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क्यों आज तक कैलाश पर्वत पर कोई चढ़ नहीं पाया

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हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बेहद खास महत्व है। इसे भगवान शिव का निवास स्थल माना गया है। चीन के कब्जे वाले तिब्बत क्षेत्र में आने वाले कैलाश पर्वत और मानसरोवर की यात्रा हर साल हजारों श्रद्धालु करते हैं। इस यात्रा को बेहद मुश्किल माना जाता है। यहां तक जाने का रास्ता भी बेहद दुर्गम है। इसके बावजूद यात्री पूरे जोश और भक्ति में सराबोर होकर कैलाश मानसरोवर तक की यात्रा करते हैं।

हालांकि, क्या आप जानते हैं कि इस यात्रा पर जाने वाले भक्त मानसरोवर में तो डुबकी लगाते हैं पर उन्हें कैलाश पर्वत को दूर से ही प्रणाम कर लौटना पड़ता है। कैलाश मानसरोवर का स्थल हिंदुओं के साथ-साथ बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी बेहद पवित्र माना गया है। वैसे, यह दिलचस्प और हैरान करने वाली बात है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 9 हजार से ज्यादा लोग चढ़ाई कर चुके हैं लेकिन कैलाश पर्वत की चोटी पर आज तक कोई नहीं पहुंच सका है। कई लोगों ने कोशिश जरूर की, लेकिन या कुछ अपनी जान गंवा बैठे तो कुछ को हार मानकर वापस लौटना पड़ा।

कैलाश की ऊंचाई करीब 6638 मीटर है और इस लिहाज से यह एवरेस्ट से लगभग 2200 मीटर कम है। इसके बावजूद कोई भी कैलाश पर नहीं चढ़ सका है। आखिर ऐसा क्यों हैं? क्यों दुनिया को कैलाश के बारे में बहुत कम पता है? जानिए, कैलाश पर्वत से जुड़े 10 रहस्य.... 

आइये जानते है इस पवित्र पर्वत से जुड़ी कुछ रहस्यों और सच्चाइयों को :-

1. पिरामिड है कैलाश!- 

रूस के एक डॉक्टर अर्नेस्ट मल्डासेव ने अपनी जांच के बाद यह थ्योरी दी कि कैलाश पर्वत दरअसल इंसानों द्वारा बनाया गया एक विशाल और प्राचीन पिरामिड है और चारों ओर से छोटे-छोटे पिरामिड से घिरा है। हालांकि, इस थ्योरी को लेकर कोई पुख्ता बात सामने नहीं आ सकी। बाद में ये तथ्य कई वैज्ञानिकों ने खारिज भी कर दिये।

2. कैलाश पर चढ़ाई के दौरान तेजी से बढ़ने लगती है उम्र: 

कैलाश पर चढ़ने की कोशिश करने वाले कई पर्वतारोहियों ने यह अनुभव किया है कि चढ़ाई के दौरान उनके बाल और नाखून तेजी से बढ़ने शुरू हो गये। एक बार साइबेरिया क्षेत्र के कुछ लोगों ने इस पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन उन्होंने अनुभव किया कि वे बूढ़े होने लगे हैं। इन सभी को अपनी चढ़ाई बीच में छोड़कर लौटना पड़ा और इस घटना के एक साल बाद सभी की मृत्यु हो गई।

3. कैलाश पर चढ़ाई: 
कैलाश पर्वत पर चढ़ाई में अब तक कोई सफल नहीं हो सका है। कभी खराब मौसम के कारण, कभी स्वास्थ्य तो कभी रास्ता भटक जाने के कारण कोई भी इस पर्वत पर आज तक नहीं चढ़ सका। कई लोगों ने यह अनुभव बताया है कि तमाम तैयारियों के बावजूद वे रास्ता भूल गये।

4. दुनिया इन रहस्यों से अब भी अनजान:  

हिंदू और बौद्ध मान्यताओं के अनुसार कैलाश पर्वत के चारों ओर कई ऐसी गुफाए हैं, जिनके बारे में दुनिया को पता नहीं है। यहां दिव्य साधु-संत जाकर रहते हैं और तपस्या करते हैं। यह गुफाएं केवल कुछ लोग ही देख सके हैं।

5. कैलाश पर रहते हैं भगवान: 
तिब्बत की एक लोक कथा के अनुसार मिलारेपा नाम के एक बौद्ध संत कैलाश पर्वत पर सबसे ऊंचाई पर पहुंचने में सफल रहे। जब वे वहां से लौटे तो उन्होंने सभी को आगाह किया कि वे वहां जाने की कोशिश न करें क्योंकि वहां भगवान आराम कर रहे हैं।

6. कैलाश पर बैन है अब चढ़ाई करना: 
कैलाश पर्वत पर चढ़ने की आखिरी कोशिश 2001 में की गई थी। हालांकि, कई लोगों की मांग थी कि धार्मिक रूप से पवित्र स्थान होने के कारण इस पर चढ़ाई नहीं होनी चाहिए। इसके बाद चीन प्रशासन ने कैलाश पर्वत की चढ़ाई पर रोक लगा दी। 

