ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की खेती, हमारे भारत देश में मुख्यतः चार प्रकार के मशरूम की खेती की जाती है- बटन मशरूम, ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम, दूधीया मशरूम और पुआल मशरूम, हमारे भारत की जलवायु भिन्न-भिन्न प्रकार की है और ऋतुओं को ध्यान में रखकर हम अलग-अलग समय पर विभिन्न प्रकार के मशरूमों की खेती कर सकते हैं, परन्तु हमारे भारत की जलवायु ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम के लिए बहुत ही अनुकूल है।
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम में प्रोटीन की बहुतायत होती है और कई तरह के औषधीय तत्व भी पाए जाते है। ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम भी अन्य मशरूमो की तरह एक शाकाहारी पौष्टिक भोजन है और आने वाले वक्त में इसका उत्पादन लगातार बढ़ने की सम्भावना है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, इन कृषि फसलों के व्यर्थ अवशेष जैसे- पुआल, भूसा तथा पत्ते जो कि गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, गन्ना और सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी फसलों से प्राप्त किए जाते हैं।
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की खेती एक बहुत ही अच्छा साधन है। इन कृषि अवशिष्टों को प्रयोग कर किसान अपने परिवार को पौष्टिक आहार दे सकते हैं और अपनी आमदनी को भी बढ़ा सकते हैं, व इन कृषि अवशिष्टों का वैज्ञानिक ढंग से दोहन कर अपने खेतों की उर्वकता को बढ़ा सकते हैं।
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम को किसी भी प्रकार के कृषि अवशिष्टों पर आसानी से उगाया जा सकता है, इसका फसल चक्र भी 45 से 60 दिन का होता है, एवं इसे आसानी से सुखाया जा सकता है। ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम में भी अन्य मशरूमों की तरह सभी प्रकार के विटामिन, लवण तथा औषधीय तत्व मौजूद होते हैं और इसको वर्षभर सर्दी या गर्मियों में सही प्रजाति का चुनाव कर उगाया जा सकता है।वर्तमान में हमारे देश में इसकी व्यावसायिक खेती हो रही है। इसके उत्पादन में वृद्धि की बहुत संभावनायें हैं।
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम का उत्पादन करने की विधि- इसको उत्पादन करने के लिए आपको उत्पादन कक्ष की जरूरत होती है, जो बाँस, कच्ची ईटों, पॉलीथीन तथा पुआल से बनाऐ जा सकते है। इन उत्पादन कक्षों में खिड़की और दरवाजों पर जाली लगी होनी चाहिए| ये किसी भी आकार के बनाये जा सकते हैं, इस बात का ध्यान रखा जाए कि हवा के उचित व्यवस्था के लिए दो बड़ी खिड़कियां और दरवाजे के सामने भी एक खिड़की होनी चाहिए।
उत्पादन तकनीक
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम उत्पादन करने के लिए हमें उत्पादन कक्ष की जरूरत होती है, जो बाँस, कच्ची ईंटों, पॉलीथीन और पुआल से बनाऐ जा सकते हैं। इन उत्पादन कक्षों में खिड़की तथा दरवाजों पर जाली लगी होनी चाहिए। ये किसी भी साईज के बनाये जा सकते हैं, जैसे- 18 फुट लम्बाई x 15 फुट चौड़ाई X 10 फुट उंचाई के कमरे में लगभग 300 बैग रखे जा सकते हैं। इस बात का ध्यान रखा जाए कि हवा के उचित व्यवस्था के लिए दो बड़ी खिड़की और दरवाजे के सामने भी एक खिड़की होनी चाहिए। उत्पादन कक्ष में नमी बनाये रखने के लिए एक एयर कूलर लगाया जा सके तो उत्तम होगा।
