नवजात शिशु को हिचकी आना सामान्य बात होती हैं आमतौर पर हम सभी को समय समय पर हिचकी का अनुभव होता है, लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं हिचकी आनी कम हो जाती है। नवजात शिशु को सबसे ज्यादा हिचकी आती है, यहां तक कि छह हफ्ते की प्रेगनेंसी के बाद ही भ्रूण को हिचकी आने लगती है। लेकिन इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं होती है। यह हिचकी एक मिनट से लेकर एक घंटे तक रह सकती है लेकिन बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है।
वास्तव में नवजात शिशु को हिचकी आना बहुत सामान्य होता है और कुछ शिशु तो हिचकी का आनंद भी लेते हैं लेकिन अगर लंबे समय तक हिचकी आये तो यह किसी अन्य समस्या का कारण हो सकता है। इस लेख में हम आपको नवजात शिशु को हिचकी आने के कारण और घरेलू इलाज और बचाव के बारे में बताने जा रहे हैं।
नवजात शिशु को हिचकी आने के कारण –
आमतौर पर नवजात शिशु को हिचकी आने के कई कारण होते हैं। माना जाता है कि नवजात शिशु को पहली बार हिचकी तब भी आ सकती है जब वह मां के गर्भ में होता है। वास्तव में बच्चे को दूसरी तिमाही में भी हिचकी आ सकती है क्योंकि वह अम्नियोटिक तरल पदार्थ को निगल जाता है। आइये जानते हैं नवजात शिशु को हिचकी आने के मुख्य कारणों के बारे में।
नवजात शिशु को हिचकी आने का कारण अधिक मात्रा में दूध पीने के कारण
बॉटल या मां का दूध अधिक मात्रा में पीने के कारण बच्चे का पेट फूल जाता है जिसके कारण पेट की गुहा (abdominal cavity) डायफ्राम को अधिक खींच देती है जिसके कारण बच्चे को ऐंठन महसूस होती है और उसे हिचकी आने लगती है।
नवजात शिशु को हिचकी आने का कारण अधिक हवा निगलने के कारण
बॉटल से दूध पीते समय बच्चा दूध के साथ अधिक मात्रा में हवा भी निगलता है क्योंकि स्तन की अपेक्षा वह बॉटल से तेजी से दूध खींचता है। दूध के साथ बच्चे के पेट में हवा जाने के कारण बच्चे के पेट में सूजन हो जाती है जिसके कारण उसे हिचकी आने लगती है।
एलर्जिक रिएक्शन के कारण नवजात शिशु को हिचकी आना
फॉर्मूला मिल्क में पाये जाने वाले कुछ प्रोटीन एलर्जिक रिएक्शन पैदा करते हैं जिसके कारण बच्चे के भोजन की नली (esophagus) में सूजन हो जाती है, इसे इओसिनोफिलिक इसोफैजिटिस (Eosinophilic Esophagitis) कहा जाता है। एलर्जी के कारण बच्चे का डायफ्राम बहुत तेजी से स्पंदन करता है जिसके कारण उसे हिचकी आने लगती है।
नवजात शिशु को अस्थमा होने के कारण हिचकी आना
बच्चे को अस्थमा होने पर उसके फेफड़ों के ब्रोंकियल ट्यूब (bronchial tubes) में सूजन आ जाती है जिसके कारण फेफड़ो में वायु का प्रवाह रूक जाता है। इसके परिणामस्वरूप बच्चा सही ढंग से सांस नहीं ले पाता है और उसका गला घरघराने लगता है और उसे हिचकी आनी शुरू हो जाती है।
नवजात शिशु को हिचकी आने का कारण प्रदूषकों के कारण
नवजात शिशु की श्वसन प्रणाली (respiratory system) बहुत संवेदनशील होती है और धुंआ, प्रदूषण या तीक्ष्ण गंध के कारण बच्चे के श्वसन तंत्र में कफ जम जाता है। बच्चे को बार बार खांसी आने के कारण डायफ्राम पर दबाव पड़ता है और घरघराहट की आवाज आने लगती है जिसके कारण बच्चे को हिचकी आनी शुरू हो जाती है।
तापमान गिरने के कारण नवजात शिशु को हिचकी आना
कभी कभी तापमान गिरने के कारण नवजात शिशु की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं जिसके कारण डायफ्राम भी सिकुडने लगता है और इसके परिणामस्वरूप बच्चे को हिचकी आने लगती है।
गैस्ट्रोएसोफैजिएल रिफ्लक्स के कारण नवजात शिशु को हिचकी आना
गैस्ट्रोएसोफैजिएल रिफ्लक्स एक ऐसी अवस्था है जिसमें पेट का भोजन, भोजन नली में जाता है। नवजात शिशु को रिफ्लक्स इसलिए होता है क्योंकि उनका निचला एसोफैजन स्फिन्क्टर (oesophageal sphincter) अविकसित होता है जो एसोफैगस और पेट के बीच में स्थित होता है और यह भोजन को ऊपर जाने से रोकता है जिसके कारण डायफ्राम में घरघराहट शुरू हो जाती है और बच्चे को हिचकी आने लगती है।