7. कैलाश के रहस्यमी झील: 
कैलाश पर्वत से नीचे दो तालाब भी अपने आप में रहस्यमयी हैं। इनका नाम है ब्रम्ह ताल और राक्षस ताल। मान्यता है कि कि ब्रम्ह ताल भगवान ब्रम्ह की देन है। इसमें मीठा पानी आता है। वहीं, राक्षस ताल को रावण ने बनाया, इसमें खारा पानी है। यही नहीं, मौसम कैसा भी हो ब्रम्ह ताल में पानी हमेशा शांत रहता है जबकि वहीं, राक्षस ताल हमेशा अशांत नजर आता है। 

8. पृथ्वी का केंद्र है कैलाश: 
यह माना जाता है कि कैलाश पर्वत एक 'एक्सिस मुंडी' है। आप इसे आसान भाषा में कह सकते हैं कि यह पृथ्वी का केंद्र या पिलर है। एक्सिस मुंडी लैटिन का शब्द है, जिसका मतलब ब्रह्मांड का केंद्र होता है। यह भी मान्यता है कि यहां आसमान और धरती का मिलन होता है। 

9. हैरान करने वाले दावे: 
कई पर्वतारोहियों ने कहा है कि कैलाश पर चढ़ना असंभव है। अंग्रेज पर्वतारोही और रिसर्चर यू रटलेज ने कैलाश पर चढ़ाई को बिल्कुल असंभव बताया। ऐसे ही रूस के सरगे सिस्टियाकोव ने बताया कि जब वे पर्वत के बिल्कुल करीब पहुंचे तो उनका दिल तेजी से धड़कने लगा। सरगे के अनुसार अचानक उन्हें बहुत कमजोरी महसूस होने लगी और मन में ख्याल आया कि अब वहां और नहीं रुकना चाहिए। इसके बाद वे नीचे लौट गये।

10. चार धर्मों के लिए पवित्र है कैलाश: 
कैलाश और इसके आसपास का क्षेत्र हिंदू धर्म के लिए ही नहीं बल्कि तीन अन्य धर्मों जैन, बौद्ध और बोन के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। कैलाश पर्वत का विशेष आकार भी बेहद चौंकाने वाला है। माना जाता है कि कैलाश पर्वत का आकार चौमुखी है और दिशा बताने वाले कम्पास की तरह है।


तिब्बती लोग कैलाश पर्वत की 3 और 13 परिक्रमा का महतब मानते है, इसे भगवान बुद्ध का निर्वाण स्थल होने के कारण बुद्ध धर्म में काफी पूजनीय माना जाता है। जैन धर्म का मानना है कि आदिनाथ ऋषभ देव का ये आदि स्थल है, यहाँ उन्हें ास्ट देव मान कर पूजा की जाती है। वही हिन्दू धर्म की माने तो यहाँ देवों के देव महादेव अपने पुरे परिवार के साथ निवास करते है।ऐसा माना जाता है कि यहाँ देवी सती का दायां हाथ कट कर गिरा था,इसलिए इसे और भी पूजनीय स्थल माना जाता है।

अब तक जितने भी लोग कैलाश पर्वत के समीप गये उन सभी का कहना है की यहाँ के वातावरण में ॐ की ध्वनि गूंजती रहती है, और जब कैलाश पर्वत का वर्फ पिघलना शुरू होता है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि ऊपर पर्वत पर डमरू बज रहा है, जिकी गुंज चारों और साफ़ साफ़ सुनाई पड़ती है।

एक पुराणी दन्त कथा के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी माना जाता है, यही से भगवान विष्णु के कर कमलों से निकल कर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, यही पर मान सरोवर झील है जिसे पुराणों में झिल सागर भी कहा जाता है जिसमे की भगवान विष्णु माता लक्ष्मी  के साथ शेष नाग पर विराजमान है।

यदि यात्रा पर जा रहे हैं तो क्या करें?
यह यात्रा उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और नेपाल के काठमांडू से प्रारंभ होती है। इसमें सिक्किम के नाथुरा दर्रा से जाना सबसे सुरक्षित है। यदि आप कैलाश मानसरोवर जा रहे हैं तो आपको 75 किलोमीटर पैदल मार्ग पर चलने और पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए तैयार रहना होगा। इसके लिए जरूरी है कि आपका शरीर मजबूत और हर तरह के वातावरण और थकान को सहन करने वाला हो। यदि नाथुरा दर्रा से यात्रा करते हैं तो 10-15 किलोमीटर तक ही पैदल चलना होगा।

यहां पर ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाती है, जिससे सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ आदि परेशानियां प्रारंभ हो सकती हैं। यहां का तापमान शू्न्य से नीचे -2 सेंटीग्रेड तक हो जाता है। इसलिए ऑक्सीजन सिलेंडर भी साथ होना जरूरी है। साथ ही मुंह से बजाने की एक सीटी व कपूर की थैली आगे-पीछे होने पर व सांस भरने पर उपयोग की जाती है। आवश्यक सामग्री, गरम कपड़े आदि रखें और अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार घोड़े-पिट्टू किराए से लें।