पौषाधार तैयार करना
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम का उत्पादन साधारणतः किसी भी प्रकार के उपरोक्त फसल के अवशिष्ट का प्रयोग कर किया जा सकता है। इसके लिए यह जरूरी है, कि भूसा या पुआल पुराना और सड़ा गला नहीं होना चाहिए। जिन पौधों के अवशिष्ट सख्त व लम्बे होते हैं, उन्हें मशीन द्वारा लगभग 2 से 3 सेंटीमीटर साईज का काट लिया जाता है। फसल अवशेषों में कई तरह के हानिकारक सूक्ष्मजीवी फंफूद, बेक्टीरिया और अन्य जीवाणु पाए जाते हैं। अतः सर्वप्रथम कृषि अवशेषों को जीवाणु रहित करना होता है, जिसके लिए निम्नलिखित किसी भी विधि द्वारा फसल के अवशेषों को उपचारित किया जा सकता है, जो इस प्रकार है, जैसे-
गर्म पानी उपचार- इस विधि में फसल के अवशेषों को छिद्रदार जूट के थेले या बोरे में भर कर रात भर गीला किया जाता है और अगले दिन इस पानी को 60 से 65 डिग्री सेल्सियस गर्म कर के लगभग 20 से 30 मिनट भूसे को डूबोकर उपचारित किया जाता है। उपचारित भूसे को ठंडा करने के बाद बीज मिलाया जाता है।
रासायनिक उपचार- इस विधि का प्रयोग बड़े सत्र पर खेती के लिए किया जाता है, फसल अवशेषों को एक विशेष प्रकार के फसल रसायन या दवाईयों से जीवाणु रहित किया जाता है। इस विधि में एक 200 लीटर टब में 90 लीटर पानी में लगभग 12 से 14 किलो सूखे भूसे को गीला कर लिया जाता है।
इसके बाद एक प्लास्टिक की बाल्टी में 10 लीटर पानी और 5 ग्राम बेवस्टीन एवं फार्मेलीन 125 मिलीलीटर का घोल बना कर भूसे वाले टब में उपर से डाल दिया जाता है और टब को पॉलीथीन शीट या ढक्कन से अच्छी तरह से बंद कर दिया जाता है। लगभग 12 से 14 घंटे बाद उपचारित भूसे को टब से बाहर किसी प्लास्टिक की शीट या किसी जाली पर डाल कर 2 से 4 घंटों के लिए छोड़ दिया जाता है। इससे अतिरिक्त पानी बाहर निकल जायेगा और फॉर्मलीन की गंध भी खत्म हो जायेगी।
पाश्चराइजेशन उपचार- यह विधि उन मशरूम उत्पादकों के लिए उपयुक्त है, जो बटन मशरूम की खाद पाश्चराइजेशन टनल में बनाते हैं। इस विधि में भूसे को गीला कर लगभग 4 फूट चौड़ी आयताकार ढेर बना दी जाती है। इसके लिए कम से कम 3 से 4 क्विंटल भूसे की आवश्यकता होती है। ढेरी को दो दिन के बाद अलग कर के फिर से नई ढेर बना दी जाती है। इस प्रकार से करीब चार दिन बाद भूसे का तापमान 55 से 65 डिग्री सेल्सियस हो जायेगा। अब भूसे का पाश्चराइजेशन टनल में भर दिया जाता है। टनल का तापमान ब्लोअर द्वारा एक समान करने के बाद उसमें बॉयलर से भाप देकर भूसे का तापमान 60 से 65 डिग्री सेल्सियस के बीच लगभग चार घंटे रखने के बाद जब भूसा ठंडा हो जाए तब बीज मिला दिया जाता है।
बीजाई करना
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम का बीज हमेशा ताजा प्रयोग करना चाहिए, जो 30 दिन से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए, भूसा तैयार करने से पहले ही बीज खरीद लेना चाहिए और एक क्विंटल सूखे भूसे के लिए 10 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। गर्मियों के मौसम में प्लूरोटस साजोर काजू, प्लूरोटस फ्लेबीलेटस, प्लूरोटस सेपीडस, प्लूरोटस जामोर या प्लूरोटस साईट्रीनोपीलीएटस को उगाना चाहिए। सर्दियों में जब वातावरण का तापमान 20 सेल्सियस से नीचे हो तब प्लूरोटस फलोरिडा, प्लूरोटस कोर्नुकोपीया का चुनाव करना उचित रहता है।
