मक्का को अनाज की रानी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि बाकी फसलों के मुकाबले में इसकी पैदावार सबसे अधिक है। इससे भोजन पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं जैसे कि स्टार्च, कॉर्न फ्लैक्स और गुलूकोज़ आदि। यह पोल्टरी वाले जानवरों की खुराक के तौर पर भी प्रयोग की जाती है। मक्की की फसल हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है क्योंकि इसे ज्यादा उपजाऊपन की आवश्यकता नहीं पड़ती।
इस फसल को कच्चे माल के तौर पर उदयोगिक उत्पादों जैसे कि तेल, स्टार्च, शराब आदि में भी प्रयोग किया जाता है। मक्की की फसल उगाने वाले मुख्य राज्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और पंजाब हैं। दक्षिण में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक मुख्य मक्की उत्पादक हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 1.9 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में मक्की की खेती की जाती है। मणिपुर, बहराइच, खेड़ी, बुलंदशहर, मेरठ, गोंडा, फारूखाबाद, जौनपुर और एटा उत्तर प्रदेश के मक्की उत्पादक क्षेत्र हैं।
मिट्टी
मक्की की फसल लगाने के लिए उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली, मैरा और लाल मिट्टी जिसमें नाइट्रोजन की उचित मात्रा हो, जरूरी है। मक्की रेतली से लेकर भारी हर तरह की ज़मीनों में उगाई जा सकती है। समतल ज़मीने मक्की के लिए बहुत अनुकूल है पर कईं पहाड़ी इलाकों में भी यह फसल उगाई जाती है। अधिक पैदावार लेने के लिए मिट्टी में जैविक तत्वों की अधिक मात्रा, पी एच 5.5-7.5 और अधिक पानी रोककर रखने की क्षमता होनी चाहिए। बहुत ज्यादा भारी ज़मीनें इस फसल के लिए अच्छी नहीं मानी जाती। खुराकी तत्वों की कमी पता करने के लिए मिट्टी की जांच करवानी आवश्यक है।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
Ganga II: यह हाइब्रिड किस्म है जिसके दाने संतरी रंग के होते हैं। यह किस्म 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 28-32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Deccan - 103: यह हाइब्रिड किस्म है जिसके दाने पीले रंग के होते हैं। यह किस्म 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 24-32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Deccan - 105: यह हाइब्रिड किस्म है जिसके दाने संतरी रंग के होते हैं। यह किस्म 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 24-32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Trisholta: यह हाइब्रिड किस्म है जिसके दाने संतरी रंग के होते हैं। यह किस्म 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 28-32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
High Starch: यह हाइब्रिड किस्म है जिसके दाने सफेद रंग के होते हैं। यह किस्म 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 28-32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Mangiri: यह कंपोज़िट किस्म है जिसके दाने पीले रंग के होते हैं। यह किस्म 170-180 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 20-32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
दूसरे राज्यों की किस्में
Madhuri and Priya: यह किस्म खरीफ के साथ साथ रबी के मौसम में भी उगाने के लिए उपयुक्त है। रबी के मौसम में ये किस्म 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं।
P3522, P1864, KMH-25K45 (Bumper)
ज़मीन की तैयारी
फसल के लिए प्रयोग किया जाने वाला खेत नदीनों और पिछली फसल से मुक्त होना चाहिए। मिट्टी को नर्म करने के लिए 6 से 7 बार जोताई करें। खेत में 4-6 टन प्रति एकड़ रूड़ी की खाद और 10 पैकेट एसपरजिलियम के डालें। खेत में 45-50 सैं.मी. के फासले पर खाल और मेंड़ बनाएं।
बिजाई
बिजाई का समय
रबी के मौसम में खेती के लिए बिजाई 15 अक्तूबर से 10 नवंबर तक पूरी कर लें। मेंड़ों पर बिजाई करना ज्यादा लाभदायक रहता है क्योंकि इससे फसल को जल्दी अंकुरित होने में मदद मिलती है और फसल ठंड से भी बची रहती है।
फासला
रबी के मौसम में खेती के लिए 60x18 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
