बदलते मौसम और हल्की सर्दी होने पर जुकाम के साथ खांसी आना आम है, लेकिन कई बार खांसी लगातार होती रहती है और लंबे समय तक रहती है। अगर खांसते समय आपको सांस लेने में तकलीफ हो और साथ में अजीब-सी आवाज आने लगे, तो ये काली खांसी के लक्षण हो सकते हैं। यह एक गंभीर समस्या है, जिसके कई गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। इस लेख में हम आपको काली खांसी से जुड़े सभी तथ्यों से अवगत कराएंगे और काली खांसी के इलाज के बारे में भी आपको जानकारी देंगे।
काली खांसी क्या है –
काली खांसी एक जीवाणु संक्रमण है। इस संक्रमण के कारण अनियंत्रित खांसी और सांस लेने में तकलीफ होती है। इंग्लिश में काली खांसी को पर्टसुसिस और वूपिंग कफ के नाम से जाना जाता है। यूं तो काली खांसी का संक्रमण किसी को भी हो सकता है, लेकिन, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित नवजात और बच्चे होते हैं। खांसने की वजह से शिशुओं के लिए खाना, पीना और यहां तक कि सांस लेना भी कई बार मुश्किल हो जाता है ।
पहला चरण – यह स्टेज एक से दो सप्ताह तक रह सकता है। इसे कैटर्रल (Catarrhal) भी कहा जाता है। इस दौरान नाक बहती रहती है, छींकें आती हैं, कम-ग्रेड का बुखार और कभी-कभी खांसी आती है। यह पहले चरण में आम सर्दी की तरह लगती है, लेकिन बाद में खांसी ज्यादा होने लगती है।
दूसरा चरण – यह स्टेज 1-2 महीने तक रह सकता है। इसे पेरोक्सिमल (Paroxysmal) कहा जाता है। इस स्टेज में खांसी अधिक होती है। खांसते वक्त काफी ज्यादा आवाज होने लगती है। इस दौरान उल्टी भी हो सकती है और पीड़ित शरीर में थकावट महसूस कर सकता है।
तीसरा चरण – यह स्टेज सात से बीस दिन तक रह सकती है। इसे कान्वलेसन्ट (Convalescent) यानी रिकवरी चरण कहा जाता है। इस दौरान उपचार की मदद से बीमारी धीरे-धीरे बेहतर होती है।
काली खांसी होने का कारण –
काली खांसी (कुकर खांसी) एक संक्रामक रोग है, जो बोर्डेटेला पर्टुसिस (Bordetella pertussis) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बैक्टीरिया सांस से संबंधित बीमारी के दौरान शरीर में जहर छोड़ता है। इससे सिलिया (अपर रेस्पिरेटरी सिस्टम का एक हिस्सा) को नुकसान पहुंचता है और नाक की नली में सूजन पैदा होती है
काली खांसी (कुकर खांसी) के लक्षण –
काली खांसी अक्सर ठंड जैसे लक्षणों के साथ शुरू होती है। आइए, विस्तार से जानते हैं कि काली खांसी के लक्षण क्या हैं।
- बहती नाक
- दर्द के साथ पानी से भरी लाल आंखें
- हल्का बुखार
- खांसी
- खांसते वक्त आवाज आना
- सामान्य अस्वस्थता
एपनिया – सांस लेने के दौरान ठहराव आना (शिशुओं में)
- सामान्य सर्दी के लक्षणों के 3 से 7 दिन बाद सूखी खांसी का होना
- खांसी के दौरान या बाद में उल्टी
- थकावट का एहसास
- निमोनिया
- नाक, आंख या मस्तिष्क में रक्तस्राव
- हर्निया का बढ़ना
यहां इस बारे में जानना भी जरूरी है कि कुछ शिशु पर्टुसिस (काली खांसी) के दौरान बिल्कुल भी नहीं खांसते हैं। इसके बजाय शिशुओं को सांस लेने में तकलीफ होती है और उनका रंग नीला पड़ने लगता है।
काली खांसी कम करने के लिए घरेलू उपाय –
1. लहसुन
सामग्री :
- लहसुन की 3 से 4 कलियां
- शहद (वैकल्पिक)
उपयोग का तरीका :
- लहसुन की कलियों को कूचल कर रस निकाल लें।
- इसके बाद लहसुन से निकलने वाले रस का सेवन करें।
- स्वाद के लिए आप इसमें शहद भी मिला सकते हैं।
कैसे लाभदायक है :
