अतिबला का पौधा-अतिबला के पौधे का उपयोग इससे होने वाले स्वास्थ्य संबंधी लाभों के लिए किया जाता है। कई हिस्सों में इसे कंघी पौधे के नाम से भी जाना जाता है। यह झाड़ीनुमा पौधा होता है जो सामान्य तौर पर एक से डेढ़ मीटर लंबा होता है, लेकिन कुछ स्थानों पर यह तीन मीटर तक भी बड़ा हो सकता है। अतिबला का वैज्ञानिक नाम 'एब्युटिलॉन इंडिकम' है। अतिबला का उपयोग कई प्रकार की दवाइयों जैसे दर्द के लिए उपयोग में लाए जाने वाले महानारायण तेल, न्यूरोपैथिक (तंत्रिका) दर्द के आयुर्वेदिक उपचार और बच्चों की प्रतिरक्षा को बढ़ाने वाले हर्बल टॉनिक के महत्वपूर्ण घटक के रूप में किया जाता है।
अतिबला के दांत वाले आकार के बीज की फली और सुनहरे पीले फूल इसे विशिष्ट पहचान दिलाते हैं। आयुर्वेद ही नहीं सिद्ध चिकित्सा, यूनानी और लोक चिकित्सा प्रणालियों में भी सैकड़ों वर्षों से इस चमत्कारी पौधे को प्रयोग हो रहा है। सिद्ध चिकित्सा में तो इस पौधे की जड़ों सहित पूरे पौधे को सुखाकर बवासीर से लेकर शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के उपचार के लिए इसे प्रयोग में लाया जाता रहा है।
भारत के तमाम हिस्सों विशेषकर कर्नाटक और तमिलनाडु (मूल) में यह पौधा बड़ी संख्या में सड़क के किनारे उगता हुआ मिल जाता है। आइए अतिबला के बारे में और विस्तार से जानते हैं।
वैज्ञानिक नामः एब्युटिलॉन इंडिकम स्वीट
फैमिलीः मालवेसेई
सामान्य नामः इंडियन मैलो, इंडियन एब्युटिलॉन, कंघी (हिंदी), झांपी या बडेला (बंगाली), जयवन्धा, जयपतेरी (असमिया), कंसकी या खापट (गुजराती), श्रीमुद्रागिदा या ट्रूब (कन्नड़), कथ (कश्मीरी), उरम, कतुवन, उराबम, उरुबम, वांकुरंटोट, ओरपम या टुटी (मलयालम), चक्रभंडी, पेटारी या मुद्रा (मराठी), टुट्टी या थूथी (तमिल) और टुट्रुबैंडा (तेलुगु)।
संस्कृत नामः अतिबला, कंकाटिका।
पौधे के इस्तेमाल किए जाने वाले हिस्सेः जड़ें, छाल, पत्ते और फूल।
मूल और भौगोलिक वितरणः अतिबला का पौधा मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। कर्नाटक और तमिलनाडु में यह बहुतायत में उपलब्ध है। देश के विभिन्नों हिस्सों के अलावा भूटान के कुछ हिस्सों में भी अतिबाला का पौधा पाया जाता है।
दिलचस्प बातः अतिबला का अर्थ है बहुत अधिक शक्तिशाली।
साल 2010 में फार्माकॉग्नोसी जर्नल में दो शोधकर्ता अनिल कुमार धीमान और अमित कुमार ने अतिबला के बारे में लिखा, 'आयुर्वेदिक पद्धति में बला का उपयोग शरीर को मजबूत करने वाले टॉनिक के रूप में किया जाता है। बाला, ब्रेला, अतिबला, महाबाला और नागबाला, जीनस सिद्ध के मालवेसेई परिवार से संबंधित हैं, जो लंबे समय से औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाए जाते रहे हैं। बला का एक अन्य रूप अतिबला है, जिसे वनस्पति रूप से एब्युटिलॉन इंडिकम के रूप में जाना जाता है। अति का अर्थ है बहुत और बला का अर्थ है शक्तिशाली, अर्थात इस पौधे के गुणों को बहुत शक्तिशाली माना जाता है।
आइए इस लेख में अतिबला या कंघी के पौधे के फायदों और इसके गुणों को विस्तार से जानते हैं।
अतिबला के गुण आयुर्वेद, सिद्ध और पारंपरिंक चिकित्सा पद्धति में -
पारंपरिक और लोक चिकित्सा पद्धतियों में अतिबला या कंघी के पौधे का इस्तेमाल निम्न प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के उपचार के तौर पर किया जाता रहा है-
