ऊसर भूमि सर्वेक्षण के दौरान मृदा नमूना एकत्रित किए गए गोंडा___
केंद्रीय लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल हरियाणा के क्षेत्रीय लवणता अनुसंधान संस्थान लखनऊ के वरिष्ठ तकनीकी सहायक मनीष कुमार पांडेय के नेतृत्व में सोमशेखर यंग प्रोफेशनल व सूरजभान द्वारा आज दिनांक 26 अप्रैल 2023 को जनपद गोंडा के विकासखंड मनकापुर में ऊसर भूमि का सर्वेक्षण कर मृदा नमूना एकत्रित किए गए । सर्वेक्षण के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र महेवा नानकार के प्रक्षेत्र के मृदा नमूना एकत्रित किये गये । श्री पांडेय ने सेटेलाइट से प्राप्त ऊसर भूमियों को खेतों में जाकर मौके पर देखा । इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. पीके मिश्रा, डॉ. रामलखन सिंह वरिष्ठ वैज्ञानिक शस्य विज्ञान व डॉ. मनोज कुमार सिंह उद्यान वैज्ञानिक मौजूद रहे । श्री पांडेय ने बताया कि ऊसर भूमि के नमूने दो स्तरों पर लिए जा रहे हैं । एक ऊपरी स्तर आधा फुट की गहराई तक तथा दूसरा आधा फुट से एक फुट की गहराई तक । मृदा नमूनों से ऊसर भूमि में मौजूद पोषक तत्वों की वास्तविक जानकारी प्राप्त होगी तथा मृदा परीक्षण की संस्तुति के अनुसार ही फसलवार खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग किया जाना उपयुक्त होगा । ऊसर भूमि में धान की लवण सहनशील प्रजातियों जैसे सीएसआर 10, सीएसआर 13, सीएसआर 27, सीएसआर 30, सीएसआर 36, सीएसआर 46,सीएसआर 56 आदि की खेती की जा सकती है । अन्य प्रजातियों में ऊसर धान 1,नरेन्द्र ऊसर धान-3 व नरेंद्र 359, नरेंद्र ऊसर धान 2008 उपयुक्त हैं । ऊसर भूमि में पीएच मान के अनुसार फसल एवं प्रजाति का चयन किया जाता है । उदासीन भूमि का पीएच मान 7 होता है । साढ़े सात से अधिक पीएच मान होने पर भूमि ऊसरीली हो जाती है । 9 से अधिक पीएच मान होने पर भूमि में खेती करना संभव नहीं होता है । ऊसर भूमि का उपचार एक प्रक्रिया के अंतर्गत किया जाता है । इसमें जिप्सम का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुति के उपरांत किया जाता है । जिप्सम एक मृदा सुधारक है । सामान्य भूमियों में इसकी एक कुंतल मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत की तैयारी करते समय खेत में मिलाना चाहिए । केंद्रीय लवणता अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित जिपकैल तकनीक का प्रयोग ऊसर भूमि में किया जाता है ।
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