लहसुन में एलिसिन (allicin) कंपाउंड पाया जाता है, जिसमें एंटी बैक्टीरियल गुण भरपूर होते हैं। लहसुन के इसी गुण के कारण काली खांसी के बैक्टीरिया के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जा सकता है
2. अदरक
सामग्री :
- अदरक के एक-दो छोटे टुकड़े
- स्वादानुसार शहद (वैकल्पिक)
उपयोग का तरीका :
- अदरक का पेस्ट बना लें।
- पेस्ट से अदरक का रस निकालें और इसका रोजाना सेवन करें।
- स्वाद के लिए आप इसमें आधा चम्मच शहद मिला सकते हैं।
कैसे लाभदायक है :
अदरक एंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर है। साथ ही अदरक ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया (Gram-negative bacteria) से लड़ने का काम करता है । इसी बैक्टीरिया के कारण काली खांसी होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल काली खांसी के घरेलू इलाज के लिए किया जाता है ।
3. हल्दी
सामग्री :
- 1 चम्मच हल्दी
- 1 गिलास गर्म दूध
उपयोग का तरीका :
- एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी डालें।
- चम्मच की मदद से हल्दी को दूध में अच्छी तरह मिलाएं।
- इसका एक हफ्ते तक या खांसी ठीक न होने तक रोजाना सेवन कर सकते हैं।
कैसे लाभदायक है :
हल्दी में एंटीबैक्टीरियल एजेंट होते हैं। इसका इस्तेमाल सर्दी, जुकाम, खांसी और अन्य श्वास संबंधी समस्या के लिए किया जाता है। इसलिए, काली खांसी के दौरान इसे बतौर घरेलू उपचार प्रयोग में लाया जा सकता है ।
4. तुलसी के पत्ते
सामग्री :
- तुलसी के कुछ पत्ते
- काली मिर्च के कुछ दाने
- शहद की कुछ बूंदें
- तुलसी और काली मिर्च की बराबर मात्रा को एक साथ पीस लें।
- अब इस पेस्ट में थोड़ा शहद मिला लें।
- अब इसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाएं।
- दिन में चार बार इस गोली का सेवन करें।
कैसे लाभदायक है :
तुलसी में एंटीवायरल, एंटीप्रोटोजोअल और एंटीफंगल गुण होते हैं। साथ ही तुलसी में स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले गुण भी पाए जाते हैं। इसलिए, आयुर्वेद में तुलसी का इस्तेमाल प्राचीन काल से खांसी-जुकाम के इलाज के लिए किया जाता रहा है। तुलसी के इन्हीं औषधीय गुणों के कारण तुलसी और इसके तेल को काली खांसी के उपचार में भी प्रयोग में लाया जा सकता है ।
5. अजवायन
सामग्री :
- एक गिलास पानी
- 50 ग्राम अजवाय
- अजवायन के तेल की 4 से 5 बूंदें (वैकल्पिक)
उपयोग का तरीका :
- पानी में अजवायन डालें।
- इसके बाद अच्छे से उबाल लें।
- अजवायन से निकले पीले पानी को पी लें।
वैकल्पिक तरीके :
- अजवायन के तेल की कुछ बूंदों के मिश्रण को अपनी छाती और पीठ पर रगड़ें।
- गर्म पानी में अजवायन के तेल को डालकर इसकी भाप भी ले सकते हैं।
कैसे लाभदायक है :
अजवायन एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल गुणों से भरपूर होता है। बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता की वजह से इसका इस्तेमाल काली खांसी को ठीक करने के लिए भी किया जा सकता है ।
6. बादाम
सामग्री :
- 6 से 7 बादाम
- 1/2 चम्मच मक्खन
उपयोग का तरीका :
- बादाम को रात भर के लिए पानी में भिगोकर रख दें।
- अगली सुबह उन्हें पानी को अलग कर बादाम को मक्खन के साथ ग्राइड कर लें।
- अब इस मिश्रण का सेवन करें। आप इसे खांसी ठीक न होने तक पी सकते हैं।
कैसे लाभदायक है :
बादाम के छिलके में मौजूद पॉलीफेनोल्स जीवाणुरोधी गुणों के लिए जाने जाते हैं। यह काली खांसी के कारण ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया से लड़ने में सहायक होता है
7. नींबू
सामग्री :
- आधा नींबू
- 1 गिलास पानी
