शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है। संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं। माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है। यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है। सुख, सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत रखे जाने के विधान है।
शुक्रवार व्रत की आरती
जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को सुख सम्पत्ति दाता ।।
सुन्दर चीर सुनहरी माँ, धारण कीन्हों।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रंगार लीन्हों।।
गेरु लाल घटा छवि, बदन कमल सोहे।
मन्द हँसत करुणामयी, त्रिभुवन मन मोहे।।
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चँवर ढूरे प्यारे।
धुप, दीप, मधुमेवा, भोग धरे न्यारे।।
गुड़ अरु चना परम प्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्त्तन वैभव दियो।।
शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।
भक्त्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ।।
मन्दिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई।।
भक्त्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै।
जो मन बसै हमारे, इच्छा फल दीजै।।
दुखी, दरिद्री, रोगी, संकट मुक्त किए।
बहु धन - धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए।।
ध्यान धर्यो जो नर तेरो, मनवांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवणकर, घर आंनद आयो।।
शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे ।।
संतोषी माँ की आरती, जो कोई नर गावे ।
ऋद्धि - सिद्धि सुख - सम्पत्ति, जी भर के पावे ।।
संतोषी माता व्रत पूजन विधि
शुक्रवार व्रत की आरती
जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को सुख सम्पत्ति दाता ।।
सुन्दर चीर सुनहरी माँ, धारण कीन्हों।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रंगार लीन्हों।।
गेरु लाल घटा छवि, बदन कमल सोहे।
मन्द हँसत करुणामयी, त्रिभुवन मन मोहे।।
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चँवर ढूरे प्यारे।
धुप, दीप, मधुमेवा, भोग धरे न्यारे।।
गुड़ अरु चना परम प्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्त्तन वैभव दियो।।
शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।
भक्त्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ।।
मन्दिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई।।
भक्त्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै।
जो मन बसै हमारे, इच्छा फल दीजै।।
दुखी, दरिद्री, रोगी, संकट मुक्त किए।
बहु धन - धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए।।
ध्यान धर्यो जो नर तेरो, मनवांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवणकर, घर आंनद आयो।।
शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे ।।
संतोषी माँ की आरती, जो कोई नर गावे ।
ऋद्धि - सिद्धि सुख - सम्पत्ति, जी भर के पावे ।।
संतोषी माता व्रत पूजन विधि
01-सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है।
02-सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई इत्यादि पूर्ण कर लें।
03-स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
04-माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें।
05-माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं।
06-माता को अक्षत, फूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें।
07-माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाएँ।
08-संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें।
02-सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई इत्यादि पूर्ण कर लें।
03-स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
04-माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें।
05-माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं।
06-माता को अक्षत, फूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें।
07-माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाएँ।
08-संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें।
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