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कमला (पद्मिनी) एकादशी व्रत कथा


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अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी कहते हैं। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिकमास में 2 एकादशियां होती हैं, जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। इस एकादशी के व्रत का विधान विष्णु जी ने सर्वप्रथम नारदजी से कहा था। यह विधान अनेक पापों को नष्ट करने वाला तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाला है।

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा -01
धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले- हे जनार्दन! अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।

श्री भगवान बोले हे राजन्- अधिक मास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

अधिक मास या मलमास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती है। ऐसा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा बताई थी।

भगवान कृष्‍ण बोले- मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है। जो मनुष्‍यों के लिए भी दुर्लभ है।

यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके काँसी के पात्र में जौं-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक न खावें। भूमि पर सोए और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दन्तधावन करें और जल के बारह कुल्ले करके शुद्ध हो जाए।

सूर्य उदय होने के पूर्व उत्तम तीर्थ में स्नान करने जाए। इसमें गोबर, मिट्‍टी, तिल तथा कुशा व आँवले के चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करें। श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करें।

हे म‍ुनिवर! पूर्वकाल में त्रेया युग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की एक हजार परम प्रिय स्त्रियाँ थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो उनके राज्य भार को संभाल सकें। देव‍ता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकि‍त्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए लेकिन सब असफल रहे। एक दिन राजा को वन में तपस्या के लिए जाते थे उनकी परम प्रिय रानी इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या राजा के साथ वन जाने को तैयार हो गई। दोनों ने अपने अंग के सब सुंदर वस्त्र और आभूषणों का त्याग कर वल्कल वस्त्र धारण कर गन्धमादन पर्वत पर गए।

राजा ने उस पर्वत पर दस हजार वर्ष तक तप किया परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- बारह मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है जो बत्तीस मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत करने से पुत्र देने वाले भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।

रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण कर‍ती। इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्‍णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तिवीर्य उत्पन्न हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।

सो हे नारद ! जिन मनुष्यों ने मलमास शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत किया है, जो संपूर्ण कथा को पढ़ते या सुनते हैं, वे भी यश के भागी होकर विष्‍णु लोक को प्राप्त होते है।

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा -02
यह सुंदर कथा महर्षि पुलस्त्य ने नारदजी से कही थी- एक बार कार्तवीर्य ने रावण को अपने बंदीगृह में बंद कर लिया। उसे महर्षि पुलस्त्य ने कार्तवीर्य से विनय करके छुड़ाया। इस घटना को सुनकर नारदजी ने महर्षि पुलस्त्य से पूछा- ‘हे महर्षि! इस मायावी रावण को, जिसने सभी देवताओं सहित इंद्र को जीत लिया था, कार्तवीर्य ने उसे किस प्रकार जीता? कृपा कर मुझे विस्तारपूर्वक बताए।’

महर्षि पुलस्त्य ने कहा- ‘हे नारद! आप पहले कार्तवीर्य की उत्पत्ति की कथा सुनो- त्रेतायुग में महिष्मती नामक नगरी में कृतवीर्य नाम का एक राजा राज्य करता था। उस राजा की सौ स्त्रियां थीं, उनमें से किसी के भी राज्य का भार संभालने वाला योग्य पुत्र नहीं था। तब राजा ने सम्मानपूर्वक ब्राह्मणों को बुलाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराए, किंतु सब व्यर्थ रहे। जिस प्रकार दुखी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार राजा को भी अपना राज्य पुत्र बिना दुखमय प्रतीत होता था। अंत में वह तप के द्वारा ही सिद्धियों को प्राप्त जानकर तपस्या करने के लिए वन को चला गया। उसकी स्त्री (राजा हरिश्चंद्र की पुत्री प्रमदा) वस्त्रालंकारो को त्यागकर अपने पति के साथ गंधमादन पर्वत पर चली गई। उस स्थान पर इन लोगों ने दस हजार वर्ष तक तप किया, किंतु सिद्धि प्राप्त न हो सकी। राजा की देह मात्र हड्डियों का ढांचा मात्र ही रह गई। यह देख प्रमदा ने श्रद्धापूर्वक महासती अनसूया से पूछा- ‘मेरे स्वामी को तप करते हुए दस हजार वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु अभी तक प्रभु प्रसन्न नहीं हुए हैं, जिससे मुझे पुत्र प्राप्त हो। इसका क्या कारण है?’

प्रमदा की बात सुनकर देवी अनसूया ने कहा- ‘अधिक (लौंद) मास जो कि छत्तीस माह बाद आता है, उसमें दो एकादशी होती हैं। इसमें शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पद्मिनी और कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम परम है। इनके जागरण और व्रत करने से ईश्वर तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे।’

तत्पश्चात देवी अनसूया ने व्रत का विधान बताया। रानी प्रमदा ने देवी अनसूया की बतलाई विधि के अनुसार एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया। इससे भगवान विष्णु उस पर बहुत प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। रानी प्रमदा ने कहा- ‘प्रभु आप यह वरदान मेरे पति को दीजिए।’

रानी प्रमदा का वचन सुन भगवान विष्णु ने कहा- ‘हे रानी प्रमदा! मल मास (लौंद) बहुत प्रिय है। उसमें भी एकादशी तिथि मुझे सबसे अधिक प्रिय है। इस एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण तुमने विधानपूर्वक किया, इसलिए मैं तुम पर अति प्रसन्न हूं।’ इतना कहकर भगवान विष्णु ने राजा से कहा- ‘हे राजन! तुम अपना इच्छित वर मांगो, क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझे प्रसन्न किया है।’

