गोण्डा लाइव न्यूज एक प्रोफेशनल वेब मीडिया है। जो समाज में घटित किसी भी घटना-दुघर्टना "✿" समसामायिक घटना"✿" राजनैतिक घटनाक्रम "✿" भ्रष्ट्राचार "✿" सामाजिक समस्या "✿" खोजी खबरे "✿" संपादकीय "✿" ब्लाग "✿" सामाजिक "✿" हास्य "✿" व्यंग "✿" लेख "✿" खेल "✿" मनोरंजन "✿" स्वास्थ्य "✿" शिक्षा एंव किसान जागरूकता सम्बन्धित लेख आदि से सम्बन्धित खबरे ही निःशुल्क प्रकाशित करती है। एवं राजनैतिक , समाजसेवी , निजी खबरे आदि जैसी खबरो का एक निश्चित शुल्क भुगतान के उपरान्त ही खबरो का प्रकाशन किया जाता है। पोर्टल हिंदी क्षेत्र के साथ-साथ विदेशों में हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है और भारत में उत्तर प्रदेश गोण्डा जनपद में स्थित है। पोर्टल का फोकस राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को उठाना है और आम लोगों की आवाज बनना है जो अपने अधिकारों से वंचित हैं। यदि आप अपना नाम पत्रकारिता के क्षेत्र में देश-दुनिया में विश्व स्तर पर ख्याति स्थापित करना चाहते है। अपने अन्दर की छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर एक नई पहचान देना चाहते है। तो ऐसे में आप आज से ही नही बल्कि अभी से ही बनिये गोण्डा लाइव न्यूज के एक सशक्त सहयोगी। अपने आस-पास घटित होने वाले किसी भी प्रकार की घटनाक्रम पर रखे पैनी नजर। और उसे झट लिख भेजिए गोण्डा लाइव न्यूज के Email-gondalivenews@gmail.com पर या दूरभाष-8303799009 -पर सम्पर्क करें।

राव हलायुध ने मृत संजीवनी नामक ग्रंथ रचना की

 
halaayudh

राव हलायुध या भट हलायुध (समय लगभग १० वीं० शताब्दी ई०) भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद्, गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे। उन्होने मृतसंजीवनी नामक ग्रन्थ की रचना की जो पिंगल के छन्दशास्त्र का भाष्य है। इसमें पास्कल त्रिभुज (मेरु प्रस्तार) का स्पष्ट वर्णन मिलता है।

परे पूर्णमिति। उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्। तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः। तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्यां व्यवस्थाप्य लक्षणमिदं प्रवर्तयेत्। तत्र परे कोष्ठे यत् वृत्तसंख्याजातं तत् पूर्वकोष्ठयोः पूर्णं निवेशयेत्।
हलायुध द्वारा रचित कोश का नाम अभिधानरत्नमाला है, पर यह हलायुधकोश नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इसके पाँच कांड (स्वर, भूमि, पाताल, सामान्य और अनेकार्थ) हैं। प्रथम चार पर्यायवाची कांड हैं, पंचम में अनेकार्थक तथा अव्यय शब्द संगृहीत है। इसमें पूर्वकोशकारों के रूप में अमरदत्त, वरुरुचि, भागुरि और वोपालित के नाम उद्धृत है। रूपभेद से लिंग-बोधन की प्रक्रिया अपनाई गई है। ९०० श्लोकों के इस ग्रंथ पर अमरकोश का पर्याप्त प्रभाव जान पड़ता है।

कविरहस्य भी इनका रचित है जिसमें 'हलायुध' ने धातुओं के लट्लकार के भिन्न भिन्न रूपों का विशदीकरण भी किया है। और पढ़े विकिपीडिया पर 

छन्दशास्त्र

छन्दःसूत्रम् पिंगल राव द्वारा रचित छन्द का मूल ग्रन्थ है और इस समय तक उपलब्ध है। यह सूत्रशैली में है और बिना भाष्य के अत्यन्त कठिन है। इसपर टीकाएँ तथा व्याख्याएँ हो चुकी हैं। यही छन्दशास्त्र का सर्वप्रथम ग्रन्थ माना जाता है। इसके पश्चात् इस शास्त्र पर संस्कृत साहित्य में अनेक ग्रन्थों की रचना हुई।

