गोण्डा लाइव न्यूज एक प्रोफेशनल वेब मीडिया है। जो समाज में घटित किसी भी घटना-दुघर्टना "✿" समसामायिक घटना"✿" राजनैतिक घटनाक्रम "✿" भ्रष्ट्राचार "✿" सामाजिक समस्या "✿" खोजी खबरे "✿" संपादकीय "✿" ब्लाग "✿" सामाजिक "✿" हास्य "✿" व्यंग "✿" लेख "✿" खेल "✿" मनोरंजन "✿" स्वास्थ्य "✿" शिक्षा एंव किसान जागरूकता सम्बन्धित लेख आदि से सम्बन्धित खबरे ही निःशुल्क प्रकाशित करती है। एवं राजनैतिक , समाजसेवी , निजी खबरे आदि जैसी खबरो का एक निश्चित शुल्क भुगतान के उपरान्त ही खबरो का प्रकाशन किया जाता है। पोर्टल हिंदी क्षेत्र के साथ-साथ विदेशों में हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है और भारत में उत्तर प्रदेश गोण्डा जनपद में स्थित है। पोर्टल का फोकस राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को उठाना है और आम लोगों की आवाज बनना है जो अपने अधिकारों से वंचित हैं। यदि आप अपना नाम पत्रकारिता के क्षेत्र में देश-दुनिया में विश्व स्तर पर ख्याति स्थापित करना चाहते है। अपने अन्दर की छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर एक नई पहचान देना चाहते है। तो ऐसे में आप आज से ही नही बल्कि अभी से ही बनिये गोण्डा लाइव न्यूज के एक सशक्त सहयोगी। अपने आस-पास घटित होने वाले किसी भी प्रकार की घटनाक्रम पर रखे पैनी नजर। और उसे झट लिख भेजिए गोण्डा लाइव न्यूज के Email-gondalivenews@gmail.com पर या दूरभाष-8303799009 -पर सम्पर्क करें।

कपास की खेती कैसे करें ?

Image SEO Friendly

कपास विश्व और भारत की एक बहुत ही महत्तवपूर्ण रेशे वाली और व्यापारिक फसल है। यह देश के उदयोगिक और खेतीबाड़ी क्षेत्रों के वित्तीय विकास में बहुत ही महत्तवपूर्ण स्थान रखती है। कपास कपड़ा उदयोग को प्रारंभिक कच्चा माल उपलब्ध करवाने वाली मुख्य फसल है। कपास भारत के 60 लाख किसानों को रोज़ी-रोटी उपलब्ध करवाती है और कपास के व्यापार से लगभग 40-50 लाख लोगों को रोज़गार मिलता है। कपास की फसल को पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती और पानी का लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा कपास की सिंचाई करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत में कपास की खेती के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। भारत में कपास की खेती मुख्य तौर पर महांराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटका, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, तामिलनाडू और उत्तर प्रदेश राज्यों में बड़े स्तर पर की जाती है। कपास की पैदावार में गुजरात का स्थान सबसे पहले आता है और इसके बाद महांराष्ट्र और फिर पंजाब की बारी आती है। कपास पंजाब की सब से ज्यादा उगाई जाने वाली खरीफ फसल है। राज्य में इसके रेशे की कुल पैदावार लगभग 697 किलो प्रति हैक्टेयर होती है।

उपयुक्त मिट्टी

कपास की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी और काली मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस तरह की मिट्टी में कपास की पैदावार ज्यादा होती है. लेकिन आज कई तरह की संकर किस्में बाज़ार में आ चुकी हैं. जिस कारण आज कपास को पहाड़ी और रेतीली जगहों पर भी आसानी से उगाया जा रहा है. इसके लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 6 तक होना चाहिए. कपास की खेती को पानी की कम जरूरत होती है. इस कारण इसकी फसल अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में की जानी चाहिए.

जलवायु और तापमान

कपास की खेती के लिए कोई ख़ास जलवायु की जरूरत नही होती है. लेकिन जब कपास के पौधों पर फल लगने का टाइम आता है उस वक्त इसे सर्दी में पड़ने वाले पाले से नुक्सान होता है. और जब इसके टिंडे खिलते हैं उस टाइम तेज़ चमक वाली धूप की जरूरत होती है. कपास की खेती के लिए तापमान की जरूरत होती है. कपास के बीज को खेत में लगाने के बाद अंकुरित होने तक तापमान 20 डिग्री तक होना चाहिए. जिसके बाद इसके पौधे को बड़ा होने के लिए 25 से 30 डिग्री तक तापमान की जरूरत होती है. जबकि 40 डिग्री तापमान पर भी ये अच्छे से वृद्धि कर सकता है.

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

बाज़ार में कपास की कई उन्नत किस्में मौजूद है. लेकिन इन सभी किस्मों को इनकी श्रेणियों के हिसाब से अलग अलग रखा जाता है. इन किस्मों की श्रेणी का निर्धारण इसके रेशों के आधार पर किया जाता है. रेशों के आधार पर इन्हें तीन भागों में रखा गया है.

