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आधुनिक भारतीय के वैज्ञानिकों की सूची

 
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यह सूची भारत के आधुनिक वैज्ञानिकों के बारे में है, प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों के लिए देखें : प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक व गणितज्ञ । विज्ञान ने हमारे जीवन को अद्भुत आयाम दिया है। विज्ञान के बिना एक दिन की भी कल्पना करना अब मुश्किल है। हमारे फ़ास्ट कम्प्यूटर्स और वाहनों से लेकर एक छोटे से खिलौने तक, सब कुछ विज्ञान और प्रौद्योगिकी की देन है। वैज्ञानकों ने इनका आविष्कार अपनी कड़ी मेहनत और लगन से किया है। इन साइंटिस्टों ने ही हमारे जीवन को आसान बनाया है। यहां कुछ ऐसे ही आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों की सूची दी गई है जिन्होंने अपने आविष्कार और शोध से पुरे विश्व में नाम कमाया है। आधुनिक भारत में विज्ञान के विस्तार का श्रेय भी इन महान साइंटिस्टों को ही जाता है। इन वैज्ञानिकों ने रसायन विज्ञान, गणित, भौतिकी, चिकित्सा, क्वांटम भौतिकी, वनस्पति विज्ञान, जीव विज्ञान आदि कई क्षेत्रो में अपने ज्ञान का डंका बजाया है। इनमें से कुछ वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में अपने शोध को फ़ैलाया है और अद्भुत आविष्कार किए है। इन वैज्ञानको को हमारा सलाम है।

अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम (अंग्रेज़ी: A P J Abdul Kalam), (15 अक्टूबर 1931 – 27 जुलाई 2015) इन्हे मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे। उन्होंने सिखाया जीवन में चाहें जैसे भी परिस्थिति क्यों न हो पर जब आप अपने सपने को पूरा करने की ठान लेते हैं तो उन्हें पूरा करके ही रहते हैं। अब्दुल कलाम मसऊदी के विचार आज भी युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में 'मिसाइल मैन' के रूप में जाना जाता है। इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई। कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए।पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये।

अनिल काकोदकर (जन्म:11 नवम्बर 1943) एक भारतीय परमाणु भौतिक विज्ञानी एवं यांत्रिक अभियन्ता है। नवम्बर, २००९ तक वे भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष एवं भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव थे। इसके पूर्व वे सन् १९९६ से २००० तक भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के निदेशक थे। वे भारतीय रिज़र्व बैंक में भी निदेशक हैं। डॉ. अनिल काकोडकर भारत के एक प्रसिद्ध (न्यूक्लियर) वैज्ञानिक हैं। फिलहाल वह भारतीय अणु ऊर्जा आयोग (एईसीआई) के चेयरमैन तथा भारत सरकार के अधीन अणु ऊर्जा विभाग के सचिव पद पर कार्यरत हैं। भारत के अग्रणीय परमाणु कार्यक्रम का नेतृत्व करने का अवसर मिलने से पूर्व 1996 से 2000 तक वह ट्राम्बे स्थित भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर के निदेशक भी रहे हैं।  डॉ. काकोडकर का जन्म 11 नवंबर, 1943 को मध्यप्रदेश राज्य में स्थित बारावानी नामक गांव में हुआ। उनके पिता श्री पी. काकोडकर तथा माता श्रीमती कमला काकोडकर, दोनों ही गांधीजी के स्वतन्त्रता आंदोलन में सिपाही रहे हैं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा बारावानी और खरगौन में हुई। मैट्रिक के आगे की पढ़ाई करने के लिए वह बंबई चले गए, जहां उन्होंने रूपारेल कॉलेज में स्नातक शिक्षा पूरी की।  मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्होंने 1963 में बंबई विश्वविद्यालय में वीजेटीआई संस्थान में प्रवेश लिया। 1964 में उन्हें भाभा एटोमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (बार्क) में नियुक्ति मिल गई। कुछ समय बाद वह शोधपरक अध्ययन हेतु इंग्लैंड चले गए तथा 1969 में नॉटिंघम विश्वविद्यालय से प्रायोगिक गुरुत्व विश्लेषण (एक्सपेरिमेंटल स्ट्रेस एनालिसिस) में मास्टर डिग्री प्राप्त की। परमाणु वैज्ञानिक के तौर पर उनका अगला कदम बार्क के रिएक्टर इंजीनियरिंग डिवीजन में था। 

