोष नामक ऋषि के पुत्र थे। वे पशुचिकित्सा (veterinary sciences) के जनक माने जाते हैं।[1] उन्होंंने 'शालिहोत्रसंहिता' नामक ग्रन्थ की रचना की। वे श्रावस्ती के निवासी थे।

शालिहोत्र
जन्म: श्रावस्ती, उत्तर प्रदेश
पिता: हयगोष
राष्ट्रीयता: भारतीय
किताबें | रचनाएँ : शालिहोत्रसंहिता, हय आयुर्वेद, अश्व लक्षण-शास्त्र, अश्व प्रशंसा

संसार के इतिहास में घोड़े पर लिखी गई प्रथम पुस्तक शालिहोत्रसंहिता है, जिसे शालिहोत्र ऋषि ने महाभारत काल से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। कहा जाता है कि शालिहोत्र द्वारा अश्वचिकित्सा पर लिखत प्रथम पुस्तक होने के कारण प्राचीन भारत में पशुचिकित्सा विज्ञान को ‘शालिहोत्रशास्त्र’ नाम दिया गया। शालिहोत्रसंहिता का वर्णन आज संसार की अश्वचिकित्सा विज्ञान पर लिखी गई पुस्तकों में दिया जाता है। भारत में अनिश्चित काल से देशी अश्वचिकित्सक ‘शालिहोत्री’ कहा जाता है।

शालिहोत्रसंहिता में 48 प्रकार के घोड़े बताए गए हैं। इस पुस्तक में घोड़ों का वर्गीकरण बालों के आवर्तों के अनुसार किया गया है। इसमें लंबे मुँह और बाल, भारी नाक, माथा और खुर, लाल जीभ और होठ तथा छोटे कान और पूँछवाले घोड़ों को उत्तम माना गया है। मुँह की लंबाई 2 अंगुल, कान 6 अँगुल तथा पूँछ 2 हाथ लिखी गई है। घोड़े का प्रथम गुण ‘गति का होना’ बताया है। उच्च वंश, रंग और शुभ आवर्तोंवाले अश्व में भी यदि गति नहीं है, तो वह बेकार है। शरीर के अंगों के अनुसार भी घोड़ों के नाम, त्रयण्ड (तीन वृषण वाला), त्रिकर्णिन (तीन कानवाला), द्विखुरिन (दोखुरवाला), हीनदंत (बिना दाँतवाला), हीनांड (बिना वृषणवाला), चक्रवर्तिन (कंधे पर एक या तीन अलकवाला), चक्रवाक (सफेद पैर और आँखोंवाला) दिए गए हैं। गति के अनुसार तुषार, तेजस, धूमकेतु, एवं ताड़ज नाम के घोड़े बताए हैं। इस ग्रन्थ में घोड़े के शरीर में 12,000 शिराएँ बताई गई हैं। बीमारियाँ तथा उनकी चिकित्सा आदि, अनेक विषयों का उल्लेख पुस्तक में किया गया है, जो इनके ज्ञान और रुचि को प्रकट करता है। इसमें घोड़े की औसत आयु 32 वर्ष बताई गई है।

भारत में पशुचिकित्सा विज्ञान भी काफ़ी विकसित था। घोड़ों, हाथियों, गाय-बैलों की चिकित्सा से संबंधित अनेक ग्रंथ उपलब्ध हैं। ‘शालिहोत्र’ नामक पशु चिकित्सक के ‘हय आयुर्वेद’, ‘अश्व लक्षण शास्त्र’ तथा ‘अश्व प्रशंसा’ नाम के तीन ग्रंथ उपलब्ध हैं। इनमें घोड़ों के रोगों और उनके उपचार के लिए औषधियों का विवरण है। इन ग्रंथों के अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में हुए। मुनि पालकप्य के ‘हास्ते-आयुर्वेद’ में हाथियों की शरीर रचना तथा उनके रोगों का विवरण, उनके रोगों की शल्य क्रिया और औषधियों द्वारा चिकित्सा, देखभाल और आहार का विवरण चरक और सुश्रुत की संहिताओं में भी मिलता है।

उन्होंने तीन प्रमुख ग्रंथों की रचना की थी।

ये थे—1. हय आयुर्वेद, 2. अश्व लक्षण-शास्त्र, 3. अश्व प्रशंसा। ‘हय आयुर्वेद’ एक विशाल ग्रंथ है,

जिसके आठ भाग हैं तथा उसमें कुल 12,000 श्लोक हैं। प्रथम अध्याय में घोड़ों की विभिन्न जातियों के गुणों, उनके लक्षणों व रूप-रंग का वर्णन है।


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