लाल मूली का छिलका लाल रंग का होता है। यह मुलायम व खाने में बिलकुल तीखी नही होती हैं। यह कुरकुरा होता होता। लाल मूली बहुत स्वादिष्ट होती है। लाल मूली की वैज्ञानिक खेती कर लोग लाखों रुपए का मुनाफ़ा कमा रहे हैं। लाल मूली का क्रेज़ सब्ज़ी बाज़ार में बहुत है। लाल मूली के लोकप्रियता का आलम यह है कि ये आम सब्ज़ी की दुकानों में नही मिलती है। बड़े बड़े फ़ाइव स्टार होटलों में ही इसके दर्शन होते हैं। जैसे कि बिग बास्केट में यह मिलती है।
लाल मूली के औषधीय गुण –
लाल मूली ये आपके थाली की शोभा ही नही बढ़ाती है। लाल मूली आपको सेहतमंद भी रखती है। लाल मूली आपको हार्ट अटैक, डायबिटीज जैसे कई रोगों से बचाती है। लाल मूली में पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं । लाल मूली में एंटीआक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। जो हाइपरटेंशन, मधुमेह व कैंसर से रक्षा करता है।मूली में लाल रंग पेलागोर्निडीन एंथ्रासायनिन के कारण होती है। यह आँखों की रोशनी को बढ़ाता है। साथ ही तनाव को दूर करता है।पेलागोर्निडीन एंथ्रासायनिन का द्रव्य गुण ही ऐसा है कि ये किसी भी वस्तु को लाल कर देता है। ये उत्तम पाचक होता है।
मूली की दो प्रजातियाँ हैं जिनकी खेती की जाती है। एक है सफ़ेद मूली जिसको हम भलीभाँति जानते हैं पूरे भारत में इसकी खेती की जाती है। इसका उपयोग कच्ची सब्ज़ी व सलाद के रूप में किया जाता है। इसके अलावा मूली की दूसरी प्रजाति है लाल मूली। यह मूली स्वादिष्ट, मुलायम, पाचक व आवश्यक पोषक तत्वों के भरपूर होती है। लाल मूली हाइपर टेंशन,डायबिटीज, व कैंसर जैसी बीमारियों को दूर करती है। यह आँखों की रोशनी बढ़ाती है। साथ ही तनाव को कम करती है। लाल मूली पाँच सितारा होटलों के सलाद के रूप में उपयोग की जाती है। यह मूली सफ़ेद मूली के मुक़ाबले बहुत महँगी बिकती है।
लाल मूली की खेती भारत में कहाँ की जाती है –
लाल मूली का क्रेज़ का भारत में अभी हाल ही में आया है। लाल मूली की खेती पश्चिमी देशों में लाफ़ी अरसे से की जा रही है। हमारे देश में राजस्थान, मध्य प्रदेश,उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, आदि राज्यों में लाल मूली की खेती की जाती है।
लाल मूली की उन्नत खेती कैसे करें –
खेती किसानी में आज हम लाल मूली की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। ताकि आप सभी किसान भाई मूली की खेती कर अधिक से अधिक लाभ पा सकें। एक सीज़न में मूली की खेती से आप लाखों रुपए घर बैठे कमा सकते हैं। सरकारी नौकरी के चक्कर में बहुत से नौजवान साथी अपना समय फ़ालतू के कामों में गँवा रहे होंगे । लाल मूली की खेती को वो एक रोज़गार के अवसर के रूप में देखें। इसकी खेती कर सिर्फ़ एक सीज़न में वह मालामाल जो जाएँगे।
जलवायु व तापमान
साथियों मूली का पौधा शरद ऋतु का पौधा है। इसे ठंडी जलवायु पसंद है। इसका विकास व बढ़वार ठंडी जलवायु में अच्छा होता है। लाल मूली की खेती करें या सफ़ेद मूली की खेती दोनो प्रकार की मूली की खेती में न्यूनतम तापमान – 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट व अधिकतम 25 से 32 सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त रहता है ।
लाल मूली की खेती के लिए भूमि का चयन –
किसी भी फ़सल की पैदावार के लिए उत्तम भूमि का चुनाव महत्वपूर्ण होता है। काफ़ी हद भूमि ही पैदावार के लिए सीधे तौर पर उत्तरदायी होती है। लाल मूली की खेती हेतु जीवांशयुक्त अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा दोमट भूमि, चिकनी मिट्टी व काली मिट्टी में लाल मूली की अच्छी पैदावर ली गयी है। लाल मूली के लिए भूमि का पीएच मान – 6.5-7.5 के बीच अच्छा माना जाता है।
खेत की तैयारी-
जिस खेत में लाल मूली की खेती करनी हो उस खेत में 8 से 10 टन गोबर की खाद कंपोस्ट खाद बराबर मात्रा में पूरे खेत में बिखेर दें। इसके बाद ट्रैक्टर कल्टीवेटर से या फिर देशी हल से जैसी आपके पास सुविधा हो 4 से 5 जुताइयाँ करें। जुताई के लिए आप रोटा वेटर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। हर जुताई के बाद पाटा ज़रूर करें। पाटा करने से खेत के ढेले फूट जाते हैं और खेत समतल हो जाता है। साथ में मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। जिससे मूली सुडौल व लम्बी होती है।
लाल मूली उन्नत क़िस्में