- बवासीर : इसमें मौजूद लैक्सेटिव (आंत के कार्यों को आसान बनाता है) और इमोलियंट (त्वचा को नरम करता है) गुणों के कारण यह प्रयोग में लाया जाता है।
- मल से खून आना
- बुखार
- एलर्जी
- संक्रमण :अतिबला के जड़ों के अर्क का इस्तेमाल पारंपरिक रूप से बैक्टीरियल इंफेक्शन और फंगल संक्रमण के लिए किया जाता है
- मूत्रवर्धक- पेशाब के उत्पादन को बढ़ाता है
- कुष्ठ रोग
- अल्सर
- सिर में दर्द
इसके अलावा अतिबला का उपयोग निम्न प्रकार के लाभ प्राप्त करने के लिए भी किया जाता रहा है-
- कामोत्तेजक के रूप में यानी यौन इच्छा बढ़ाने के लिए
- हार्ट टॉनिक
अतिबला के फायदे -
जैसा कि साल 2010 के फार्माकॉग्नोसी जर्नल में दोनों शोधकर्ताओं ने बताया कि अतिबला (कंघी) जैसे औषधीय पौधों को लंबे समय तक मनुष्यों द्वारा इसके लाभ प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा है। ज्यादातर लोगों के लिए यह सुरक्षित माना जाता है। हालांकि यदि आपको पहले से कोई बीमारी है, आप गर्भवती हैं या बच्चे को स्तनपान करा रही हैं या फिर किसी दवा का सेवन कर रहे हैं तो इस पौधे को प्रयोग में लाने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर ले। इस लेख में आइए आगे जानते हैं कि अतिबला का उपयोग हमारे लिए किस प्रकार से फायदेमंद हो सकता है।
अतिबला के फायदे लिवर के लिए -
अतिबला का उपयोग लिवर को स्वस्थ बनाए में हमारी मदद कर सकता है। प्रयोगशाला में चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि यह पौधा, कार्बन टेट्राक्लोराइड और पैरासिटामॉल के कारण होने वाले लिवर की क्षति से हमारी रक्षा कर सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कंघी पौधे का अर्क फ्री रेडिकल्स के उत्पादन को प्रभावित कर देता है जिससे यह हेपेटोप्रोटेक्टिव यानी लिवर की रक्षा करने के गुणों से युक्त माना जाता है।
फ्री रेडिकल्स, अस्थिर परमाणु होते हैं जो लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं और लिवर संबंधी बीमारी और फाइब्रोसिस का कारण बन सकते हैं। वैज्ञानिकों ने प्रयोग के दौरान यह भी पाया कि बॉडीवेट के प्रति किलोग्राम के प्रति चार ग्राम से अधिक की मात्रा चूहों के लिए घातक साबित हुई। इंसानों में इसे प्रयोग में लाने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना आवश्यक है।
अतिबला के फायदे दर्द से राहत दिलाने में -
अतिबला यानी इंडियल मैलो की जड़ की फाइटोकेमिकल (प्लांट केमिकल) संरचना पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि इसके पेट्रोल अर्क में निम्न प्रकार के तत्वों की मौजूदगी होती है-
- लिनोलिक एसिड
- ओलिक एसिड
- स्टेरियक एसिड
- पाल्मिटिक एसिड
- लॉरिक एसिड
- मायरिस्टिक एसिड
- कैप्रिक एसिड
- कैप्रिलिक एसिड
ये सभी फैटी एसिड दर्द से राहत देने में मददगार होते हैं।
जानवरों पर किए गए लैब अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कंघी पौधे से निकाले गए यूजेनॉल (4-एलिल-2-मेथॉक्सीफेनॉल) अर्क के प्रभावों का परीक्षण किया। उन्होंने पाया कि चूहों में इन एसिडों की कुछ मात्रा का उपयोग दर्द को कम करने में फायदेमंद हो सकता है। हालांकि इंसानों में दर्द को कम करने के लिए इसके प्रभावों को जानने के लिए अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है। इसके अलावा दर्द से राहत देने के लिए फाइटोकेमिकल्स की मात्रा और कंघी पौधे की प्रभावशीलता के बारे में जानने के लिए भी और अधिक शोध की आवश्यकता है।
