गन्ना की खेती व्यापारिक फसल के रूप में की जाती है. भारत में गन्ने का सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तर भारत में किया जाता है. गन्ने का इस्तेमाल ज्यादातर चीनी और गुड बनाने में किया जाता है. इसके अलावा गन्ने का इस्तेमाल इसका जूस निकालने और सीधा चूसने में भी किया जाता है. गन्ने की खेती वर्तमान में कई अलग अलग तरीकों से की जा रही है. लेकिन गन्ने की खेती ज्यादातर किसानों के लिए नुकसानदायक ही साबित हो रही है. इसकी उन्नत किस्म के बीज (गल्ले) और उचित समय पर उन्नत तरीके से लगाकर किसान भाई अच्छी पैदावार ले सकते हैं. जिससे फसल का उत्पादन काफी ज्यादा मिलता है.
आज हम आपको गन्ने की कुछ उन्नत किस्मों के बारें में बताने वाले है. जिन्हें आप उचित तरीके से उगाकर अधिक उत्पादन हासिल कर सकते हैं.
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार-
को 0238
गन्ने की इस किस्म को करन 4 के नाम से जाना जाता है. जो गन्ने की उत्तम पैदावार देने वाली एक संकर किस्म है. इसके पौधों को Co LK 8102 और Co 775 के संकरण से तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे में लाल सडन का रोग देखने को नही मिलता. इस किस्म के पौधे में मिठास की मात्रा 20 प्रतिशत के आसपास पाई जाती है. इसके पौधों की लम्बाई काफी ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 80 टन से ज्यादा पाया जाता है.
को सी 671
गन्ना की ये एक शीघ्र पकने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 10 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे गुड बनाने में सबसे उपयोगी होते हैं. इसकी पैदावार उन्नत तरीके से करने पर इसके पौधों की लम्बाई 12 फिट से ज्यादा पहुँच जाती है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 90 से 100 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में मिठास की मात्रा 22 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधों में कई तरह के कीट और रेडराट जैसे रोग देखने को नही मिलते.
को. 6304
गन्ने की इस किस्म को माध्यम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म का उत्पादन ज्यादातर मध्य प्रदेश में किया जाता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 12 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 100 से 120 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में रेडराट और कंडुवा जैसे रोग देखने को नही मिलते. इस किस्म के गन्नों के रस में शक्कर की मात्रा 19 प्रतिशत पाई जाती है.
को. जे. एन. 9823
इस किस्म के पौधे माध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधे रोपाई के लगभग एक साल बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 से 110 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधे से प्राप्त होने वाले रस में शक्कर की मात्रा 20 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके पौधों में लाल सडन का रोग काफी कम देखने को मिलता है.
को. 8209
गन्ने की ये एक जल्दी पकने वाली नई किस्म है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 9 से 10 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे के रस में मिठास की मात्रा 20 प्रतिशत पाई जाती हैं. इस किस्म का उत्पादन इसकी जड़ी के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस किस्म की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और झारखंड में अधिक की जाती है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई 12 फिट से ज्यादा पाई जाती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 90 से 110 टन के आसपास पाया जाता है.
को. जवाहर 94-141
गन्ने की इस किस्म को मध्य देरी से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 14 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 120 से 150 टन के बीच पाया जाता है. इसके पौधों में कई तरह के कीट, रेडराट और कंडवा जैसे रोग देखने को कम मिलते हैं.
सी ओ 1007
गन्ने की इस किस्म को उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे मध्य समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 90 से 100 टन के बीच पाया जाता है. इसके पौधे पर कीट रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है. इस किस्म के पौधे आधार से काफी मजबूत होते है. जिस कारण इसके पौधे आड़े बहुत कम गिरते हैं.
को. 7704
गन्ने की इस किस्म के पौधे जल्दी पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 280 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों की लम्बाई 12 फिट से ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के पौधों के रस में शक्कर की मात्रा 20 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 80 से 100 के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में लाल सड़न और कडुवा जैसे रोग कम देखने को मिलते हैं.
