यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह गरीब से और ज्यादा गरीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने पुराने दोस्तों को भी याद किया। गरीब दोस्त मिलने गया। बातें हुईं।
गरीब ने कहा-तुमने बहुत अच्छा किया दोस्त, अमेरिका दुनिया- भर के हम गरीबों को लूटता है, तुम अमेरिका को लूट लाए।
अमीर दोस्त यह सुनकर खुश हुआ।
काफी दिन गुजर गए। गरीब दोस्त के दिन परेशानियों में गुज़र रहे थे। वह कुछ मदद-इमदाद के लिए अमीर दोस्त से मिलना भी चाहता था। तभी अमीर दोस्त की पत्नी का देहान्त अमेरिका में हो गया। वह अपने पति के साथ भारत नहीं लौटी थी। वह भारत में नहीं रहना चाहती थी। दोस्त की पत्नी के स्वर्गवास की ख़बर पाकर गरीब दोस्त मातम-पुर्सी के लिए गया। उसने गहरी शोक-संवेदना प्रकट की। अमीर दोस्त ने कहा-वैसे इतना शोक प्रकट करने की जरूरत नहीं है दोस्त, क्योंकि वह अमेरिका में बहुत खुश थी...वहीं खुशियों के बीच उसने अन्तिम साँस ली। वह यहाँ होती और यहाँ उसकी मौत होती तो मुझे ज्यादा दुःख होता. ..क्योंकि वह दुःखी मरती...पर फिर भी वह मेरी बीवी थी, इसलिए आँख में आँसू आ ही गए....कह कर अमीर दोस्त ने आँख पोंछ ली...
गरीब दोस्त दुःख की इस कमी-बेशी वाली बात को समझ नहीं पाया था। लेकिन वह चुप रहा।
-और क्या हाल हैं तुम्हारे?-अमीर ने पूछा।
-हाल तो अच्छे नहीं हैं!
"क्यों, क्या हुआ?
-अब क्या बताऊँ, यह ऐसा मौका भी नहीं है!
-बताओ. ..बताओ. ...ऐसी भी क्या बात है....
-अब रहने दो....
“अरे बोलो न...
-वो दोस्त...बात यह है कि मुझे पाँच हजार रुपए की सख्त जरूरत है।
अमीर दोस्त एक पल के लिए खामोश हो गया। गरीब दोस्त को अपनी गलती का एहसास-सा हुआ। वह बोला-मैं माफी चाहता हूँ...यह मौका ऐसा नहीं था कि मैं...
अमीर दोस्त ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा-नहीं, नहीं....ऐसी कोई बात नहीं, मैं कुछ और सोच रहा था।
क्या?
-यही कि तुम्हें माँगना ही था तो कुछ मेरी इज्जत-औकात को देख के माँगते!
गरीब को बात लग गई। उसने थोड़ी तल्खी से कहा-तो पचास हजार दे दो!
-तो दोस्त, बेहतर होता, तुम अपनी औकात देखकर माँगते!- अमीर दोस्त ने कह तो दिया पर अपनी बदतमीजियों को हल्का बनाने के लिए वे कभी-कभी कुछ शगल भी कर डालते हैं, उसी शगल के मूड में अमीर बोला-दोस्त, एक बात अगर बता सको तो मैं तुम्हें पचास हजार भी दे दूँगा!
-कौन सी बात!
-देखो...मेरी आँखों की तरफ देखो! मेरी एक आँख पत्थर की है। मैंने अमेरिका में बनवाई थी...अगर तुम बता सको कि मेरी कौन सी आँख पत्थर की है तो मैं पचास हजार अभी दे दूँगा।
-तुम्हारी दाहिनी आँख पत्थर की है! गरीब दोस्त ने फौरन कहा।
-तुमने कैसे पहचानी?
-अभी दो मिनट पहले तुम्हारी दाहिनी आँख में आँसू आया था.... आज के जमाने में असली आँखों में आँसू नहीं आते। पत्थर की आँख में ही आ सकते हैं।
(‘महफ़िल’ से)
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