इंसानों पर भी इसके प्रभावों को जानने के लिए एक छोटा सा अध्ययन किया गया। एक महीने में 33 रोगियों के साथ किए गए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि भूम्यामलकी (भुंई आमला) के साथ 10 ग्राम अतिबला की जड़ के काढ़े का सेवन करने से डायबिटिक न्यूरोपैथी के दर्द को कम करने में और इसके कुछ लक्षणों को उलटने या रद्द करने में भी मदद मिल सकती है।
अतिबला के फायदे एंटीऑक्सिडेंट के लिए -
कई अनुसंधान से पता चलता है कि अतिबला के पौधे के एन-हेक्सेन और बुटानॉल अर्क में धीमी गति से और तेजी से प्रतिक्रिया करने वाले एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये सुपरऑक्साइड जैसे हानिकारक फ्री रेडिकल्स को हटाने में मदद करते हैं। यह फ्री रेडिकल्स ऊतकों और अंगों में ऑक्सीडेटिव क्षति का कारण बन सकते हैं। पौधे के बाहरी (जमीन के ऊपर उगने वाला हिस्सा) और जड़ दोनों में फ्लेवोनोइड और फेनोलिक यौगिक होते हैं जो एंटीऑक्सिडेंट प्रभावों को और मजबूती देते हैं।
इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने पाया कि अतिबला पौधे का फ्री रेडिकल्स को हटाने का गुण इसकी खुराक पर निर्भर करता है। इसका मतलब है कि खुराक जितनी अधिक होगी यह मुक्त कणों को हटाने में उतना ही प्रभावी होगा।
अतिबला के फायदे ब्लड शुगर को कम करने में -
लैब में चूहों पर किए गए अध्ययन (चूहों को 18 घंटे पहले से खाने को कुछ नहीं दिया गया था) से पता चलता है कि अतिबला ब्लड शुगर के स्तर को कम कर सकता है। इस स्थिति को जानने के लिए चूहों को बॉडीवेट के हिसाब से 400 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम की खुराक दी गई। वैज्ञानिकों ने पाया कि अतिबला के पौधे का अल्कोहल और पानी का अर्क ब्लड शुगर को क्रमशः 23.1% और 26.95% तक कम करने में प्रभावी था। हालांकि मनुष्यों में ब्लड शुगर के स्तर पर इसके प्रभावों को जानने के लिए और अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है।
कंघी पौधे के फायदे गाउट में -
अतिबला या कंघी पौधे की पत्ती का अर्क एक्यूट और क्रॉनिक दोनों प्रकार के इंफ्लेमेशन को कम करने में प्रभावी माना जाता है। शोधकर्ताओं ने महाराष्ट्र से एकत्रित किए गए सैंपल में पाया कि कंघी की पत्तियों का अर्क मानव लाल रक्त कोशिकाओं के स्थिरीकरण में मदद कर सकता है। इस आधार पर शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि गाउट जैसी सूजन से जुड़ी बीमारियों के इलाज में यह अर्क काफी फायदेमंद हो सकता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी पत्तियों में अमीनो एसिड, ग्लूकोज, फ्रक्टोज और गैलेक्टोज होते हैं। इसके अलावा इसकी जड़ें न सूखने वाले तेल का उत्पादन करती हैं, जिसमें लिनोलिक, ओलिक, स्टीयरिक, पामिटिक, लॉरिक, मायरिस्टिक, कैप्रिक, कैप्रिलिक के अलावा कई अन्य फैटी एसिड मौजूद होते हैं। पौधे में पाए जाने वाले यही रसायन इसे एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण प्रदान करते हैं।
अनुसंधान से पता चला है कि अतिबला या कंघी पौधे के एंटी इंफ्लेमेटरी गुण आर्थराइटिस जैसे रोगों को ठीक करने में भी सहायक हो सकते हैं। इन-विट्रो अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि 100-250 मिलीग्राम प्रति मिलीलीटर अतिबला का अर्क प्रोटीन के विकृतीकरण और इंफ्लेमेशन मार्करों को कम करने में भी सहायक हो सकता है।