छोटे रेशों वाली कपास
इस श्रेणी की कपास के रेशों की लम्बाई 3.5 सेंटीमीटर से कम होता है. इस श्रेणी की किस्मों को उत्तर भारत में ज्यादा उगाया जाता है. जिनमें असम, हरियाणा, राजस्थान, त्रिपुरा, मणिपुर, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मेघालय शामिल हैं. उत्पादन की दृष्टि से इस श्रेणी की कपास का उत्पादन कुल उत्पादन का 15% होता है.

मध्यम रेशों वाली कपास
इस श्रेणी के रेशों की लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर तक पाई जाती है. इसे मिश्रित श्रेणी की कपास भी कहा जाता है. इस श्रेणी की किस्मों को भारत के लगभग सभी हिस्सों में उगाया जाता है. कुल उत्पादन में इसका सबसे ज्यादा 45% हिस्सा होता है.

बड़े रेशों वाली कपास
इस श्रेणी की कपास को सबसे उत्तम कपास माना जाता है. इसके रेशों की लम्बाई 5 सेंटीमीटर से ज्यादा होती है. इस श्रेणी की कपास का इस्तेमाल उच्च कोटि के कपड़ों को बनाने में किया जाता है. भारत में इस श्रेणी की किस्मों को दूसरे नंबर पर उगाया जाता है. कुल उत्पादन में इसका 40% हिस्सा होता है. इसकी खेती मुख्य रूप से तटीय हिस्सों में की जाती है. इस कारण इसे समुद्र द्वीपीय कपास भी कहा जाता है.

देशी प्रजाति
देशी प्रजाति की कपास को छोटे रेशों वाली कपास की श्रेणी में रखा गया है. इस प्रजाति की कपास की पैदावार 3 से 4 क्विंटल प्रति बीघा के हिसाब से होती है. लेकिन आज इस प्रजाति को काफी कम ही उगाया जाता है.
किस्मतैयार होने में लगा टाइमपैदावार (क्विंटल/बीघा)
लोहित170 से 180 दिन3.5
आर. जी. 8175 से 180 दिन4
सी.ए.डी. 4150 दिन तक4
एच डी-432160 से 170 दिन4.5
एच डी-324175 से 180 दिन4
एच डी-123165 दिन तक3.5 – 4.5
नरमा (अमेरिकन) प्रजाति
अमेरिकन प्रजाति को भारत में बड़ी मात्रा में उगाया जाता है. इस प्रजाति की किस्मों से अधिक मात्रा में पैदावार मिलती है. इस किस्म की कपास को मध्यम श्रेणी की कपास में गिना जाता है.
किस्मतैयार होने में लगा टाइमपैदावार (क्विंटल/बीघा)
एच.एस. 6165 से 170 दिन तक5
विकास150 दिन तक5 – 6
आर.एस. 2013160 से 165 दिन तक5 – 6
आर.एस. 810170 दिन तक4.5 – 5
एच. 1117175से 180 दिन तक5 – 6
एफ.846175 से 180 दिन तक4 – 6
एच एच एच- 223170 दिन तक6.5
बीकानेरी नरमा160 से 180 दिन तक6
एच- 1300165 से 170 दिन तक6 – 7
संकर प्रजाति
इस प्रजाति की किस्मों को संकरण के माध्यम से बनाया गया. संकर प्रजाति की कई किस्में हैं जिनसे अच्छी पैदावार होती है. इसे दक्षिण भारत के साथ साथ उत्तर भारत में भी अब उगाया जाने लगा है.
किस्मतैयार होने में लगा टाइमपैदावार (क्विंटल/बीघा)
एच एच एच 223175 से 180 दिन तक5 – 8
ए ए एच-1180 दिन से ज्यादा6 – 7
एच एच एच 287160 से 170 दिन तक6 – 7
धनलक्ष्मी150 दिन से ज्यादा5 – 7
राज एच एच- 116160 से 180 दिन तक6
संकर बीटी
आज सबसे ज्यादा बीटी प्रजाति की किस्मों को उगाया जा रहा है. जिनमें बीटी 2 को सबसे ज्यादा उगाया जा रहा है. बीटी प्रजाति की किस्मों को रोग प्रतिरोधक बनाया गया है. इसकी किस्मों को ज्यादा रोग नही लगता. आज बीटी प्रजाति की बहुत सारी किस्में मौजूद है. बीटी किस्मों के आगे बीजी- I और बीजी- II लिखा होता है.
किस्मतैयार होने में लगा टाइमपैदावार (क्विंटल/बीघा)
रासी 773170 दिन तक5 – 7
यू.एस. 51160 से 180 दिन तक6 – 8
एम आर सी एच- 6304 बीजी- I180 दिन से ज्यादा5 – 6
तुलसी- 4 बी जी170 से 190 दिन तक6 – 8
एम आर सी- 7017 बीजी- II160 से 200 दिन तक5 – 8
खेत की जुताई
कपास की खेती करने के लिए पहले खेत को अच्छे से जुताई कर उसे कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दे, जिसके बाद उसमें गोबर की खाद डाल दें. खाद डालने के बाद फिर से खेत में दो से तीन जुताई करें जिससे गोबर का खाद खेत में अच्छे से मिल जाए.

अगर टाइम पर बारिश नहीं हो तो खेत में पानी (पलेव) छोड़ देना चाहिए. पानी के सुखने के कुछ दिन बाद खेत की जुताई करें. ऐसा करने से खेत में पानी देने के बाद उगने वाली सभी खरपतवार ख़तम हो जाती है. जुताई करने के बाद खेत में एक बार फिर हल्का पानी दे. पानी देने के बाद खेत की फिर से जुताई करें.