को जे एन 9505
गन्ने की इस किस्म के पौधे मध्य समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 110 टन के आसपास पाया जाता है. इसके पौधे रोपाई के लगभग एक साल के आसपास कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. गन्ने की इस किस्म के पौधों में शक्कर की मात्रा 20 से 22 प्रतिशत तक पाई जाती हैं. इस किस्म के पौधे में उक्ठा और लाल सड़न जैसे रोग बहुत कम देखने को मिलते हैं.
को. जवाहर 86-600
गन्ने की इस किस्म को देरी से पैदावार लेने के लिए तैयार किया गया है. इसके पौधे रोपाई के लगभग एक साल बाद कटाई के लिए तैयार होते हैं. इस किस्म के पौधों की लम्बाई 12 फिट के आसपास पाई जाती है. जिनमें शक्कर की मात्रा सबसे ज्यादा 22 प्रतिशत से भी ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 130 से 160 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में रेडराट और कंडवा जैसे रोग देखने को कम मिलते हैं.
को. 6217
गन्ने की इस किस्म के पौधे अधिक देरी तक पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे काफी नर्म पाए जाते हैं. इस कारण इनका इस्तेमाल चूसने के लिए सबसे बेहतर होता है. इस किस्म के पौधों में कई तरह के कीट रोग काफी कम देखने को मिलते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 100 से 110 टन के आसपास पाया जाता है.
सी ओ 1148
गन्ने की इस किस्म के पौधे सूखे और पाले के प्रति सहनशील होते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 10 से 12 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 80 से 100 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधे ठोस पाए जाते हैं. जिनके रस में शक्कर की मात्रा 17 प्रतिशत तक पाई जाती है. गन्ने की इस किस्म के पौधे 10 से 12 फिट लम्बे पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों में लाल सडन का रोग काफी कम देखने को मिलता है.
को. जवाहर 86-2087
गन्ने की इस किस्म के पौधे देरी से पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 150 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई काफी ज्यादा पाई जाती है. इसके पौधों के रस में मिठास की मात्रा 20 प्रतिशत पाई जाती है. इस किस्म के पौधे गुड बनाने के लिए सबसे उत्तम होते हैं. इसके पौधों में कई तरह के कीट रोग देखने को नही मिलते.
को. 7318
गन्ने की इस किस्म के पौधे काफी नर्म होते हैं. जिस कारण इस किस्म के गन्ने चूसने में काफी अच्छे होते हैं. इसके पौधे की लम्बाई 12 फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 12 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 120 से 140 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में मिठास की मात्रा 18 प्रतिशत तक पाई जाती हैं. इसके पौधों में रेडराट और कंडवा जैसे रोग देखने को कम मिलते हैं.
सी.ओ. 7717
गन्ने की इस किस्म के पौधे मध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे बसंतकालीन रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं. इसके पौधे हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में आसानी से उगाये जा सकते हैं. इस किस्म के पौधे सीधे बढ़ने वाले होते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 110 टन के आसपास पाया जाता हैं.
को. 94008
गन्ने की इस किस्म को कम समय में ज्यादा पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इसके पौधों की लम्बाई 10 फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में शक्कर की मात्रा 18 से 20 प्रतिशत पाई जाती है. इस किस्म के पौधों पर उकठा और कंडवा रोग नही लगता.
सी ओ जे 64
गन्ने की ये एक अगेती रोपाई वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे चूसने के लिए काफी उपयुक्त होते हैं. लेकिन इसके पौधों में तना छेदक रोग काफी जल्दी लगता है. इसलिए इसकी रोकथाम करना जरूरी होता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के 10 से 12 महीने बाद ही पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 80 टन के आसपास पाया जाता है.
