गिन्नी घास का वानस्पतिक नाम मेगार्थिसस मैक्सिमस है। यह पशुओं के चारे और आचार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह 3-4 सैं.मी. लंबी सदाबहार घास है। इसके पत्तों के सिरे तीखे और लंबे होते हैं और पत्ते के बीच की नाड़ी 1 सैं.मी. चौड़ी होती है। बीज का सिरा 40 सैं.मी लंबा, आयताकार और हरा-जामुनी रंग का होता है। यह उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, यमन, फिलस्तीन और भारत में पाया जाता है। भारत में, पंजाब गिन्नी घास का मुख्य उत्पादक राज्य है।
बहुवर्षीय हरे चारे के लिए गिनी घास का महत्वपूर्ण योगदान है| गिनी घास का जन्म स्थान गिनी, अफ्रीका को बताया जाता है। ये बहुत ही तेजी से बढने वाली और पशुओ के लिए एक स्वादिस्ट घास है। इससे वर्ष मैं 6-8 कटाई तक कर सकते है| भारत में यह घास 1793 में आई। इसमें 10-12 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, रेशा 28-36 प्रतिशत, NDF 74-75 प्रतिशत , पत्तो की पाचन क्षमता 55-58 %, लिगनिन 3.2-3.6 प्रतिशत होती है।
गिनी घास के लिए जलवायु
- गिनी घास गर्म मौसम की फसल है घास के लिए उपयुक्त तापमान, 31 डिग्री सेंटीग्रेड चाहिए और 15 डिग्री सेंटीग्रेड के नीचे इसकी बढवार कम हो जाती है। यह 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक बहुत अच्छी तरह से बढवार करती है।
- यह घास छाया को बहुत हद तक सहन कर सकती है इसलिए पेडो के बीच में बहुत अच्छी तरह से हो जाती है यह 60 प्रतिशत तक छाया सहन कर सकती है ।
- जिन क्षेत्रो में नमी 70 प्रतिशत तक होती है, वो क्षेत्र गिनी के लिए अनुकूल होते है ।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
PGG 101: यह किस्म 1991 में विकसित की गई थी। इस किस्म के बीज मोटे होते हैं। इस फसल की कटाई मुख्य रूप से मई-नवंबर के महीने में फूल आने से पहले की जाती है। इस किस्म के हरे चारे की औसतन पैदावार 36-52 टन प्रति एकड़ होती है। इसकी 5-7 कटाई की जाती है।
PGG 518: यह 1998 में विकसित की गई थी। इस किस्म के पत्ते लंबे और आकार में चौड़े होते हैं। पौधे के अच्छी तरह से विकसित होने पर इसकी कटाई की जाती है। इस किस्म पैदावार 48 टन प्रति एकड़ होती है। इसकी 5-7 कटाई की जाती है।
PGG 19: यह किस्म पंजाब में खेती करने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 36-52 टन प्रति एकड़ होती है।
PGG 9: इसकी दो से तीन कटाई की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 34-56 टन प्रति एकड़ होती है।
PGG 14: इसकी औसतन पैदावार 38-56 टन प्रति एकड़ होती है।
Bundel Guinea 1: इस किस्म की बारानी हालातों में खेती करने के लिए सिफारिश की गई है। यह सिंचित हालातों में पूरे वर्ष हरी रहती है।
Bundel Guinea 2: इसके हरे चारे की औसतन पैदावार 20-24 टन प्रति एकड़ होती है। यह बारानी परिस्थितियों के लिए उपयुक्त किस्म है।
दूसरे राज्यों की किस्में
CO 2: इस किस्म के पत्ते की ऊंचाई 150-200 सैं.मी. और पत्ते की लंबाई 65-75 सैं.मी. होती है। इस किस्म की पैदावार 100-112 टन प्रति एकड़ होती है। इसकी 7 बार कटाई की जा सकती है।
CO (GG) 3: इस किस्म का कद 210-240 सैं.मी. और पत्ते की लंबाई 97-110 सैं.मी. होती है। इस किस्म के चारे की पैदावार 136-144 टन प्रति एकड़ प्रति वर्ष होती है। इसकी मुख्यत 7 कटाई की जा सकती है।
Hamil: यह किस्म उत्तर, दक्षिण और केंद्रिय भारत में उगाने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 36-52 टन प्रति एकड़ होती है।
PGG 1: यह किस्म उत्तर पश्चिम, केंद्रिय भारत और पहाड़ी इलाकों में उगाने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 34-52 टन प्रति एकड़ होती है।
गिनी घास के लिए भूमि और भूमि की तैयारी
हलके विन्यास वाली भूमि इसके लिए उचित होती है, जैसे के बलुई दोमट भूमि| उ़चित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि अधिक उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है।यह एसिड और क्षारीय मिट्टियो को सहन नहीं कर पाती है।
भूमि की तैयारी: यदि खेत में खरपतवार है तो, खरपतवार हटाने के लिए, एक क्रोस जुताई हेर्रो से करने के पश्चात एक क्रोस जुताई कल्टीवेटर से करना उचित रहता है।
गिनी घास उगानें के लिए बीज की मात्रा
गिनीं को जड़ों द्वारा, बीज द्वारा और तने की कटिंग द्वार लगाया जा सकता है | सबसे सही तरीका जड़ों द्वारा होता है ।
