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बरसीम की खेती कैसे करें ?

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बरसीम एक जल्दी बढ़ने वाली और अधिक गुणवत्ता वाली पशुओं के चारे की फसल है। इसके फूल पीले-सफेद रंग के होते हैं। बरसीम अकेले या अन्य मसाले वाली फसलों के साथ उगाई जाती है। इसे अच्छी गुणवत्ता वाला आचार बनाने के लिए रायी घास या जई के साथ भी मिलाया जा सकता है।

बरसीम की खेती हरे चारे के रूप में की जाती हैं. बरसीम के चारे को पशुओं के लिए पौष्टिक माना जाता है. इसके खाने से पशुओं में दुग्ध उत्पादन की क्षमता बढ़ जाती है. बरसीम का पौधा लगभग दो फिट के आसपास तक की ऊंचाई का पाया जाता हैं. इसके पौधोंपर पीले और सफ़ेद फूल खिलते हैं. ज्यादातर किसान भाई इसे हरे चारे की आपूर्ति के लिए ही उगाते हैं. इससे हरे चारे की बचत काफी अधिक मात्रा में होती हैं. जबकि कुछ किसान भाई इसे पैदावार के रूप में भी उगाते हैं. जिससे उन्हें इसकी खेती से आय मिलती हैं.

बरसीम का पौधा मेथी की तरह ही दिखाई देता हैं. बरसीम प्राचीन मिस्र में एक महत्वपूर्ण फसल मानी जाती थी. कुछ लोग इसको दानो को अच्छी गुणवत्ता का अचार बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. बरसीम की फसल एक दलहनी फसल मानी जाती हैं. जिस कारण यह भूमि की उर्वरक शक्ति को भी बनाए रखती हैं.

बरसीम की खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु को उपयुक्त माना जाता हैं. वैसे बरसीम की खेती पूरे साल भर की जा सकती है. इसके पौधों को सिंचाई की अधिक जरूरत होती है. इसके पौधे सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में आसानी से विकास करते हैं. इसकी खेती के लिए सामान्य रूप से होने वाली बारिश ही उपयुक्त होती है. भारत में इसकी खेती लगभग सभी जगहों पर की जा रही हैं. लोग इसके हरे चारे को बेचकर भी लाभ कमा रहे हैं.

अगर आप भी बरसीम की खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी
बरसीम की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त होती है. लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए इसे हल्की बलुई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि उपयुक्त नही होती. इसकी खेती के लिए सामान्य क्षारीय भूमि को उपयुक्त माना जाता हैं. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 7 से 8 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

बरसीम की खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु को उपयुक्त माना जाता हैं. बरसीम की खेती वैसे तो किसी भी मौसम में की जा सकती हैं. लेकिन ठंड का मौसम इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता हैं. सर्दी के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं. सर्दी में पड़ने वाला पाला इसकी पैदावार को कुछ हद तक प्रभावित जरुर करता हैं. और अधिक गर्मी के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास नही कर पाते. बरसीम की खेती के लिए सामान्य बारिश उपयुक्त होती हैं. अधिक समय तक लगातार होने वाली बारिश इसकी पैदावार को प्रभावित करती हैं.

बरसीम की खेती के लिए शुरुआत में इसके बीजों में अंकुरण के वक्त 22 डिग्री के आसपास तापमान को उपयुक्त माना जाता हैं. अंकुरण के बाद इसके पौधे अधिकतम 35 और न्यूनतम 10 से 15 डिग्री के बीच के तापमान पर अच्छे विकास कर सकते हैं. लेकिन इस दौरान पौधों को बार बार हल्की सिंचाई की जरूरत होती है. बरसीम के पौधों के लिए 22 से 25 डिग्री के बीच का तापमान सबसे उपयुक्त होता हैं.

उन्नत किस्में

बरसीम की काफी सारी उन्नत किस्में बाज़ार में मौजूद हैं. जिन्हें उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे की बार बार कटाई देने के लिए तैयार किया गया हैं.

बी एल 1
बरसीम की इस किस्म को पंजाब में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 40 से 50 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे सर्दी और गर्मी दोनों समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर कुल उत्पादन 110 टन के आसपास पाया जाता हैं.

पूसा ज्वाइंट
बरसीम की इस किस्म का निर्माण अधिक समय तक पड़ने वाली तेज़ सर्दी और पाले वाली जगहों पर उगाने के लिए तैयार किया गया हैं. इस किस्म के पौधों में एक ही जगह से चार से पांच पत्तियां निकलती हैं. इस किस्म के पौधे पर खिलने वाले फूलों का आकार बड़ा दिखाई देता हैं. एक हेक्टेयर में इस किस्म के पौधों से 90 टन के आसपास हरे चारे का उत्पादन मिलता है.