सी ओ एच 128
गन्ने की इस किस्म के पौधे बसंतकालीन रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग एक साल के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों में फुटाव अच्छा पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में मिठास की मात्रा 17 से 18 प्रतिशत के बीच पाई जाती है. इस किस्म के पौधों में लाल सडन का रोग काफी कम देखने को मिलता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 90 से 100 टन के आसपास पाया जाता हैं.
सी ओ एस 8436
गन्ने की इस किस्म के पौधे मध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 10 से 12 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 80 से 100 टन के बीच पाया जाता है. इसके पौधे ठोस पाए जाते हैं, जिनमें मिठास की मात्रा 18 से 20 प्रतिशत के बीच पाई जाती है. गन्ने की इस किस्म के पौधे 10 से 12 फिट लम्बे पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों में कई तरह के कीट जनित रोग काफी कम देखने को मिलते हैं.
को.सी. 671
गन्ने की इस किस्म के पौधे 10 से 12 महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इनसे प्राप्त होने वाले रस में 22 प्रतिशत शक्कर की मात्रा पाई जाती है. इस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल गुड बनाने में किया जाता है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर रेडराट का रोग नही लगता है.
गन्ना की ये वो उन्नत किस्में हैं जिन्हें लगभग उत्तर भारत के सभी राज्यों में अलग अलग तरह की भूमि में उगाया जाता है. इनके अलावा कुछ और किस्में हैं जिन्हें किसान भाई क्षेत्रीय आधार पर उगाते हैं
ज़मीन की तैयारी
खेत की दो बार जोताई करें। पहली जोताई 20-25 सैं.मी. होनी चाहिए। कंकड़ों को मशीनी ढंग से अच्छी तरह तोड़कर समतल कर दें।
बिजाई
बिजाई का समय
पंजाब में गन्ने को बीजने का समय सितंबर से अक्तूबर और फरवरी से मार्च तक का होता है। गन्ना आमतौर पर पकने के लिए एक साल का समय लेता है।
फासला
उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पंक्तियों का फासला 60-120 सैं.मी. होना चाहिए।
बीज की गहराई
गन्ने को 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बोयें और इसे मिट्टी से ढक दें।
बिजाई का ढंग
A. बिजाई के लिए सुधरे ढंग जैसे कि गहरी खालियां, मेंड़ बनाकर,पंक्तियों में जोड़े बनाकर और गड्ढा खोदकर बिजाई करें।
1. खालियां और मेंड़ बनाकर सूखी बिजाई:- ट्रैक्टर वाली मेंड़ बनाने वाली मशीन की मदद से मेंड़ और खालियां बनाएं और इन मेड़ और खालियों में बिजाई करें। मेड़ में 90 सैं.मी. का फासला होना चाहिए। गन्ने की गुलियों को मिट्टी में दबाएं और हल्की सिंचाई करें।
2. पंक्तियों के जोड़े बनाकर बिजाई:- खेत में 150 सैं.मी. के फासले पर खालियां बनाएं और उनमें 30-60-90 सैं.मी. के फासले पर बिजाई करें। इस तरीके से मेड़ वाली बिजाई से अधिक पैदावार मिलती है।
3. गड्ढा खोदकर बिजाई: - गड्ढे खोदने वाली मशीन से 60 सैं.मी. व्यास के 30 सैं.मी. गहरे गड्ढे खोदें जिनमें 60 सैं.मी. का फासला हो। इससे गन्ना 2-3 बार उगाया जा सकता है और आम बिजाई से 20-25 प्रतिशत अधिक पैदावार आती है।