- शहद (वैकल्पिक)
उपयोग का तरीका :
- एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ें।
- अच्छे से घोलकर इसे पी लें।
- स्वाद के लिए आप आधा चम्मच शहद भी डाल सकते हैं।
कैसे लाभदायक है :
नींबू और शहद में जीवाणुरोधी गुण मौजूद होते हैं, जो रेस्पिरेटरी इंफेक्शन पर प्रभावी रूप से काम कर सकते हैं । इसके अलावा, शहद और नींबू का इस्तेमाल गंभीर खांसी की स्थिति में किया जा सकता है, जिसका लाभकारी प्रभाव काली खांसी पर भी पड़ सकता है । हालांकि, इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है।
8. ह्यूमिडिफायर
सामग्री :
- ह्यूमिडिफायर
उपयोग का तरीका :
- ह्यूमिडिफायर को कमरे में लगाएं।
कैसे लाभदायक है :
ह्यूमिडिफायर बिजली से चलने वाला उपकरण है, जो कमरे में नमी बनाने में मदद करता है। इसके इस्तेमाल से बहती नाक की परेशानी में राहत मिलती है। साथ ही बलगम को बाहर निकालने में मदद मिलती है। ह्यूमिडीफाइड की मदद से जुकाम और फ्लू से भी छुटकारा मिल सकता है । इसी वजह से इसका इस्तेमाल काली खांसी के लिए भी किया जाता है, क्योंकि काली खांसी के दौरान भी सर्दी-जुकाम के साथ बुखार आता है
9. प्याज
सामग्री :
- 1 मध्यम आकार के प्याज का रस या प्याज का टुकड़ा
- 1/4 कप शहद
उपयोग का तरीका :
- प्याज को आप भूनकर शहद के साथ खा सकते हैं।
- वैकल्पिक रूप से आप प्याज के रस को शहद में मिलाएं।
- कुछ घंटों के अंतराल में इस मिश्रण का एक चम्मच सेवन करते रहें।
कैसे लाभदायक है :
भूने हुए प्याज के साथ शहद का सेवन करने से खांसी ठीक होती है और बलगम भी गले से निकल जाता है। दरअसल, प्याज एंटीबायोटिक गुण से समृद्ध होता है , इसलिए इसका इस्तेमाल काली खांसी को कम करने के लिए किया जाता है ।
10. एसेंशियल ऑयल
सामग्री :
- एसेंशियल ऑयल की कुछ बूंदें
- भाप के लिए गर्म पानी
नोट: आप पुदीना, लेमनग्रास, युकलिप्टुस के एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
उपयोग का तरीका :
- एसेंशियल ऑयल की कुछ बूंदें गर्म पानी में डालें।
- गर्म पानी से निकलती भाप को लें।
- इसके अलावा, आप इन तेलों से पीठ और छाती की हल्की मालिश भी कर सकते हैं।
कैसे लाभदायक है :
काली खांसी को कम करने के लिए आप एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल अरोमाथेरेपी के रूप में कर सकते हैं । युकलिप्टुस, पुदीना, लेमनग्रास व पामरोजा एसेंशियल ऑयल में मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण के कारण इन्हें काली खांसी के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है
11. विटामिन सी
सामग्री :
- विटामिन सी सप्लीमेंट
- विटामिन सी से भरपूर आहार
उपयोग का तरीका :
- विटामिन -सी के सप्लीमेंट का सेवन करें।
- विटामिन-सी से भरपूर आहार को भी अपनी डाइट में शामिल करें।
कैसे लाभदायक है :
विटामिन-सी को खांसी के इलाज के सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता है। विटामिन-सी इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही यह श्वास नलिका में संक्रमण को होने से रोकता है । विटामिन-सी की मात्रा आहार के माध्यम से बढ़ाई जा सकती है। दैनिक आधार पर आप विटामिन-सी के सप्लीमेंट भी ले सकते हैं
12. ग्रीन टी
सामग्री :
- 1 चम्मच ग्रीन टी
- 1 कप गर्म पानी
- स्वादानुसार शहद (वैकल्पिक)
उपयोग का तरीका :
- 5 से 10 मिनट के लिए एक कप गर्म पानी में ग्रीन टी की पत्तियों को डुबोएं।
- स्वाद के लिए इसमें शहद मिक्स करें।
- चाय तैयार होने के बाद इसका सेवन करें।
कैसे लाभदायक है :