आमतौर किसान मूली की दो प्रकार की क़िस्मों को उगाते हैं –
लम्बी जड़ वाली लाल मूली –
रैपिड रेड वाइट त्रिटड – यह लम्बी जड़ वाली मूली की क़िस्म है। यह क़िस्म 40-45 दिन में तैयार हो जाती है। इस क़िस्म से 500-550 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिली है। इस क़िस्म की मूली 100-150 ग्राम तक वज़न की होती है।
गोलाकार आकार वाली लाल मूली
स्कारलेट ग्लोब – यह मूली की गोलाकार क़िस्म है। यह खाने में मुलायम, मीठी व कुरकुरी होती है। यह क़िस्म 500-550 कुन्तल तक पैदावार देती है।
काशी प्रजाति –
लाल मूली की यह क़िस्म भारतीय सब्ज़ी अनुसंधान संस्थान (IIVR) द्वारा विकसित की गयी है। मूली की यह क़िस्म पोषक तत्वों से भरपूर है। लाल मूली कई तरह के रोगों को दूर करती है। इसमें पेलागोर्निडीन एंथ्रासायनिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो टेंशन को ख़त्म करता है। यह मनुष्य के पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है। लाल मूली की काशी प्रजाति में एंटीआक्सीडेंट भरपूर पाया जात है। एंटीआक्सीडेंट हमारे शरीर को उच्च रक्त चाप से बचाता है। व मधुमेह व कैंसर जैसी घातक बीमारियों से रक्षा करता है।
लाल मूली की काशी प्रजाति 40-45 दिन में तैयार हो जाती है । तथा 600-700 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। इसे आप किचन गार्डन में भी उगा सकते हैं।
बुवाई का समय –
अधिक मुनाफ़ा पाने के लिए अगेती क़िस्म की बुवाई करनी चाहिए । मूली की बुवाई मध्य सितम्बर से अक्तूबर तक कर लेना चाहिए।
बीज की मात्रा –
मूली की बुवाई दो तरह से की जाती है। एक तो छिटकवा बुवाई जिसमें पूरे खेत में हाथ से बीजों को छिटक कर बिखर दिया जाता है। इस तरह में बीज अधिक लगता है। एक हेक्टेयर में 10-15 किलोग्राम बीज की खपत हो जाती है।
लाल मूली की बोने की दूसरी विधि है क़तार में बुवाई करना – बुवाई की इस विधि में बैलों के पीछे कूँड या ट्रैक्टर में नाई लगाकर बुवाई की जाती है। किचन गार्डन के लिए आप डिबलर से भी बढ़िया बुवाई कर सकते हैं । इस प्रकार बुवाई करने पर बीज अधिक बर्बाद नही होता है। 8-10 किलोग्राम एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है।
बीज अंतरण या दूरी –
मूली की खेती के लिए बीजों की दूरी इस प्रकार रखें – लाइन से लाइन की दूरी – 45 सेंटीमीटर, पौध से पौधे की दूरी – 8-12 सेंटीमीटर, बीज की गहराई – 2-3 सेंटीमीटर
लाल मूली की बुवाई की विधि –
सबसे पहले खेत को स्थानीय बाज़ार में उपलब्ध भूमि शोधक से मिट्टी को उपचारित कर लें। इससे भूमि में मौजूद कीड़े – मकोड़े मर नष्ट हो जाते हैं। साथ ही फफूँदी से लगने वाले रोगों का डर नही रहता है। अब खेत में 10-12 इंच चौड़ी व 6 से 8 इंच की ऊँचाई की मेड बना लें। फिर उसमें 2-3 इंच की गहराई पर बीज की बुवाई कर दें।
खाद व उर्वरक
लाल मूली की खेती से अधिकतम पैदावार लेने के लिए 8-10 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर खेत की तैयारी के समय देना चाहिए। इसके अलावा मूली में रासायनिक खादों में नत्रजन – 80 kg,फ़ोस्फोरस – 60 kg, पोटाश – 60 kg की मात्रा का आवश्यकता होती है। जिसमें की नत्रजन की आधी व फ़ोस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में जुताई के समय देनी चाहिए । शेष नत्रजन की मात्रा 15 दिन बाद सिंचाई के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।
मिट्टी चढ़ाना क्या है?
मेड़ों में मूली के पौधों का विकास जब शुरू होता है। पौधे बढ़ने लगते हैं। पौधों की जड़ें मिट्टी के बाहर दिखने लगती हैं। इन जड़ों को सूर्य की सीधी रोशनी से बचाने के लिए मेड़ों पर मिट्टी चढ़ाया जाता है । जिसे पढ़ी लिखी भाषा में पौधों को मिट्टी चढ़ाना कहते हैं। इससे फ़ालतू के पौधें भी नष्ट हो जाते हैं वहीं पौधों की अच्छी बढ़वार हेतु जड़ें स्वस्थ रहती हैं। जिससे उपज अच्छी मिलती है।
मूली को उखाड़ना
बुवाई के लगभग – 40-45 दिन में मूली तैयार हो जाती है। उखाड़ते समय खेत में हल्का पानी लगा देना चाहिए। खेत में नमी होने से मूली आसानी से उखड आती है। मूली के पत्तों सहित उखाड़ना लें।
लाल मूली की पैदावार –
सामान्यत: 500-700 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त हो जाती है ।
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