तुलसी का वानस्पातिक नाम ओसिमम सैंकशम है। तुलसी एक घरेलू पौधा है और यह भारत में व्यापक स्तर पर उगाया जाता है। इसको विभिन्न स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे अंग्रेजी में होली बेसिल, तमिल में थुलसी, पंजाबी में तुलसी और उर्दू में इमली आदि। तुलसी की लोगो द्वारा पूजा भी की जाती है। तुलसी के औषधीय गुण जैसे कि जीवों और विषाणुओं के रोधक होने के कारण यह हवा को शुद्ध करने में सहायक है। तुलसी से बनी दवाइयों को तनाव, बुखार, सूजन को कम करने और सहनशक्ति को बढ़ाने के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। साल में इसकी झाड़ी की औसतन ऊंचाई 2 से 4 फीट होती है। इसके फूल छोटे और जामुनी रंग के होते है । यह भारत में हर जगह पर पाई जाती है पर मध्य-प्रदेश में आमतौर पर पाई जाती है।
मिट्टी-
यह कई तरह की मिट्टी में उगाई जाती है। इसकी पैदावार के लिए नमकीन, क्षारीय और पानी खड़ा होने वाली मिट्टी से बचाव करें। यह बढ़िया निकास वाली मिट्टी जिसमे बढ़िया जैविक तत्व मौजूद हों, में बढ़िया परिणाम देती है। इसके बढ़िया विकास के लिए मिट्टी का pH 5.5-7 होना चाहिए।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
Drudriha Tulsi: यह मुख्य रूप से बंगाल, नेपाल, चटगांव और महाराष्ट्र क्षेत्रों में पाई जाती है। यह गले को सूखेपन से राहत देता है। यह हाथों, पैरों और गठिया की सूजन से आराम देता है।
Ram/Kali Tulsi (Ocimum canum): यह चीन, ब्राज़ील, पूर्व नेपाल और साथ ही बंगाल, बिहार, चटगांव और भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में पाई जाती है। इसका तना जामुनी और पत्ते हरे रंग के और बहुत ज्यादा सुगंधित होते है। इसमें उचित मात्रा में औषधीय गुण जैसे ऐज़ाडिरैकटिन, ऐंटीफंगल , ऐंटीबैक्टीरियल, और पाचन तंत्र को ठीक रखती है। यह गर्म क्षेत्रों में बढ़िया उगता है।
Babi Tulsi: यह पंजाब से त्रिवेंद्रम, बंगाल और बिहार में भी पाई जाती है। इसका पौधा 1-2 फीट लम्बा होता है। पत्ते 1-2 इंच लम्बे, अंडाकार और नुकीले होते है। इसके पत्तों का स्वाद लौंग की तरह और सब्जियों में स्वाद के लिए प्रयोग किया जाता है।
Tukashmiya Tulsi : यह भारत और ईरान के पश्चिमी क्षेत्रों में पाई जाती है| इसका प्रयोग गले की परेशानी, अम्लता और कोढ़ आदि के इलाज के लिए किया जाता है।
Amrita Tulsi: यह पूरे भारत में पाई जाती है। इसके पत्ते गहरे जामुनी और घनी झाड़ी वाले होते हैं। यह कैंसर, दिल की बीमारियां, गठिया, डायबिटीज और पागलपन के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है।
Vana Tulsi (Ocimum gratissimum): यह हिमालय और भारत के समतल प्रदेशों में पाई जाती है। यह किस्म का पौधा बाकी किस्मों के मुकाबले लम्बा होता है। यह सेहत के लिए लाभदायक होती है जैसे कि तनाव मुक्त करना, पाचन तंत्र और पेट के छालों के इलाज में सहायक है। इसके पत्ते तीखे और सुगंध लौंग की तरह सुगंधित होती है।
Kapoor Tulsi (Ocimum sanctum): यह मुख्य यू. एस. ऐ में विकसित होती है पर यह भारत में पुराने समय से उगाई जाती है। यह मुख्यतः जलवायु के तापमान में आसानी से विकास करती है। इसके सूखे पत्तों को चाय बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
ज़मीन की तैयारी-
तुलसी की खेती के लिए, अच्छी तरह से शुष्क मिट्टी की मांग की जाती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक हैरो के साथ खेत की जोताई करें, फिर रूड़ी की खाद मिट्टी में मिलाएं। तुलसी की रोपाई सीड बैड पर करें।
बिजाई-
बिजाई का समय-
फरवरी के तीसरे महीने में नर्सरी बैड तैयार करें।
फासला-
पौधे के विकास के अनुसार, 4.5 x 1.0 x 0.2 मीटर के सीड बैड तैयार करें| बीजों को 60x60 सैं.मी. के फैसले पर बोयें।
बीज की गहराई
बीजों को 2 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
बिजाई का ढंग
बिजाई के 6-7 हफ्ते बाद, फसल की रोपाई खेत में करें।
बीज-
बीज की मात्रा
तुलसी की खेती के लिए 120 ग्राम बीजों का प्रयोग प्रति एकड़ में करें।
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारीयों से रोकथाम के लिए, बिजाई से पहले मैनकोजेब 5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीजों का उपचार करें।
पनीरी की देख-रेख और रोपण