बीज की गहराई
बीजों को 4-5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
बिजाई का ढंग
बिजाई हाथों से गड्ढा खोदकर या आधुनिक तरीके से ट्रैक्टर और बिजाई वाली मशीन की मदद से मेंड़ बनाकर की जा सकती है।
बीज
बीज की मात्रा
सर्दियों की मक्की के लिए 8-9 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी की बीमारियों और कीड़ों से बचाने के लिए बीज का उपचार करें। सफेद जंग से बीजों को बचाने के लिए कार्बेनडाज़िम या थीरम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के साथ उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीज को एज़ोसपीरीलम 600 ग्राम + धान के चूरे के साथ उपचार करें। उपचार के बाद बीज को 15-20 मिनटों के लिए छांव में सुखाएं। एज़ोसपीरिलम मिट्टी में नाइट्रोजन को बांधकर रखने में मदद करता है। निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी का प्रयोग करें।
खाद
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MOP |
110 | 150 | 30 |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
50 | 24 | 18 |
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजन 50 किलो (यूरिया 110 किलो), फासफोरस 24 किलो (एस एस पी 150 किलो) और पोटाश 18 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 30 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
नाइट्रोजन की 1/4 मात्रा और पोटाश और फासफोरस की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। यूरिया की बाकी की मात्रा को दो भागों में बांटकर पहली मात्रा जब फसल घुटने तक के कद की हो जाए तब और दूसरी मात्रा बालियां निकलने के समय डालें।
मक्की की फसल में जिंक और मैग्नीश्यिम की कमी आम देखने को मिलती है और इस कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट 8 किलो प्रति एकड़ बुनियादी खुराक के तौर पर डालें। जिंक और मैग्नीश्यिम के साथ साथ लोहे की कमी भी देखने को मिलती है जिससे सारा पौधा पीला पड़ जाता है। इस कमी को पूरा करने के लिए 25 किलो प्रति एकड़ सूक्ष्म तत्वों को 25 किलो रेत में मिलाकर बिजाई के बाद डालें।
खरपतवार नियंत्रण
खरीफ ऋतु की मक्की में नदीन बड़ी समस्या होते हैं, जो कि खुराकी तत्व लेने में फसल से मुकाबला करते हैं और 35 प्रतिशत तक पैदावार कम कर देते हैं। इसलिए अधिक पैदावार लेने के लिए नदीनों का हल करना जरूरी है। मक्की की कम से कम दो गोडाई करें। पहली गोडाई बिजाई से 20-25 दिन बाद और दूसरी गोडाई 40-45 दिन बाद , पर ज्यादा होने की हालत में एटराज़िन 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी से स्प्रे करें। गोडाई करने के बाद मिट्टी के ऊपर खाद की पतली परत बिछा दें और जड़ों से मिट्टी लगाएं।
कटाई और छंटाई: कटाई मतलब तंदरूस्त पौधों को रखकर बाकी के पौधों को हटा देना और एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 20 सैं.मी. रखना। पहली गोडाई के समय कटाई के समय करें। पहली सिंचाई के समय खाली जगह को भरने के लिए 4-6 दिन पुराने पौधे लगाएं।
सिंचाई
अंकुरन के तीसरे या चौथे सप्ताह बाद पानी लगाएं। बाकी की सिंचाइयां 4-5 सप्ताह के फासले पर मध्य मार्च तक करें। इसके इलावा और 1 या 2 सिंचाइयां वर्षा और मौसम की स्थिति के आधार पर करें।
जब पौधे घुटनों के कद के हो जायें तो फूल निकलने के समय और दाने बनने के समय सिंचाई महत्तवपूर्ण होती है। यदि इस समय पानी की कमी हो तो पैदावार बहुत कम हो सकती है। यदि पानी की कमी हो तो एक मेंड़ छोड़कर पानी दें। इस से पानी भी बचता है।
यदि फसल ठंड से ज्यादा प्रभावित हो तो तुरंत हल्की सिंचाई करें।
पौधे की देखभाल
शाख का छेदक
हानिकारक कीट और रोकथाम
तना छेदक :
चिलो पार्टीलस, यह कीट सारी मॉनसून ऋतु में मौजूद रहता है। यह कीट पूरे देश में खतरनाक माना जाता है। यह कीट पौधे उगने से 10-25 रातों के बाद पत्तों के नीचे की ओर अंडे देता है। कीट गोभ में दाखिल होकर पत्तों को नष्ट करता है और गोली के निशान बना देता है। यह कीट पीले भूरे रंग का होता है, जिसका सिर भूरे रंग का होता है।