इस बार जुताई करने के दौरान खेत की मिट्टी को समतल करने के लिए पाटा लगाये. जिससे जमीन समतल हो जाती है. जिसके बाद खेत में उर्वरक डालकर खेत की जुताई के साथ साथ खेत में पाटा लगा दें. उसके एक दिन बाद खेत में बीज को लगाया जाता है. कपास का बीज शाम के टाइम लगाने से फायदा मिलता है.

बिजाई
बिजाई का समय
बिजाई का उचित समय अप्रैल महीने में होता है। मिली बग से बचाव के लिए कपास की फसल के आस-पास बाजरा, अरहर, मक्की और जवार की फसल उगाएं। कपास की फसल के आस-पास अरहर, मूंग और भिंडी को ना बोयें क्योंकि यह कीड़ों का स्थान बनाने के लिए सहायक फसलें हैं। पंजाब में आमतौर पर कपास-गेहूं का फसली चक्र अपनाया जाता है परंतु यदि कपास की फसल से बरसीम और गवारे की फसल के फसली चक्र को अपनाया जाये तो यह कपास की फसल के लिए लाभदायक सिद्ध होगी।

फासला
अमेरिकन कपास के लिए सिंचित स्थिति में 75x15 सैं.मी. और बारानी स्थिति में 60x30 सैं.मी. का फासला रखें। देसी कपास के लिए सिंचित और बारानी स्थिति में 60x30 का फासला रखें।

बीज की गहराई
बीजों को 5 सैं.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।

बिजाई का ढंग 
देसी कपास की बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन का प्रयोग करें और हाइब्रिड या बी टी किस्मों के लिए गड्ढे खोदकर बिजाई करें। आयताकार के मुकाबले वर्गाकार बिजाई लाभदायक होती है। कुछ बीजों के अंकुरन ना होने के कारण और नष्ट होने के कारण कईं जगहों पर फासला बढ़ जाता है। इस फासले को खत्म करना जरूरी है। बिजाई के दो सप्ताह बाद कमज़ोर, बीमार और प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।

बीज
बीज की मात्रा
बीज की मात्रा बीजों की किस्म, उगाये जाने वाले इलाके, सिंचाई आदि पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। अमेरिकन हाइब्रिड कपास के लिए 1.5 किलो प्रति एकड़ जबकि अमेरिकन कपास के लिए बीज की मात्रा 3.5 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए। देसी कपास की हाइब्रिड किस्म के लिए बीज की मात्रा 1.25 किलो प्रति एकड़ और कपास की देसी किस्मों के लिए 3 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए।

बीज का उपचार
अमेरिकन कपास का बीज हल्के रेशे से ढका होता है। इसके रेशे को बिजाई से पहले हटा दें, ताकि बिजाई के समय कोई मुश्किल का सामना ना करना पड़े। इसे रासायनिक और कुदरती दोनों ढंग से हटाया जा सकता है।

कुदरती ढंग से रेशा हटाने के लिए बीजों को पूरी रात पानी में भिगोकर रखें, फिर अगले दिन गोबर और लकड़ी के बुरे या राख से बीजों को मसलें। फिर बिजाई से पहले बीजों को छांव में सुखाएं।

रासायनिक ढंग बीज के रेशे पर निर्भर करता है। शुद्ध सल्फियूरिक एसिड (उदयोगिक ग्रेड) अमेरिकन कपास के लिए 400 ग्राम प्रति 4 किलो बीज और देसी कपास के लिए 300 ग्राम प्रति 3 किलो बीज को 2-3 मिनट के लिए मिक्स करें इससे बीजों का सारा रेशा उतर जायेगा। फिर बीजों वाले बर्तन में 10 लीटर पानी डालें और अच्छी तरह से हिलाकर पानी निकाल दें। बीजों को तीन बार सादे पानी से धोयें और फिर चूने वाले पानी (सोडियम बाइकार्बोनेट 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से एक मिनट के लिए धोयें। फिर एक बार दोबारा धोयें और छांव में सुखाएं।

रासायनिक ढंग के लिए धातु या लकड़ी के बर्तन का प्रयोग ना करें, बल्कि प्लास्टिक का बर्तन या मिट्टी के बने हुए घड़े का प्रयोग करें। इस क्रिया को करते समय दस्तानों का प्रयोग जरूर करें।

बीजों को रस चूसने वाले कीटों के हमले से बचाने के लिए (15-20 दिनों तक) इमिडाक्लोप्रिड (कॉन्फीडोर) 5-7 मि.ली. या थायामेथोक्सम(क्रूज़र) 5-7 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें|
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाईमात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Imidacloprid5-7 ml
Thiamethoxam5-7 gm
खाद
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
VARIETIESUREADAP or SSPMOP
Bt652775-
Non Bt1302775-

