पार्किंसंस रोग ऐसा रोग है, जिसमें शरीर का संतुलन बनाए रखने और अन्य शारीरिक गतिविधियां करने में समस्या होती है। यह बढ़ती उम्र के साथ होने वाला रोग है, जिसे मृत्यु के सबसे अहम 15 कारणों की सूची में शामिल किया गया है । देखा जाए तो इस बीमारी के बारे में लोगों को ज्यादा मालूम नहीं है, इसलिए इस लेख में हम आपको पार्किंसंस रोग से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देने की कोशिश करेंगे। इस लेख में आप पार्किंसंस रोग के प्रभाव, कारण और लक्षण के बारे में जानेंगे। साथ ही इस लेख में आपको पार्किंसंस रोग से बचाव करने के बारे में भी जानकारी मिलेगी।
पार्किंसंस रोग क्या है? –
पार्किंसंस रोग केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का एक न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग (दिमाग के न्यूरोन का धीरे-धीरे खत्म होना) है । इस बीमारी में दिमाग में डोपामाइन (Dopamine) नामक रसायन का उत्पादन बंद हो जाता है, जिसके चलते शरीर का संतुलन बनाए रखने में समस्या होती है । साथ ही चलने में समस्या, शरीर में अकड़न व कंपन जैसी समस्याएं भी होने लगती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, पार्किंसंस रोग का प्रभाव अक्सर 60 साल की उम्र के बाद पनपता है, लेकिन कुछ 5 से 10 प्रतिशत मामलों में यह 50 के आसपास भी हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, पार्किंसंस रोग के जोखिम पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले 50 प्रतिशत ज्यादा होते हैं यह आनुवंशिक भी हो सकता है, लेकिन ऐसा हर बार हो जरूरी नहीं है । मुख्य रूप से इसके दो प्रकार होते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं
प्राइमरी या इडियोपेथिक: इसमें न्यूरोन्स के खत्म होने की वजह का पता नहीं होता।
सेकंडरी या एक्वायर्ड: इसमें रोग का कारण पता होता है, जैसे ड्रग्स, संक्रमण, ट्यूमर, विषाक्ता आदि।
पार्किंसंस रोग के कारण –
द्रव्य नाइग्रा (Substantia Nigra) से न्यूरोन्स का खत्म होना पार्किंसंस रोग होने के कारण में मुख्य कारण होता है। यह मस्तिष्क का वह भाग होता है, जो शरीर को नियंत्रित करने के सिग्नल को दिमाग से रीढ़ की हड्डी तक भेजता है। दरअसल, यह काम इस भाग में बनने वाला केमिकल डोपामाइन करता है, जो इन न्यूरोन्स में बनता है। पार्किंसंस रोग होने के कारण इन न्यूरोन्स की संख्या कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप डोपामाइन की मात्रा भी कम होने लगती है। ऐसे में, दिमाग से सिग्नल भेजने में समस्या आने लगती है और शरीर पर नियंत्रण नहीं रह पाता ।
पार्किंसंस रोग होने के कारण जानने के बाद, यह जानना जरूरी है कि शरीर में किन बदलावों से आप पार्किंसंस रोग का पता लगा सकते हैं। लेख के अगले भाग में जानिए पार्किंसंस रोग के लक्षण।
पार्किंसंस रोग के लक्षण –
पार्किंसंस रोग के लक्षण प्रारंभिक अवस्था में नहीं दिखते। ये 80 प्रतिशत न्यूरोन्स खत्म होने के बाद नजर आने शुरू होते हैं। फिर समय के साथ जैसे-जैसे मस्तिष्क में डोपामाइन रसायन की मात्रा कम होती जाती है, इसके लक्षण बढ़ते जाते हैं। पार्किंसंस रोग के लक्षण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं
शरीर के किसी भाग में कंपन होना। अक्सर यह कंपन सबसे पहले हाथ में शुरू होती है। ज्यादातर ऐसा महसूस तब होता है, जब पीड़ित व्यक्ति चिंतित या थका हुआ हो।
- मांसपेशियों में ऐंठन।
- शरीर को संतुलित रखने में समस्या।
- शारीरिक गतिविधियों जैसे चलना व करवट बदलना आदि में धीमापन।
- आवाज में नरमाहट आना।
- आंखों को झपकाने में दिक्कत।
- खाना या पानी निगलने में समस्या।
- मूड स्विंग जैसे कि अवसाद (डिप्रेशन) आदि।
- बार-बार नींद खुलना।
- संवेदी लक्षण (Sensory symptoms) जैसे कि गंध की अनुभूति या दर्द आदि न होना।
- बेहोशी छाना।
- शारीरिक संबंधों में कम रुचि।
- आंत और मूत्राशय की गतिविधियों में गड़बड़ी।
- थकान महसूस होना।
- किसी भी कार्य में रुचि कम होना (Epathy)।
- कब्ज की समस्या रहना।
- कम या फिर उच्च रक्तचाप।