नवजात शिशु को हिचकी आने के घरेलू उपाय –
चूंकि नवजात बच्चों को हिचकी आना कोई बड़ी समस्या नहीं मानी जाती है इसलिए घर पर ही बेहद आसान तरीकों से हिचकी का इलाज किया जा सकता है। आइये जानते हैं शिशु को हिचकी आने पर क्या घरेलू उपाय करना चाहिए।
नवजात शिशु को हिचकी आने पर शुगर चटाएं –
यह हमेशा से हिचकी के लिए एक पुराना उपाय रहा है। यदि आपका बच्चा कुछ ठोस खा सकता है तो हिचकी आने पर उसकी जीभ पर चीनी के कुछ दाने रखें। लेकिन यदि बच्चा ठोस (solid) नहीं खा सकता है तो घर पर ही चीनी घोलकर एक गाढ़ा द्रव बनाएं और बच्चे को उंगली से चटाएं। लेकिन यह ध्यान रखें कि आपकी उंगली बिल्कुल साफ होनी चाहिए। शुगर बच्चे के डायफ्राम में खिंचाव को कम करता है और हिचकी आनी बंद हो जाती है।
बच्चे की पीठ पर मसाज करने से तुरंत बंद हो जाएगी हिचकी –
यह हिचकी से निपटने का एक सीधा तरीका है। बच्चे को अपने कंधे पर एकदम सीधे लिटाएं और बच्चे की पीठ पर सर्कुलर मोशन में मसाज करें। इसके बाद बच्चे को बिस्तर पर लेटाकर उसके पेट पर भी इसी तरह से मसाज करें। बच्चे के पेट पर हल्के हाथों से मसाज करें और अधिक दबाव न दें। मसाज करने से डायफ्राम का तनाव कम होता है और हिचकी रूक जाती है।
हिचकी बंद करने के लिए बच्चे को ग्रिप वाटर पिलाएं –
बच्चे में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं के कारण भी उन्हें हिचकी आती है इसलिए हिचकी रोकने के लिए बच्चे को ग्रिप वाटर (gripe water) पिलाना चाहिए। गैस्ट्रिक जैसी समस्याओं का इलाज करने के लिए ग्रिप वाटर बहुत लोकप्रिय है और इसे पीने के बाद हिचकी रूक जाती है। ग्रिप वाटर को आप पीने के पानी के साथ मिलाकर बच्चे को पिला सकती हैं। चूंकि ग्रिप वाटर में कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जिसे नवजात शिशु को हजम करने में दिक्कत हो सकती है इसलिए डॉक्टर से सलाह लेकर ही ग्रिप वाटर पिलाएं।
दूध पिलाने के बाद बच्चे को सीधा रखें, नहीं आएगी हिचकी –
जब भी बच्चे को दूध पिलाएं, दूध पिलाने के बाद उसे 15 मिनट तक लंबवत पोजीशन में या बिल्कुल सीधे रखें। नवजात शिशु को दूध पिलाने के बाद सीधा रखने से उसका डायफ्राम नैचुरल पोजीशन में रहता है और मांसपेशियों में घरघराहट पैदा नहीं होता जिसके कारण शिशु को हिचकी भी नहीं आती है।
नवजात शिशु की हिचकी रोकने के लिए उसका ध्यान भटकाएं –
नवजात शिशु की हिचकी रोकने का एक बेहतर तरीका यह है कि जब भी उसे हिचकी शुरू हो तो आप शिशु को ध्यान इधर उधर भटकाएं। जैसे आप इसे किसी खिलौने या कोई ऐसी चीज जिसे वह पहचान पाता है और देखने के बाद पकड़ने की कोशिश करता है, उसके सामने वह चीज लाएं। यह मांसपेशियों में अकड़न के कारण आती है जो तंत्रिका आवेगों (nerve impulses) को सक्रिय करती है। बच्चा जब अपने पसंदीदा खिलौनों को छूता है तब उसके तंत्रिका उत्तेजना में परिवर्तन होता है जिसके कारण उसकी हिचकी बंद हो जाती है।
नवजात शिशु को हिचकी से कैसे बचाएं –
- नवजात शिशु को लंबे समय तक कम मात्रा में कई बार दूध पिलाएं। इससे उसे हिचकी नहीं आएगी।
- बच्चे को बॉटल या स्तन से दूध पिलाते समय उसे लंबवत पोजीशन या 35 से 45 डिग्री के कोण पर रखें, शिशु को हिचकी नहीं आएगी।
- अगर बच्चा बैठ नहीं पाता है तो उसके पीठ के पीछे तकिया लगाकर उसे बैठाएं या उसके पीछे खुद बैठें और इसके बाद उसे बॉटल से दूध पिलाएं। इससे हवा बच्चे के मुंह में नहीं जाएगी और हिचकी नहीं आएगी।
- जब बच्चे को डकार आ जाए तो दूध पिलाना बंद कर दें।
- बच्चे को दूध पिलाते समय उसके गले से आने वाली आवाज को सुनें। अधिक हवा निगलने के बाद उसके गले से घरघराहट की आवाज सुनायी देती है तो दूध पिलाना बंद कर दें।
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