B. एक आंख वाले गन्नों की बिजाई :– सेहतमंद गुलियां चुनें और 75-90 सैं.मी. के अंतर पर खालियों में बिजाई करें। गुलियां एक आंख वाली होनी चाहिए। यदि गन्ने के ऊपरले भाग में छोटी डलियां चुनी गई हों तो बिजाई 6-9 सैं.मी. के अंतर पर करें। फसल के अच्छे उगने के लिए आंखों को ऊपर की ओर रखें और हल्की सिंचाई करें।
बीज
बीज की मात्रा
अलग-अलग तजुर्बों से यह सिद्ध हुआ है कि 3 आंख वाली गुलियों का जमाव अधिक होता है जब कि एक आंख वाली गुली अच्छी नहीं जमती क्योंकि दोनों ओर काटने के कारण गुली में पानी की कमी हो जाती है और ज्यादा आंखों वाली गुलियां बीजने से भी अधिक जमाव नहीं मिलता।
अनुकूल मौसम ना मिलने के कारण उत्तर पश्चिम इलाकों में बीज का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। तीन आंखों वाली 20,000 गुलियां प्रति एकड़ प्रयोग करें।
बीज का उपचार
बीज 6-7 महीनों की फसल पर लगाएं जो कि कीड़ों और बीमारियों से रहित हो। बिमारी और कीड़े वाले गन्ने और आंखों को ना चुनें। बीज वाली फसल से बिजाई से एक दिन पहले काटें इससे फसल अच्छा जमाव देती है। गुलियों को कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में भिगो दें। रसायनों के बाद गुलियों को एज़ोस्पिरिलम के साथ उपचार करें। इससे गुलियों को एज़ोस्पिरिलम 800 ग्राम प्रति एकड़ पानी में बिजाई से पहले 15 मिनट के लिए रखें।
मिट्टी का उपचार
मिट्टी के उपचार के लिए जीवाणु खाद और रूड़ी का प्रयोग करना चाहिए। इसलिए 5 किलो जीवाणु खाद को 10 लीटर पानी में घोलकर मिश्रण तैयार कर लें। इस मिश्रित घोल को 80-100 किलो रूड़ी में मिलाके घोल तैयार कर लें। इस घोल को मेंड़ पर बीजे गन्ने की गुलियों पर छिड़कें। इसके बाद मेंड़ को मिट्टी से ढक दें।
खाद
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MURIATE OF POTASH | ZINC |
200 | As per soil test | As per soil test | # |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
90 | As per soil test | As per soil test |
फसल बीजने से पहले मिट्टी के अंदरूनी तत्वों को जांच करवानी आवश्यक है ताकि खादों की सही आवश्यकता को समझा जा सके। बिजाई से पहले 8 टन प्रति एकड़ रूड़ी की खाद मिलाएं या वर्मीकंपोस्ट + रैलीगोल्ड 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ या जीवाणु खाद 5-10 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग करें। बिजाई के समय 66 किलो यूरिया का प्रयोग प्रति एकड़ के हिसाब से करें। यूरिया की दूसरी किश्त 66 किलो प्रति एकड़ दूसरे पानी के बाद डालो और यूरिया की तीसरी किश्त 66 किलो प्रति एकड़ चौथे पानी के बाद डालें।
सर्दियों के मौसम में तापमान कम होने के कारण फसल तत्व ज्यादा लेती है जिस कारण पौधा पीला पड़ जाता है इसकी रोकथाम के लिए N:P:K 19:19:19 की स्प्रे 250 ग्राम 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के लिए प्रयोग करें। जिन इलाकों में पानी की कमी है वहां यूरिया+पोटाश का प्रयोग 2.5 किलोग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर करें।
खरपतवार नियंत्रण
गन्ने में नदीनों के कारण 12-72 प्रतिशत पैदावार का नुकसान होता है। बिजाई के 60-120 दिनों तक नदीनों की रोकथाम बहुत जरूरी है। इसलिए 3-4 महीने की फसल में नदीनों की रोकथाम करें। नीचे लिखे तरीकों से नदीनों को रोका जा सकता है।