अतिबला के लाभ इम्यून सिस्टम को उत्तेजित करने में -
चूहों पर किए गए प्रयोगशाला परीक्षण के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि इंडियन मैलो या कंघी पौधे की पत्तियों के एथेनॉल और पानी का अर्क प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सुधारने में सहायक हो सकता है। अध्ययन से पहले चूहों को इम्यूनिटी को दबाने वाली दवाइयां दी गई थीं।
वैज्ञानिकों ने इस पौधे की पत्तियों के अर्क की 200 मिलीग्राम/ किलाग्राम प्रति दिन और 400 मिलीग्राम/ किलाग्राम प्रतिदिन की मात्रा दी। इसके बाद जब वैज्ञानिकों ने प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को मापने के लिए हेमाग्लूटीनेशन एंटीबॉडी (एचए) टिटर, डिलेड टाइप हाइपरसेंसटिविटी, न्यूट्रोफिल आसंजन परीक्षण और कार्बन क्लीरेंस टेस्ट जैसे परीक्षण किए तो उन्होंने पाया कि जिन चूहों को पत्तियों को इथेनॉल या वाटर अर्क दिया गया था उनमें स्पेसिफिक और नॉन स्पेसफिक प्रतिरक्षा प्रक्रिया पाई गई। इंसानों में यह कितना प्रभावी है और प्रतिरक्षा प्रणाली पर कैसे असर डालता हैं, इस बारे में जानने के लिए अभी और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।
कंघी पौधे के लाभ नवजात शिशु की प्रतिरक्षा बढ़ाने में -
वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के दौरान पाया कि अतिबला या कंघी का पौधा नवजातों की प्रतिरक्षा को बढ़ाने में भी मददगार है। इसको जानने के लिए शोधकर्ताओं ने 24 नवजातों को जन्म के 11 वें दिन से दिन में दो बार पांच बूंद दवा दी जिसमें निम्नलिखित जड़ी बूटियां शामिल थीं:
- अतिबला
- अमलाकी या आंवला
- विदांगा (इंबेलिया रिब्स बर्न)
- गिलोय या गुडुची
- पिप्पली या लम्बी काली मिर्च (पाइपर लॉगम लिन)
- यष्टिमधु (मुलेठी) या लिकोरिस रूट (ग्लाइसीरजा ग्लबरा लिन)
- शंखपुष्पी (कन्वोल्वुलस प्लूरिकुलिस चोइस)
- वाचा (अकोरस कैलमस लिन)
- मुस्टा या नागरमोथा
- अतिविशा (एकोनिटम हेट्रोफिलम वॉल)
जब शोधकर्ताओं ने तीन महीने और फिर छह महीने के बाद नवजात शिशुओं के इम्यूनोग्लोबुलिन आईजीजी, आईजीएम और आईजीए के लिए रक्त/सीरम की जांच की तो उन्होंने पाया कि बच्चों में छह महीने बाद इम्यूनोग्लोबुलिन (एंटीबॉडी) में वृद्धि हुई है।
बच्चों के लिए सुरक्षा की दृष्टि से इसे जानने के लिए अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है। याद रखें, विश्व स्वास्थ्य संगठन का सुझाव है कि बच्चों को छह महीने तक मां के दूध के अलावा कुछ भी नहीं दिया जाना चाहिए। आमतौर पर, बच्चों को मां के दूध से सभी आवश्यक एंटीबॉडी मिल जाते हैं।
अतिबला के लाभ संक्रमण दूर करने में -
अतिबला की पत्तियों के अर्क को कार्बन टेट्राक्लोराइड के साथ उपयोग में लाकर किए गए एक लैब टेस्ट के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि यह ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया और कुछ कवकों के खिलाफ प्रभावी है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह अर्क निम्न प्रकार के बैक्टीरिया के प्रभावों को कम कर सकता है।
बैसिलस सेरेससः इस बैक्टीरिया से संक्रमण के कारण उल्टी और दस्त हो सकते हैं।
स्यूडोमोनस एरुजिनोसाः निमोनिया का कारण बनने वाले बैक्टीरिया।
सार्किना लुटिया (एम.ल्यूटस): यह आमतौर पर मुंह और ऊपरी श्वसन तंत्र में पाए जाते हैं।