भगवान की अमृत वाणी सुन राजा ने कहा- ‘हे प्रभु! आप मुझे सबसे उत्तम, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव, असुर, मनुष्य आदि से अजेय पुत्र दीजिए।’

राजा को इच्छित वर देकर प्रभु अंतर्धान हो गए। तदुपरांत दोनों अपने राज्य को वापस आ गए। इन्हीं के यहां समय आने पर कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे। यह भगवान श्रीहरि के अतिरिक्त सबसे अजेय थे। कार्तवीर्य ने रावण को जीत लिया था। यह सब पद्मिनी एकादशी के व्रत का प्रभाव था।

पद्मिनी एकादशी व्रत विधि
दशमी वाले दिन व्रत को प्रारंभ करना चाहिए। इस दिन कांसे के पात्र का किसी भी रूप में प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा मांस, मसूर, चना, कोदों, शहद, शाक और पराया अन्न इन सब खाद्यों का त्याग कर देना चाहिए। इस दिन हविष्य भोजन करना चाहिए और नमक नहीं खाना चाहिए। दशमी की रात्रि को भूमि पर शयन करना चाहिए और ब्रह्मचर्यपूर्वक रहना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः नित्य क्रिया से निवृत्त होकर दातुन करनी चाहिए और बारह बार कुल्ला करके पुण्य क्षेत्र में जाकर स्नान करना चाहिए। उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश, आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। स्नान करने से पहले शरीर पर मिट्टी लगाते हुए उसी से प्रार्थना करनी चाहिए- ‘हे मृत्तिके! मैं तुमको प्रणाम करता हूं। तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो। सभी ओषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करने वाली, तुम मुझे शुद्ध करो। ब्रह्मा के थूक से पैदा होने वाली! तुम मेरे शरीर को स्पर्श कर मुझे पवित्र करो। हे शंख-चक्र गदाधारी देवों के देव! पुंडरीकाक्ष! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिए।’

इसके बाद वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के उपरांत स्वच्छ और सुंदर वस्त्र धारण करके तथा संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर प्रभु का पूजन करना चाहिए। स्वर्ण की राधा सहित कृष्ण भगवान की मूर्ति और पार्वती सहित महादेवजी की मूर्ति बनाकर पूजन करें। धान्य के ऊपर मिट्टी या तांबे का कुंभ रखना चाहिए। इस कुंभ को वस्त्र तथा गंध आदि से अलंकृत करके, उसके मुंह पर तांबे, चांदी या सोने का पात्र रखना चाहिए। इस पात्र पर भगवान श्रीहरि की मूर्ति रखकर धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, केसर आदि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके बाद भगवान के सम्मुख नृत्य व गायन आदि करना चाहिए। उस दिन पतित तथा रजस्वला स्त्री को स्पर्श नहीं करना चाहिए। भक्तजनों के साथ प्रभु के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए। अधिक (लौंद) मास की शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी का व्रत निर्जल रहकर करना चाहिए। यदि मनुष्य में निराहार रहने की शक्ति न हो तो उसे जलपान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए। रात्रि में जागरण करके नृत्य तथा गायन करके प्रभु का स्मरण करते रहना चाहिए। प्रति पहर मनुष्य को भगवान श्रीहरि या शंकरजी का पूजन करना चाहिए। पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे पहर में बिल्वफल, व तीसरे पहर में सीताफल और चौथे पहर में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए। इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेध यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है। एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को सभी तीर्थों और यज्ञों का फल प्राप्त हो जाता है।

इस प्रकार से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। सभी पदार्थ भगवान की मूर्ति सहित ब्राह्मणों को देने चाहिए। इस तरह जो मनुष्य विधानपूर्वक प्रभु का पूजन तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल हो जाता है और वे इहलोक में अनेक सुखों को भोगकर अंत में विष्णुलोक को जाते हैं ।

पद्मिनी एकादशी के उपाय
1. पद्मिनी एकादशी पर दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर उससे भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
2. पद्मिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को खीर, पीले फल या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।

3. अगर आप धन लाभ चाहते हैं तो पद्मिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें।
4. पद्मिनी एकादशी की शाम तुलसी के पौधे के सामने गाय के शुद्ध घी का दीपक लगाएं और तुलसी के पौधे को प्रणाम करें।

5. पद्मिनी एकादशी पर गाय के कच्चे दूध (बिना उबला) दूध में केसर मिलाकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
6. पीपल में भगवान विष्णु का वास माना गया है। इसलिए पद्मिनी एकादशी पर पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं।

7. पद्मिनी एकादशी के दिन विष्णु भगवान के मंदिर में जाकर अन्न (गेहूं, चावल आदि) का दान करें। बाद में इसे गरीबों में बांट दें।
8. भगवान विष्णु को पीतांबरधारी कहते हैं, इसलिए पद्मिनी एकादशी पर उन्हें पीले वस्त्र अर्पित करना चाहिए।

9. पद्मिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को तुलसी की माला अर्पित करें। इससे भी भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।
10. पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को कमल का फूल या अन्य कोई पीले रंग का फूल चढ़ाना शुभ रहता है।

11. पद्मिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को हरश्रंगार का इत्र अर्पित करें। इससे भी आपकी हर कामना पूरी हो सकती है।

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