सुप्रीम कोर्ट ने केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन एवं प्रशासन में त्रावणकोर के पूर्ववर्ती शाही परिवार के अधिकार को सोमवार को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने केरल उच्च न्यायालय के 2011 के फैसले के खिलाफ त्रावनकोर रॉयल परिवार की अपील मंजूर कर ली। शाही परिवार ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। आओ जानते हैं मंदिर के खजाने के 10 खास रहस्य जो आप नहीं जानते होंगे।
1. अनुमानीत 5,00,000 करोड़ का खजाना :
सन् 2011 में इसका खुलासा हुआ। दक्षिण भारत के पद्मनाभ मंदिर में छिपा था 5,00,000 करोड़ का खजाना है जिसे गिनने में आधुनिक मशीनें और कई लोगों की टीमें लगीं।
2. त्रावणकोर के महाराजा का खजाना :
2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला गया था। यह खजाना त्रावणकोर के महाराजा का बताया जाता है।
3. तहखाने को खोलने की मनाही :
तहखाने से पाए गए खजाने में से कुछ तहखाने को खोलकर देखने की मनाही थी, क्योंकि मंदिर प्रशासन और भक्तजनों को किसी अननोही घटना और अशुभ के होने का डर था।
4. विष्णु के मंदिर में रखा है खजाना : पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल के तिरुअनंतपुरम् में मौजूद भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन यहां से अपार मात्रा में 'लक्ष्मी' की प्राप्ति हुई थी। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुवनंतपुरम के पर्यटन स्थलों में से एक है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए रोजाना हजारों भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। यहां लक्ष्मीजी की मूर्ति भी विराजमान है।
5. नाग के नाम पर है नगर का नाम : मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम् नाम भगवान के 'अनंत' नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा मिली थी जिसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया।
6. राजा मार्तंड ने कराया था निर्माण : मंदिर का निर्माण राजा मार्तंड ने करवाया था। भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाम मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया था। इसका जिक्र 9वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था। 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभदास बताया। इसके बाद शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया। माना जाता है कि इसी वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दी।
7. सरकार ने नहीं लिया अपने कब्जे में : त्रावणकोर के राजाओं ने 1947 तक राज किया। आजादी के बाद इसे भारत में विलय कर दिया गया, लेकिन पद्मनाभ स्वामी मंदिर को सरकार ने अपने कब्जे में नहीं लिया। इसे त्रावणकोर के शाही परिवार के पास ही रहने दिया गया, तब से पद्मनाभ स्वामी मंदिर का कामकाज शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है।
8. कैसा है मंदिर : मंदिर में एक स्वर्ण स्तंभ भी बना हुआ है, जो मंदिर की खूबसूरती में इजाफा करता है। मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है, जो इसकी भव्यता में चार चांद लगा देती है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है।
9. 22 सौ करोड़ डॉलर का खजाना : भारत के केरल में सन् 2011 में श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर की सुरक्षा उस वक्त कड़ी कर दी गई जब यहां सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर के तहखाने में बने पांच खुफिया दरवाजे खोल दिया जो सदियों से बंद थे। और हर दरवाजे के पार उन्हें सोना और चांदी के अंबार मिलते गए जिनकी अनुमानीत कीमत करीब 22 सौ करोड़ डॉलर थी।