टराईकोग्रामा के साथ परजीवी क्रिया करके 1,00,000 अंडे प्रति एकड़ एक सप्ताह के फासले पर तीन बार छोड़ने से इस कीट को रोका जा सकता है। तीसरी बार कोटेशिया फलैवाईपस 2000 प्रति एकड़ से छोड़ें। फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 5 किलो या कार्बरिल 4 प्रतिशत जी 1 किलो को रेत में मिलाकर 10 किलो मात्रा में पत्ते की गोभ में बिजाई के 20 दिन बाद डालें या कीटनाशक कार्बरिल 50 डब्लयु पी 1 किलो प्रति एकड़ बिजाई के 20 दिन बाद या डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। कलोरपाइरीफॉस 1-1.5 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे पौधे उगने के 10-12 दिनों के बाद स्प्रे करने से भी कीड़ों को रोका जा सकता है।
कॉर्न वार्म :
यह सुंडी रेशों और दानों को खाती है। सुंडी का रंग हरे से भूरा हो सकता है। सुंडी के शरीर पर गहरी भूरे रंग की धारियां होती हैं, जो आगे चलकर सफेद हो जाती हैं।
एक एकड़ में 6 फीरोमोन कार्ड लगाएं। इसे रोकने के लिए इसे रोकने के लिए कार्बरिल 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ की स्प्रे छोटे गुच्छे निकलने से तीसरे और अठारवें दिन करें।
गुलाबी छेदक :
यह कीट भारत के प्रायद्विपीय क्षेत्र में सर्दी ऋतु में नुकसान करता है। यह कीट मक्की की जड़ों को छोड़कर बाकी सभी हिस्सों को प्रभावित करता है। यह पौधे के तने पर गोल और "S" नाप की गोलियां बनाकर उन्हें मल से भर देता है और सतह पर छेद कर देता है। ज्यादा नुकसान होने पर तना टूट भी जाता है। इसे रोकने के लिए कार्बोफ्यूरॉन 5 प्रतिशत डब्लयु/डब्लयु 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसके इलावा अंकुरन से 10 दिन बाद 3-5 टराइकोकार्ड प्रति एकड़ डालने से भी नुकसान से बचा जा सकता है। रोशनी और फीरोमोन कार्ड भी पतंगे को पकड़ने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
शाख का कीट :
यह कीट पत्ते के अंदर अंडे देता है जो कि शाख् के साथ ढके हुए होते हैं। इससे पौधा बीमार और पीला पड़ जाता है। पत्ते शिखर से नीचे की ओर सूखते हैं और बीच वाली नाड़ी अंडों के कारण लाल रंग की हो जाती है और सूख जाती है।
इसे रोकने के लिए डाईमैथोएट 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
शाख की मक्खी :
यह दक्षिण भारत की मुख्य मक्खी है और कईं बार गर्मी और बसंत ऋतु में उत्तरी भारत में भी पाई जाती है। यह छोटे पौधों पर हमला करती है और उन्हें सूखा देती है।
इसे रोकने के लिए कटाई के बाद खेत की जोताई करें और पिछली फसल के बचे कुचे को साफ करें। बीज को इमीडाक्लोप्रिड 6 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे मक्खी पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। बिजाई के समय मिट्टी में फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 4 किलो प्रति एकड़ डालें। इसके इलावा डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 300 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी 400 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
दीमक :
यह कीट बहुत नुकसानदायक है और मक्की वाले सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसे रोकने के लिए फिप्रोनिल 8 किलो प्रति एकड़ डालें और हल्की सिंचाई करें। यदि दीमक का हमला अलग अलग हिस्सों में हो तो फिप्रोनिल के 2-3 किलो दाने प्रति पौधा डालें और खेत को साफ सुथरा रखें।
बीमारियां और रोकथाम
पत्ता झुलस रोग :
यह बीमारी गर्म ऊष्ण, उप ऊष्ण से लेकर ठंडे शीतवण वातावरण में आती है और बाइपोलैरिस मैडिस द्वारा की जाती है। शुरू में जख्म छोटे और हीरे के आकार के होते हैं और बाद में लंबे हो जाते हैं। जख्म आपस में मिलकर पूरे पत्ते को जला सकते हैं।
डाइथेन एम-45 या ज़िनेब 2.0-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7-10 दिन के फासले पर 2-4 स्प्रे करने से इस बीमारी को शुरूआती समय में ही रोका जा सकता है।
फूलों के बाद टांडों का गलना :
यह एक बहुत ही नुकसानदायक बीमारी है जो कि बहुत सारे रोगाणुओं के द्वारा इकट्ठे मिलकर की जाती है। यह जड़ों, शिखरों और तनों के उस हिस्से पर जहां दो गांठे मिलती हैं, पर नुकसान करती है।