वरदान
बरसीम की इस किस्म को ज्यादातर उत्तर भारत के राज्यों में उगाया जाता हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 150 से 160 दिन बाद पैदावार हैं. जिनकी चार से पांच बार हरे चारे के लिए कटाई की जा सकती हैं. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर खेती से 80 से 100 टन तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता हैं.

बी बी 3
बरसीम की इस किस्म को सर्दी और बरसात दोनों मौसम में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे डेढ़ फिट के आसपास की ऊंचाई के होते हैं. जिनको एक बार उगाने के बाद 4 से 5 बार आसानी से काटा जा सकता हैं. हरे चारे के रूप में इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 70 टन के आसपास पाया जाता है.

मेस्कावी
बरसीम की इस किस्म को सम्पूर्ण भारत देश में उगाया जा सकता हैं. इस किस्म के पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देते हैं. जो सीधे ऊपर की तरफ बढ़ते हुए अपना विकास करते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 52 दिन बाद ही पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों की चार से पांच बार कटाई करने के बाद उनसे 80 टन के आसपास हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है. इस किस्म के पौधों के तने काफी कमजोर होते हैं.

जे एच बी 146
बरसीम की इस किस्म का उत्पादन मध्य और उत्तर भारत के मैदानी राज्यों में किये जाता है. इस किस्म को बुंदेलखण्ड बरसीन – 2 के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म के पौधों में प्रोटीन की मात्र 20 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 45 से 50 दिन बाद ही पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. प्रति हेक्टेयर इस किस्म के पौधों की प्रत्येक कटाई से 20 टन के आसपास हरा चारा प्राप्त होता है. इस किस्म के पौधों की चार से पांच कटाई आसानी से की जा सकती है.

बी एल 10
बरसीम की इस किस्म के पौधे अगेती पैदावार लेने के लिए उगाये जाते हैं. जो काफी लम्बे समय तक पैदावार देते हैं. इस किस्म के पौधों में जड़ गलन या सडन जैसे रोग नही दिखाई देते. इस किस्म के पौधे रोपाई के 40 से 45 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर हरे चारे के रूप में कुल उत्पादन 120 टन के आसपास पाया जाता हैं.

जवाहर बरसीम 1
बरसीम की इस किस्म के पौधे एक से डेढ़ फिट की ऊंचाई के होते हैं. इस किस्म के पौधों को बारिश और सर्दी के मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 40 से 50 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. एक हेक्टेयर में इस किस्म के पौधों की प्रत्येक कटाई से 18 टन के आसपास उत्पादन प्राप्त होता हैं.

जे एच टी बी 146
बरसीम की इस किस्म को बुंदेलखण्ड बरसीन 3 के नाम से भी जाना जाता है. जिसको उत्तर प्रदेश के आसपास वाले राज्यों में अधिक उगाया जाता हैं. इस किस्म के पौधों को सर्दियों में अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 50 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर हरे चारे के रूप में कुल उत्पादन 90 से 110 टन तक पाया जाता हैं.

बी एल 42
बरसीम की इस किस्म को अगेती पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों को सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधों में जड़ गलन का रोग काफी कम दिखाई देता है. इस किस्म के पौधों बीज रोपाई के लगभग 40 दिन बाद ही कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. हरे चारे के रूप में इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 130 टन के आसपास पाया जाता हैं.

इनके अलावा और भी कई किस्में बाजार में मौजूद हैं. जिन्हें अलग अलग जगहों पर किसान भाई मौसम के आधार पर अधिक उत्पादन लेने के लिए लगाता हैं. जिनमें टेट्राप्लौइड,जे बी- 1, खादरावी, टाइप 529, जैदी, बी एल- 2, फहाली, बी ए टी- 678, सीडी, टाइप 561, टी- 724 वार्डन, पूसा गैंट, जवाहर बरसीम 2, डीप्लोइड, एचएफबी 600,गैंट राक्षस और यु.पि.बी. 10 जैसी बहुत सारी किस्में मौजूद हैं.

खेत की तैयारी
बरसीम की खेती के लिए शुरुआत में खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए खेत को खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बार कल्टीवेटर के माध्यम से तिरछी जुताई कर दें.

खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद रोटावेटर चलाकर खेत में मौजूद मिट्टी के ढेलों को ख़तम कर दें. इससे मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती हैं. रोटावेटर चलाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना दें. ताकि बारिश के दौरान खेत में जल भराव जैसी समस्या का सामना ना करना पड़ें.

बीज की मात्रा और उपचार
बरसीम की खेती के लिए बीज की मात्रा रोपाई के तरीके पर निर्भर करती है. सघन या छिडकाव विधि से रोपाई करने के दौरान अधिक बीज की आवश्यकता होती हैं. जबकि सीडड्रिल के माध्यम से रोपाई के दौरान बीज की कम जरूरत होती हैं. दोनों विधि से रोपाई के दौरान प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलो बीज की जरूरत होती हैं. इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. बीजों को उपचारित करने के लिए राइजोबियम कल्चर या कैप्टन दावा का इस्तेमाल करना चाहिए. राइजोबियम कल्चर का इस्तेमाल काफी बेहतर होता है.

बीज रोपाई का तरीका और समय

पशुओं के लिए हरे चारे की खेती के दौरान बरसीम की सघन रोपाई की जाती हैं. जिसमें इसके बीजों की रोपाई छिडकाव विधि से की जाती हैं. छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान इसके बीजों को समतल किए खेत में छिड़क दिया जाता है. बीजों को छिडकने के बाद कल्टीवेटर के पीछे हल्का पाटा बांधकर खेत की दो बार हल्की जुताई कर देते हैं. इससे इसके बीज भूमि में तीन से चार सेंटीमीटर नीचे चले जाते हैं. बीज को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में उचित आकार की क्यारियाँ बना देते हैं.

सीड ड्रिल के रूप में इसकी रोपाई के दौरान किसान भाई इसकी रोपाई कतारों में करते हैं. सीड ड्रिल से रोपाई के दौरान प्रत्येक कतारों में बीच 25 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. जबकि कतारों में पौधों के बीच 5 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए.

इसके बीजों की रोपाई सामान्य तौर पर सर्दी के मौसम में पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है. इस दौरान इसके बीजों की रोपाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक की जाती हैं. इसके अलावा वर्तमान में काफी ऐसी किस्में भी हैं, जिन्हें अगेती पैदावार के रूप में जून महीने में भी आसानी से उगाया जा सकता है.

पौधों की सिंचाई
बरसीम की खेती में इसके पौधों की सिंचाई की जरूरत फसल के आधार होती हैं. क्योंकि हरे चारे और पैदावार के रूप में खेती करने के दौरान इसके पौधों को अलग मात्रा में पानी की जरूरत होती हैं. बरसीम की रोपाई अगर सूखी भूमि में की गई हो तो इसके पौधों की पहली सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए. समतल भूमि में सिंचाई के दौरान धीमें बहाव से इसकी क्यारियों की सिंचाई करनी चाहिए. क्योंकि तेज़ बहाव में सिंचाई करने से क्यारियों का सारा बीज किनारों की तरफ बहकर चला जाता है.

दानो के लिए उगाई गई फसल में इसके पौधों को सिंचाई की कम जरूरत होती हैं. इस दौरान सर्दी के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. और गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार पानी देना उचित होता है. हरे चारे के रूप में इसकी खेती करने के दौरान इसके पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती हैं. इस दौरान इसके पौधों को सर्दियों में मौसम में 10 से 12 और गर्मियों के मौसम में 5 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा
बरसीम के पौधों को उर्वरक की जरूरत इसके पौधों की सिंचाई के तरीके की तरह ही होती हैं. जब इसकी खेती पैदावार के लिए की जाती हैं तो उर्वरक की कम जरूरत होती हैं. जबकि हरे चारे के रूप में खेती करने के दौरान उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती हैं. बरसीम की खेती में जैविक और रासायनिक दोनों तरह के उर्वरक की जरूरत होती हैं. दोनों ही तरीकों से खेती के दौरान शुरुआत में जैविक उर्वरक के रूप में खेत की तैयारी के वक्त 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर मिट्टी में मिला दें.

जबकि रासायनिक उर्वरक के रूप में 20 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की आखिरी जुताई से पहले खेत में छिड़कर मिट्टी में मिला देना चाहिए. इसके अलावा हरे चारे के रूप में कटाई के दौरान प्रत्येक कटाई के बाद 20 किलो यूरिया की मात्रा पौधों को देनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण
बरसीम की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों से किया जा सकता हैं. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के बाद फ्लूक्लोरेलिन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण बीजों के उत्पादन के लिए उगाई गई फसल में किया जाता है. क्योंकि हरे चारे के रूप में होने वाली खेती में इसकी कटाई बार बार होती रहती है. इस कारण खरपतवार नियंत्रण की जरूरत नही होती. जबकि पैदावार के रूप में कतारों में लगाई गई फसल में एक या दो हल्की गुड़ाई कर खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है. इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 25 दिन बाद कर देनी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
बरसीम के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जो इसके पौधों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. इन सभी तरह के रोगों की उचित समय पर रोकथाम कर फसल को खराब होने से बचाया जा सकता हैं.