10. चेम्बर-बी : लेकिन जब वे आखरी चेम्बर-बी पर पहुंचे तो वे उसे खोलने में नाकाम हो गए। वहां तीन दरवाजे हैं। पहला दरवाजा लोहे की झड़ों से बना दरवाजा है। दूसरा लकड़ी से बना एक भारी दरवाजा है और अंतिम दरवाजा लोहे का बना बड़ा ही मजबूत दरवाजा है जो बंद है और उसे खोला नहीं जा सकता क्योंकि उसे पर लोहे के दो नाग बने हैं और वहां चेतावनी लिखी है कि इसे खोला गया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।
इस पर न तो ताले लगे हैं और न ही कोई कुंडी। कहा जाता है कि उसे एक मंत्र से बंद किया गया है। उसे कहते हैं अष्टनाग बंधन मंत्र। मगर वो मंत्र क्या है ये कोई नहीं जानता। वह चेम्बर एक अनोखे शाप से ग्रस्त है। यदि कोई भी उसे चेम्बर के दरवाजे तक जाने का प्रयास करता है तो वह बीमार हो जाता है या उसकी मौत भी हो सकती है।
17 जुलाई 2011 में पहले पांच कक्षों को खोलने के बाद ही टी.पी सुंदरराजन यानी वे शख्स जिन्होंने इन दरवाजों को खुलवाने के लिए अदालत में याचिका दी थी, पहले वे बीमार पड़े और फिर उनकी मौत हो गए। अगले ही महीने मंदिर प्रशासन ने यह चेतावनी जारी कर दी की यदि किसी ने भी उस अंतीम कक्ष को खुलवाने या खोलने की कोशीश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि चेम्बर बी के दरवाजे के पीछे आखिर क्या रखा है? अपार सोना, कोई खतरनाक हथियार या कि प्राचीन भारत की कोई ऐसी टेक्नोलॉजी का राज छुपा है जिसे जानकर दुनिया हैरान रह सकती है। यह कहीं ऐसा तो नहीं कि वहां कोई ऐसा रास्ता हो जहां से पाताल लोग में जाया जा सकता हो।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर का पूरा रहस्य
केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर अपने गुप्त तहखानो और अरबो के खजाने के लिए प्रसिद्ध है। इस मदिर में 7 तहखाने हैं और यह सभी तहखाने मंदिर के बीच में भगवान विष्णु जी के मंदिर के ठीक नीचे हैं। 2011 में सुप्रीम कोर्ट के हुक्म से सात लोगो की कमिटी बनाई गयी और 30 जून 2011 को ये तहखाने खोले गए कमेटी ने इन तहखानो को A,B,C,D,E,F,G तक नाम दिया और 31 जुलाई 2011 को कोर्ट में यह आदेश किया की के गर्भ ग्रुप पद्मनाभ स्वामी मंदिर के इन तहखानो को खोल जाए और उसका मुलांकन किया जाये। तो सवाल अब यह उठता है कि आखिर सदियों पुराने इस इस खाजाने की बात सरकार तक पहुची कैसे ?
दरअसल हुआ ऐसे कि T.P सुन्दर राज जो Indian intelligence bureau के भूतपूर्व अधिकारी थे और पद्मनाभ स्वामी मंदिर के एक भक्त भी,उन्होंने मंदिर पर राज परिवार के अधिकार को खंडन करने की याचिका high court में दाखिल की थी यहाँ पर राजपरिवार मतलब त्रावनकोर के वंशज महाराज उत्तरोतम मार्तंड वर्मा जिनको भले ही महाराज कहा जाता हो और अपने पुवाजो के कारण वहां का राजा कहा जाता हो लेकिन महाराज के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं था। उनके आवास को महल तो कहा जाता है। लेकिन वह एक छोटा सा टीनामेंट घर से बढ़कर कुछ भी नहीं है। महाराज उत्तरोतम मार्तंड वर्मा ने अपने जीवन के पिछले साल भी आर्थिक कठिनाइयो में बिताया है महाराज उत्तरोतम मार्तंड वर्मा का देहांत 2013 में हो गया लेकिन उन्होंने खजाने पर कभी अपना दावा नहीं किया इस परिस्थिति में की T.P सुन्दर राज की कोर्ट में अपील करने की मन्शा क्या थी यह तो वही जानते हैं। त्रावनकोर के महाराज, खजाना और उनके इतिहास की बातो को अल्पविराम देते हैं और जानते थे की कितना खजाना था ?
पद्मनाभ स्वामी मंदिर में कितना खजाना था ?
