खदिर (खैर) को एकेसिया कैटेचु या कैटेचु भी कहा जाता है। यह एक बारहमासी पेड़ है, जो अपने असंख्य उपयोग और स्वास्थ्य लाभ के लिए जाना जाता है। एकेसिया के बीजों को प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है। एकेसिया के पौधे से प्राप्त अर्क को कत्था कहा जाता है, यह पान का एक महत्वपूर्ण घटक है। इस पौधे का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है।
एकेसिया कैटेचु का उपयोग पारंपरिक रूप से मुंह के घावों, दस्त और पेचिश, पेट के रोग और खांसी जैसी स्थितियों के उपचार के लिए किया जाता है। यह एंटीहाइपरग्लिसेमिक (ब्लड शुगर स्तर को कम करने) और रोगाणुरोधी गुणों से भरपूर होता है।
खदिर के बारे में कुछ सामान्य जानकारी :
वानस्पतिक नाम - एकेसिया कैटेचु, सेनेगेलिया कैटेचु, एकेसिया सुंद्रा, मिमोसा चुंद्रा
परिवार - फेबासिआ (Fabaceae)
सामान्य नाम/ अंगेजी नाम - ब्लैक कैटेचु, कच ट्री, काछू (cachou), खैर, कत्था (Kachu), कछू (Kachu), क्रंगली, बेलपत्र, कदिरकास्त (Kadirkasth)
संस्कृत नाम - रक्तासर, खदिर
पौधे के इस्तेमाल किए जाने वाले हिस्से - छाल, पत्तियां, टहनी
भौगोलिक वितरण - खदिर का पौधा भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और थाईलैंड में मूल रूप से पाया जाता है। इसका वितरण पूरे एशिया में व्यापक रूप से है। यह मिश्रित पर्णपाती वन, पहाड़ियों और निचले पहाड़ों में पाए जाते हैं। यह शुष्क क्षेत्रों, रेतीली मिट्टी और नदी के किनारों पर अच्छी तरह से बढ़ते व पनपते हैं।
खदिर की पहचान कैसे करें -
एकेसिया कैटचू नाम ग्रीक शब्द एकेसिया (Acacia) से आया है, जबकि कैटेचू (catechu) शब्द कच (cutch) शब्द से बना है।
खदिर एक मध्यम आकार का पेड़ है, जिसकी ऊंचाई लगभग 9 से 15 मीटर होती है। इस पेड़ में ग्रे-भूरे या गहरे भूरे रंग की छाल होती है और इसकी डंठल आमतौर पर बैंगनी या भूरे रंग की होती है। इसमें तने के साथ एक से ज्यादा पत्तियां जुड़ी होती हैं और प्रत्येक पत्ती के लगभग 30 जोड़े होते हैं। यह आकार में तिरछे होते हैं और उनकी सतह पर महीन कांटे हो भी सकते हैं और नहीं भी।
खदिर के फूल आकार में 5 से 10 सेमी और पीले या हरे-पीले रंग के होते हैं। यह फूल घंटी के आकार के कैलिक्स (फूलों की पंखुड़ियों के चारों ओर मौजूद हरे रंग के पत्ते) से घिरे होते हैं और इनकी पंखुड़ियां सेपल्स (फूल की पत्तियां) की तुलना में लगभग दो या तीन गुना बड़ी होती हैं।
खैर के बीज की फली पतली, चिकनी, सपाट और गहरे भूरे रंग की होती है। प्रत्येक फली में लगभग 5-10 चमकदार, भूरे रंग के बीज होते हैं। यह पौधे गर्मी के मौसम में अपने सभी पत्तों को छोड़ या गिरा देते हैं। ऐसा मध्य एशिया में फरवरी माह में होता है और अप्रैल के महीने तक फूलों के साथ नए पत्ते उगना शुरू हो जाते हैं। सितंबर से अक्टूबर के बीच, बीज की फली बढ़ती है और हरे से लाल-हरे और भूरे रंग में बदल जाती है। जनवरी तक बीज की फली फूट जाती है।
कत्था
एकेसिया कैटचू के पौधे से प्राप्त होने वाले प्रमुख उत्पादों में से एक कत्था है। जब पानी में खैर के पौधे के हर्टवुड (पेड़ के तने के बीच की लकड़ी) को उबालने के बाद जमाया जाता है, तब कत्था प्राप्त होता है। भारत में दो प्रकार के कत्था की मार्केटिंग की जाती है :
पेल कैटचू या कत्था : यह स्वाद में हल्का कड़वा होता है, इसे पान में लगाया जाता है। कत्था वह चीज है जो चूने के साथ मिश्रित होने पर पान को लाल रंग देता है।
डार्क कैटचू या कच : इसका इस्तेमाल तेल निकालने के लिए मिट्टी खोदने, मछली पकड़ने वाले जाल, ऐसे बैग्स जिनका इस्तेमाल कोरियर में किया जाता है और नाव पर लगनी वाले रॉड्स में किया जाता है।
इसके अलावा कैटेचू का उपयोग दस्त, नाक और गले की सूजन, पेचिश, कोलन (कोलाइटिस) की सूजन, ब्लीडिंग, अपच, क्रोनिक ऑस्टियोआर्थराइटिस और कैंसर के उपचार में किया जाता है।
खदिर के फायदे -
