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महिलाओं को हो सकती है ये सेक्स समस्या, हर वक्त रहती है कामोत्तेजना

 
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बाजार में निकलते ही दीवारों, खंबों और अखबारों के कोनों पर सेक्स समस्याओं के समाधानों के हर संभव इलाज की दवा और डॉक्टरों का जिक्र रहता है। पुरुषों को केंद्रित कर इस तरह की समस्याओं को खूब उछाला जाता है। लोग इन समस्याओं के बारे में खुलकर बात करने से झेंपते हैं। वहीं अगर ये समस्या महिला को हो जाए तो यह सुलझने की जगह और उलझ जाती है।

पर्सिस्टेंट जेनेटाइल कामोत्तेजना डिसऑर्डर जिसे पर्सिस्टेंट कामोत्तेजना सिंड्रोम भी कहते हैं। इस तरह के डिसऑर्डर का सामना कर रही महिलाएं बिना किसी सेक्स गतिविधि और उत्तेजना के बाद भी हर वक्त कामोत्तेजित महसूस करती हैं। कई बार ये स्थिति इतनी भयानक हो जाती है कि बिना सेक्स की चाहत के भी वो उत्तेजित रहती हैं।

इस बीमारी के लक्षण 

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अनियंत्रित यौनांग और भग-शिश्न कामुकत्तेजना जो लंबे समय तक कई घंटे, दिनों और महीनों तक जारी रहती है।
  • इस कामोत्तेजना का सेक्स गतिविधि के साथ कोई संबंध नहीं होता।
  • इस तरह की कामोत्तेजना अनचाही होती है।
  • एक-दो बार चरमसुख की प्राप्ति के बाद भी ये कामोत्तेजना कम नहीं होती।
  • एमजीएच मैसाचुसेट्स के जनरल अस्पताल की जांच और बीमारी के कारण
डॉक्टरों के अनुसार इस तरह का एहसास नसों में किसी तरह की जलन की वजह से होता है। नसों की ये जलन यौनांगों तक पहुंच जाती है। इस तरह की स्थिति रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से पर चोट लगने से भी पैदा हो सकती है।

लगातार कामोत्तेजना पर की गई शोध

कुछ लोगों को ये स्थिति मजेदार लग सकती है, लेकिन ये एक परेशानी का विषय है। इस तरह का सिंड्रोम महिलाओं में ज्यादा देखा गया है। हर घड़ी कामोत्तेजित रहना एक तंत्रिका तंत्र से जुड़ी परेशानी है। इसे समय रहते ठीक किया जा सकता है।

इस बीमारी के चलते इंसान की जिंदगी बर्बाद हो सकती है। मानसिक स्वास्थ और सेहत पर असर पड़ता है। ये स्थिति आपके पार्टनर से आपके संबंधों को खत्म करवा सकती है। किशोरों में ये समस्या झिझक, शर्म, डर और असमंजस की स्थिति पैदा कर देती है।

तंत्रिका तंत्र का इलाज करवाना हो सकता है फायदेमंद

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एमजीएच अस्पताल के वरिष्ठ लेखक ब्रूस प्राइस का कहना है कि इस तरह की मेडिकल बीमारियों के बारे में लोग बहुत कम जानते हैं। ये एक तंत्र से जुड़ी बीमारी है, न कि मानसिक रोग। बहुत सी महिलाएं इस समस्या को बिना कुछ कहे झेलती रहती हैं। बिल्कुल खामोश।

महिलाओं को कई बार इस बीमारी के लक्षण पहचानने में परेशानी पेश आती है। शर्म के मारे डॉक्टर को बताना मुश्किल हो जाता है। जरनल पेन रिपोर्ट्स में छपी स्टडी के अनुसार 10 महिलाएं ऐसी थीं, जिन्हें 11 से 70 साल की उम्र के बीच इस बीमारी के लक्षण दिखे थे। इनमें से चार मरीजों की रीढ़ की जड़ में सिस्ट और दो महिलाओं की संवेदी तंत्रिकाएं प्रभावित हो गई थी।

बचपन में ही इस बीमारी का हो जाना और उपचार न मिलना

एक महिला इस बीमारी के लक्षणों के साथ पैदा हुई थी। उन्हें बचपन से ही रीढ़ की हड्डी में दोष था। एक महिला को लुंबोसैक्रल हर्नियेटेड डिस्क था और दूसरी ने जैसे ही एंटीडिप्रेसेंट दवाइयां लेना बंद किया उसे अल्पायु में ही परसिस्टेंट कामोत्तेजना का सिंड्रोम हो गया। इस तरह की बीमारी में किसी भी तरह के मानसिक और गइनोकोलॉजिस्ट सलाह काम नहीं करती। एनेस्थीसिया और एंटीडिप्रेसेंट दवाइयां तक काम करना बंद कर देती हैं।

इस बीमारी का उपचार

इस बीमारी में सिस्ट हटाकर और तंत्रिका को ठीक कर 80 प्रतिशत मरीजों को आराम पहुंचाया गया। इस स्टडी के पहले लेखक एन लुई ओकलैंडर कहते हैं कि फिजिशियन को इस बीमारी के बारे में जानकारी होनी चाहिए। जब मरीज किसी भी तरह का पैल्विक दर्द और युरोलॉजिक लक्षण महसूस करें तो उनमें पीजीएडी होने की आशंका बढ़ जाती है।


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