जब सुप्रीम कोर्ट ने जब आदेश दिया तो खजाने का पहला द्वार खोला गया यह द्वार बहुत पुराना था। और जब इसे खोला गया तो अंदर बहुत धुल जमी हुई थी और अँधेरे के साथ प्रदूषित हवा भी थी। जिसको ऑक्सीजन युक्त हवा के माध्यम से शुद्ध किया गया और अंदर रौशनी की गयी और जब यहाँ खजाने का जो भंडार मिला उसको देखकर सब दंग रह गए इस पहले ही खंड में सोने के कई सारे आभूषण सोने की मोहरे और शुद्ध सोने के से बने वस्त्र भंडार थे। वहाँ पर 7 फीट लम्बा एक गले का हार भी था। कई बड़ी बोरियो में हीरे भी थे कई सारे सोने के बर्तन और हीरा मोती से सुसज्जित बर्तन सोना रत्न और हीरे से बने बड़े बड़े मुकुट सोने की मूर्तियाँ और सोने से बने तान्दोर भी वहां पर मौजूद थे ।
निरीक्षको ने जब इन सारी चीजो का वजन किया तो पाया की इस खजाने का वजन एक मैट्रिक टन (1000km) से भी ज्यादा था। इतनी सारी चीजो की गणना और उसका दस्तावेजो का रिकॉर्ड बनाने में महीनो का समय निकल जाये ये परिस्थिति थी और उसका मूल्य का आंकलन लगाना तो उस भी बड़ा बड़ी समस्या थी। फिर भी कुछ हद तक सोने की कीमत के साथ उसका आंकलन करके उसका मूल्यांकन किया गया तब खजाने की कीमत का जो आंकड़ा सामने आया वह था लगभग 1,20,000 करोड़(12000000000000) । यह आंकड़ा सिर्फ सोने की कीमत थी लेकिन यह बात तो हम सब जानते हैं की पुरानी और ऐतिहासिक चीजो की कीमत उसकी धातु से तय नहीं की जाती बल्कि वह कितनी पुरानी और और कितनी फेमस है उस से निर्धारित होती है। यहाँ पर प्रथम द्वार से मिले खजाने की कीमत अगर एतिहासिक चीज (Antic Wealth) के मूल्यांकन से किया जाए तो वह हमारे सोच से भी परे है और यह तो सिर्फ एक ही द्वार से ही मिला था 6 द्वार अभी बाकि थे ।अब सवाल यह आता है कि यह आखिर पद्मनाभ स्वामी मंदिर में इतना खजाना कहाँ से आया ? इसको जानने के लिए हमें थोडा इतिहास के पन्नो को पलटना होगा तो आइये जानते हैं कि
पद्मनाभ स्वामी मंदिर में खजाना कहाँ से आया
बात कुछ सदियों पहले की है जब दक्षिण भारत में चोरा, पांड्या और चेरा इन तीन मुख्या साम्राज्यों की त्रिटी थी ।लेकिन एक महत्वाकंशी राजा ठाकुर मार्तंड वर्मा ने अपने आस पास के राज्यों को जीत कर एक बड़े राज्य का गठन किया नाम था त्रावनकोर मैंने इस लेख के शुरुवात में जिस मार्तंड वर्मा की बात की थी वह थे उत्तरोतम मार्तंड वर्मा । जो ठाकुर मार्तंड वर्मा के 13 वें वंशज और उनके स्थापित किये हुए राज्य त्रावनकोर को 13वें वरिस थे जबकि ठाकुर मार्तंड वर्मा त्रावनकोर साम्राज्य संस्थापक और उसके पहले राजा थे ।अब ठाकुर मार्तंड भगवान पद्मनाथ या भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। वो अपनी हर जीत का का श्रेय अपने कुल देवता श्री भगवान् विष्णु को ही देते थे।
उस समय इस विष्णु भक्त ने एक निर्णय लिया उन्होंने यह ज़ाहिर किया कि उनके पास जो कुछ भी सम्पति है ।वह उसको भगवन विष्णु के चरणों में अर्पित कर देंगे सिर्फ इतना ही नहीं उनका राज्य और राज्य की हर सम्पदा और उनकी जीती हुई अब तक की हर वस्तु को अपने कुलदेवता भगवन पद्मनाभ को समर्पित कर दी और अपने आप को भगवन पद्मनाभ का दास घोषित कर दिया ।यहाँ पर एक काम की बात है कि दास और सेवक दोनो में बहुत अंतर है ।
सेवक वह होता है जो किसी फल या पुरुस्कार की आशा में सेवा या चाकरी करता है और कभी भी अपने मालिक को छोड़कर जा सकता है ।
जबकि दास वह होता है जो किसी फल या आशा किये बगैर अपने आप को मालिक को समर्पित कर देता है ।
