राइसबीन ( काले मांह ) का वानस्पतिक नाम विगना अमबैलटा है। यह सदाबहार फलीदार फसल है जिसका कद 30-100 सैं.मी. और यह 200 सैं.मी. तक उगाई जा सकती है। इसके पत्ते त्रिकोने 6-9 सैं.मी. लंबे होते हैं। फूल गहरे पीले रंग के होते हैं जो बाद में फल बनते हैं। इसके फल बेलनाकार होते हैं जिसके बीज आकार में 6-8 मि.मी. होते हैं। यह इंडो-चीन, दक्षिण चीन, नेपाल, बांग्लादेश और भारत में पाया जाता है। भारत में हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, आसाम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रमुख काले मांह उत्पादक राज्य हैं।
पर्वतीय क्षेत्रों के लिए राइसबीन एक उपयुक्त फसल है। मध्य एवं ऊॅचाई (1500-2200 मी. तक) वाले क्षेत्रों में जहाँ पर दूसरी दलहनी फसल जैसे उर्द, मूँग , अरहर आदि उगाना सम्भव नहीं होता है, वहॉ राइसबीन की फसल सुगमतापूर्वक उगाई जा सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसे नौरंगी तथा रगड़मांस आदि नामों से जाना जाता है। आमतौर पर राइसबीन की फसल मिश्रित खेती के रूप में ली जाती है। परन्तु इसकी शद्धु खेती अधिक लाभदायक होती है। ‘
मिट्टी
इसे मिट्टी की कई किस्मों जैसे दोमट से रेतली दोमट जो अच्छे निकास वाली हो, में उगाया जाता है। यह हल्की उपजाऊ मिट्टी में कम बढ़ती है। नमकीन-क्षारीय मिट्टी, रेतली और जल जमाव वाली मिट्टी में खेती करने से परहेज करें। काले मांह को हल्की मिट्टी में ना बोयें, क्योंकि यह फसल में जड़ गलन का कारण बनते हैंइसे मिट्टी की कई किस्मों जैसे दोमट से रेतली दोमट जो अच्छे निकास वाली हो, में उगाया जाता है। यह हल्की उपजाऊ मिट्टी में कम बढ़ती है। नमकीन-क्षारीय मिट्टी, रेतली और जल जमाव वाली मिट्टी में खेती करने से परहेज करें। काले मांह को हल्की मिट्टी में ना बोयें, क्योंकि यह फसल में जड़ गलन का कारण बनते हैं।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
RBL 6: यह किस्म 2002 में विकसित की गई है| यह किस्म विषाणु, फंगस और जीवाणु वाली बीमारी की रोधक हैं| इस किस्म का विकास जल्दी से होता है| फली की बनतर, विकास और पकने का समय समान होता है| इस किस्म के बीज हरे रंग के होते है कीटों के प्रतिरोधक होते है| यह किस्म 125 दिनों में पक क्र तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
RBL 1: यह किस्म पी ऐ यू, लुधियाना द्वारा विकसित की गई है| यह सामान्य और उच्च पैदावार वाली किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
RBL 35: यह जल्दी पकने वाली किस्म है, पी ऐ यू, लुधियाना द्वारा विकसित की गई है| इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
RBL 50: यह उच्च पैदावार वाली किस्म है, पी ऐ यू, लुधियाना द्वारा विकसित की गई है| यह सामान्य समय की किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
दूसरे राज्यों कि किस्में
PRR2: यह सामान्य समय की, उच्च पैदावार वाली किस्म जी बी पी यू ए एंड टी द्वारा विकसित की गई है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
BRS1: यह उच्च पैदावार वाली किस्म एन बी पी जी आर भोवाली द्वारा विकसित की गई है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल है। इस किस्म के बीज काले रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
ज़मीन की तैयारी
काले मांह की खेती के लिए, बढ़िया सीड बैड की आवश्यकता होती है जो कि किसान द्वारा अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। पौधे के अच्छे खड़े रहने के लिए तैयार सीड बैड की जरूरत होती है। सीड बैड पर बीजों का अंकुरन होता है और तैयार नर्सरी बैड पर रोपाई की जाती है।
बिजाई
बिजाई का समय
यह खरीफ मौसम की फसल है, बिजाई जुलाई के पहले और तीसरे सप्ताह में की जाती है।
फासला
पौधे के विकास के आधार पर 30 सैं.मी. पंक्ति और 10-12 सैं.मी. पौधे में फासले रखें।
बीज की गहराई