दसवीं शती में हलायुध ने इस पर 'मृतसञ्जीवनी' नामक भाष्य की रचना की। इस ग्रन्थ में पास्कल त्रिभुज का स्पष्ट वर्णन है। इस ग्रन्थ में इसे 'मेरु-प्रस्तार' कहा गया है। इसमें आठ अध्याय हैं। और पढ़े विकिपीडिया पर 

अन्य टीकाएं-

  • लक्ष्मीनाथसुतचन्द्रशेखर -- पिङ्गलभावोद्यात
  • चित्रसेन -- पिङ्गलटीका
  • रविकर -- पिङ्गलसारविकासिनी
  • राजेन्द्र दशावधान -- पिङ्गलतत्वप्रकाशिका
  • लक्ष्मीनाथ -- पिङ्गलप्रदीप
  • वंशीधर -- पिङ्गलप्रकाश
  • वामनाचार्य -- पिङ्गलप्रकाश

छन्दशास्त्र में गणित

पिङ्गल ने छन्दसूत्र में विविध छन्दों का वर्णन किया है। छन्दों का आधार लघु और गुरु का विशिष्ट अनुक्रम तथा उनकी कुल संख्या (मात्रा) है। इसलिए किसी श्लोक में लघु और गुरु के अनुक्रम का वर्णन और उसका विश्लेषण पिंगल के छन्दसूत्र का मुख्य प्रतिपाद्य है। उन्होने विभिन्न अनुक्रमों का वर्णन किया है और उनका नामकरण किया है। छन्दसूत्र के अन्त में पिङ्गल ने कई नियम दे हैं जिनकी सहायता से 'n' मात्रा वाले श्लोक के सभी सम्भव लघु-गुरु अनुक्रमों को लिखा जा सकता है। इसी तरह के कई नियम (विधियाँ) दी गयी हैं। दूसरे शब्दों में, पिङ्गल ने छन्द्रशास्त्र के सांयोजिकी की गणितीय समस्या (combinatorial mathematics) का हल दिया है।

बाद में, लगभग ८वीं शताब्दी में, केदार भट्ट ने वृत्तरत्नाकर नामक एक छन्दशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की जो अवैदिक छन्दों से सम्बन्धित था। यह ग्रन्थ पिंगल के छन्दसूत्र का भाष्य नहीं है बल्कि एक स्वतन्त्र रचना है। इस ग्रन्थ के अन्तिम अध्याय (६ठे अध्याय) में सांयोजिकी से सम्बन्धित नियम दिए गये हैं जो पिङ्गल के तरीके से बिल्कुल अलग हैं। १३वीं शताब्दी में हलायुध ने पिङ्गल के छन्दसूत्र पर 'मृतसञ्जीवनी' नामक टीका लिखी जिसमें उन्होने पिंगल की विधियों को और विस्तार से वर्णन किया।

पिंगल के छन्दशास्त्र में ८ अध्याय हैं। यह सूत्र-शैली में लिखा गया है। ८वें अध्याय में ३५ सूत्र हैं। जिसमें से अन्तिम १६ सूत्र (८.२० से ८.३५ तक) संयोजिकी से सम्बन्धित हैं। केदारभट्ट द्वारा रचित वृत्तरत्नाकर में ६ अध्यaय हैं जिसका ६ठा अध्याय पूरी तरह से संयोजिकी के कलनविधियों को समर्पित है।

प्रस्तार के लिए पिङ्गल के सूतर
द्विकौ ग्लौ 8.20
  • शब्दार्थ- एक अक्षर वाले छन्द के ग् - गुरु, ल् - लघु, द्विको - दो प्रकार के भेद होते हैं ॥
मिश्रौ च 8.21
  • शब्दार्थ- दो अक्षरात्मक पाद वाले छन्द का प्रस्तार करने पर द्विकौ अर्थात् दो बार आवृत्त, ग्लौ- गुरु और लघु अक्षर, मिश्रौ च- मिश्रित रूप से रखे जाते हैं । अर्थात् गुरु के साथ गुरु (ऽऽ), लघु के साथ गुरु (।ऽ), गुरु के साथ लघु (ऽ।) और लघु के साथ लघु ( । ।) । इस प्रकार दो अक्षर वाले छन्द के 4 भेद हो जाते हैं ।
पृथग् ग्लोऽमिश्राः 8.22
  • शब्दार्थ- पृथक्- तीन अक्षरात्मक छन्द के प्रस्तार में तृतीय पंक्ति को पृथक् रखें । ग्लः द्विधाः- गुरु-लघु अक्षरों को पूर्व पंक्ति की अपेक्षा दुगुना करें, अमिश्राः- और उन्हें मिश्रित न करते हुए रखें । अर्थात् द्वितीय पंक्ति में 2 गुरु, 2 लघु का क्रम चला है, उसको तृतीय पंक्ति में दुगुना करके 4 गुरु, 4 लघु का क्रम चलावें। यह ध्यान रखें कि प्रथम पंक्ति में 1 गुरु, 1 लघु का क्रम है। द्वितीय पंक्ति में 2 गुरु, 2 लघु का क्रम है। तृतीय पंक्ति में दुगुना करने से 4 गुरु, 4 लघु का क्रम चलेगा ।
वसवस्त्रिकाः 8.23
शब्दार्थ- त्रिकोः - तीन अक्षरात्मक छन्द के प्रस्तार में, वसवः - वसु अर्थात् 8 भेद होते हैं। उनके ही नाम मगण आदि हैं।