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
VARIETIESNITROGENPHOSPHORUSPOTASSIUM
Bt3012#
Non Bt6012#
खादें और सिंचाई के साधनों के सही उपयोग और साफ सुथरी खेती से कीड़ों को पैदा होने से पहले ही रोका जा सकता है कीड़ों के कुदरती दुश्मनों की भी रक्षा की जा सकती है। पौधे के उचित विकास और ज्यादा टिंडे वाली टहनियों की प्रफुल्लता के लिए, मुख्य टहनी के बढ़ रहे हिस्से  को लगभग 5 फुट की ऊंचाई से काट दें। आखिरी बार हल से जोतते समय बारानी क्षेत्रों में 5-10 टन रूड़ी और सिंचित क्षेत्रों में 10-20 टन रूड़ी का प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। यह मिट्टी की नमी को बनाए रखने  में सहायक सिद्ध होगी। कपास  की विभिन्न-विभिन्न किस्मों के लिए खादों की मात्रा, 65 किलो यूरिया और 27 किलो डी.ए.पी.  या 75 किलो सिंगल सुपर फासफेट प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। हाइब्रिड किसमों के लिए, 130 किलो यूरिया और 27 किलो डी.ए.पी. या 75 किलो सिंगल सुपर फासफेट प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। यदि 27 किलो डी.ए.पी. के स्थान पर सिंगल सुपर फासफेट का उपयोग किया जाता है तो यूरिया की मात्रा 10 किलो कम कर दें।

आखिरी बार हल से जोतते समय  फासफोरस की पूरी मात्रा खेत में डालें। पौधे के अनआवश्यक हिस्से काटते समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और बाकी बची नाइट्रोजन पहले फूल निकलने के समय डालें कम उपजाऊ मिट्टी के लिए नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय डालें। नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए 50 किलो यूरिया 8 किलो सल्फर पाउडर से मिलाकर खड़ी फसल की पंक्तियों में डालें।

घुलनशील खादें : यदि बिजाई के 80-100 दिनों के बाद फसल को फूल ना निकलें या फूल कम हों तो फूलों की पैदावार बढ़ाने के लिए ज्यादा सूक्ष्म तत्व खाद 750 ग्राम प्रति एकड़ प्रति 150 लीटर पानी की स्प्रे करें। बी.टी किस्मों की पैदावार बढ़ाने के लिए बिजाई के 85, 95 और 105 दिनों के बाद 13:0:45 के अनुसार 10 ग्राम या पोटाश 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे शाम के समय करें। अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए पोटाश्यिम 10 ग्राम प्रति लीटर और डी.ए.पी. 20 ग्राम प्रति लीटर (पहले फूल खिलने के प्रत्येक 15 दिनों के फासले पर 2-3 स्प्रे) की स्प्रे करें। कई बार वर्गाकार लार्वा गिरता है और इससे फूल झड़ने शुरू हो जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए पलैनोफिक्स (एन ए ए) 4 मि.ली. और ज्यादा सूक्ष्म तत्व 120 ग्राम, मैगनीश्यिम सल्फेट 150 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि खराब मौसम के कारण टिंडे झड़ते दिखाई दें तो इसकी रोकथाम के लिए 100 ग्राम 00:52:34+30 मि.ली. हयूमिक एसिड (12 प्रतिशत से कम)+6 मि.मी. स्टिकर को 15 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के फासले पर तीन स्प्रे करें। आज कल पत्तों में लाली बहुत ज्यादा दिख रही है, इसका मुख्य कारण पौष्टिक तत्वों की कमी है। इसे खादों के सही उपयोग से ठीक किया जा सकता है। इस तरह करने के लिए 1 किलो मैगनीश्यिम सल्फेट की पत्तियों पर स्प्रे करें और इसके बाद यूरिया 2 किलो को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
खरपतवार नियंत्रण
पौधों में ज्यादा फासला होने के कारण फसल पर नदीनों का गंभीर हमला होता है। अच्छी पैदावार के लिए फसल की बिजाई के बाद 50-60 दिनों तक फसल का नदीन रहित होना जरूरी है, नहीं तो फसल की पैदावार में 60-80 प्रतिशत कमी आ सकती है। नदीनों की असरदार रोकथाम के लिए हाथों से, मशीनी और रासायनिक ढंगों के सुमेल का उपयोग होना जरूरी है। बिजाई के 5-6 सप्ताह बाद या पहली सिंचाई करने से पहले हाथों से गोडाई करें। बाकी गोडाई प्रत्येक सिंचाई के बाद करनी चाहिए। कपास के खेतों के आस पास गाजर बूटी पैदा ना होने दें, क्योंकि इससे मिली बग के हमले का खतरा ज्यादा रहता है।

बिजाई के बाद नदीनों के पैदा होने से पहले ही पैंडीमैथालीन 25-33 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। बिजाई के 6-8 सप्ताह बाद जब पौधों का कद 40-45 सैं.मी. हो तो पेराकुएट (गरामोक्सोन) 24 प्रतिशत डब्लयू एस सी 500 मि.ली. प्रति एकड़ या ग्लाइफोसेट 1 लीटर को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें नदीन नाशक 2, 4-डी से कपास की फसल काफी संवेदनशील होती है। बेशक इस नदीननाश्क की स्प्रे नज़दीक के खेत में की जाए, तो भी इसके कण उड़ कर कपास की फसल को बहुत ज्यादा नुकसान पहंचा सकते हैं। नदीन नाशक की स्प्रे सुबह या शाम के समय में ही करनी चाहिए।