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की बीजाई करने से दो दिन पहले कमरे को 2 प्रतिशत फार्मेलीन से उपचारित कर लेना चाहिए। प्रति 4 किलो गीले भूसे में लगभग 100 ग्राम बीज अच्छी तरह से मिला कर पॉलीथीन की थैलियों में जो 40 से 45 सेंटीमीटर लम्बी x 30 से 35 सेंटीमीटर चौड़ी में भर देना चाहिए। पॉलीथीन को मोड़कर बंद कर देना चाहिए, या अखबार से भूसे को कवर कर देना चाहिए, जिससे भूसे की नमी बनी रहे। पॉलीथीन को अगर बंद करना है, तो उसमें करीब 5 मिलीमीटर के 10 से 12 छेद चारों तरफ और निचे में कर देना चाहिए जिससे बैग का तापमान 30 सेल्सियस से ज्यादा न बढ़े।
फसल प्रबंधन
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की बीजाई करने के पश्चात् थैलियों को एक उत्पादन कक्ष में बीज फैलने के लिए रख दिया जाता है। बैगों को हफ्ते में एक बार अवश्य देख लेना चाहिए कि बीज फैल रहा है या नहीं। अगर किसी बैग में हरा, काला व नीले रंग की फफूद और मोल्ड दिखाई दे, तो ऐसे बैगों को उत्पादन कक्ष से बाहर निकाल कर दूर फेंक देना चाहिए। बीज फैलते समय पानी, हवा व प्रकाश की जरूरत नहीं होती है।
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की खेती के बैग या कमरे का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने लगे तो कमरे की दीवारों और छत पर पानी का छिड़काव दो से तीन बार करे, इसके लिए एयर कूलर का प्रयोग भी कर सकते है। विशेष ध्यान रखना होगा कि बैगों पर पानी जमा न हो, लगभग 15 से 25 दिनों में मशरूम का कवक जाल सारे भूसे पर फैल जायेगा और बैग सफेद नजर आने लगेंगे।
इस स्थिति में पॉलीथीन को हटा लेना चाहिए। गर्मियों के दिनों में अप्रैल से जून में पॉलीथीन को पूरा नहीं हटाना चाहिए, क्योंकि बैगों में नमी की कमी हो सकती है। पॉलीथीन हटाने के बाद फलन के लिए कमरे में और बैगों पर दिन में दो से तीन बार पानी का छिड़काव करना चाहिए, कमरे में लगभग 6 से 8 घंटे तक प्रकाश देना चाहिए, जिसके लिए खिड़कियों पर शीशा लगा होना चाहिए या कमरों में लाईट की व्यवस्था होनी चाहिए।
उत्पादन कमरों में प्रतिदिन दो से तीन बार खिड़कियाँ खुली रखनी चाहिए या एग्जास्ट पंखों को चलाना चाहिए। जिससे कार्बन डाइआक्साईड की मात्रा 800 पीपीएम से अधिक न हो, ज्यादा कार्बन डाइआक्साईड होने से ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम का डंठल बड़ा हो जायेगा और छतरी छोटी रह जाती है। बैगों को खोलने के बाद लगभग एक सप्ताह में ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की छोटी-छोटी कलिकाएँ बनने लग जायेगी जो चार से पाँच दिनों में पूर्ण आकार ले लेती है।
कीड़े एवं रोग
बीज बढ़वार के समय भूसे पर लगने वाली खरपतवार फफूदेः ऑयस्टर मशरूम उत्पादन कक्ष का तापक्रम कम होता हैं और नमी अधिक होती हैं, जिससे कि कीड़े-मकोडे व अन्य फफूदो को पनपने के लिए भी अनुकूल वातावरण मिलता हैं। इसलिए उत्पादन कक्ष में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना अनिवार्य होता हैं।
बीज बढ़वार के समय कवकजाल फैलने की अवस्था में मुख्य खरपतवार फरँद जैसे ट्राइकोडरमा, एस्परजिलस, राइजोपस, म्युकर, स्केलेरोशियम रोल्फसाई और क्रोप्राइनस लगती हैं। ये खरपतवार ढींगरी (ऑयस्टर) के कवक जाल को बढ़ने से रोकती हैं। यदि कवकजाल पूर्ण रूप से नहीं फैलेगा तो अंकुरण कम होगा, जिससे उपज बहुत कम प्राप्त होगी।
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