खदिर के असंख्य स्वास्थ्य लाभ हैं, यही वजह है पारंपरिक चिकित्सा में इसकी बहुत मांग है। यह जड़ी बूटी विशेष रूप से गले में खराश और त्वचा संबंधी समस्याओं के खिलाफ अधिक प्रभावी मानी गई है। खदिर में फ्लेवोनोइड्स, क्वेरसेटिन और टैनिन सहित कई सक्रिय यौगिक हैं जो इस पौधे को औषधीय और चिकित्सीय गुण प्रदान करते हैं।
खदिर के फायदे निम्नलिखित हैं:
एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है खदिर -
कई अध्ययनों से पता चला है कि खदिर के पौधों में एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद हैं। भारत के जबलपुर में किए गए एक अध्ययन में खदिर पौधे के बीज के अर्क में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए गए हैं, जो कि एस्कॉर्बिक एसिड (एक प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट) के बराबर थे। एंटीऑक्सीडेंट ऐसे यौगिक हैं जो फ्री रेडिकल्स यानी मुक्त कणों को बेअसर करके शरीर की कोशिकाओं को होने वाले नुकसान से बचाते हैं।
इस विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय में वाइट्रो (टेस्ट ट्यूब आधारित) और विवो (पशु-आधारित) दोनों शोध किए गए, जिसमें पता चला कि खदिर की छाल में फेनोलिक यौगिक होता है, जिसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। थाईलैंड में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि कैटचू पौधों में फेनोलिक की मात्रा अधिक है, जिस वजह से इसकी एंटीऑक्सिडेंट क्षमता काफी स्ट्रांग है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मेसी एंड फार्मास्युटिकल साइंसेज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, एकेसिया कैटचू के पौधे के हर्टवुड (बीच वाले हिस्से में मौजूद लकड़ी) में अच्छे फ्री-रेडिकल्स मौजूद हैं।
खैर की छाल के फायदे दस्त में -
खदिर का प्रयोग पारंपरिक रूप से दस्त के उपचार में भी किया जाता है। इटली में किए गए एक प्रीक्लिनिकल अध्ययन से पता चला है कि खैर के अर्क में एपिकैटेकिन और कैटेचिन जैसे यौगिक हैं, जो कोलन की मांसपेशियों में संकुचन को कम करते हैं, जबकि आंत के सामान्य हिस्से को प्रभावित नहीं करते हैं।
इंडियन जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी में प्रकाशित एक पशु अध्ययन से पता चला कि खैर के नियमित इस्तेमाल से दस्त का प्रबंधन करने में मदद मिल सकती है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में किए गए एक अध्ययन में पता चला कि खैर के पौधे की छाल के मेथनॉल अर्क में सक्रिय फ्लेवोनोइड्स (पौधे में पाए जाने वाला यौगिक जिसका इस्तेमाल आहार में किया जाता है) होते हैं जो एंटीडायरियल के रूप में कार्य करता है।
चूंकि दस्त के प्रबंधन में एकेसिया कैटचू पौधे की प्रभावकारिता, खुराक और सुरक्षा का आकलन करने के लिए कोई नैदानिक अध्ययन नहीं किया गया है, इस जड़ी बूटी को लेने से पहले किसी अनुभवी आयुर्वेदिक डॉक्टर से परामर्श जरूर कर लें।
खैर के बीज में है रोगाणुरोधी गुण -
भारत में किए गए वीट्रो अध्ययन से पता चला है कि इस पौधे का मेथनॉल अर्क सालमोनेला टाइफी (Salmonella typhi जिसकी वजह से टाइफाइड फीवर होता है), ई कोलाई (Escherichia coli जिसकी वजह से दस्त और पेचिश होते हैं) और स्टैफीलोकोकस (जिसकी वजह से विभिन्न त्वचा संक्रमण हो सकते हैं) सहित कई रोगजनक और गैर-रोगजनक बैक्टीरिया के विकास को रोक सकता है। यह यीस्ट कैंडीडा एल्बीकैंस के खिलाफ भी प्रभावी पाया गया है।
एक अन्य अध्ययन में खैर के पौधे का रेजिन (चिपचिपा पदार्थ) भाग स्यूडोमोनस एरुगिनोसा (Pseudomonas aeruginosa), बेसिलस सबटिलिस (Bacillus subtilis) और स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus aureus) नामक बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी पाया गया। अध्ययन के अनुसार, इसके अर्क में दो जैविक यौगिक क्वेरसेटिन और एपिकेटेचिन मौजूद हैं, जिनमें इन बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता होती है।