सिंचाई
सिंचाई के लिए सिफारिश किया गया समय नीचे लिखे अनुसार हैं:-
नाज़ुक स्थितिसिंचाई का फासला
टहनियां बनने का समय    बिजाई के 45-55 दिनों के बाद
फूल और फल निकलने के समयबिजाई के 75-85 दिनों के बाद
टिंडे बनने के समयबिजाई के 95-105 दिनों के बाद
टिंडे के विकास और टिंडे खिलने के समयबिजाई के 115-125 दिनों के बाद
कपास की फसल को बारिश की तीव्रता के अनुसार चार से छः सिंचाई की जरूरत होती है। पहली सिंचाई बिजाई के चार से छः सप्ताह बाद करें। बाकी सिंचाइयां दो या तीन सप्ताह के फासले पर करें। छोटे पौधों में पानी खड़ा ना होने दें। फूल और टिंडे से बचाने के लिए, फूल निकलने  और फूल लगने के समय फसल को पानी की कमी नहीं रहने देनी चाहिए। जब टिंडे 33 प्रतिशत खिल जायें उस समय आखिरी सिंचाई करें और इसके बाद फसल को सिंचाई के द्वारा पानी ना दें।

जब भी फसल की सिंचाई के लिए खारे पानी का उपयोग किया जाये, तो सिंचाई करने से पहले पानी की जांच प्रमाणित लैबोरेटरी से करवाएं और उनकी सलाह के अनुसार ही पानी में जिप्सम या पाइराइट का उपयोग करें। सूखे वाली स्थितियों में खालियां बनाकर और एक क्यारी छोड़कर सिंचाई करें। सूक्ष्म सिंचाई सिस्टम अपनाएं (जहां भी संभव हो), इससे सिंचाई वाला पानी  बचाने में सहायता होती है।

पौधे की देखभाल
बीमारियां और रोकथाम-

मुरझाना : 
Image SEO Friendly
इससे पौधे मध्यम और पीले पड़ जाते हैं और इसके बाद पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं। पहले पीलापन पत्तों के बाहरले हिस्से पर पड़ता है और बाद में अंदर वाले हिस्से पर पड़ना शुरू हो जाता है। प्रभावित पौधों को फल जल्दी लगते हैं। और इसके टिंडे भी छोटे होते हैं इससे रंग काला और छाल के नीचे बने छल्ले जैसा हो जाता है। इसका हमला किसी भी समय हो सकता है।

इस रोग की रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें एक ही खेत में लगातार कपास की फसल ना उगाएं। उचित फसली चक्र अपनाएं। पानी के निकास का पूरा प्रबंध रखें। ट्राइकोडरमा विराइड फॉरमूलेशन 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसकी रोकथाम के लिए थायोफैनेट मिथाइल 10 ग्राम और यूरिया प्रत्येक 50 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर पौधों की जड़ों के नज़दीक डालें।

आल्टरनेरिया पत्तों के धब्बे : 
Image SEO Friendly
इससे पत्तों पर छोटे, पीले से भूरे, गोलाकार या बेढंगे मोटे मोटे धारियों वाले धब्बे पड़ जाते हैं। प्रभावित पत्ते सूखकर झड़ने शुरू हो जाते हैं। जिससे टिंडे गलने लग जाते हैं और झड़ जाते हैं। पौष्टिक तत्वों की कमी और सूखे से प्रभावित पौधों पर इस बीमारी का ज्यादा हमला होता है।

इस बीमारी की रोकथाम के लिए टैबुकोनाज़ोल 1 मि.ली. या ट्राइफलोकसीट्रोबिन+ टैबुकोनाज़ोल 0.6 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे बिजाई के 60वें, 90वें, और 120वें दिन बाद करें। यदि बीमारी खेत में दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कप्तान 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें या कार्बेनडाज़िम 12 प्रतिशत + मैनकोज़ेब 63 प्रतिशत डब्लयू पी 25 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पत्तों पर धब्बा रोग : 
Image SEO Friendly
इससे पत्तों पर गोलाकार लाल धब्बे पड़ जाते हैं, जो कि बाद में बड़े होकर बीच में से सफेद और सलेटी रंग के हो जाते हैं। यह धब्बे गोल होते हैं और बीच बीच में लाल धारियां होती हैं। धब्बों के बीच में सलेटी रंग के गहरे दाने बन जाते हैं, जिस कारण वह सलेटी रंग के दिखाई देते हैं।

यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो फसल पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के फासले पर 3-4 बार स्प्रे करें।

एंथ्राकनोस : 
Image SEO Friendly
इस बीमारी से पत्तों पर छोटे, लाल या हल्के रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। तनों पर जख्म बन जाते हैं। जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यह बीमारी टिंडों पर कभी भी हमला कर सकती है और बाद में यह बीमारी रूई और टिंडे के अंदर वाले बीज पर नुकसान करती है। इस बीमारी से प्रभावित टिंडों पर छोटे, पानी जैसे, गोलाकार, लाल - भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।

इस बीमारी की रोकथाम के लिए बिजाई से पहले प्रति किलो बीजों को कप्तान या कार्बेनडाज़िम 3-4 ग्राम से उपचार करें। खेत में पानी खड़ा ना होने दें। यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो प्रभावित पौधों को जड़ों से उखाड़कर खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। फिर कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।

