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स्नान उत्सव: तिब्बती लोक-कथा

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हर साल की गर्मियों के अंत और शरद के प्रारंभिक काल की रात में ल्हासा के दक्षिण पूर्व आकाश में एक नया रोशनीदार तार चमकता हुए निकलता है। इसी रात से तिब्बती जाति का स्नान उत्सव आरंभ होता है। इस चमकदार तार मात्र सात रातों तक मौजूद होने के कारण तिब्बत का स्नान उत्सव भी सात दिन मनाया जाता है। इस प्रथा के पीछे एक कहानी प्रचलित है।

कहा जाता है कि बहुत बहुत पहले, तिब्बती घास मैदान में एक मशहूर वैद्य था, उस का नाम युथ्वो. युनतांगकुंगबू । चिकित्सा और औषध में पारंगत होने की वजह से वह किसी भी कठिन व जटिल बीमारियों का इलाज करने में दक्ष था। यही कारण था कि तिब्बती राजा ने भी उसे राजमहल में बुलवाकर राजसी चिकित्सक बनाया, जो विशेष तौर पर राजा और रानियों को चिकित्सीय सेवा देता था। लेकिन राजमहल में आने पर भी युथ्वो. युनतांकुंगबू के दिल में जन साधारण की याद रहती थी। वह अकसर जड़ी-बूटी तोड़ने व बीनने के मौके का फायदा उठाकर राजमहल से बाहर जाकर आम लोगों के रोगों का उपचार करता था। एक साल, घास मैदान में भयानक महामारी फैली, बेशुमार किसान और चरवाह बीमारी के कारण पलंग से नहीं उठ सकते, और कुछ लोगों की जान भी चली गयी।

चिंतित होकर वैद्य युथ्वो. युनतांकुंगबू ने दौड़े दौड़े विशाल घास मैदान में जाकर बीमारी से पीड़ित किसानों और चरवाहों का इलाज करता फिरता था। उस ने हिमच्छादित पहाड़ों और घने जंगलों में भांति भांति की जड़ी-बूटियां तोड़ बीन कर रामावण औषधियां तैयार कीं, जिन के सेवन से रोगी जल्द ही चंगे हो गए। उस की मेहरबानी से न जाने कितने मौत से जूझा रहे रोगी काल से बच गए और पुनः स्वस्थ हो गए। इसतरह युथ्वो. युनतांकुंगबू की ख्याति-प्रसिद्धि जगजग फैल गयी, और वह वैद्य-राजा के नाम से संबोधित किया गया। लेकिन दुर्भाग्य की बात थी कि वैद्य युथ्वो का भी स्वर्गवास हो गया। उस के देहांत के बाद घास मैदान में फिर एक बार महामारी पनपी, जिस ने पहले की महामारी से भी भयानक रूप ले लिया था।

बेशुमार बीमारी से जान गंवाए। रोग के शैय्या पर छटछपा रहे लोगों ने जमीन पर गिरकर स्वर्ग से उन की रक्षा करने की प्रार्थना की। संयोग की बात मानी, न मानी, एक दिन रोग से बुरी तरह पीड़ित एक नारी ने सपना में देखा कि वैद्य युथ्वो. युनतांकुंगबू ने उस के पास आकर बताया:" कल की रात, जब दक्षिण पूर्व के आकाश में एक चमकदार तारा उदित हो उठा, तो तुम ची छु नदी में जाकर पानी से नहा लो, इस से तुम बीमारी से पिंड छूटेगी।"सपना सच में आया, चीछु नदी में स्नान करने के बाद उस नारी की बीमारी खत्म हुई, वह चंगी हो गयी और पीली, पतली दुबली रोगी नदी के पानी से नहाने के बाद तुरंत सेहतमंद हुई और चेहरा चमकने लगा। खबरी कानोंकान फैली, सभी रोगी नदी में नहाने चले गए। नदी में नहाने के बाद वे सभी भी सेहतमंद हुए और एक बिलकुल स्वस्थ लोग बन गए। लोग कहते थे कि आकाश में चमकता हुआ वह तारा वैद्य योथ्वो का अवतार है।

स्वर्ग लोक में जब युथ्वो ने देखा कि नीचे धरती पर प्रजा महामारी से पीड़ित रही है, और वे खुद नीचे नहीं आ पाए, तो उस ने अपने को एक तारा के रूप में बदला और दिव्य आलोक शक्ति से नदी के पानी को औषध जल में परिवर्तित किया। और लोगों को बीमारी से छुटकारा पाने के लिए लोग नदी में पानी नहाने का संदेश भेजा। स्वर्ग राजा ने युथ्वो को केवल सात दिन का समय दिया, इसलिए यह तारा आकाश में सिर्फ सात रात में दृष्टिगोचर रहा। इस के बाद तिब्बती जनता ने इन सात दिनों को स्नान उत्सव घोषित किया। हर साल के इन सात दिनों में तिब्बत के विभिन्न स्थानों में तिब्बती जनता आसपास के नदी में जाकर नहाती है । माना जाता है कि नदी में स्नान करने के बाद लोग स्वस्थ और प्रसन्न हो उठते हैं और बीमारी नहीं लगती है।

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