बीरबल साहनी का जन्म नवंबर, 1891 को पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) के शाहपुर जिले के भेड़ा नामक एक छोटे से व्यापारिक नगर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। इनके पिता रुचि राम साहनी रसायन के प्राध्यापक थे। उनका परिवार वहां डेरा इस्माइल खान से स्थानांतरित हो कर बस गया था। इनको १९१९ ई. में लन्दन विश्वविद्यालय से और १९२९ ई. में केंब्रिज विश्वविद्यालय से डी.एस-सी. की उपाधि मिली थी। भारत लौट आने पर ये पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए। १९३९ ई. में ये रॉयल सोसायटी ऑव लन्दन के सदस्य (एफ.आर.एस.) चुने गए और कई वर्षों तक सायंस कांग्रेस और नेशनल ऐकेडेमी ऑव सायंसेज़ के अध्यक्ष रहे। इनके अनुसंधान जीवाश्म (फॉसिल) पौधों पर सबसे अधिक हैं। इन्होंने एक फॉसिल 'पेंटोज़ाइली' की खोज की, जो राजमहल पहाड़ियों में मिला था। इसका दूसरा नमूना अभी तक कहीं नहीं मिला है। हिंदू विश्वविद्यालय से डा. साहनी लाहौर विश्वविद्यालय गए, जहाँ से लखनऊ में आकर इन्होंने २० वर्ष तक अध्यापन और अन्वेषण कार्य किया।

होमी जहांगीर भाभा (30 अक्टूबर, 1909 - 24 जनवरी, 1966) भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा थे जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उन्होने मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944 में नाभिकीय उर्जा पर अनुसन्धान आरम्भ किया। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्हें 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' भी कहा जाता है। भाभा का जन्म मुम्बई के एक सभ्रांत पारसी परिवार में हुआ था। उनकी कीर्ति सारे संसार में फैली। भारत वापस आने पर उन्होंने अपने अनुसंधान को आगे बढ़ाया। भारत को परमाणु शक्ति बनाने के मिशन में प्रथम पग के तौर पर उन्होंने 1945 में मूलभूत विज्ञान में उत्कृष्टता के केंद्र टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) की स्थापना की। डा. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक, एवं निपुण कार्यकारी थे। वे ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी तथा लोकोपकारी थे। 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए। १९५३ में जेनेवा में अनुष्ठित विश्व परमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलन में उन्होंने सभापतित्व किया। भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक का २४ जनवरी सन १९६६ को एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया था।

डॉ॰ प्रेम चंद पाण्डेय भारतीय वैज्ञानिक और शिक्षाविद हैं। वे राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र के संस्थापक निदेशक है और वर्तमान में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में आचार्य के पद पर कार्यरत हैं । पाण्डेय भारतीय विज्ञान के सर्वोच्च पुरस्कार, शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित हैं । उन्होने सुदूर संवेदन, उपग्रह महासागरीय विज्ञान, वायुमण्डलीय विज्ञान, अंटार्कटिक और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कार्य किया है