बीज द्वारा लगाने के लिए नर्सरी तैयार करनी पड़ती है । कुल 4 किलोग्राम बीज या खुली धुप में लगाने पर कुल जड़े 40000 हजार जड़े (50 X 50 सेमी पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी ) और छाया में 50000 जड़े (जब दूरी 50 X 40 सेमी हो ) प्रति हेक्टेयर चाहिए।
गिनी घास की बुवाई का समय :
फसल वर्षा के आने के बाद घास को जून - जुलाई में बोना चाहिए| बीज के द्वारा बोने के लिए नर्सरी में एक माह पहले ही बीज बो देना चाहिए और वर्षा आने पर उसकी रोपाई करने चाहिए।
गिनी की बुबाई की विधि ओर दूरी
गिनी घास को पूरे वर्ष बोया जा सकता है सिर्फ सर्दियों को छोड़ कर जब तापमान 15 डिग्री से कम होता है।साधारणतयाः इसे मानसून के आने के बाद ही बोया जाता है| बीज को 1 - 1.5 सेमी तक गहरा बोना चाहिए।
तने की कटिंग को 3 महीने पुराना होना चाहिए। दो गांठ की कटिंग उचित रहती है उसे 2/3 जमीं में गाढ़ देना चाहिए।जमींन के भीतर वाली गाँठ से जड़ और तने निकलते है और जमींन के ऊपर वाली जड़ से तने निकलते है ।
- गिनी को कुंड बना कर बोना चाहिए| लाइन से लाइन की दूरी 50 से मी और पौधे से पौधे की दूरी 50 से मी रखनी चाहिए।
- अन्य फसलों के बीच में बोने के लिए लाइन से लाइन की दूरी बढ़ा सकते है जैसे 100 से मी. 200 से मी और 250 से मी. । इससे दो लाइन के बीच में फसल को भी लगा सकते है| विभिन्न प्रकार की दलहनी फसले इसके बीच में उगा सकते है।
- गिनी घास ( बी जी 2) भीमल पेडो के बीच में
गिनी में खाद और उर्वरक
गिनी से अधिक चारा उत्पादन के लिए 200-250 कुन्तल गोबर की खाद और 80 किलो ग्राम नाईट्रोजन, 40 किलोग्राम फोस्फोरस और 40 किलो ग्राम पोटाश जड़ों की बुबाई के समय देना चाहिए । और 40 किलोग्राम नाईट्रोजन प्रत्येक कटाई के बाद देना चाहिए| प्रत्येक कटाई के बाद 10 किलोग्राम फोस्फोरस भी देना चाहिए ।
गिनी घास में सिचाई-
10-15 दिन के अंतर पर सिचाई देते रहना चाहिए ।
पौधे की देखभाल
हानिकारक कीट और रोकथाम
घास का टिड्डा : घास का टिड्डा ताजे पत्तों को अपने खाने के रूप में प्रयोग करता है जिससे सारा पौधा नष्ट हो जाता है। रोकथाम : इसका हमला दिखने पर कार्बरिल 50 डब्लयु पी 400 ग्राम प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बे : यह रोग पौधे की पत्तियों को प्रभावित करता है और उन पर धब्बे बना देता है जो कि बाद में काले रंग के हो जाते हैं। रोकथाम : यदि खेत में इस बीमारी का हमला दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 300 ग्राम या मैनकोजेब 250 ग्राम को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर 3 से 4 बार 15 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
गोंदिया रोग : यह फफूंदी रोग क्लैविसे पसप्यूरिया से होता है जो कि फसल के मुख्य भाग को प्रभावित करता है रोकथाम : इस रोग से बचाने के लिए फंगसनाशी उपचार आवश्यक है।
कांगियारी : यह रोग मुख्य रूप से अनाज और चारे वाली फसलों का नुकसान करता है। पौधे के पत्तों पर काले दानेदार धब्बे बन जाते हैं। रोकथाम : कांगियारी रोग की रोकथाम के लिए फंगसनाशी का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
मुरझाना : यह रोग जड़ों में पानी जाने से रोकता है जिससे कि परिणामस्वरूप पत्ते पीले पड़ जाते हैं। रोकथाम : इस बीमारी की रोकथाम के लिए थायोफनेट मिथाइल 10 ग्राम और यूरिया 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार कर लें और पौधे के नज़दीक डालें।
गिनी में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण उत्पादन को बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी से भी 3-4 सप्ताह बाद निराई गुडाई कर सकते है । चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारो के नियंत्रण के लिए 2-4 डी की 1 किलो सक्रिय तत्व, प्रति हे . 500-600 लीटर पानी में छिड़क कर देना चाहिए ।
गिनी घास की कटाई
पहली कटाई 50-60 दिन में करनी चाहिए और उसके बाद प्रत्येक कटाई 30-40 दिन पर करते रहना चाहिए जब फसल 5 फीट ( 1.5 मीटर) की हो जाये।
कटाई को जमींन से 15 से मी ऊपर से काटना चाहीये।सर्दियों के बाद पहली कटाई जमींन के पास से काटना चाहिए जिससे खराब तने हट जाते है।
उत्तर भारत में कुल 5-6 कटिंग/ वर्ष ली जा सकती है । जबकी दक्षिण भारत में कुल 7-8 कटिंग भी ली जा सकती है।
गिनी से हरे चारे का उत्पादन
गिनी की प्रत्येक कटाई से 200 कुंतल /हे तक हरा चारा प्राप्त हो जाता है । एक वर्ष में कुल 1200 कुन्तल से 1300 कुंतल तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है।
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