एक गांव में हैदर नाम का एक व्यापारी रहता था । गांव में उसकी परचून की दुकान थी । दुकान खूब अच्छी चलती थी क्योंकि परचून की गांव में वह एकमात्र दुकान थी ।
हैदर की सुंदर और गुणी दो बेटियां थीं । नाम था अलीजा और सोरा । दोनों बहनों में खूब प्यार था । वे दोनों अपने पिता का खूब खयाल रखती थीं । तरह-तरह के पकवान बनाकर पिता को खिलाती थीं । मां को भी घर के हर काम में मदद करती थीं । दोनों एक दूसरे से हरदम हंसी-मजाक करती रहती थीं । वे दोनों साथ भोजन करतीं व सोती थीं, दोनों का एक दूसरे के बिना मन न लगता था । यदि एक बीमार हो जाती तो दूसरी बहुत उदास रहती और दिन-रात अपनी बहन की तीमारदारी करती रहती ।
हैदर को कभी-कभी एक बेटा न होने का दुख होता था, परंतु अपनी प्यारी बेटियों को देखकर वह सब कुछ भूल जाता था । दोनों बेटियां धीरे-धीरे सयानी हो रही थीं । हैदर अपनी बेटियों की शादी जल्दी ही कर देना चाहता था ।
एक दिन हैदर की पत्नी ने कहा - "हमारी बड़ी बेटी अलीजा विवाह योग्य हो गई है, हमें जल्दी ही उसके लिए वर तलाश करके उसका विवाह कर देना चाहिए ।"
हैदर बोला - "मेरी भी इच्छा है कि अलीजा का विवाह खूब धूमधाम से करूं । मैं सोचता हूं कि उसके लिए किसी व्यापारी का बेटा ही ठीक रहेगा ।"
पत्नी बोली - "नहीं-नहीं, किसी व्यापारी के बेटे से अलीजा का विवाह करोगे तो वह भी तुम्हारी तरह दिन-रात काम में लगा रहेगा । मैं चाहती हूं कि अलीजा का विवाह किसी जमींदार के पुत्र से हो ।"
"हां, तुम ठीक कहती हो । मैं पास के गांव के जमींदार को जानता हूं । पर पता नहीं उनका कोई बेटा विवाह योग्य है भी या नहीं ।"
इसके पश्चात हैदर ने गांव के पंडित को जमींदार गेदाना के परिवार व पुत्र की जानकारी लेने के लिए पड़ोस के गांव में भेज दिया । पंडित जमींदार के घर पहुंचा तो यह जानकर बहुत खुश हुआ कि जमींदार का इकलौता पुत्र विवाह योग्य था । पंडित बहुत ज्ञानी होने के साथ-साथ अनुभवी भी था । उसने तुरंत हैदर की बेटी के विवाह का प्रस्ताव जमींदार गेदाना के आगे रख दिया । साथ ही अलीजा के रूप-गुण की खूब प्रशंसा की ।
कुछ ही दिनों में अलीजा का विवाह गेदाना के बेटे समर से हो गया । सोरा अकेली रह गई । वह अब ज्यादा हंसती-बोलती नहीं थी, अक्सर उदास होकर अपनी बहन अलीजा को याद करती रहती थी । अलीजा अपनी ससुराल में बहुत सुख से रहने लगी । उसके पति व ससुर के पास बहुत बड़े खेत थे, जहां हर मौसम की फसल उगाई जाती थी । अलीजा जब भी पिता के घर आती, अपने पिता व ससुराल की प्रशंसा करते न थकती थी ।
एक दिन अलीजा ने अपने पिता से कहा - "पिता जी, मेरा विचार है कि अब आपको सोरा का विवाह करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहिए । सोरा यूं भी अकेली रहने के कारण उदास रहने लगी है । उसको ससुराल में नए लोग मिलेंगे तो मुझे भूल जाएगी । वरना यूं ही सूख कर कांटा हो जाएगी ।"