प्रोफेसर कैलास (कैलाश) नाथ कौल, एफएलएस (1905-1983) एक भारतीय वनस्पतिशास्त्री, कृषि विज्ञानी, कृषि वैज्ञानिक, बागवान, जड़ी-बूटी, और प्रकृतिवादी, और 1950 के दशक में अरेकेसी पर एक विश्व प्राधिकरण थे। उन्हें फाइटोमॉर्फोलॉजी, फाइटोफिजियोलॉजी, फाइटोगोग्राफी, फाइकोलॉजी, लाइकेनोलॉजी, ब्रायोलॉजी, पैलिनोलॉजी, फार्मास्युटिकल बॉटनी, एथनोबोटनी, हर्पेटोलॉजी, पैलियोबोटनी, पैलियोकोलॉजी, पैलियोवल्केनोलॉजी, हाइड्रोजोलॉजी, लिम्नोलॉजी, एंथ्रोपोलॉजी, एपिस्टेमोलॉजी और सौंदर्यशास्त्र में उनकी रुचि के लिए पहचाना गया है। पॉलीपोडियासी के एक जीनस कौलिनिया का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

श्रीराम शंकर अभयंकर (२२ जुलाई १९३० - २ नवम्बर २०१२)  बीजगणितीय ज्यामिति में उनके योगदान के लिए विख्यात भारतीय गणितज्ञ हैं। अभयंकर का जन्म एक महाराष्ट्रीय कोकणस्थ ब्राह्मण परिवार के घर में उज्जैन में हुआ। सम्मान- अभयंकर को विभिन्न अवसरों पर अनेक सम्मान एवं पुरस्कार से नवाजा गया है -भारतीय विज्ञान अकादमी के फेलो। इंडो--अमेरिकन गणित। बीजगणित और बीजगणितीय ज्यामिति में अपने अभूतपूर्व शोध के लिए प्रसिद्ध, अभ्यंकर का जन्म उज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत में हुआ था। उनके पिता पहले उज्जैन में और बाद में ग्वालियर कॉलेज में गणित के प्रोफेसर थे। श्रीराम अभ्यंकर की शिक्षा इंटर तक ग्वालियर में हुई। उन्होंने भौतिकी में डिग्री हासिल करने के लिए मुंबई में रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (अब विज्ञान संस्थान) में दाखिला लिया। लगभग उसी समय, उन्हें मुंबई में नए लॉन्च किए गए टाटा फंडामेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीआईएफआर) में कई गणमान्य व्यक्तियों द्वारा गणित पर व्याख्यान सुनने का अवसर मिला। वहाँ आमंत्रित व्याख्याताओं में मार्शल स्टोन ने अभ्यंकर को भारत से बाहर जाकर आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, उन्होंने टीआईएफआर के गणितज्ञ दामोदर धर्मानंद कोसंबी और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में गणित विभाग के प्रमुख पेसी मसानी के साथ चर्चा के बाद भौतिकी के बजाय गणित में आगे की पढ़ाई करने का फैसला किया। मसानी ने १९४६ में गणित में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। हार्वर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक, अभ्यंकर ने उसी विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई की और पीएच.डी. प्रोत्साहित।

चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव (कन्नड़: ಚಿಂತಾಮಣಿ ನಾಗೇಶ ರಾಮಚಂದ್ರ ರಾವ್) जिन्हें सी॰ एन॰ आर॰ राव के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय रसायनज्ञ हैं जिन्होंने घन-अवस्था और संरचनात्मक रसायन शास्त्र के क्षेत्र में मुख्य रूप से काम किया है। वर्तमान में वह भारत के प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख के रूप में सेवा कर रहे हैं। डॉ॰ राव को दुनिया भर के 60 विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट प्राप्त है। उन्होंने लगभग 1500 शोध पत्र और 45 वैज्ञानिक पुस्तकें लिखी हैं। वर्ष 2013 में भारत सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया। सी वी रमण और ए पी जे अब्दुल कलाम के बाद इस पुरस्कार से सम्मानित किये जाने वाले वे तीसरे ऐसे वैज्ञानिक हैं।

सीवी रामन (तमिल: சந்திரசேகர வெங்கட ராமன்) (७ नवंबर, १८८८ - २१ नवंबर, १९७०) भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष १९३० में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। १९५४ ई. में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया तथा १९५७ में लेनिन शान्ति पुरस्कार प्रदान किया था।

