हम भारतीय विश्व गुरू होतें हुए भी अपने ही शिष्य के क्रिया कलापो का अनुसरण करते है ,क्या यह उचित है ?जब हम भारतीय अपने सारे तीज-त्यौहार भारतीय संस्कृति व रीति रिवाजो के अनुसार ही मनाते है तो ऐसे में अग्रेजो के बनाये हुए नया साल क्यो ?
( श्रीवास्तव सरिता )। न तो जनवरी साल का पहला नाम है और न ही जनवरी वर्ष का पहला माह। आज भारतीय जो आज पश्चिम सभ्यता का अनुसरण करते आये है। वे आज तक जनवरी को वर्ष का पहला महीना मानते है परन्तु वे यह भूल जाते है कि वर्ष का पहला माह जनवरी नही ? जरा गौर से इस बात पर विचार करें ... सितम्बर , अक्टूबर , नवम्बर और दिसम्बर का माह क्रम से सातवां ,आठवां , नौवां और दसवां महीना होना चाहिये। जबकि भारतीय ऐसा नही मानते है ? ये क्रम से नौवां , दसवां , ग्यरहवा , और बारहवां महीना है। हिन्दी में सात को सप्त कहते है और आठ को अष्ट कहा जाता है इसे ही अग्रेजी में sep ‘‘ सेप्ट ‘‘ तथा oct ‘‘ ओक्ट ’’ कहा जाता है। इसी से september तथा अक्टूबर बना है। नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के ‘‘ नव ’’ को ले लिया जाता है। तथा दस अग्रेजी में dec बन जाता है जिससे december बन गया। ऐसा इसलिए है कि 1752 के पहले दिसम्बर दसवां महीना ही हुआ करता था। इसका एक प्रमाण और है जरा विचार करिये कि 25 दिसम्बर यानि क्रिसमस को x-mas क्यो कहा जाता है ? इसका सीधा साधा उत्तर है कि ‘‘ x ‘‘ रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना। चूकिं दिसम्बर दसवां महीना यानि x-mas से प्रचलित हो गया। इन सब बातो से निष्कर्ष निकलता है कि या तो अग्रेज हमारे पंचाग के अनुसार ही चलते थे। या उनका 12 के बजाय दस ही महीना हुआ करता था। साल के 365 के बजाय 305 दिन का रखना तो बहुत बडी मुर्खता है। ऐसे में ज्यादा संम्भावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अग्रेज भारतीयो के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयो जैसा ही करते थे। और इग्लैण्ड ही क्या सम्पूर्ण विश्व ही भारतीयो के प्रभाव में थे। जिसका प्रभाव ये है कि नया साल भले ही वे 1 जनवरी को मनाते थे। परन्तु उनका नया बही खाता 1 अप्रैल से ही शुरू होता है। यही हाल लगभग सम्पूर्ण विश्व में वित्त वर्ष अप्रैल से मार्च तक ही होता है। यानि मार्च में अन्त और अप्रैल में शुरू ! भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नही कि पूरे विश्व को भारतीयो ने अपने प्रभाव में रख रखा था। इसका अन्य प्रमाण भी देखिये अग्रेज अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदलते है .... दिन की शुयआत सूर्योदय से होती है। तो ऐसे में 12 बजे रात से दिन का क्या तुक बनता है ? नही ऐसा नही है देखिये कैसे तुक बनता है। भारत में नया दिन यानि सुबह की शुरूआत प्रातः काल से माना जाता है। यानि सूर्योदय से करीब ढाई से दो घंण्टे पहले के समय को ब्रम्ह-मुहूर्त की बेला कहा जाता है। और यही से नये दिन की शुयआत होती है यानि की करीब 5 से 5-30 के आस-पास होता है। चूकिं सम्पूर्ण विश्व भारतीयो के प्रभाव में था इस लिए वो अपना दिन भी भारतीयो के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे। इस लिए उन लोगो ने रात के 12 बजे से ही दिन या नया दिन तारीख बदलने का नियम अपना लिया था। जरा सोचिये कि जो लोग अब तक हमारे प्रभाव के अधीन हमारा ही अनुसरण करते थे। और हम भारतीय विश्व गुरू होते हुए भी खुद अपने ही अनुचर का अपने अनुसरण कर्ता का या यूं सीधे-सीधे कहा जाये तो अपने शिष्य का ही हम शिष्य बनने को बेताब रहते है। यह कितनी बडी बिडम्बना है ? यह मै नही कहूंगी कि आप आज 31 दिसमबर के रात के 12 बजे का बेसब्री से इन्तजार न करे। मै बस यही कहंगी कि देखिये , अपने आपको यानि खुद को पहचानिये कि हम भारतीय आज विश्व गुरू होतें हुए भी अपने ही शिष्य के क्रिया कलापो को मानकर झूठी खुशी जाहिर करते है। हम सम्राट है किसी की बातो या कार्यो का अनुसरण नही करते ! अग्रेजो का दिया हुआ नया साल हमें नही चाहिये ? दूसरी बात एक यह भी गौर करने वाली है कि जब हम भारतीय अपने सारे त्यौहार भारतीय संस्कृति व रीति रिवाजो , यहा तक की जन्म मरण व शादी ब्याह का भी अनुसरण कर मनाते है। तो ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि फिर यह नया साल अग्रेजो के बनाये हुए क्यो ?