जड़ गलन : 
Image SEO Friendly
इससे पौधा अचानक और पूरा सूख जाता है। पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। प्रभावित पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है। मुख्य जड़ के अलावा कुछ अन्य जड़ें ताजी होती हैं जो कि पौधे की जकड़ बनाए रखती हैं और बाकी की जड़ें गल जाती हैं।

बिजाई से पहले मिट्टी में नीम केक 60 किलो प्रति एकड़ में डालें। जड़ गलने के हमले की संभावना कम करने के लिए ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो प्रभावित पौधों और साथ के सेहतमंद पौधों के नीचे की  ओर कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम प्रति लीटर डालें।

हानिकारक कीट और रोकथाम
अमेरिकन सुंडी : 
Image SEO Friendly
यह सुंडी पत्ते के ऊपरी और निचली ओर अंडे देती है। अंडे में से निकली सुंडी का रंग शुरू में पीला सफेद होता है, इसका सिर भूरा काला होता है। बाद में इसके शरीर का रंग गहरा हो जाता है और उसके बाद इसका रंग भूरे रंग में तबदील हो जाता है। इस सुंडी के हमले से टिंडों में गोल छेद हो जाते हैं। इन छेदों के बाहरी ओर सुंडी का मल दिखाई देता है। अकेला लार्वा 30-40 टिंडों को नुकसान पहुंचा सकता है। इन हमलों की जांच के लिए रोशनी वाले कार्डों या फेरोमोन कार्ड का प्रयोग करें।

कपास की फसल लगातार एक खेत में ना लगाएं, बल्कि बदल बदल कर फसल उगाएं। कीड़ों का हमला रोकने के लिए हरी मूंग, काले मांह, सोयाबीन, अरिंड, बाजरा आदि को कपास की फसल के साथ या उसके आस पास लगाना फायदेमंद रहता है। कपास बोने से पहले, पहली फसल के बचे कुचे को अच्छी तरह निकाल दें। पानी का सही मात्रा में प्रयोग करें और नाइट्रोजन खाद का ज्यादा प्रयोग ना करें।

इसकी रोकथाम के लिए रोधक किस्में उगाएं अमेरिकन सुंडी की रोकथाम के लिए कुदरती ढंग ना अपनाएं। यदि हमला ज्यादा हो तो उपलब्धता अनुसार साइपरमैथरिन या डैल्टामैथरिन या फैनवेलरेट या लैंबडा साइहैलोथ्रिन में से किसी एक को 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित फसल पर स्प्रे करें। टिंडे की सुंडी की उचित रोकथाम के लिए एक ग्रुप के कीटनाशक की स्प्रे एक बार ही करें।

गुलाबी सुंडी : 
Image SEO Friendly
लार्वे का रंग शुरू में सफेद होता है और बाद में इसका रंग काले, भूरे या हरे से पीला या गुलाबी हो जाता है। बड़ी सुंडियों की गतिविधियां जानने के लिए फेरोमोन कार्ड का ही प्रयोग करें।

यदि इसका हमला नज़र आये तो फसल पर कार्बरिल 5 प्रतिशत डी 10 किलो को प्रति एकड़ के हिसाब से बुरकाओ। यदि हमला ज्यादा हो तो ट्राइज़ोफॉस 40 ई सी 300 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें।

तंबाकू सुंडी : 
Image SEO Friendly
यह सुंडियां झुंड में हमला करती हैं और यह मुख्य तौर पर पत्ते की ऊपरी सतह को अपना शिकार बनाती हैं और पत्ते खाकर इसकी नाड़ियां छोड़ देती हैं। यदि इसका हमला ज्यादा हो तो बूटे का तना और टहनियां ही दिखाई देती हैं। हरी सुंडी के अंडे सुनहरी भूरे रंग के होते हैं और यह इकट्ठे दिखाई देते हैं। इसका लार्वा हरे रंग का होता है।

इन कीड़ों के हमले की तीव्रता जानने के लिए रोशनी कार्डों का प्रयोग करें। एक एकड़ में 5 सैक्स फेरोमोन ट्रैप लगाएं इन कीड़ों की हाथों से भी जांच करें। इनका लार्वा झुंड में मिलता है, उसे इक्ट्ठा करके जल्दी ही नष्ट कर दें। यदि इनका हमला बहुत ज्यादा हो तो क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 1 लीटर या क्लोरैंटरानीलीपरोल 18.5 प्रतिशत एस सी 50 मि.ली. या डाइफलूबैंज़ियूरॉन 25 प्रतिशत डब्लयू पी 100-150 ग्राम की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। कीटनाशकों की स्प्रे सुबह या शाम के समय ही करनी चाहिए।

तेला : 
Image SEO Friendly
नए जन्मे और बड़े तेले पत्तों के निचली ओर से रस चूस लेते हैं, जिससे पत्ता मुड़ जाता है। इसके बाद पत्ते लाल या भूरे हो जाते हैं और फिर सूखकर गिर पड़ते हैं। जड़ों के नजदीक कार्बोफियूरन 3 जी 14 किलो या फोरेट 10 जी 5 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से नमी वाली मिट्टी में डालें। जब फसल का उपरला हिस्सा पीला पड़ने लगे और पौधे के 50 प्रतिशत तक पत्ते मुड़ जायें तो कीटनाशक की स्प्रे करें। इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 40-50 मि.ली. या थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या एसेटामीप्रिड 75 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