भारत के पहले सुपर कम्प्यूटर परम के निर्माता डॉ. विजय भटकर का जन्म 11 अक्टूबर, 1946 को महाराष्ट्र में हुआ था। वह आई. टी. लिडर के नाम से प्रसिद्ध हैं। डॉ. भटकर ने 1965 में बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग और 1968 में मास्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग की डिग्री आई. आई. टी. दिल्ली, सर विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर और एम. एस. यूनिवर्सिटी, वड़ोदरा से ग्रहण की थी। डॉ भटकर 1987 में पुणे स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ़ एडवांस्ड कम्प्यूटिंग (सी-डैक) में सुपर-कंप्यूटर बनाने की परियोजना का नेतृत्व कर चुके हैं।

हरगोविंद खुराना (जन्म: ९ जनवरी १९२२ मृत्यु ९ नवंबर २०११) एक नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय वैज्ञानिक थे। हरगोविंद खुराना एक भारतीय अमेरिकी जैव रसायनज्ञ थे। विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय,अमरीका में अनुसन्धान करते हुए , उन्हें १९६८ में मार्शल डब्ल्यू निरेनबर्ग और रॉबर्ट डब्ल्यू होली के साथ फिजियोलॉजी या मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार सयुक्त रूप से मिला ,उनके द्वारा न्यूक्लिक एसिड में न्यूक्लियोटाइड का क्रम खोजा गया, जिसमें कोशिका के अनुवांशिक कोड होते हैं और प्रोटीन के सेल के संश्लेषण को नियंत्रित करता है । हरगोविंद खुराना और निरेनबर्ग को उसी वर्ष कोलंबिया विश्वविद्यालय से लुइसा ग्रॉस हॉर्वित्ज़ पुरस्कार भी दिया गया था। ब्रिटिश भारत में पैदा हुए, हरगोविंद खुराना ने उत्तरी अमेरिका में तीन विश्वविद्यालयों के संकाय में कार्य किया। वह १९६६ में संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिक बन गए और १९८७ में विज्ञान का राष्ट्रीय पदक प्राप्त किया।

तेज पाल सिंह (जन्म 1944) एक भारतीय बायोफिजिसिस्ट हैं, जिन्हें रैशनल स्ट्रक्चर-बेस्ड ड्रग डिजाइन, प्रोटीन स्ट्रक्चर बायोलॉजी और एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी के क्षेत्र में उनके काम के लिए जाना जाता है। उन्होंने जीवाणुरोधी चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में दवा डिजाइन के विकास में सक्रिय भूमिका निभाई है, तपेदिक,  सूजन, कैंसर  और गैस्ट्रोपैथी। वह देश के सभी छह रामचंद्रन पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय हैं। वे छह अकादमियों के फेलो हैं, अर्थात् थर्ड वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी, नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, अलेक्जेंडर वॉन हंबोल्ट फाउंडेशन और बायोटेक रिसर्च सोसाइटी ऑफ इंडिया। 

हरीश चंद्र महरोत्रा (११ अक्टूबर १९२३ - १६ अक्टूबर १९८३) भारत के महान गणितज्ञ थे। वह उन्नीसवीं शदाब्दी के प्रमुख गणितज्ञों में से एक थे। इलाहाबाद में गणित एवं भौतिक शास्त्र का प्रसिद्ध केन्द्र "मेहता रिसर्च इन्सटिट्यूट" का नाम बदलकर अब उनके नाम पर हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान कर दिया गया है। 'हरीश चंद्र महरोत्रा' को सन १९७७ में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

मणींद्र अग्रवाल कंम्प्यूटर विज्ञान और इंजिनियरींग विभाग मे प्रोफेसर है |  मणिंद्र अग्रवाल का जन्म 20 मई 1966 को भारत के  इलाहाबाद शहर मे हुआ |  मणींद्र ने सन 1986 मे आई:आईटी कानपूर से बीटेक किया है | उसके बाद उन्होंने आई:आईटी कानपूर विश्वाविदयालय से ही पीएचडी की उपाधि प्रापता कि है | मणींद्र को एकेएस प्राइमलिटी टेस्टा यानि अग्रवाल कायल सक्सेना  Prrmality test और Cyclotomic test  के लिए जाना जाता है | नीरल कयाल और नितिन सक्सेना यह उनके डॉक्टरल छात्र है | सोमनाथ विश्वास उनके डॉक्टरल सलाहकार है |