ई कोलीः कुछ स्थितियों में यह भोजन की विषाक्तता का कारण हो सकता है।
शिगेला डिसेंट्रियाः यह एक प्रकार के पेचिश जिसे शिगेलोसिस के नाम से जाना जाता है उसका कारण बन सकता है।
एस्परगिलस नाइजरः एक प्रकार का फंगस जिसे ब्लैक मोल्ड के नाम से भी जाना जाता है।
कैंडिडा अल्बिकंसः एक प्रकार का कवक जो यीस्ट संक्रमण (कैंडिडा इंफेक्शन) का कारण बन सकता है।
ट्राइकोफैटन रुब्रमः एक प्रकार का फंगस जो जॉक खुजली, एथलीट फुट, नेल फंगस जैसे संक्रमणों के लिए जिम्मेदार है।
श्रीलंका से एकत्र किए गए पौधों के सैंपलों को लेकर किए गए अध्ययन में पाया गया कि अतिबला पौधे का अर्क उन बैक्टीरिया के खिलाफ कुछ हद तक प्रभावी थे, जिनका शोधकर्ताओं ने परीक्षणों के लिए प्रयोग किया। हालांकि इन प्रभावों को विस्तार से जानने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
अतिबला का उपयोग कैंसर थेरेपी में -
विभिन्न प्रकार की दवाओं और अन्य उपयोगों के लिए मेटल नैनोपार्टिकल्स बनाने के लिए वैज्ञानिक पौधों का उपयोग करते रहे हैं। ग्रीन सिंथेसाइज्ड गोल्ड नैनोकणों पर एक किए गए लैब (इन-विट्रो) अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि विशेष रूप से कोलोन कैंसर में इसके एंटी कैंसर गतिविधियों का पता चलता है। ग्रीन सिंथेसाइज्ड गोल्ड नैनोपार्टिकल्स ग्रीन कैमेस्ट्री का उपयोग करते हुए गोल्ड नैनोपार्टिकल्स बनाने की पद्धति है।
यह चिकित्सकीय तकनीक के शुरुआती चरण हैं और यह अध्ययन प्रयोगशाला में किया गया था। लोगों के लिए इस चिकित्सा को उपलब्ध कराने से पहले शोध और मानव परीक्षण कराने की आवश्यकता है।
अतिबला की खुराक -
अतिबला की खुराक आपकी जरूरतों और स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करती है। ध्यान रखें कि इसकी खुराक की मात्रा को जानने के लिए किसी प्रशिक्षित चिकित्सक से सलाह लेना आवश्यक होता है। वैसे आयुष मंत्रालय द्वारा अतिबला पाउडर की मानक खुराक 3-6 ग्राम निर्धारित की गई है।
अतिबला के नुकसान -
वैसे तो अतिबला या कंघी पौधे के अब तक कोई भी साइड इफेक्ट्स सामने नहीं आए हैं फिर भी इसके इस्तेमाल या कोई भी जड़ी बूटी वाली दवा लेने से पहले चिकित्सक से परामर्श करना जरूरी है। यदि किसी को लो ब्लड शुगर की शिकायत है या महिला स्तनपान करा रही है तो इसके उपयोग में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। इस पर पर्याप्त वैज्ञानिक शोध नहीं है कि अतिबाला का अर्क ऐसे लोगों के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकता है। ऐसी स्थिति में बिना डॉक्टरी सलाह के इस जड़ी-बूटी को किसी भी रूप में प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।
परंपरागत रूप से इस जड़ी-बूटी का उपयोग महिलाओं की प्रजनन क्षमता में सुधार के लिए किया जाता रहा है। कई छोटी-छोटी स्टडीज की गई हैं जिसमें अतिबला के गर्भधारण करने, बार-बार मिसकैरेज होने वाली महिलाओं में गर्भावस्था को बनाए रखने और भ्रूण के विकास में मदद करने जैसे फायदे सामने आए हैं। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टि से इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है, कुछ लोगों में इसके दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। ऐसे में चिकित्सक की सलाह के बिना किसी भी प्रकार की हर्बल दवाएं न लें।
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