1 जनवरी का इतिहास जान लेंगे आप तो छोड़ देंगे नववर्ष मनाना
विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में राज करने के लिए सबसे पहले भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया जिससे हम अपनी महान दिव्य संस्कृति भूल जाएं और उनकी पाश्चात्य संस्कृति अपना लें जिसके कारण वे भारत में राज कर सकें।
अपनी संस्कृति का ज्ञान न होने के कारण आज हिन्दू भी 31 दिसंबर की रात्रि में एक-दूसरे को हैपी न्यू इयर कहते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं ।
नववर्ष उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि (हिन्दुओं का नववर्ष ) भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी ये तिथि नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी लेकिन रोम के तानाशाह जूलियस सीजर को भारतीय नववर्ष मनाना पसन्द नही आ रहा था इसलिए उसने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 ईस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था । उसके बाद भारतीय नववर्ष के अनुसार छोड़कर ईसाई समुदाय उनके देशों में 1 जनवरी से नववर्ष मनाने लगे ।
भारत देश में अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की 1757 में स्थापना की । उसके बाद भारत को 190 साल तक गुलाम बनाकर रखा गया। इसमें वो लोग लगे हुए थे जो भारत की ऋषि-मुनियों की प्राचीन सनातन संस्कृति को मिटाने में कार्यरत थे। लॉड मैकाले ने सबसे पहले भारत का इतिहास बदलने का प्रयास किया जिसमें गुरुकुलों में हमारी वैदिक शिक्षण पद्धति को बदला गया ।
भारत का प्राचीन इतिहास बदला गया जिसमें भारतीय अपने मूल इतिहास को भूल गये और अंग्रेजों का गुलाम बनाने वाले इतिहास याद रह गया और आज कई भोले-भाले भारतवासी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष नही मनाकर 1 जनवरी को ही नववर्ष मनाने लगे ।
- हद तो तब हो जाती है जब एक दूसरे को नववर्ष की बधाई भी देने लग जाते हैं। क्या किसी भी ईसाई देशों में हिन्दुओं को हिन्दू नववर्ष की बधाई दी जाती है..??? किसी भी ईसाई देश में हिन्दू नववर्ष नहीं मनाया जाता है फिर भोले भारतवासी उनका नववर्ष क्यों मनाते हैं?
- इस साल आने वाला नया वर्ष 2020 अंग्रेजों अर्थात ईसाई धर्म का नया साल है।
- हिन्दू धर्म का इस समय विक्रम संवत 2076 चल रहा है।
- इससे सिद्ध हो गया कि हिन्दू धर्म ही सबसे पुराना धर्म है ।
- इस विक्रम संवत से 5000 साल पहले इस धरती पर भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए । उनसे पहले भगवान राम, और अन्य अवतार हुए यानि जबसे पृथ्वी का प्रारम्भ हुआ तबसे सनातन (हिन्दू) धर्म है।
- कहाँ करोड़ों वर्ष पुराना हमारा सनातन धर्म और कहाँ भारतीय अपनी गरिमा से गिर 2000 साल पुराना नववर्ष मना रहे हैं!
- जरा सोचिए….!!!
- सीधे-सीधे शब्दों में हिन्दू धर्म ही सब धर्मों की जननी है। यहाँ किसी धर्म का विरोध नहीं है परन्तु सभी भारतवासियों को बताना चाहते हैं कि इंग्लिश कैलेंडर के बदलने से हिन्दू वर्ष नहीं बदलता!
- जब बच्चा पैदा होता है तो पंडित जी द्वारा उसका नामकरण कैलेंडर से नहीं हिन्दू पंचांग से किया जाता है । ग्रहदोष भी हिन्दू पंचाग से देखे जाते हैं और विवाह,जन्मकुंडली आदि का मिलान भी हिन्दू पंचाग से ही होता है । सभी व्रत, त्यौहार हिन्दू पंचाग से आते हैं। मरने के बाद तेरहवाँ भी हिन्दू पंचाग से ही देखा जाता है। मकान का उद्घाटन, जन्मपत्री, स्वास्थ्य रोग और अन्य सभी समस्याओं का निराकरण भी हिन्दू कैलेंडर {पंचाग} से ही होता है।
- आप जानते हैं कि रामनवमी, जन्माष्टमी, होली, दीपावली, राखी, भाई दूज, करवा चौथ, एकादशी, शिवरात्री, नवरात्रि, दुर्गापूजा सभी विक्रमी संवत कैलेंडर से ही निर्धारित होते हैं | इंग्लिश कैलेंडर में इनका कोई स्थान नहीं होता।
- सोचिये! आपके इस सनातन धर्म के जीवन में इंग्लिश नववर्ष या कैलेंडर का स्थान है कहाँ ?
- 1 जनवरी को क्या नया हो रहा है..????
- न ऋतु बदली… न मौसम…न कक्षा बदली…न सत्र….न फसल बदली…न खेती…..न पेड़ पौधों की रंगत…न सूर्य चाँद सितारों की दिशा…. ना ही नक्षत्र…
- हाँ, नए साल के नाम पर करोड़ो /अरबों जीवों की हत्या व करोड़ों /अरबों गैलन शराब का पान व रात पर फूहणता अवश्य होगी।
अतः हिन्दुस्तानी अपनी मानसिकता को बदले, विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने और चैत्री शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन ही नूतन वर्ष मनाये।
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