एकेसिया कैटचू के छाल का अर्क ई कोलाई संक्रमण, एस ऑरियस, और लिस्टेरिया (मेनिनजाइटिस या इन्सेफेलाइटिस का कारण बनता है) सहित कई जीवाणुओं के खिलाफ रोगाणुरोधक के रूप में कार्य करता है।
खैर के बीज का अर्क दो सबसे आम रोगजनक एस्परजिलस (एस्परगिलोसिस) और कैंडीडा एल्बीकैंस कवक के खिलाफ प्रभावी पाया गया है। इसके अलावा इस पौधे के हर्टवुड अर्क में कुछ कवक के खिलाफ लड़ने की क्षमता पाई गई है। इन कवकों में म्यूक, पेनिसिलियम, एस्परजिलस और कैंडिडा शामिल हैं।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च एंड एलाइड साइंसेज में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, खैर के पत्तों में एंटीऑक्सिडेंट और रोगाणुरोधी यौगिक हैं, जिसे टैक्सिफोलिन के रूप में जाना जाता है। यह स्ट्रेप्टोकोकस ऑरियस और लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस सहित कई बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी है। अध्ययन के अनुसार, यह यौगिक आर्टिफिशियल एंटीमाइक्रोबियल एजेंटों का उपयोग किए बिना स्वास्थ्य उत्पादों के विकास में सहायक हो सकता है।
खैर की लकड़ी का उपयोग है डायबिटीज में असरदार -
बांग्लादेश में लोक चिकित्सकों का दावा है कि खोएर (khoyer) एक प्रभावी एंटी-डायबिटिक है। बता दें, जब पानी में खैर की लकड़ी को उबाला जाता है तो बचे हुए पाउडर को खोएर कहा जाता है। हाइपरग्लाइसेमिक चूहों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि खोएर ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
विवो स्टडी से पता चला कि एकेसिया कैटचू के हर्टवुड का अर्क सामान्य और शुगर वाले चूहों में ब्लड शुगर के स्तर को कम करता है। हालांकि, अध्ययन के लेखकों ने उल्लेख किया कि छाल में सक्रिय यौगिकों को खोजने के लिए अब भी अधिक शोध की आवश्यकता है।
हाल ही के एक अध्ययन के अनुसार खैर के एंटीडायबिटिक गुण फ्लेवोनोइड्स (flavonoids), टर्पेनॉइड (terpenoids), ग्लाइकोसाइड्स (glycosides) जर्नल ऑफ डायबिटीज रिसर्च एंड थेरपी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, हाइड्रोक्लोरिक अर्क ब्लड शुगर के स्तर को कम करने में प्रभावी है।
हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं है, लेकिन डायबिटीज के रोगियों के लिए सबसे अच्छा है कि वे किसी भी रूप में खदिर का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
खैर के लाभ करे प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत -
खदिर को पारंपरिक रूप से एक इम्यूनोमॉड्यूलेटर माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर सकता है। बैंगलुरू में किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि यह ह्युमरल और सेल मेडिएटेड प्रतिरक्षा दोनों में सुधार करता है। ये अनुकूलन प्रतिरक्षा प्रणाली (एडेप्टिव इम्यून सिस्टम) की दो साखाएं हैं, जैसे-जैसे हम संक्रामक या हानिकारक चीजों के संपर्क में आते हैं वैसे-वैसे यह प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित होती है।
इसी तरह के परिणाम एक अन्य स्टडी एंटीबॉडी के स्तर में डोज डिपेंडेंट इंक्रीमेंट से प्राप्त हुए थे।
खैर में है एंटी इंफ्लेमेटरी गुण -
जब हमारे शरीर में कोई पैथोजेनिक माइक्रोब्स (जैसे वायरस, बैक्टीरिया, माइकोबैक्टीरिया, कवक इत्यादि) चले जाते हैं, तो ऐसे में शरीर प्रतिक्रिया करता है, जिसके परिणाम स्वरूप सूजन आ जाती है। यदि इसे नियंत्रित न किया जाए तो यह हानिकारक हो सकती है और गठिया, अस्थमा और आईबीएस जैसी स्थितियां विकसित हो सकती हैं।
एकेसिया के पौधे के सभी भागों में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। एक पशु अध्ययन के अनुसार, यह देखा गया है कि एकेसिया कैटचू के इस्तेमाल से सूजन में कमी पाई गई है।
तमिलनाडु में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि एकेसिया कैटचू के पौधे के बीज में ऐसे एंटी इंफ्लेमेटरी गुण हैं, जो सूजन के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा डाइक्लोफेनाक से भी बेहतर है। अध्ययन के अनुसार, गठिया के खिलाफ भी यह अर्क प्रभावी हो सकता है।