प्रस्तार के लिए केदारभट्ट के सूतर
पादे सर्वगुरावाद्याल्लघुं न्यस्य गुरोरधः ।
यथोपरि तथा शेषं भूयः कुर्यादमुं विधिम् ॥ ६.२ ॥
ऊने दद्याद् गुरूनेव यावत्सर्वलघुर्भवेत् ।
प्रस्तारोऽयं समाख्यातश्छन्दोविचितिवेदिभिः ॥ ६.३ ॥

अर्थ: शुरुआत में सभी गुरु (जी) (पाडे सर्वगुरु) हैं। दूसरी पंक्ति में, पिछली पंक्ति के पहले G के नीचे एक लघु (L) रखें (आद्यत लघु नस्य गुरुः अधाः)। उपरोक्त पंक्ति के अनुसार शेष दाएं बिट्स को कॉपी करें (यथा उपरी तथा शेषम)। 1 जी बिट (ūne ददयात गुरुन इवा) के बाईं ओर (यदि कोई हो) सभी शेष स्थानों पर Gs रखें। इसे तब तक दोहराएं जब तक कि वे सभी छोटे न हो जाएं (यवत सर्वे लघुः भवते)। इस प्रक्रिया को 'प्रस्तर' के रूप में जाना जाता है।


No comments:

Post a Comment

कमेन्ट पालिसी
नोट-अपने वास्तविक नाम व सम्बन्धित आर्टिकल से रिलेटेड कमेन्ट ही करे। नाइस,थैक्स,अवेसम जैसे शार्ट कमेन्ट का प्रयोग न करे। कमेन्ट सेक्शन में किसी भी प्रकार का लिंक डालने की कोशिश ना करे। कमेन्ट बॉक्स में किसी भी प्रकार के अभद्र भाषा का प्रयोग न करे । यदि आप कमेन्ट पालिसी के नियमो का प्रयोग नही करेगें तो ऐसे में आपका कमेन्ट स्पैम समझ कर डिलेट कर दिया जायेगा।

अस्वीकरण ( Disclaimer )
गोण्डा न्यूज लाइव एक हिंदी समुदाय है जहाँ आप ऑनलाइन समाचार, विभिन्न लेख, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, हिन्दी साहित्य, सामान्य ज्ञान, ज्ञान विज्ञानं, अविष्कार , धर्म, फिटनेस, नारी ब्यूटी , नारी सेहत ,स्वास्थ्य ,शिक्षा ,18 + ,कृषि ,व्यापार, ब्लॉगटिप्स, सोशल टिप्स, योग, आयुर्वेद, अमर बलिदानी , फूड रेसिपी , वाद्ययंत्र-संगीत आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी केवल पाठकगणो की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दिया गया है। ऐसे में हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप किसी भी सलाह,उपाय , उपयोग , को आजमाने से पहले एक बार अपने विषय विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे। विभिन्न विषयो से सम्बन्धित ब्लाग/वेबसाइट का एक मात्र उद्देश आपको आपके स्वास्थ्य सहित विभिन्न विषयो के प्रति जागरूक करना और विभिन्न विषयो से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना है। आपके विषय विशेषज्ञ को आपके सेहत व् ज्ञान के बारे में बेहतर जानकारी होती है और उनके सलाह का कोई अन्य विकल्प नही। गोण्डा लाइव न्यूज़ किसी भी त्रुटि, चूक या मिथ्या निरूपण के लिए जिम्मेदार नहीं है। आपके द्वारा इस साइट का उपयोग यह दर्शाता है कि आप उपयोग की शर्तों से बंधे होने के लिए सहमत हैं।

”go"