धब्बेदार सुंडी : 
Image SEO Friendly
इसकी सुंडी या लार्वा हल्के हरे काले चमकदार रंग का होता है और शरीर पर काले रंग की धारियां होती हैं। सुंडी के हमले के कारण फूल निकलने से पहले ही टहनियां सूख जाती हैं और फिर झड़ जाती हैं। यह टिंडों में छेद कर देती हैं और फिर टिंडे गल जाते हैं।

यदि इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए प्रोफैनोफॉस 50 ई सी 500 मि.ली. को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

मिली बग : 
Image SEO Friendly
यह पत्तियों के निचली ओर झुंड में पाया जाता है और यह चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है। चिपचिपे पदार्थ के कारण पत्तों पर फंगस बनती है, जिससे पौधे बीमार पड़ जाते हैं और काले रंग के दिखाई देते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए मक्की, बाजरा और जवार की फसलें कपास की फसल के आस पास उगाएं। प्रभावित पौधों को उखाड़कर पानी के स्त्रोतों या खाली स्थानों पर ना फेंके, बल्कि इन्हें जला दें। कपास के खेतों के आस पास गाजर घास ना होने दें, क्योंकि इससे मिली बग के हमले का खतरा बढ़ जाता है। इसे नए क्षेत्रों में फैलने से रोकने के लिए प्रभावित क्षेत्रों वाले इन्सानों या जानवरों को सेहतमंद क्षेत्रों में जाने से रोक लगाएं। शुरूआती समय नीम के बीजों का अर्क 5 प्रतिशत 50 मि.ली. + कपड़े धोने वाले सर्फ 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित पौधों पर डालें। यदि इसका हमला गंभीर हो तो प्रोफैनोफोस 500 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। एक चम्मच वॉशिंग पाउडर 15 लीटर की टैंकी में मिक्स करें या क्विनलफॉस 25 ई सी 5 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।

सफेद मक्खी : 
Image SEO Friendly
इसके बच्चे पीले रंग के और अंडाकार आकार के होते हैं, जब कि मक्खी के शरीर का रंग पीला होता है और एक सफेद मोम जैसे पदार्थ से ढका होता है। यह पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह मक्खी पत्ता मरोड़ बीमारी का भी माध्यम बनती है। इसका हमला ज्यादा होने से पत्तों का झड़ना, टिंडो का झड़ना और टिंडों का पूरी तरह से ना खिलना आदि आम तौर पर देखा जा सकता है। इससे पौधों पर फंगस बन जाती है और पौधे बीमार और काले दिखाई देते हैं।

एक ही खेत में बार बार कपास ना उगाएं। फसली चक्र के तौर पर बाजरा, रागी, मक्की आदि फसलें अपनायें। फसल के अनआवश्यक विकास को रोकने के लिए नाइट्रोजन का अनआवश्यक प्रयोग ना करें। फसल को समय सिर बोयें। खेत को साफ रखें। कपास की फसल के साथ बैंगन, भिंडी, टमाटर, तंबाकू और सूरजमुखी की  फसल ना उगायें। सफेद मक्खी पर नज़र रखने के लिए पीले चिपकने वाले कार्ड 2 प्रति एकड़ लगाएं। यदि सफेद मक्खी का हमला दिखे तो ट्राइज़ोफॉस 3 मि.ली. या थायाक्लोराइड 4.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में या एसेटामीप्रिड 4 ग्राम या एसीफेट 75 डब्लयू पी 800 ग्राम को प्रति 200 लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 40 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर या थाइमैथोक्सम 40 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

थ्रिप्स : 
Image SEO Friendly
छोटे और बड़े थ्रिप्स पत्तों के निचली ओर से रस चूसते हैं। पत्तों का ऊपरला हिस्सा भूरा हो जाता है और निचला हिस्सा चांदी रंग जैसे सफेद हो जाता है।

फसल को चेपे, पत्ते के टिड्डे और थ्रिप्स से 8 सप्ताह तक बचाने के लिए, इमीडाक्लोप्रिड 70 डब्लयू एस 7 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। मिथाइल डेमेटान 25 ई सी 160 मि.ली. बुप्रोफेंज़िन 25 प्रतिशत एस सी 350 मि.ली. फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस सी 200-300 मि.ली., इमीडाक्लोप्रिड 70 प्रतिशत डब्लयू जी 10-30 मि.ली, थाइमैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयू जी 30 ग्राम में से किसी एक को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

कमी और इसका इलाज
पत्तों पर लाली आना : शुरूआत में यह जड़ों पर पाई जाती है और फिर पौधे के ऊपर वाले हिस्से पर फैल जाती है। इसे सही खाद प्रबंध से ठीक किया जा सकता है। पत्तों पर मैग्नीश्यिम सलफेट 1 किलो, फिर यूरिया 2 किलो प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

नाइट्रोजन की कमी : पौधे का विकास रूक जाता है और कद बोना रह जाता है। निचले पत्ते पीले दिखाई देते हैं। गंभीर हालातों में पत्ते भूरे हो जाते हैं और फिर सूख जाते हैं।फासफोरस की कमी : नए पत्ते गहरे हरे दिखाई देते हैं। पुराने पत्ते छोटे आकार के हो जाते हैं और इन पर जामुनी और लाल धब्बे पड़ जाते हैं।