यहाँ पर भी महाराज वर्मा ने अपने आप को अपने कुलदेवता पद्मनाभ (भगवान विष्णु) को समर्पित कर दिया था। इस लिए वे अपने राज्य त्रावनकोर के राजा नहीं बल्कि दास और एक रक्षक थे और उन्होंने यह प्रण लिया कि उनकी आने वाली हर पीढ़ी इस राज्य की रक्षक और भगवान् पद्मनाभ का दास बनकर अपना जीवन व्यतीत करेगी ।और यही हुआ बही ठाकुर मार्तंड वर्मा और उनके बाद आने वाले 13 के 13 राजाओ ने अपने जीवन से जो भी पाया वो उसको अपने इस मदिर के गर्भगृह में इकठा कर दिया। उसके बाद कई छोटे बड़े राज्य और राजाओ ने अपने राज्य को त्रावनकोर में विलीन कर दिया लेकिन त्रावनकोर के रक्षक या दास होने के ठाकुर मार्तंड वर्मा ने उन राजाओ से प्राप्त उस धन को भी पद्मनाभा स्वामी को समर्पित कर दिया। और ऐसे ही ठाकुर मार्तंड वर्मा से लेकर अब तक के त्रावनकोर के जितने राजा हुए उन्होंने अपनी वास्तु या पुरुस्कार में आई वस्तु या राज्य के द्वारा किसी दुसरे राज्य से जीती हुयी वस्तुओ को अपनी जागीर न मानते हुए धीरे धीरे धन इकट्ठा करते रहे ।और इस तरह सालो के इतिहास का धन धीरे धीरे करके पद्मनाभ स्वामी मंदिर में इतनी बड़ी मात्र में इकठा हुआ है ।
जिसका आजतक किसी भी राजा ने खुद के लिए उपयोग नहीं किया इस परम भक्ति वाद का आज की भौंतिक और आधुनिक समाज के साथ कोई मेल नहीं खाता। लेकिन एक बात तो है कि त्रावनकोर के पहले राजा से लेकर अब तक हुए सभी राजाओ में से सभी ने अपने पूर्वजो की परंपरा को निभाया और अपना सम्पूर्ण जीवन त्रावनकोर का दास और रक्षक बनकर व्यतीत किया ।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर का धन किसका है
इस खाजेने की चर्चा पर कुछ लोगो ने कहा कि खजाना सर्कार को सौंप देना चाहिए कुछ लोगो ने कहा की जरूरत मंदों को दे देना चाहिए और कुछ ने कहा की जहाँ पर है। वही रखना चहिये लोगो ने अपने अपने हिसाब से अपने अनुमान को प्रकट किया लेकिन यहाँ पर हम सामाजिक नियमो ओर कानूनी कौर से यह जानने की कोशिश करते हैं कि इस खाजाने का हक़दार कौन है।
कानूनी तौर पर 1878 में Indian Treasure Trove act का गठन किया गया था ।उस act के तहत यदि किसी व्यक्ति को अचानक कोई खजाना मिलता है तो वह खजाना 50% उस पाने वाले व्यक्ति का और 50% सरकार का होता है ।लेकिन पद्मनाभ स्वामी मंदिर का खजाना आकस्मिक नहीं मिला है। वह खजाना हमेशा से वहां पर मौजूद था। और जब सुप्रीम कोर्ट ने आज्ञा दी तब वह लोगो के सामने आया था इसलिए कायदे से वह खजाना न तो राज्य सरकार का है। और ना ही केंद्र सरकार का तो फिर उसका मालिक कौन यहं पर स्पस्ट रूप से देखा जाए तो राजघराने की और वर्तमान महाराज की मालकियत इस खजाने पर बिलकुल नहीं होती क्योंकि आगे के किसी भी राजा ने इस खजाने पर अपना दावा नहीं किया था वर्तमान ने कोर्ट में जब आखिरी राजा राम वर्मा से उनकी मालकियत की वसीयत मांगी तो तो महाराज ने खजाने की या मंदिर की किसी भी चीज का उसमें ज़िक्र नहीं किया था।अब इस परिस्थिति में खजाने का ऐतिहासिक महत्व देखते हुए उस पर एक ही क़ानून लागू होता है जिसको Antique and treasure act कहते हैं। भारत की ऐतिहासिक और पुरानी चीजो के लिए यह act बनाया गया था जिसके अनुसार भारत की ऐतिहासिक धरोहर या कोई प्राचीन संपत्ति हो वह में antique and treasure act में आता है ।उसके अनुसार भारत सरकार का यह फर्ज है कि देश में उस चीज की हिफाज़त हो और किसी भी तरह उन वस्तुओ को भारत की सीमाओ से बाहर नहीं जाने दिया जाये ।
तो फिर यह खजाना किसी का न होकर आजतक सँभालते हुए आ रहे पद्मनाभ स्वामी मंदिर का हुआ और दूसरा उसका एतिहासिक महत्व देखते हुए वह खजाना भारत की धरोहरों में से एक है । पद्मनाभ स्वामी मंदिर को दुनिया का सबसे अमीर मंदिर माना जाता है जिस्तना खजाना पद्मनाभ स्वामी मंदिर में है उतना किसी और मंदिर में नहीं और अभी तो सिर्फ एक ही द्वार खुला है जहा से इतना खाजाना मिला बाकि खुलेंगे तो फिर पद्मनाभ स्वामी दुनिया की सबसे अमीर सम्पति और धरोहरों में से एक हो जायेगा
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