इस बीमारी के ज्यादा आने की सूरत में पोटाशियम खाद का प्रयोग कम करें। फसलों को बदल बदल कर लगाएं और फूलों के खिलने के समय पानी की कमी ना होने दें। खालियों में टराइकोडरमा 10 ग्राम प्रति किलो रूड़ी की खाद में बिजाई के 10 दिन पहले डालें।
पत्तों के नीचे भूरे रंग के धब्बे :
इस बीमारी की धारियां नीचे के पत्तों से शुरू होती हैं। यह पीले रंग की और 3-7 मि.मी. चौड़ी होती हैं। जो पत्तों की नाड़ियों तक पहुंच जाती हैं। यह बाद में लाल और जामुनी रंग की हो जाती हैं। धारियों के और बढ़ने से पत्तों के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं।
इसे रोकने के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। बीज को मैटालैक्सिल 6 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें और मैटालैक्सिल 1 ग्राम या मैटालैक्सिल+मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
पाइथीयम :
इससे पौधे की निचली गांठें नर्म और भूरी हो जाती हैं और पौधा गिर जाता है। प्रभावित हुई गांठे मुड़ जाती हैं।
बिजाई से पहले पिछली फसल के बचे कुचे को नष्ट करके खेत को साफ करें। पौधों की सही संख्या रखें और मिट्टी में कप्तान 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर गांठों के साथ डालें।
टी एल बी :
यह बीमारी उत्तरी भारत, उत्तर पूर्वी पहाड़ियां और प्रायद्विपीय क्षेत्र में ज्यादा आती है और एक्सरोहाइलम टरसीकम द्वारा फैलती है। यदि यह बीमारी सूत कातने के समय आ जाए तो आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। शुरू में पत्तों के ऊपर छोटे फूले हुए धब्बे दिखाई देते हैं और नीचे के पत्तों को पहले नुकसान होता है और बाद में सारा बूटा जला हुआ दिखाई देता है। यदि इसे सही समय पर ना रोका जाये तो यह 70 प्रतिशत तक पैदावार कम कर सकता है।
इसे रोकने के लिए बीमारी के शुरूआती समय में मैनकोज़ेब या ज़िनेब 2-4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
टांडे सूखना :
इससे तना ज़मीन के साथ फूल कर भूरे रंग का जल्दी टूटने वाला और गंदी बास मारने वाला लगता है।
इसे रोकने के लिए पानी खड़ा ना होने दें और जल निकास की तरफ ध्यान दें। इसके इलावा फसल के फूल निकलने से पहले ब्लीचिंग पाउडर 33 प्रतिशत कलोरीन 4 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में डालें।
कमी और इसका इलाज
जिंक की कमी :
यह ज्यादातर अधिक पैदावार वाली किस्मों का प्रयोग करने वाले इलाकों में पाई जाती है। इससे पौधे के शिखर से हर ओर दूसरे या तीसरे पत्ते की नाड़ियां सफेद पीले और लाल रंग की दिखती हैं।
जिंक की कमी को रोकने के लिए बिजाई के समय जिंक सल्फेट 10 किलो प्रति एकड़ डालें। यदि खड़ी फसल में जिंक की कमी दिखे तो जिंक सल्फेट और सूखी मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर पंक्तियों में डालें।
फसल की कटाई
छल्लियों के बाहरले पत्ते हरे से सफेद रंग के होने पर फसल की कटाई करें। तने के सूखने और दानों में पानी की मात्रा 17-20 प्रतिशत होने की सूरत में कटाई करना इसके लिए अनुकूल समय है। प्रयोग की जाने वाली जगह और यंत्र साफ, सूखे और रोगाणुओं से मुक्त होने चाहिए।
स्वीट कॉर्न की कटाई : जब फसल पकने वाली हो जाये रोज़ कुछ बलियों की जांच करें, ताकि कटाई का सही समय पता किया जा सके। छल्ल्यिं के पूरे आकार में आने और रेशे के सूखने से कटाई दानों को तोड़ने पर उनमें से दूध निकलता है। कटाई में देरी होने से मिठास कम हो जाती है। कटाई हाथों और मशीनों से रात के समय और सुबह करनी चाहिए।
बेबी कॉर्न : छल्लियों के निकलने के 45-50 दिनों के बाद जब रेशे 1-2 सैं.मी. के होने पर कटाई करें। कटाई सुबह के समय करें जब तापमान कम और नमी ज्यादा हो । इसकी तुड़ाई प्रत्येक 3 दिनों के बाद करें और किस्म के अनुसार 7-8 तुड़ाई करें।
पॉप कॉर्न : छल्लियों को ज्यादा से ज्यादा समय के लिए पौधों के ऊपर ही रहने दें। यदि हो सके तो छिल्के के सूखने पर ही कटाई करें।
कटाई के बाद
स्वीट कॉर्न को जल्दी से जल्दी खेत में से पैकिंग वाली जगह पर लेकर जायें ताकि उसे आकार के हिसाब से अलग, पैक और ठंडा किया जा सके इसे आमतौर पर लकड़ी के बक्सों में पैक किया जाता है, जिनमें 4-6 दर्जन छल्लियां बक्से और छल्लियों के आकार के आधार पर समा सकती हैं।
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