माहू
बरसीम की खेती में माहू का रोग मौसम परिवर्तन के दौरान देखने को मिलता हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और तने पर एक समूह में पाए जाते हैं. जो पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मेथालियॉन या नीम के तेल का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

तना गलन
बरसीम के पौधों में तना गलन का रोग खेत में जल भाराव या अधिक नमी के बने रहने से दिखाई देता हैं. पौधों में ये रोग किसी भी वक्त दिखाई दे सकता हैं. जो फफूंद की वजह से फैलता हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधे मुरझाने लगते हैं. उसके कुछ दिन बाद पौधों की पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा बीजों उपचारित कर खेतों में लगाना चाहिए. और बारिश के मौसम में खेतों में जलभराव ना होने दे.

सेमीलूपर
सेमीलूपर रोग की सुंडी पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं. इस रोग की सुंडी का रंग हरा दिखाई देता है. इस रोग के बढ़ने से पौधे पत्तियों रहित दिखाई देने लगते हैं. और पौधे को पोषक तत्व ना मिल पाने की वजह से वे विकास करना बंद कर देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एण्डोसल्फान 35 ईसी की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

थ्रिप्स
बरसीम के पौधों में लगने वाला थ्रिप्स का रोग कीट जनित रोग हैं. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते है. जिससे पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. और कुछ दिन बॉस सूखकर गिर जाती हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए मेथालियॉन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए. इसके अलावा ड़ायमेथोयट या नीम के तेल का छिडकाव भी पौधों पर करना अच्छा होता है.

टिड्डी
बरसीम के पौधों पर टिड्डी रोग का प्रभाव जुलाई और अगस्त माह में देखने को मिलता हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्ती और उसके तने को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. रोग के उग्र होने की स्थिति में पूरी फसल भी खराब हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैलाथियान की उचित मात्र का छिडकाव करना चाहिए.

चने की सुंडी
बरसीम के पौधों पर इस रोग का प्रभाव फसल की पैदावार के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग की सुंडी पौधों की फलियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं. जिसका सीधा असर इसकी पैदावार पर देखने को मिलता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए स्पिनोसेड 48 एस सी या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

फसल की कटाई
बरसीम के पौधों की कटाई हरे चारे और इसकी पैदावार लेने के लिए अलग अलग समय पर की जाती हैं. हरे चारे के रूप में इसकी पैदावार लेने के लिए इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस दौरान जब इसके पौधे 10 सेंटीमीटर के आसपास ऊंचाई वाले हो जायें, तब उनकी पहली कटाई कर लेनी चाहिए. पहली कटाई के बाद आगे की कटाई के लिए इसके पौधे 20 से 25 दिन बाद फिर से तैयार हो जाते हैं. इस तरह इसके पौधे हरे चारे के रूप में कई बार कटाई दे सकते हैं.

पैदावार के रूप में इसकी खेती करने के दौरान किसान भाई एक या दो बार इसके पौधों की हरे चारे के रूप में कटाई कर पैदावार ले सकता हैं. पूर्ण रूप से पकने पर इसके पौधों की पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं. और पौधे सूखने लगते हैं, तब इसके पौधों की कटाई कर लेनी चाहिए. पौधों की कटाई करने के बाद उन्हें धूप में सुखाकर मशीनों की सहायता से इसके दानो को निकलवाकर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए.

पैदावार और लाभ
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बरसीम की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर खेती से औसतन 90 टन के आसपास हरा चारा प्राप्त होता है. जिसका बाजार भाव 400 रुपये प्रति क्विंटल भी बाज़ार में मिलता है तो किसान भाई एक हेक्टेयर खेती से सालाना साढ़े तीन लाख के आसपास कमाई आसानी से कर लेता है. इसके अलावा दो से तीन कटाई के बाद बीज के रूप में खेती करने से प्रति हेक्टेयर 400 से 500 किलो बीज प्राप्त हो जाता हैं. जिससे भी किसान भाइयों की अच्छी खासी कमाई हो जाती हैं.


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