फसल की बढ़िया पैदावार के लिए बिजाई से पहले 15 टन रूड़ी की खाद मिट्टी में डालें। तुलसी के बीजों को तैयार बैडों के साथ उचित अंतराल पर बोयें। मानसून आने के 8 हफ्ते पहले बीजों को बैड पर बोयें। बीजों को 2 सैं.मी. की गहराई पर बोयें। बिजाई के बाद, रूड़ी की खाद और मिट्टी की पतली परत बीजों पर बना दें| इसकी सिंचाई फुवारा विधि द्वारा की जाती है।
रोपाई के 15-20 दिनों के बाद, नए पौधों को तंदरुस्त बनाने के लिए 2% यूरिया का घोल डालें। 6 हफ्ते पुराने और 4-5 पत्तों के अंकुरण होने पर अप्रैल के महीने में नए पौधे तैयार होते है। तैयार बैडों को रोपाई 24 घंटे पहले पानी लगाएं ताकि पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकें और रोपाई के समय जड़ें मुलायम और सूजी हुई हो।
खाद-
खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MURIATE OF POTASH |
104 | 150 | 40 |
तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN |
PHOSPHORUS | POTASH |
48 | 24 | 24 |
खेत की तैयारी के समय, रूड़ी की खाद को मिट्टी में मिलाएं| खाद के तौर पर नाइट्रोजन 48 किलो(यूरिया 104 किलो), फासफोरस 24 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 150 किलो) और पोटाश 24 किलो (मिउरेट 40 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नए पौधे लगाने के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफेट पेंटोऑक्साइड की पूरी मात्रा शुरुआती समय में डालें। Mn 50 पी पी एम कंसंट्रेशन और Co@100 पी पी एम कंसंट्रेशन सूक्ष्म-तत्व डालें। बाकी की बची हुई नाइट्रोजन को 2 हिस्सों में पहली और दूसरी कटाई के बाद डालें।
खरपतवार नियंत्रण
खेत को नदीनों से मुक्त करने के लिए कसी की मदद से गोड़ाई करें। नदीनों की रोकथाम कम न होने पर यह फसल को नुकसान पहुंचाते है। रोपण के एक महीने बाद पहली गोड़ाई और पहली गोड़ाई के चार हफ्ते बाद दूसरी गोड़ाई करें। रोपण के दो महीने बाद कसी से अनुकूल गोड़ाई करें।
सिंचाई
गर्मियों में, एक महीने में 3 सिंचाइयां करें और बरसात के मौसम में, सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। एक साल में 12-15 सिंचाइयां करनी चाहिए। पहली सिंचाई रोपण के बाद करें और दूसरी सिंचाई नए पौधों के स्थिर होने पर करें। 2 सिंचाइयां करनी आवश्यक है और बाकी की सिंचाई मौसम के आधार पर करें।
पौधे की देखभाल
हानिकारक कीट और रोकथाम-
पत्ता लपेट सुंडी: यह सुंडिया पत्तों, कली और फसल को अपना भोजन बनाती है। यह पत्तों की सतह पर हमला करते है और उसे मरोड़ देती है। इसकी रोकथाम के लिए, इसकी रोकथाम के लिए, 300 मि.ली. कुइनल्फोस को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें।
तुलसी के पत्तों का कीट: -
यह पत्तों को खाते है और अपना मल छोड़ते हैं जोकि पत्तों के लिए बहुत नुकसान-दायक है। शुरुआत में पत्ते मुड़ जाते है और सूख जाते है। इस कीट की रोकथाम के लिए, ऐज़ाडिरैकटिन 10,000 पी पी एम कंसंट्रेशन 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलकर स्प्रे करें।
बीमारीयां और रोकथाम
पत्तों के धब्बे: इस बीमारी से फंगस जैसा पाउडर पत्तों और पौधे को प्रभावित करता है। इसकी रोकथाम के लिए, मैनकोजेब 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
पौधों का झुलस रोग: -
यह फंगस की बीमारी है जो बीजों और नए पौधों को नष्ट कर देती है। इसकी रोकथाम के लिए, इसके लिए फाईटो सेनेटरी विधि का प्रयोग करें।
जड़ गलन: -
घटिया निकास के कारण इस पौधे की जड़ें गल जाती है। इसके लिए फाईटो सेनेटरी विधि का प्रयोग करें। जड़ गलन की रोकथाम के लिए बाविस्टिन 1% को नर्सरी बैडों के साथ-साथ डालें।
फसल की कटाई
रोपण के तीन महीने के बाद पौधा पैदावार देनी शुरू कर देता है। इसकी तुड़ाई पूरी तरह से फूल निकलने के समय की जाती है। पौधे को 15 सैं.मी. जमीन से ऊपर रखकर शाखाओं को काटें ताकि इनका दोबारा प्रयोग किया जा सकें। भविष्य में प्रयोग करने के लिए इसके ताज़े पत्तों को धूप में सूखाया जाता है।
कटाई के बाद
तुड़ाई के बाद, पत्तों को सूखाया जाता है। फिर तेल की प्राप्ति के लिए इसका अर्क निकाला जाता है। इसको परिवहन के लिए हवादार बैग में पैक किया जाता है। पत्तों को सूखे स्थान पर स्टोर किया जाता है। इसकी जड़ों से कई तरह के उत्पाद जैसे तुलसी अदरक, तुलसी पाउडर, तुलसी चाय और तुलसी कैप्सूल आदि तैयार किये जाते है।
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