कलिहारी को ग्लोरिओसा सुपर्बा के नाम से भी जाना जाता है ।यह एक जड़ी-बूटी वाली फसल है जो बेल की तरह बढ़ती है। इसकी जमीन की निचली गांठे, पत्ते, बीज और जड़ें दवाइयाँ बनाने के लिए प्रयोग में लायी जाती है।कलिहारी से तैयार दवाइयों से जोड़ों का दर्द, एंटीहेलमैथिक, ऐंटीपेट्रिओटिक के ईलाज के लिए और पॉलीप्लोइडी को ठीक करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है। कलिहारी को कई तरह के टॉनिक और पीने वाली दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इस पौधे की औसतन ऊंचाई 3.5-6 मीटर होती है । इसके पत्ते 6-8 इंच लम्बे और डंठलों के बिना होते है। इसके फूल हरे रंग के और फल 2 इंच लम्बे होते है। इसके बीज गिनती में ज्यादा और घने होते है। अफ्रीका, ऐशिया, यू.एस.ऐ और श्री-लंका मुख्य रूप में कलिहारी उगाने वा ले क्षेत्र है। भारत में तमिलनाडु और कर्नाटक इसके मुख्य क्षेत्र है।
मिट्टी-
यह लाल दोमट रेतली मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है। सख्त मिट्टी में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए| इस फसल के लिए मिट्टी का pH 5.5 -7 होना चाहिए।
ज़मीन की तैयारी-
कलिहारी को बीजने के लिए, इसको भुरभुरी और समतल मिट्टी की जरुरत होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हल के साथ अच्छी से तरह से जोताई करें। पानी को जमा होने से रोकने के लिए निकास का प्रबंध करें।कलिहारी की पनीरी जरूरत के अनुसार छोटे प्लाट में लगाएं।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार-
Gloriosa Superba: यह किस्म अफ्रीका और भारत के उष्णीये क्षेत्रों में पायी जाती है । इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 1.5 मीटर होती है। इस के पत्तों का आकार अंडाकार और लम्बाई 10-12 सै.मी. होती है। इसके फूल सीधे, 5-7 मीटर लम्बे और पीले-लाल रंग के होते है।
Gloriosa Rathschildiana : यह किस्म अफ्रीका के उष्णीय क्षेत्रों में पायी जाती है । यह लम्बी और बेल वाली झाड़ी है। इसके पत्ते चौड़े और तीखे होते है, जिन की लम्बाई 12-18 सै.मी. होती है । इसके फूल सीधे, 5-7 मीटर लम्बे और तल से पीले-सफ़ेद रंग के होते है।
बिजाई-
बिजाई का समय
इसकी बिजाई आम रूप से जुलाई और अगस्त में की जाती है।
फासला
पनीरी वाले पौधों में 60x45 सै.मी. का फासला होना चाहिए।
बीज की गहराई
बीज को 6-8 सै.मी. गहराई में बोयें।
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई पिछली फसल से प्राप्त गांठों से या बीजों से तैयार पौधों की पनीरी लगा कर की जाती है।
बीज-
बीज की मात्रा
पौधों के अच्छे विकास के लिए 100-120 किलो प्रति एकड़ और 10-12 कुइंटल गांठो का प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
बीज का उपचार-
फसल को मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियां, गलना, और कीटों से बचाने के लिए, गांठों को बविस्टिन मरकरी वाले फंगसनाशी 0.1% के साथ बोयें और फिर से बिजाई के लिए प्रयोग करें।
पनीरी की देख-रेख और रोपण-
इसका प्रजनन मुख्य रूप से ' V ' आकार की गांठों के द्वारा होता है। इसकी बिजाई जुलाई और अगस्त महीने में की जाती है।जरूरत के अनुसार छोटे प्लाट में तैयार किये हुए बैडों में गांठों को बीज दें। बिजाई के बाद बैडों को पानी लगाएं।
पिछली फसल की गांठों या बीजों से तैयार नयें पौधों को मुख्य रूप से खेत में लगाया जाता है। पौधें के बीच 60x45 सै.मी. का फासला रखें।