1. हाथों से गोडाई करके :- गन्ना एक मेढ़ पर लगने वाली फसल है इसलिए नदीनों को गोडाई करके रोका जा सकता है इसके इलावा पानी लगाने के बाद 3-4 गोडाई जरूरी है।
2.काश्तकारी ढंग :- हर वर्ष गन्ने की फसल लेने से नदीनों के कारण बहुत नुकसान होता है। इसकी रोकथाम के लिए चारे वाली फसलें और हरी खाद वाली फसलों के आधार वाला फसली चक्र गन्ने में नदीनों की रोकथाम करता है। इसके इलावा अंतरफसली जैसे कि मूंग, मांह और घास फूस की नमी से नदीनों का नुकसान कम होता हैं मूंग और मांह जैसी अंतर फसली अपनाने से किसान अपनी कमाई बढ़ा सकता है। घास फूस और धान की पराली की 10-15 सैं.मी. मोटी सतह जमीन का तापमान कम करके नदीनों को रोकती है और जमीन में नमी को संभालने में मदद करती है।
3.रासायनिक तरीके :- सिमाज़ीन/एट्राज़ीन 600-800 ग्राम प्रति एकड़ या मैट्रीब्यूज़िन 800 ग्राम प्रति एकड़ या डाईयूरोन 1-1.2 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग बिजाई से तुरंत करनी चाहिए। इसके इलावा चौड़े पत्ते वाले नदीनों की रोकथाम के लिए 2, 4-डी का प्रयोग 250-300 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से करें ।
सिंचाई
गन्ने की सिंचाई भूमि (हल्की या भारी) और सिंचाई की सूविधा पर निर्भर करती है। गर्मी के महीने में गन्ने को पानी की जरूरत पड़ती है। गन्ने की पहली सिंचाई फसल के 20-25 प्रतिशत के उगने के बाद लगाई जाती है। बारिश के दिनों में गन्ने को पानी बारिश के आधार पर लगाएं। यदि बारिश कम हो तो 10 दिनों के अंतर पर पानी लगाएं। इसके बाद पानी लगाने का अंतराल बढ़ा कर 20-25 दिनों तक कर दें। जमीन में नमी संभालने के लिए गन्ने की पंक्तियों में घास फूस का प्रयोग करें। अप्रैल से जून के महीने का समय गन्ने के लिए नाजुक समय होता है। इस समय सिंचाई का सही ध्यान रखना जरूरी है इसके इलावा बारिश के दिनों में पानी को खड़ा होने से रोकें। बालियां निकलने और फसल के विकास के समय सिंचाई जरूरी है।
मिट्टी को मेंड़ पर चढ़ाना : कही का प्रयोग करके गन्ने की मेंड़ चढ़ानी जरूरी है क्योंकि यह कमाद को गिरने से बचाती है और खादों को भी मिट्टी में मिलाने में सहायता करती है।
पौधे की देखभाल
हानिकारक कीट और रोकथाम
अगेती फोट का छेदक :
यह सुंडी फसल के उगने के समय हमला करती है। यह सूण्डी जमीन के नजदीक तने में सुराख करती है और पौधे को सुखा देती है। जिससे गंदी बास मारती है। यह कीड़ा आम तौर पर हल्की जमीनें आर शुष्क वातावरण में मार्च से जून के महीनों में हमला करती है। इसकी रोकथाम के लिए फसल अगेती बीजनी चाहिए।
फसल बीजने के समय क्लोरोपाइरीफॉस 1 लीटर को 100-150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ गुलियों पर स्प्रे करें । यदि बिजाई के समय इस दवाई का प्रयोग ना किया जाये तो इसका प्रयोग खड़ी फसल में भी कर सकते हैं। सूखे हुए पौधों को नष्ट करें । हल्की सिंचाई करें और खेत को शुष्क होने से रोकें।
सफेद सुण्डी :
यह सुण्डी जड़ों पर हमला करती है। जिस कारण गन्ना खोखला हो जाता है और गिर जाता है। शुरू में इसका नुकसान कम होता है परंतु बाद में सारे खेत में आ जाता है। ये सुण्डियां बारिश पड़ने के बाद मिट्टी में से निकल कर नजदीक के वृक्षों में इक्ट्ठी हो जाती हैं और रात को इसके पत्ते खाती हैं। यह मिट्टी में अंडे देती हैं जो कि छोटी जड़ों को खाती हैं।