यह यात्रा भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों द्वारा आयोजित की जाती है। इधर इस सीमा का संचालन भारतीय सीमा तक कुमाऊं मण्डल विकास निगम द्वारा किया जाता है, जबकि तिब्बती क्षेत्र में चीन की पर्यटक एजेंसी इस यात्रा की व्यवस्था करती है। अंतरराष्‍ट्रीय नेपाल-तिब्बत-चीन से लगे उत्तराखंड के सीमावर्ती पिथौरागढ़ के धारचूला से कैलाश मानसरोवर की तरफ जाने वाले दुर्गम व 75 किलोमीटर पैदल मार्ग के अत्यधिक खतरनाक होने के कारण यह यात्रा बहुत कठिन होती है।

लगभग एक माह चलने वाली इस पवित्र यात्रा में काफी दुरुह मार्ग भी आते हैं अक्टूबर से अप्रैल तक इस क्षेत्र के सरोवर व पर्वतमालाएं दोनों ही हिमाच्छादित रहते हैं। सरोवरों का पानी जमकर ठोस रूप धारण किए रहता है। जून से इस क्षेत्र के तामपान में थोड़ी वृद्धि शुरू होती है। नेपाल के रास्ते यहां तक पहुंचने में करीब 28 से 30 दिन का समय लगता है अर्थात यह यात्रा यदि कोई व्यवधान नहीं हुआ तो घर से लेकर पुन: घर तक पहुंचने में कम से कम 45 दिनों की होती है।

नाथुला दर्रा से जाने के लिए आप सीधे सिक्किम पहुंचकर भी यात्रा शुरू कर सकते हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए नाथुला दर्रा भारत और तिब्बत के बीच एक बड़ा आवाजाही का गलियारा था जिसे 1962 के युद्ध के बाद बंद कर दिया गया था, लेकिन मोदी सरकार के प्रयासों से यह पुन: खोल दिया गया है। फिलहाल डोकलाम विवाद के बाद यह रास्ता पुन: बंद कर दिया गया है।

भारत सरकार सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर यात्रा प्रबंधित करती है। आप वायु मार्ग द्वारा काठमांडू तक पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर झील तक जा सकते हैं। कैलाश तक जाने के लिए हेलीकॉप्टर की सुविधा भी ली जा सकती है। काठमांडू से नेपालगंज और नेपालगंज से सिमिकोट तक पहुंचकर, वहां से हिलसा तक हेलीकॉप्टर द्वारा पहुंचा जा सकता है।

मानसरोवर तक पहुंचने के लिए लैंडक्रूजर का भी प्रयोग कर सकते हैं। काठमांडू से लहासा के लिए 'चाइना एयर' वायुसेवा उपलब्ध है, जहां से तिब्बत के विभिन्न कस्बों- शिंगाटे, ग्यांतसे, लहात्से, प्रयाग पहुंचकर मानसरोवर यात्रा पर जा सकते हैं। कहीं से भी जाएं आपको कुछ किलोमीटर पैदल तो चलना ही होगा।


रहस्यमयी तथ्य-
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 M है और कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6638 M फिर भी आज तक कोई भी पर्वतारोही कैलाश पर्वत की शिखर पर एक बार भी नहीं चढ़ पाया, जबकि माउंट एवरेस्ट पर कितनी ही बार चढ़ाई कर ली गयी है।

सवाल ये उठता है की दुनिया जाने में कितने सारे पर्वत और चोटियां है जिन सवी पर चढ़ाई कर ली गयी है पर कैलाश पर्वत में ऐसा क्या है कि आधुनिक उपकरणों के होने के बाबजूद अब तक कोई भी पर्वतारोही या कहे तो कोई भी इन्शान अब तक इस पर्वत की शिखर तह चढाई नहीं कर पाया।

2. कैलाश पर्वत की चोटियों के बीच दो झील स्थित है :-
पहला मान सरोवर झील जो कि पूरी दुनिया में सबसे ऊची मीठे पानी की झील है , ये झील 320 वर्ग फिट में फैली है,इसका पानी काफी मीठा है , इस झील का पानी काफी शांत रहता है और उसमे कभी उफान नहीं आता है, यहाँ काफी शांति और सुन्दर वातावरण रहता है।

दूसरा राकसताल झील ये पूरी दुनिया में सबसे ऊंची और खारे पानी की झील है, ये झील 225 वर्ग फिट में फैली है, इस झील का पानी काफी खारा है, इस झील में हमेशा उफान आता रहता है और यहाँ का वातावरण काफी डरावना प्रतीत होता है, इस झील के आस पास कोई भी पेड़ पौधे नहीं है और नहीं कोई पशु पछि यहाँ आस पास भी आती है।

सबसे हैरान करने वाली बात तो ये है की ये दोनों झील एक ही जगह पर कुछ ही फीट की दुरी पर स्थित है।



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