फसल को गलने से बचाने के लिए गांठों को बविस्टिन 0. 1 % के साथ बोयें।
खाद-
खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MURIATE OF POTASH |
104 | 125 | 46 |
तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
48 | 20 | 28 |
खेत की तैयारी के समय जैविक खाद जैसे की हरी खाद या रूडी की खाद आदि मिट्टी में डालें। नाइट्रोजन 48 किलो(यूरिया 104 किलो), फास्फोरस 20 किलो(सिंगल सुपर फास्फेट 125 किलो), और पोटाशियम 28 किलो(म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 46 किलो) प्रति एकड़ में डालें। शुरुआत में खाद के रूप में बिजाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा डालें| बाकि की बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा को दो हिस्सों में डालें। पहला हिस्सा बिजाई से 30 दिन के बाद और दूसरा हिस्सा बिजाई से 60 दिनों के बाद डालें।
कीट और मकोड़ों की रोकथाम के लिए बायो-कीटनाशक का प्रयोग करें, जो धतूरा, गौ-मुत्तर, चितर्कमूल और नीम आदि से तैयार हों।
खरपतवार नियंत्रण
खेत को नदीन रहित करने के लिए हाथों से या कसी की सहायता से थोड़े-थोड़े समय के बाद गोड़ाई करें। शुरुआत के समय में बार-बार गोड़ाई करें। पौधे के विकास के लिए हाथों से गोड़ाई करनी बढ़िया होती है। नहीं तो कुल 2-3 बार गोड़ाई की जरूरत होती है। रासायनिक नदीन-नाशक का प्रयोग ना करें।
सिंचाई
क्योंकि यह सेजू फसल है, इसको ज्यादा पानी की जरुरत नहीं होती। पर बढ़िया फसल के लिए थोड़े-थोड़े समय के बाद सिंचाई करतें रहें। अलग-अलग समय पर अलग-अलग सिंचाई करें| शुरुआत के समय में 4 दिनों के फासलें पर नयें पौधों को पानी लगाएं। कटाई के समय सिंचाई ना करें, पर फल पकने के समय दो बार सिंचाई करें। पौधों को जरूरत के अनुसार पानी ना दें, इससे फल पकने से पहले ही गिर जाते है।
पौधे की देखभाल
हानिकारक कीट और रोकथाम-
रंग-बिरंगी सुंडी:
यह कीड़ा पौधे को गंभीर नुकसान पहुँचाता है और पौधा नष्ट हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए मेटासिड 0.2% की स्प्रे हर पखवाड़े में करें।
गांठों का गलना:
यह एक गंभीर बीमारी है, जो जड़ों पर हमला करती है| इसकी रोकथाम के लिए 0.2% बविस्टिन डालें।
बीमारिया और रोकथाम-
पत्तों का झुलस रोग:
यह एक पैथोजेनिक बीमारी है, जो पत्तों को भूरा और क्लोरोसिस कर देती है और सारे पौधे को नष्ट कर देती है। इसकी रोकथाम के लिए दीथेन एम-45 0.3% या कोटाफ 10 मि.मी. लीटर पानी में मिलकर स्प्रे करें।
हरी सुंडी:
यह कीड़ा पौधे को ज्यादातर नुकसान उसके हरे और ताज़े पत्तों को खाकर करती है। हर दो हफ्ते के अंतराल पर मेटासिड 0.2% की स्प्रे करें।
फसल की कटाई-
इसकी कटाई बिजाई से 170-180 दिनों के बाद शुरू की जाती है। जब इसके फल हल्के हरे रंग से गहरे हरे रंग के हो जाते है तब इनकी तुड़ाई की जाती है। गांठों की कटाई बिजाई से 5-6 साल के बाद की जाती है। बीजों की प्राप्ति के लिए पके हुए फूल लिए जाते है और नयें उत्पाद तैयार करने के लिए मिट्टी के नीचे गांठों को लगाएं।
कटाई के बाद
कटाई के बाद, गांठों को अच्छी तरह से साफ़ कर लें और धों लें। फिर गांठों, बीजों और फलियों को छाँव और हवा में थोड़े दिनों के लिए सुखायें। फिर जीवनकाल बढ़ाने के लिए और खराब होने से बचाने के लिए हवा रहित पैकटों में पैक कर दें। कलिहारी के अलग-अलग हिस्सों से बहुत सारी बीमारियों के टॉनिक और दवाइयाँ तैयार की जाती है।
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