ग्रीन टी में मौजूद एंटीवायरल और एंटीऑक्सीडेंट गुण सर्दी और फ्लू सहित कई प्रकार के संक्रमणों के इलाज में मददगार होते हैं। अध्ययन के मुताबिक, इसमें मौजूद जीवाणुरोधी गुण काली खांसी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मारने में मदद कर सकते हैं।
13. एल्डरबेरी सिरप
सामग्री :
- 1 बड़ा चम्मच एल्डरबेरी सिरप
- किसी भी फल का रस या गर्म पानी का 1 कप
उपयोग का तरीका :
- एक कप फलों के रस या गर्म पानी में सिरप मिलाएं।
- इसका रोजाना सेवन करें।
कैसे लाभदायक है :
यह सिरप औषधीय फूल वाले पौधे एल्डरबेरी से बनाया जाता है। यह जीवाणुरोधी होता है और इसमें मौजूद केमिकल कंपाउंड इम्यूनिटी को बढ़ाने, खांसी और ठंड को रोकने में सहायक होते हैं
14. नमक पानी
सामग्री :
- 1 से 2 चम्मच नमक
- 1 कप गर्म पानी
उपयोग का तरीका :
- एक कप गर्म पानी में एक चम्मच नमक मिलाएं।
- इस पानी का उपयोग गार्गल करने के लिए करें।
कैसे लाभदायक है :
नमक को सोडियम क्लोराइड के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें रोगाणुरोधी गुण होते हैं । गर्म पानी में नमक मिलाकर कुल्ला करने से कफ साफ होने के साथ ही खांसी से राहत मिल सकती है। हालांकि, काली खांसी पर नमक के बेहतर प्रभाव जानने के लिए और शोध की आवश्यकता है।
15. शहद
सामग्री :
- ऑर्गेनिक शहद का 1 बड़ा चम्मच
- 1 कप गर्म पानी
उपयोग का तरीका :
- एक कप गर्म पानी में जैविक शहद मिलाएं।
- इस मिश्रण का रोजाना सेवन करें।
कैसे लाभदायक है :
शहद का इस्तेमाल खांसी से छुटकारा पाने के लिए बतौर कफ सिरप किया जाता रहा है। दरअसल, शहद में एंटीऑक्सीडेंट, रोगाणुरोधी व एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो खांसी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को कम करने में मदद करते हैं, जिसका फायदा काली खांसी पर भी पड़ सकता है
16. लीकोरिस
सामग्री :
- लीकोरिस की कुछ छोटी जड़ें
- 1 कप पानी
- शहद (वैकल्पिक)
उपयोग का तरीका :
- एक कप पानी में लीकोरिस को डालें।
- 5 मिनट के लिए इस पानी को गर्म करें।
- स्वाद के लिए आप इसमें शहद भी मिला सकते हैं।
- अब इस चाय का सेवन करें।
कैसे लाभदायक है :
लीकोरिस का इस्तेमाल बीमारी से लड़ने के लिए काफी पुराने समय से किया जाता रहा है। खांसी के लिए भी इसका इस्तेमाल सिरप के रूप में किया जा सकता है। दरअसल, इसमें मौजूद एंटीवायरल और रोगाणुरोधी गतिविधियां बलगम को शरीर से निकालने में मदद करती हैं।
17. कैमोमाइल
सामग्री :
- 1 से 2 चम्मच सूखे कैमोमाइल हर्ब
- 1 कप पानी
- स्वादानुसार शहद (वैकल्पिक)
- एक कप गर्म पानी में दो चम्मच कैमोमाइल हर्ब को 5 से 10 मिनट तक डुबोकर रखें।
- स्वाद के लिए शहद डाल सकते हैं
- ठंडा होने से पहले इसे चाय की तरह पिएं।
कैसे लाभदायक है :
कैमोमाइलल की चाय का इस्तेमाल खांसी-जुकाम का इलाज करने के लिए किया जाता है। कैमोमाइल में मौजूद बैक्टीरिसाइडल गुण शरीर में मौजूद बैक्टीरिया से लड़ने का काम कर सकते हैं। ऐसे में इसका सेवन काली खांसी के लिए भी प्रभावी माना जा सकता है।
18. केसर
सामग्री :
- केसर के 6 रेशे
- 1 कप गर्म पानी
- शहद (वैकल्पिक)
उपयोग का तरीका :
- एक कप गर्म पानी में केसर को 5 से 10 मिनट के लिए भिगो दें।
- स्वाद के लिए शहद जोड़ें और इसका प्रतिदिन सेवन करें।
कैसे लाभदायक है :
केसर का उपयोग अस्थमा, खांसी, काली खांसी (पर्टुसिस) और कफ को शरीर से निकालने के लिए किया जाता है, क्योंकि यह हमारे शरीर में एक्सपेक्टोरेन्ट (बलगम को निकलाने में सहायक गुण) का काम करते हैं