पार्किंसंस रोग के जोखिम कारक –
वैसे तो पार्किंसंस रोग की गिनती बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारियों में होती है, लेकिन कुछ कारक हैं, जो पार्किंसंस रोग के जोखिम को बढ़ा देते हैं। पार्किंसंस रोग के प्रभाव को बढ़ाने वाले कारक कुछ इस प्रकार हो सकते हैं :
- कुछ मामलों में आनुवंशिक कारण
- कुछ विशेष परिस्थितियों में भी ऐसा हो सकता है, जैसे :
- कीटनाशक रसायनों से अधिक संपर्क
- सिर पर गहरी चोट
- खेत या गांव में रहना
- ट्रैफिक की वजह से वायु प्रदूषण
पार्किंसंस रोग के जोखिम, कारण और लक्षण जानने के बाद, आइए, आपको पार्किंसंस रोग के इलाज के बारे में जानकारी देते हैं।
पार्किंसंस रोग का इलाज –
इस रोग का इलाज अभी तक इजात नहीं हुआ है, लेकिन कुछ दवाइयों और थेरेपी की मदद से पार्किंसंस रोग के लक्षण से आराम पाया जा सकता है। ज्यादातर दवाइयों का उपयोग मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाने के लिए किया जाता है। नीचे जानिये लक्षणों को कम करके पार्किंसंस रोग का इलाज करने वाली दवाइयों और थेरेपी के बारे में :
दवाइयां –
- मस्तिष्क के डोपामाइन का स्तर बढ़ाने वाली दवाइयां।
- मस्तिष्क के बाकी रसायनों पर प्रभाव डालने वाली दवाइयां।
- शरीर को नियंत्रण में रखने वाली दवाइयां।
थेरेपी –
लीवोडोपा (Levodopa): इस थेरेपी के जरिये दिमाग में डोपामाइन की मात्रा को बढ़ाया जाता है। हालांकि, इस थेरेपी के कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं जैसे उल्टी, मलती, बेचैनी और कम रक्तचाप। ऐसे में, इन दुष्प्रभावों से बचने के लिए इस थेरेपी के साथ कार्बिडोपा (Carbidopa) नामक एक दवा दी जाती है। ये दवा लीवोडोपा के प्रभाव को भी बढ़ाती है।
डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (Deep Brain Stimulation): यह उन मरीजों को दिया जाता है, जिन पर पार्किंसंस रोग का इलाज करने वाली किसी दवा या लीवोडोपा का कोई असर नहीं होता। यह एक प्रकार की सर्जरी होती है, जिसमें दिमाग और सीने में एक इलेक्ट्रिक डिवाइस लगाया जाता है। यह डिवाइस पार्किंसंस रोग के लक्षण जैसे चलने में समस्या, शरीर में अकड़न और कंपन को नियंत्रित करने में मदद करता है।
इन दोनों के साथ, पार्किंसंस रोग के प्रभाव कम करने के लिए अन्य थेरेपी भी प्रयोग में लाई जाती है, जिसमें फिजिकल, ऑक्यूपेशनल और स्पीच थेरेपी शामिल हैं।
नोट: जैसा कि हम बता चुके हैं कि खास पार्किंसंस रोग का इलाज करने के लिए अभी तक कोई दवा नहीं मिल पाई है। ऊपर बताई गयी दवाइयां और थेरेपी सिर्फ पार्किंसंस रोग के लक्षण को कम कर सकती हैं। आप यहां बताई गई दवा या थेरेपी को डॉक्टर से परामर्श करने के बाद ही लें।
पार्किंसंस रोग से बचने के उपाय -
पार्किंसंस रोग से बचाव के बारे में बात करें, तो इस पर अभी तक कोई गहन शोध उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, स्वस्थ जीवनशैली आपको पार्किंसंस रोग से बचाव में कुछ मदद कर सकती है। इस रोग में कैफीन का सेवन भी न करने की सलाह दी जाती है । इसके अलावा, रोज शारीरिक क्रिया और व्यायाम करना लाभकारी साबित हो सकता है, जैसे :
- प्रतिदिन कुछ देर टहलना
- मांसपेशियों को मजबूत रखना
- हृदय को स्वस्थ रखना
- शरीर के संतुलन पर नियंत्रण
- स्ट्रेस में सुधार
- जोड़ों को मजबूत रखना
पार्किंसंस रोग के बारे में समझ कर, इससे बचने के लिए उपयुक्त कदम उठाना ही इसका सबसे अच्छा बचाव है। इसके अलावा, पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए कई संस्थाओं द्वारा सहायता समूह बनाए गए हैं। पार्किंसंस रोग के प्रभाव से ग्रसित व्यक्ति अपना आत्मविश्वास खोने लगता है। ऐसे में परिवार और मित्रों को यह ध्यान में रखना जरूरी है कि वो मरीज का अच्छी तरह ध्यान रखें और उसका मनोबल बढ़ाने में उसकी सहायता करें। आशा करते हैं कि अब आप पार्किंसंस रोग के जोखिम, कारण और लक्षणों को अच्छी तरह समझ गए होंगे। इसे समझ कर पार्किंसंस रोग से बचाव उपायों को ध्यान में रखें।
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