वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को संसद में मोदी सरकार 2 का दूसरा बजट पेश किया। इस बजट में 5 पुरातात्विक स्थलों के संवरक्षण और विकसित करने का ऐलान किया। आओ जानते हैं इन पुरातात्विक स्थलों के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1.राखीगढ़ी :
अंग्रेजों की खुदाई से माना जाता था कि सिंधु सभ्यता के नगरों की 2600 ईसा पूर्व स्थापना हुई थी। इस सोच को राखीगढ़ में पाए गए पुरावशेष से बदल कर रख दिया। अब माना जाता है कि यह सभ्यता 5500 साल नहीं बल्कि 8000 साल पुरानी थीं। वैज्ञानिकों की एक टीम के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार हरियाणा के भिर्राना और राखीगढ़ी में भी था। उन्होंने भिर्राना की एकदम नई जगह पर खुदाई शुरू की और बड़ी चीज बाहर लेकर निकले। इसमें जानवरों की हड्डियां, गायों के सिंग, बकरियों, हिरण और चिंकारे के अवशेष मिले। डेक्कन कॉलेज के अराती देशपांडे ने बताया इन सभी के बारे में कार्बन 14 के जरिये जांच की गई।
हरियाणा में इससे पहले भी राखीगढ़ी, मीताथल और बनावली में हड़प्पाकालीन स्थल मिले थे, लेकिन फरमाना में पहली बार हड़प्पा काल के दो अलग-अलग समय के अवशेष एक साथ में मिले हैं। फरमाना से कुछ दूर खुदाई का काम हुआ है और करीब एक एकड़ क्षेत्र में हड़प्पाकालीन घरों के अवशेष देखे जा सकते हैं। खुदाई के काम में लगे एक छात्र बताते हैं यहां आप हड़प्पा स्टाइल के घर देख सकते हैं। सड़कें सीधी और नब्बे डिग्री के कोण पर मुड़ती हैं, जो मोहनजोदड़ों में भी दिखता है। इसके अलावा घरों के दरवाजे पूर्व की तरफ हैं। इस खुदाई स्थल पर फिलहाल 27 कमरों की नींव मिली हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ कितने लोग रहते होंगे। इन कमरों में रसोई जैसी आकृतियाँ देखी जा सकती हैं, जिनके पास बर्तन के टुकड़े भी पाए गए हैं।
सिंधु सभ्यता की जानकारी हमें अंग्रेजों के द्वारा की गई खुदाई से ही प्राप्त होती है जबकि उसके बाद अन्य कई शोध और खुदाईयां हुई है जिसका जिक्र इतिहास की किताबों में नहीं किया जाता। इसका मतलब यह कि इतिहास के ज्ञान को कभी अपडेट नहीं किया गया, जबकि अन्य देश अपने यहां के इतिहास ज्ञान को अपडेट करते रहते हैं। यह सवाल की कैसे सिंधु सभ्यता नष्ट हो गई थी इसके जवाब में वैज्ञानिक कहते हैं कि कमजोर मानसून और प्राकृति परिस्थितियों के बदलाव के चलते यह सभ्यता उजड़ गई थी। सिंधु घाटी में ऐसी कम से कम आठ प्रमुख जगहें हैं जहां संपूर्ण नगर खोज लिए गए हैं। जिनके नाम हड़प्पा, मोहनजोदेड़ों, चनहुदड़ो, लुथल, कालीबंगा, सुरकोटदा, रंगपुर और रोपड़ है।
2. धोलावीरा :
गुजरात में कच्छ प्रदेश के उतरीय विभाग खडीर में धोलावीरा नामक ऐक गांव के पास 5 हजार वर्ष पुराने प्राचीन नगर का पता चला है जिसे विश्व के सबसे प्राचीन नगरों में शामिल किया गया है। यहां पर भी हड़प्पा और मोहन जोदडो की तरह के नगर मिले हैं। हड़प्पा, मोहन जोदडो, गनेरीवाला, राखीगढ, धोलावीरा तथा लोथल ये छः पुराने महानगर पुरातन संस्कृति के नगर है। जिसमें धोलावीरा और लोथल भारत में स्थित है। हड्डपा, मोहन जोदडो तथा धोलावीरा के लोग कौन सी भाषा बोलते थे और किस लिपि का उपयोग करते थे, अज्ञात है।
3. हस्तीनापुर :
हस्तिनापुर महाभारत काल के कौरवों की वैभवशाली राजधानी हुआ करती थी। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ से 22 मील उत्तर-पूर्व में गंगा की प्राचीनधारा के किनारे प्राचीन हस्तिनापुर के अवशेष मिलते हैं। यहां आज भी भूमि में दफन है पांडवों का किला, महल, मंदिर और अन्य अवशेष।
पुरातत्वों के उत्खनन से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर की प्राचीन बस्ती लगभग 1000 ईसा पूर्व से पहले की थी और यह कई सदियों तक स्थित रही। दूसरी बस्ती लगभग 90 ईसा पूर्व में बसाई गई थी, जो 300 ईसा पूर्व तक रही। तीसरी बस्ती 200 ई.पू. से लगभग 200 ईस्वी तक विद्धमान थी और अंतिम बस्ती 11वीं से 14वीं शती तक विद्यमान रही। अब यहां कहीं कहीं बस्ती के अवशेष हैं और प्राचीन हस्तिनापुर के अवशेष भी बिखरे पड़े हैं। वहां भूमि में दफन पांडवों का विशालकाय एक किला भी है जो देखरेख के अभाव में नष्ट होता जा रहा है। इस किले के अंदर ही महल, मंदिर और अन्य इमारते हैं।
4. आदिचनाल्लूर :
यह स्थल भारत के तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में स्थित है। यहां प्राचीन काल के कई पुरातात्विक अवशेष मिले हैं, जो कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोजों का स्थल रहा है। प्रारंभिक पांडियन साम्राज्य की राजधानी कोरकाई, आदिचनल्लूर से लगभग 15 किमी दूर स्थित है। आदिचनल्लूर साइट से 2004 में खोदे गए नमूनों की कार्बन डेटिंग से पता चला है कि वे 905 ईसा पूर्व और 696 ईसा पूर्व के बीच के थे। 2005 में, मानव कंकालों वाले लगभग 169 मिट्टी के कलश का पता लगाया गया था, जो कि कम से कम 3,800 साल पहले के थे। 2018 में हुई शोध के अनुसार कंकाल के अवशेषों पर 2500 ईसा पूर्व से 2200 ईसा पूर्व के तक के हैं।
5. शिवसागर :
यह स्थल असम में गुवाहाटी से लगभग 360 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित है। यह शहर देहिंग वर्षावन से घिरा हुआ है, जहां दीहिंग (ब्रह्मपुत्र) और लोहित नदियां मिलती हैं। शहर का नाम शहर के मध्य में स्थित बड़ी झील शिवसागर से मिलता है। झील अहोम राजा शिव सिंहा द्वारा बनाई गई थी। 13 वीं शताब्दी में युन्नान क्षेत्र से चीन के ताई बोलने वाले अहोम लोग इस इलाके में आए 18 वीं शताब्दी में शिवसागर अहोम साम्राज्य की राजधानी था। उस समय यह रंगपुर कहलाता था। उस काल के कई मंदिर मौजूद है। इस शहर को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है।
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