काली खांसी (कुकर खांसी) का इलाज –
काली खांसी का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं के साथ ही किया जा सकता है। समय रहते ही डॉक्टर के परामर्श पर इलाज शुरू करने से कुकर खांसी का इंफेक्शन शरीर पर ज्यादा नहीं फैलता और समय से इसका उपचार हो जाता है। वहीं, पर्टुसिस यानी काली खांसी कभी-कभी बहुत गंभीर हो सकती है। काली खांसी के गंभीर होने का खतरा सबसे ज्यादा शिशुओं में होता है। ऐसा होने पर आपको अस्पताल का रुख करना होगा। ऐसा होने पर आपको अस्पताल का रुख करना होगा।
काली खांसी के जोखिम और जटिलताएं –
काली खांसी व कुकर खांसी से बिना किसी जटिलताओं के उबरा जा सकता हैं, लेकिन 6 महीने से कम उम्र के शिशुओं में होने वाली काली खांसी के दौरान जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। काली खांसी के जोखिम कारक इस प्रकार हैं –
शिशुओं में –
- निमोनिया
- सांस लेने की क्षमता में कमी
- धीमी सांस लेना
- मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी
वयस्कों में-
- मूत्राशय नियंत्रण खोना
- वजन का घटना
- रिब फ्रैक्चर
- बेहोशी
काली खांसी से बचने के उपाय –
काली खांसी से बचने के लिए अगर कुछ उपाय किए जाएं, तो हम इस बीमारी से खुद को बचा सकते हैं। आइए जानते हैं, वो तरीके जिनकी मदद से कुकर खांसी से बचा जा सकता है
- काली खांसी से बचने के लिए सबसे जरूरी से इससे संबंधित टीका लगवाना।
- शिशुओं को टीका लगवाने के साथ ही काली खांसी वाले व्यक्ति से दूर रखना चाहिए
- सफाई का विशेष ख्याल रखना चाहिए, ताकि बैक्टीरिया न पनप सकें।
लेख में दिए गए काली खांसी से बचने के उपाय और घरेलू इलाज की मदद से आप खुद की ही नहीं, बल्कि आस-पड़ोस के लोगों को भी इस बीमारी से बचाने में मदद कर सकते हैं। बस जरूरत है सबको इस बीमारी के संबंध में जानकारी देने और जागरूक करने की। उम्मीद करते हैं कि इस लेख की मदद से आप काली खांसी के बारे में सब कुछ जान गए होंगे।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
खांसी और काली खांसी में क्या अंतर है?
- काली खांसी और खांसी में फर्क करना आसान नहीं है, क्योंकि खांसी और काली खांसी दोनों के दौरान एक जैसे ही लक्षण नजर आते हैं।
- खांसी आमतौर पर गले में मौजूद बलगम की वजह से होती है। यह खांसी ज्यादा समय तक नहीं रहती है।
- कई बार सर्दी के कारण बुखार के साथ भी खांसी होने लगती है, यह खांसी करीब दो से तीन हफ्ते तक रहती है।
- वहीं, काली खांसी के दौरान पहले तो जुकाम व सर्दी जैसे लक्षण नजर आते हैं।
- बाद में आपके फेफड़ों से खांसने के बाद सांस लेते वक्त कुछ खोखली-सी आवाज आने लगती है।
- कई बार सांस लेने में तकलीफ होती है।
- काली खांसी लंबे समय तक होती रहती है।
प्रेग्नेंसी में काली खांसी के टीकाकरण के फायदे और नुकसान?
गर्भवतियों को गर्भावस्था के दौरान 27 से 36 सप्ताह के बीच काली खांसी से संबंधित टीकाकरण की सलाह दी जाती है। हालांकि, इसे गर्भावस्था के दौरान किसी भी समय लगाना सुरक्षित है। टीडेप का गर्भावस्था में टीकाकरण करने से गर्भस्थ शिशु को जन्म से पहले काली खांसी से बचाया जा सकता है। हालांकि, गर्भावस्था में इसे सुरक्षित माना जाता है, लेकिन फिर भी इसके कुछ दुष्प्रभाव सामने आ सकते हैं। इसमें इंजेक्शन लगने वाली जगह पर लालिमा, दर्द या सूजन शामिल हैं। इसके दुष्प्रभाव आमतौर पर कुछ दिनों के भीतर दूर हो जाते हैं
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