गन्ने की जड़ों में इमीडाकलोपरिड 4-6 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिला कर प्रयोग करें। फसल अगेती बीजने से भी इसके नुकसान से बचा जा सकता है। बीजों का कलोरपाइरीफॉस से उपचार करना चाहिए । इसके इलावा 4 किलो फोरेट या कार्बोफिउरॉन 13 किलो प्रति एकड़ को मिट्टी में मिलाएं । खेत में पानी खड़ा करके भी इस कीड़े को रोका जा सकता है। क्लोथाइनीडिन 40 ग्राम एकड़ को 400 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
दीमक :
बिजाई से पहले बीजों का उपचार करें। गुलियों को इमीडाक्लोप्रिड के घोल 4 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर 2 मिनट के लिए डुबोयें या बिजाई के समय क्लोरपाइरीफॉस 2 लीटर प्रति एकड़ की स्प्रे बीजों पर करें। यदि खड़ी फसल पर इसका हमला दिखे तो जड़ों के नज़दीक इमीडाक्लोप्रिड 60 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी या क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
पायरिल्ला :
इसका ज्यादा हमला उत्तरी भारत में पाया जाता है। बड़े कीड़े पत्ते के निचली तरफ से रस चूसते हैं। इससे पत्तों पर पीले सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और पत्ते नष्ट हो जाते हैं। ये पत्तों पर शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं। जिससे फंगस पैदा हो जाती है और पत्ते काले रंग के हो जाते हैं।
नियमित फासले पर सफेद फूले हुए अंडों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। गंभीर हमला होने पर डाइमैथोएट या एसीफेट 1-1.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
जड़ छेदक :
यह कीड़ा धरती में होता है। जो गन्ने के अंदर जाकर पत्ते पीले कर देता है। इसका नुकसान जुलाई महीने से शुरू होता है। इसके हमले से पत्ते पीले शिखर से नीचे तक पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं और धारियां भी पड़ जाती हैं।
फसल बीजने से पहले गुलियों का क्लोरपाइरीफॉस से उपचार करें। शुष्क खेतों में इसका नुकसान कम होता है। इसलिए खेत में पानी ना खड़ा होने दें। फसल बीजने से 90 दिनों के बाद मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं । ज्यादा नुकसान के समय क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 1 लीटर प्रति एकड़ को 100-150 लीटर पानी में मिलाकर गन्ने की जड़ों में डालें। क्विनलफॉस 300 मि.ली प्रति एकड़ भी इसकी रोकथाम करता है। प्रभावित पौधे को खेत में से उखाड़ देना चाहिए।
शाख का छेदक :
यह कीड़ा जुलाई में हमला करता है और मानसून के हिसाब से इसका नुकसान बढ़ता जाता है। यह कीड़ा गन्ने के कईं भागों पर हमला करता है परंतु यह पत्तों के अंदर की तरफ और जड़ में रहता है। इसका नुकसान गन्ने बांधने से लेकर कटाई तक होता है।
नाइट्रोजन का अत्याधिक प्रयोग ना करें। खेत को साफ सुथरा रखें। पानी के निकास का उचित प्रबंध करें। गर्दन तोड़ से फसल को बचाने के लिए मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं। रासायनिक नियंत्रण बहुत कम प्रभावशाली है। मित्र कीट कुटेशिया फ्लेवाइपस की 800 मादा प्रति एकड़ एक सप्ताह के फासले पर जुलाई से नवंबर तक प्रति एकड़ में छोड़ें।