पिता को अलीजा की बात जंच गई और उसने सोरा की मां से कहा - "तुम सोरा के लिए बुआ से जिक्र करना, हो सकता है कि उनकी जानकारी में सोरा के लायक कोई वर हो । वैसे भी तुम्हारी बुआ जग-बुआ है । वह मोहल्ले-गांव की खूब खोज-खबर रखती है ।"
हैदर की पत्नी बोली - "बुआ तो परसों ही एक लड़का बता रही थी । मैंने ही मना कर दिया कि हमें अभी सोरा का ब्याह नहीं करना है । उसके जाने से हमारा घर बिल्कुल सूना हो जाएगा ।"
हैदर बोला - "वह तो ठीक है, पर यदि अच्छा लड़का मिल रहा हो तो सोरा का विवाह करना ही ठीक रहेगा ।"
बस एक घर में सोरा की बात चलाई गई । बात बन गई और सोरा का विवाह हो गया । सोरा के पति के यहां मिट्टी के बर्तनों का व्यापार होता था । सोरा के ससुर गांव के बड़े कुम्हार थे । आस-पास के सभी गांव-मोहल्ले में उनके यहां के बने बर्तन ही प्रयोग में लाए जाते थे ।
सोरा अपनी ससुराल में जाकर सुखी थी । अत: वह नए माहौल में शीघ्र ही मस्त हो गई । एक वर्ष बीत गया तब हैदर ने सोचा कि दोनों बेटियों को देखे बहुत दिन हो गए । अत: दोनों को एक साथ बुला लिया जाए । दोनों बहनें एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश होंगी ।
अलीजा और सोरा अपने पिता के घर हंसी-खुशी पहुंचीं । दोनों एक-दूसरे से प्यार से गले मिलीं और अपनी-अपनी बातें करने लगीं ।
अगले दिन की बात है । हैदर ने सुना कि कमरे के अंदर अलीजा और सोरा की आपस में बहस करने की आवाज आ रही है । वह ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा । उसे उत्सुकता थी कि सदा हिल-मिल कर रहने वाली बहनें किस बात पर झगड़ रही हैं । हैदर ने सुना, अलीजा कह रही थी - "इस बार तो हम बहुत परेशान हैं । ईश्वर ने इस बार बहुत सूखा डाल दिया है, अकाल पड़ने की नौबत आ गई है । हम तो दिन-रात यही प्रार्थना कर रहे हैं कि खूब बारिश हो ।"
सोरा बोली - "खूब बारिश की प्रार्थना क्यों करती हो ? थोड़ी-सी बारिश की प्रार्थना क्यों नहीं करतीं ? तुम क्यों मेरा बुरा चाहती हो ?"
"मैं तेरा बुरा क्यों चाहने लगी" सोरा बोली - "मैं तो यही प्रार्थना करती हूं कि खूब बारिश हो । ईश्वर करे, इतनी बारिश की झड़ी लगे कि एक दिन भी धूप न निकले ।"
सोरा बोली - "दीदी, तुम बहुत बुरी हो । मेरा बुरा चाहती हो तभी ऐसी प्रार्थना करती हो । मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि रोज खूब तेज धूप निकले ताकि हमारे बर्तन-भांडे प्रतिदिन सूख जाएं । एक दिन भी बारिश हो जाए तो हमारे उस दिन के बर्तन गीले रह जाते हैं फिर अगले दिन हमारे यहां काम नहीं हो पाता ।
हैदर हैरान था कि दोनों बहनें अपनी-अपनी दलीलें देकर एक-दूसरे के विपरीत ईश्वर से प्रार्थना कर रही थीं । वह यह देखकर दुखी हो गया कि जो बहनें एक दूसरे पर जान छिड़कती थीं, आज अपने-अपने लाभ के लिए प्रार्थना कर रही थीं । वह यह सोच रहा था कि उसने क्यों अपनी दोनों बेटियों का ऐसे विपरीत व्यवसाय वाले घरों में विवाह किया, एक ही चीज एक के लिए खुशी और दूसरे के लिए गम देने वाली थी ।
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