बीज को 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बोयें|
बिजाई का ढंग
बिजाई बुरकाव, डिबलिंग और केरा/पोरा/सीड ड्रिल विधि द्वारा की जा सकती है।
बीज
बीज की मात्रा
बढ़िया पैदावार के लिए 10-12 किलो बीजों का प्रयोग प्रति एकड़ में करें।
पनीरी की देख-रेख और रोपण
काले मांह के बीजों को आवश्यक लंबाई और चौड़ाई वाले बैडों पर बोयें। बीज को सीड ड्रिल की सहायता से बोयें। बीजों की उच्च अंकुरन प्रतिशतता के लिए अच्छी सिंचित हालातों में बिजाई करें।
खाद
खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MOP | ZINC |
13 | 20 | # | # |
तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
6 | 8 | # |
खेत की तैयारी के समय, अच्छी तरह गली हुई रूड़ी की खाद 10-15 टन प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 6 किलो (यूरिया 13 किलो) और फासफोरस 8 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 50 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
खरपतवार नियंत्रण
खेत को नदीन मुक्त करने के लिए लगातार निराई और गोडाई करें। बिजाई के 30-50 दिनों के बाद नदीनों की रोकथाम के लिए 1-2 गोडाई की आवश्यकता होती है। मिट्टी के तापमान को कम करने और नदीनों को रोकने के लिए मलचिंग भी एक आसान तरीका है।
सिंचाई
मानसून के मौसम में, सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती| लेकिन समय पर मानसून ना होने और सूखे पड़ने पर मानसून के बाद 2-3 बार सिंचाई करें।
पौधे की देखभाल
- बीमारियां और रोकथाम
तना गलन:
यह बीमारी तने को नष्ट कर देती है जिस कारण फसल की कम पैदावार और गुणवत्ता घटिया होती है।
पीले पत्ते:
इस बीमारी से पहले लाल रंग के धब्बे पड़ जाते हैं फिर रंग बदलकर लाल भूरे रंग के हो जाते हैं और फिर पीले हो जाते हैं। इससे पत्तों की पैदावार कम हो जाती है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए प्रभावित भाग को जल्दी से निकाल दें।
बलिस्टर बीटल:
बीटल फूल को नष्ट कर देती है और फली बनने की क्रिया को बंद कर देती है। इसकी रोकथाम के लिए, डैल्टामैथरीन 2.8 ई सी 200 मि.ली या इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली या एसीफेट 75 एस पी 800 ग्राम को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
हानिकारक कीट और रोकथाम
छोटी सुंडी(बालों वाली सुंडी):
यह सुंडी पत्तों को नष्ट कर देती है और हरे तने को अपना भोजन बनाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए, इकालक्स 25 ई सी 500 मि.ली. को 80-100 लीटर या नुवान 100 @200 मि.ली को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फली छेदक(लेपिडोपटेरा):
यह कीट नए बीजों को खाकर और फली को एक से दूसरे स्थान पर ले जाकर नुकसान पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिए, इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस पी 800 ग्राम या स्पिनोसैड 45 एस सी 60 मि.ली को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
छिपकली:
यह पत्तों को काटकर पौधे को नुकसान पहुंचाता है| छिपकली को पौधे से दूर रखने पौधे के आस-पास कीटनाशी स्प्रे करें। यह स्प्रे शाम के समय जरूर की जानी चाहिए।
सुंडी:
यह पत्तों और फलियों को नष्ट कर देती है| यह पौधे की पत्तियों और फलियों को अपना भोजन बनाती है और फलियों में छेद कर देती है।
फसल की कटाई
जब फलियां 80% भूरे रंग की हो जाती हैं तब कटाई की जाती है। इनकी कटाई सुबह के समय की जाती है ताकि फलियों को कोई नुकसान ना हो। कटाई छोटे-छोटे भागों में की जाती है क्योंकि पौधे एक दूसरे के साथ जुड़े हुए होते हैं।
कटाई के बाद
कटाई के बाद, दानों को धूप में सुखाया जाता है। सुखाने के बाद इन्हें बोरियों या लकड़ी के बक्सों में पैक करके लम्बी दूरी वाले स्थानों पर और बिक्री के उद्देश्य भेजा जाता है।
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