पोटाश की कमी : पोटाश की कमी से पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं और टिंडे भी पूरी तरह नहीं खिलते। पत्ते मुड़ जाते हैं और फिर सूख जाते हैं।

जिंक की कमी : इससे पौधे का विकास प्रभावित होता है और पौधे का कद बोना रह जाता है। इसकी शाखाएं सूख जाती हैं और फिर पौधे का सिरा या नए पत्ते खराब हो जाते हैं।

फसल की कटाई
जब टिंडे पूरी तरह खिल जायें तो रूई की चुगाई करें। सूखे टिंडों की चुगाई करें, रूई सूखे हुए पत्तों के बिना ही चुगें। खराब टिंडों को अलग से चुगें और बीज के तौर पर प्रयोग करने के लिए रखें। पहली और आखिरी चुगाई आमतौर पर कम क्वालिटी की होती है, इसलिए इसे अच्छा लाभ लेने के लिए बाकी की फसल के साथ ना मिलाएं। चुगे हुए टिंडे साफ-सुथरे और सूखे हुए होने चाहिए। चुगाई ओस सूखने के बाद करें। चुगाई हर 7-8 दिनों के बाद लगातार करें, ताकि रूई के धरती पर गिरने से पहुंचाने वाली नुकसान से बचाया जा सके। अमेरिकन कपास को 15-20 दिनों और देसी कपास को 8-10 दिनों के फासले पर चुगें। चुगे हुए टिंडों को मंडी ले जाने से पहले अच्छी तरह साफ करें।

कटाई के बाद
चुगाई के बाद भेड़ों, बकरियों और अन्य जानवरों को कपास के खेतों में चरने के लिए छोड़ दें ताकि ये जानवर सुंडियों से प्रभावित टिंडों और पत्तों को खा सकें। आखिरी चुगाई के बाद छटियों को जड़ों सहित उखाड़ दें। सफाई रखने के लिए पौधों के बाकी बचे कुचे को मिट्टी में दबा दें। छटियां बांधने से पहले बंद टिंडों को धरती पर मारकर या तोड़कर अलग कर दें और जला  दें ताकि सुंडी के लार्वे को नष्ट किया जा सके। चुगाई के बाद छटियों को उखाड़ने के लिए दो खालियां बनाने वाले ट्रैक्टर से जोताई करें।

पैदावार और लाभ
कपास की खेती से किसान भाइयों को अच्छीखासी आमदनी होती है. अलग अलग किस्मों से अलग अलग पैदावार होती हैं. जिनमें देशी किस्म से 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और अमेरिकन संकर किस्म से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार हो जाती है. जबकि बीटी कपास की पैदावार 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से भी ज्यादा होती है. कपास का बाज़ार भाव 5 हज़ार प्रति क्विंटल के हिसाब से रहता है. जिससे किसान भाई एक बार में कपास की खेती कर एक हेक्टेयर से तीन लाख से ज्यादा की कमाई कर सकते हैं.


No comments:

Post a Comment

कमेन्ट पालिसी
नोट-अपने वास्तविक नाम व सम्बन्धित आर्टिकल से रिलेटेड कमेन्ट ही करे। नाइस,थैक्स,अवेसम जैसे शार्ट कमेन्ट का प्रयोग न करे। कमेन्ट सेक्शन में किसी भी प्रकार का लिंक डालने की कोशिश ना करे। कमेन्ट बॉक्स में किसी भी प्रकार के अभद्र भाषा का प्रयोग न करे । यदि आप कमेन्ट पालिसी के नियमो का प्रयोग नही करेगें तो ऐसे में आपका कमेन्ट स्पैम समझ कर डिलेट कर दिया जायेगा।

अस्वीकरण ( Disclaimer )
गोण्डा न्यूज लाइव एक हिंदी समुदाय है जहाँ आप ऑनलाइन समाचार, विभिन्न लेख, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, हिन्दी साहित्य, सामान्य ज्ञान, ज्ञान विज्ञानं, अविष्कार , धर्म, फिटनेस, नारी ब्यूटी , नारी सेहत ,स्वास्थ्य ,शिक्षा ,18 + ,कृषि ,व्यापार, ब्लॉगटिप्स, सोशल टिप्स, योग, आयुर्वेद, अमर बलिदानी , फूड रेसिपी , वाद्ययंत्र-संगीत आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी केवल पाठकगणो की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दिया गया है। ऐसे में हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप किसी भी सलाह,उपाय , उपयोग , को आजमाने से पहले एक बार अपने विषय विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे। विभिन्न विषयो से सम्बन्धित ब्लाग/वेबसाइट का एक मात्र उद्देश आपको आपके स्वास्थ्य सहित विभिन्न विषयो के प्रति जागरूक करना और विभिन्न विषयो से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना है। आपके विषय विशेषज्ञ को आपके सेहत व् ज्ञान के बारे में बेहतर जानकारी होती है और उनके सलाह का कोई अन्य विकल्प नही। गोण्डा लाइव न्यूज़ किसी भी त्रुटि, चूक या मिथ्या निरूपण के लिए जिम्मेदार नहीं है। आपके द्वारा इस साइट का उपयोग यह दर्शाता है कि आप उपयोग की शर्तों से बंधे होने के लिए सहमत हैं।

”go"