इससे पहले कि मैं उत्तर दूं, एक बात समझना बहुत आवश्यक है कि "चिरंजीवी" का अर्थ ये नही कि वे कभी मृत्यु को प्राप्त ही नही होंगे। यहाँ चिरंजीवी का अर्थ है कि ये सभी लोग कलियुग के अंत तक जीवित रहेंगे। कई स्थान पर ये भी लिखा गया है कि ये सभी कल्प (ब्रह्मा जी का आधा दिन) के अंत तक जीवित रहेंगे। किन्तु जब कल्पान्त पर प्रलय आएगी तो इनका अंत भी हो जाएगा।
इसीलिए ये कभी ना समझें कि ये सभी सदा के लिए अमर हैं। किंतु चूंकि एक चतुर्युग, या उससे भी अधिक एक कल्प (1000 चतुर्युग) इतना बड़ा कालखंड है कि हम मान लेते हैं या आम भाषा मे कह देते हैं कि ये अमर हैं। अमर यहाँ कोई नही है। यहाँ तक कि परमपिता ब्रह्मा भी अपनी आयु समाप्त कर परमात्मा में लीन हो जाते हैं।
अब यदि आपको चिरंजीवी का वास्तविक अर्थ समझ आ गया हो तो आपके मूल प्रश्न पर आते हैं। वैसे तो हमारे धार्मिक ग्रंथों में कई व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें चिरंजीवी माना गया है किंतु उनमे से भी सात ऐसे लोग हैं जो प्रसिद्ध हैं और इन्हें "सप्तचिरंजीवी" कहा जाता है। इनके बारे में एक श्लोक कहा गया है-
अश्वत्थामाबलिर्व्यासोहनुमांश्च विभीषण:कृपश्चपरशुरामश्च सप्तैतेचिरंजीविन:।
अर्थात: अश्वत्थामा, बलि, वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य एवं परशुराम सप्तचिरंजीवी हैं।
कई जगह "अष्टचिरंजीवी" का भी वर्णन मिलता है जिसमें मार्कण्डेय ऋषि को भी जोड़ा जाता है।
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥ सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित॥
अर्थात: अश्वत्थामा, बलि, वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य एवं परशुराम, इन सप्तचिरंजीवियों के साथ आठवें चिरंजीवी मार्कण्डेय का प्रतिदिन स्मरण करने से मनुष्य को कोई व्याधि (बीमारी) नही होती और वो शतायु (100 वर्ष) होता है।
यह है अष्टचिरंजीवी -
- अश्वत्थामा: द्रोणाचार्य और कृपी के महारथी पुत्र जिन्हें श्रीकृष्ण ने कलियुग के अंत तक जीवित रहने का श्राप दिया था। वैसे अमरत्व का वरदान इन्हें इनके पिता द्रोण ने दिया था।
- बलि: दैत्यराज बलि हिरण्यकशिपु के प्रपौत्र, प्रह्लाद के पौत्र एवं विरोचन के पुत्र थे जिनके उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया था। उन्होंने ही इन्हें अमरता का वरदान दिया था।
- वेदव्यास: महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र जिन्होंने वेदों को संजोया एवं महाभारत एवं 18 पुराणों की रचना की। इन्हें अमरत्व परमपिता ब्रह्मा से मिला था।
- हनुमान: रामभक्त, महावीर पवनपुत्र। इनके शौर्य की गाथाओं से हमारे धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं। इन्हें श्रीराम ने अमरत्व का वरदान दिया था।
- विभीषण: विश्रवा एवं कैकसी पुत्र, रावण एवं कुम्भकर्ण के छोटे भाई एवं रावण के पश्चात लंका के राजा। इन्हें भी श्रीराम ने ही अमरत्व प्रदान किया था।
- कृपाचार्य: महर्षि शरद्वान के पुत्र और कृपी के भाई। महान योद्धा और कौरवों और पांडवों के कुलगुरु। इन्हें अमरत्व श्रीकृष्ण ने प्रदान किया था।
- परशुराम: जमदग्नि पुत्र, शिव शिष्य, सहस्त्रबाहु हंता परशुराम श्रीहरि के छठे अवतार हैं। जब इन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता रोहिणी का मस्तक काटा तब जमदग्नि ऋषि ने ही इन्हें अमरत्व का वरदान प्रदान किया।
- मार्कण्डेय: महान शिवभक्त, महर्षि भृगु के पोते। इन्हें 16 वर्ष की आयु प्राप्त हुई किन्तु इन्होंने महाकाल को प्रसन्न कर काल को भी परास्त किया। महादेव से इन्हें अमरत्व का वरदान मिला।
इन सबके अलावा कई और हैं जो अमर माने जाते हैं किंतु उनका वर्णन सप्तचिरंजीवियों या अष्टचिरंजीवियों में नही होता। उनमे प्रमुख हैं लोमश ऋषि, काकभुशुण्डि, प्रत्येक मन्वंतर के सभी सप्तर्षि इत्यादि।
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