जर्नल ऑफ न्यूट्रीशन एंड मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, एकेसिया कैटचू ऑस्टियोआर्थराइटिस में उपास्थि को नुकसान होने से भी रोकता है।
खदिर के फायदे अल्सर में -
चूंकि यह एक एंटी इंफ्लेमेटरी जड़ी बूटी है इसलिए, एकेसिया कैटचू को पारंपरिक रूप से पेप्टिक अल्सर के लक्षणों और इन अल्सर से होने वाले रिसाव के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।
मध्य प्रदेश में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, एकेसिया कैटचू में फ्लेवोनोइड्स होते हैं जो एंटीअल्सर के रूप में कार्य करते हैं।
एक अन्य अध्ययन में, एकेसिया कैटचू के पौधे के जलीय अर्क में ऐसे गुण पाए गए, जो एंटीअल्सर एक्टिविटी को बढ़ावा देते हैं।
चूहों पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, एकेसिया कैटचू का अर्क न केवल सूजन, अल्सर को कम करता है बल्कि गैस्ट्रिक एसिड के अतिरिक्त रिसाव को भी कम करता है, जो पेप्टिक अल्सर के संभावित कारणों में से एक है।
फार्माकोग्नॉसी और फाइटोकेमिस्ट्री के जर्नल में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, एकेसिया कैटचू के पौधे के मूल अर्क में एंटीअल्सर गुण होते हैं।
खदिर पौधे के अन्य स्वास्थ्य लाभ -
ऊपर बताए गए लाभों के अलावा, यहां खदिर पौधे के कुछ अन्य लाभ भी हैं :
खदिर की छाल से तैयार काढ़ा पारंपरिक रूप से मुंह के छालों और गले में खराश के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसे जब दूध के साथ मिलाया जाता है, तो काढ़े का उपयोग सर्दी और खांसी के इलाज के लिए किया जा सकता है।
इस जड़ी बूटी में एंटीपायरेटिक (बुखार को कम करने वाले) गुण भी होते हैं।
एकेसिया कैटचू की छाल का उपयोग स्टोमैटाइटिस (मुंह और होंठ की सूजन) और सांप के काटने के इलाज के लिए भी किया जाता है। इसका इस्तेमाल घावों पर भी किया जाता है, ताकि संक्रमण को रोका जा सके।
चूंकि, इसमें एंटीऑक्सिडेंट, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं, इसलिए एकेसिया कैटचू के पौधे को त्वचा संबंधित विभिन्न स्थितियों के प्रबंधन के लिए फायदेमंद माना जाता है।
एकेसिया कैटचू के पौधे के हर्टवुड वाले भाग को उबालकर इसका उपयोग महिलाओं में प्रसव के बाद होने वाले दर्द को कम करने के लिए किया जा सकता है।
विवो और विट्रो स्टडी से पता चला है कि एकेसिया कैटचू में ब्लड प्रेशर को कम करने वाले गुण भी होते हैं।
खदिर का उपयोग कैसे करें -
खदिर या एकेसिया कैटचू का पारंपरिक रूप से कई तरह से उपयोग किया जाता है जैसे काढ़ा, अर्क, गरारा, माउथवॉश, पाउडर इत्यादि। इनकी खुराक व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य और अन्य कारकों के आधार पर अलग अलग हो सकती है। अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सही खुराक जानने के लिए किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर से बात करें। ध्यान रहे, अपने आप कोई जड़ी-बूटी या हर्बल सप्लीमेंट न लें, क्योंकि यह हमेशा सुरक्षित नहीं होते हैं।
खदिर के नुकसान -
खदिर के पौधे के कुछ साइड इफेक्ट्स निम्नलिखित हैं :
गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान यह जड़ी-बूटी कितनी सुरक्षित है इस बात को लेकर कोई प्रमाण नहीं है, इसलिए अच्छा होगा कि इन स्थितियों में डॉक्टर से बात करें।
अधिकांश जड़ी-बूटियों में सक्रिय यौगिक होते हैं, जो दवाओं के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं। ऐसे लोग जो क्रोनिक हेल्थ कंडीशन से ग्रस्त है या जो किसी दवा का सेवन कर रहे हैं, उन्हें इस जड़ी बूटी को लेने से बचना चाहिए।
खदिर को एंटी-हाइपरटेंसिव जड़ी-बूटी माना जाता है। यदि आपकी कोई सर्जरी होने वाली है तो इसके इस्तेमाल से बचें।
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