चोटी बेधक :
यह कीड़ा फसल पर गन्ना बनने से लेकर पकने तक हमला करता है। इसका लार्वा पत्तों की नाड़ी में सुरंग बना देता है। जिस कारण सफेद धारियां बन जाती हैं, जो बाद में भूरे रंग की हो जाती हैं। यदि गन्ना बनने के समय इसका हमला हो तो शाखाएं नष्ट हो जाती हैं और डैड हार्ट पैदा हो जाते हैं। यदि यह विकसित हुए गन्ने पर हमला करे तो शिखरों का विकास होने से बंची टॉप के लक्षण दिखाई देते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए राइनैक्सीपायर 20 एस सी 60 मि.ली. को 100-150 लीटर पानी में मिलाकर अंत अप्रैल से मई के पहले सप्ताह तक प्रति एकड़ में स्प्रे करें। खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करें, क्योंकि पानी के खड़ा होने से इसका हमला बढ़ जाता है।
बीमारियां और रोकथाम
रतुआ रोग :
यह फंगस रोग है जिस कारण गन्ने का तीसरा और चौथा पत्ता पीला हो कर सूख जाता है। इस रोग से गन्ने का अंदरूनी गुद्दा लाल हो जाता है। काटे हुए गन्ने में खट्टी और शराब जैसी बदबू आती है।
इसकी रोकथाम के लिए रोग रहित फसल से बीज लें और रोग को सहने योग्य किस्म बोयें। धान और हरी खाद वाली फसलों का फसली चक्र अपनाना चाहिए। खेत में पानी ना रूकने दें । प्रभावित बूटों को उखाड़ कर खेत से बाहर फेंके। कार्बेनडाज़िम घोल की 0.1 प्रतिशत मात्रा को मिट्टी के ऊपर प्रयोग करने से बीमारी रोकी जा सकती है।
मुरझाना :
जड़ बेधक, नेमाटोडस, शुष्क और ज्यादा पानी खड़ने के हालातों में यह बीमारी ज्यादा आती है। इससे पत्ते पीले पड़ कर सूख जाते हैं। पौधों में किश्ती के आकार के गड्ढे पड़ जाते हैं और फसल सिकुड़ जाती है। इससे फसल का उगना और पैदावार दोनों ही कम हो जाती है।
इसकी रोकथाम के लिए गुलियों को कार्बेनडाज़िम 0.2 प्रतिशत+बोरिक एसिड 0.2 प्रतिशत के घोल में 10 मिनट तक उपचार करें। इसके इलावा प्याज लहसुन और धनिये की फसल भी इस बीमारी को कम करने में मदद करती है।
चोटी गलन :
यह बीमारी हवा से पैदा होती है जो मॉनसून में होती है। बीमारी वाले गन्ने के पत्ते सिकुड़ जाते हैं। तने के नजदीक वाले पत्ते लाल हो जाते हैं। नए पत्ते छोटे और तिरछे हो जाते हैं।
इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 4 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मैनकोज़ेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फसल की कटाई
ज्यादा पैदावार और चीनी प्राप्त करने के लिए गन्ने की सही समय पर कटाई जरूरी है। समय से पहले या बाद में कटाई करने से पैदावार पर प्रभाव पड़ता है। किसान शूगर रीफरैक्टोमीटर का प्रयोग करके कटाई का समय पता लगा सकते हैं। गन्ने की कटाई द्राती की सहायता से की जाती है।गन्ना धरती से ऊपर थोड़ा हिस्सा छोड़कर काटा जाता है क्योंकि गन्ने में चीनी की मात्रा ज्यादा होती है। कटाई के बाद गन्ना फैक्टरी में लेकर जाना जरूरी होता है।
कटाई के बाद
गन्ने को रस निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके इलावा गन्ने के रस से चीनी, गुड़ और शीरा प्राप्त किया जाता है।
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