शिवलिंग का हिंदू धर्म में विशेष महत्व व स्थान है। इसे एकता और पूर्णता के लौकिक प्रतीक के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि महादेव शिव का कोई रूप या आकार है और हर आत्मा में उनका वास है। शिवलिंग महादेव के निराकार रूप को दर्शाता है। जिस प्रकार धॅुए को देखकर आग के होने का आभास होता है, उसी प्रकार ही शिवलिंग को देखकर हमें महादेव शिव के अस्तित्व का अनुभव होता है।
पौराणिक कथाओं में यह कहा गया है कि सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच इस बात को लेकर वाद-विवाद चल रहा था कि शिव कौन है। तभी उनके सामने एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई, लेकिन जब वे इसे समझ नहीं पाए तो शिव जी वहॉ प्रकट हुए और बोले कि यह मेरा निराकार रूप है, जो शक्ति का प्रतीक है।शिवलिंग में मुख्यत: तीन भाग होते हैं। सबसे निचला भाग सामान्यत: हमें दिखाई नहीं देता है। मध्य भाग समतल रहता है और ऊपर का भाग गोलाकार होता है, जिसकी असल में पूजा होती है। सबसे नीचे का भाग ब्रह्मा जी को, मध्य भाग विष्णु जी को और सबसे ऊपर का भाग शिव को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है।
इस प्रकार शिवलिंग संपूर्ण ब्रह्मांण को समाहित किये हुये भगवान शिव की रचनात्मक और विनाशकारी शक्ति को दर्शाता है। शिवलिंग ऊर्जा का स्रोत है और इससे निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा जीवन को खुशहाल बन देती है। पुराणों व शास्त्रों में वर्णित है कि जो मनुष्य शिवलिंग का निर्माण करके उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करता है, उस व्यक्ति को शिव की उपार शक्ति की प्राप्ति होता है और वह शिवमय हो जाता है। शिवलिंग की सविधि पूजा व अभिषेक करने से मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है और धन, संतान सुख, विद्या, ज्ञान, ऐश्वर्य, सद्बुद्धि, दीर्घायु एवं अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिस स्थान पर हमेशा शिवलिंग की उपासना व अभिषेक होता है, वह स्थान तीर्थ न होकर भी तीर्थ बन जाता है। शिवलिंग की पूजा से जीवन बाधा रहित हो जाता है और सभी प्रकार के भय, चिंता व कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। श्रावण माह में शिवलिंग की पूजा व जलाभिषेक का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय महादेव शिव को प्रसन्न करना बहुत ही आसान व सुलभ होता है और वे हमारी प्रार्थना को सुनकर जीवन को सुखमय बना देते हैं।
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