नरेंद्र कृष्ण कर्मकार  (जन्म 1955) एक भारतीय गणितज्ञ हैं।कर्मकार ने कर्मकार के एल्गोरिथ्म को विकसित किया।उन्हें आईएसआई के उच्च शोधकर्ता के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। उन्होंने रैखिक प्रोग्रामिंग के लिए सबसे पहले बहुपद समय के एल्गोरिदम में से एक का आविष्कार किया, जिसे आमतौर पर एक आंतरिक बिंदु विधि के रूप में संदर्भित किया जाता है।एल्गोरिथ्म रैखिक प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में एक आधारशिला है।उन्होंने अपना प्रसिद्ध परिणाम 1984 में प्रकाशित किया जब वह न्यू जर्सी में बेल लेबोरेटरीज के लिए काम कर रहे थे।

डॉ॰ (सर) जगदीश चन्द्र बसु (बंगाली: জগদীশ চন্দ্র বসু जॉगोदीश चॉन्द्रो बोशु) (30 नवंबर 1858 – 23 नवंबर, 1937) भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे जिन्हें भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान था। वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया। वनस्पति विज्ञान में उन्होनें कई महत्त्वपूर्ण खोजें की। साथ ही वे भारत के पहले वैज्ञानिक शोधकर्त्ता थे। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने एक अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। वे विज्ञानकथाएँ भी लिखते थे और उन्हें बंगाली विज्ञानकथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है।उन्होंने अपने काम के लिए कभी नोबेल नहीं जीता। इनके स्थान पर 1909 में मारकोनी को नोबेल पुरस्कार दे दिया गया।

जयन्त विष्णु नार्लीकर (मराठी: जयन्त विष्णु नारळीकर ; जन्म 19 जुलाई 1938) प्रसिद्ध भारतीय भौतिकीय वैज्ञानिक हैं जिन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए अंग्रेजी, हिन्दी और मराठी में अनेक पुस्तकें लिखी हैं। ये ब्रह्माण्ड के स्थिर अवस्था सिद्धान्त के विशेषज्ञ हैं और फ्रेड हॉयल के साथ भौतिकी के हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं। इनके द्वारा रचित एक आत्‍मकथा चार नगरातले माझे विश्‍व के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

डॉ लालजी सिंह कुलपति बनारस हिंदू विश्वविद्यालय"" (5 जुलाई 1947 – 10 दिसम्बर 2017) हैदराबाद स्थित 'कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र' (CCMB) के भूतपूर्व निदेशक थे। सम्प्रति वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। वह भारत के नामी नू-जीवविज्ञानी थे। लिंग निर्धारण का आणविक आधार, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग, वन्यजीव संरक्षण, रेशमकीट जीनोम विश्लेषण, मानव जीनोम एवं प्राचीन डीएनए अध्ययन आदि उनकी रुचि के प्रमुख विषय रहे।

मेघनाद साहा (६ अक्टूबर १८९३ - १६ फरवरी, १९५६) सुप्रसिद्ध भारतीय खगोलविज्ञानी (एस्ट्रोफिजिसिस्ट्) थे। वे साहा समीकरण के प्रतिपादन के लिये प्रसिद्ध हैं। यह समीकरण तारों में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। उनकी अध्यक्षता में गठित विद्वानों की एक समिति ने भारत के राष्ट्रीय शक पंचांग का भी संशोधन किया, जो २२ मार्च १९५७ (१ चैत्र १८७९ शक) से लागू किया गया। इन्होंने साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान तथा इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स नामक दो महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना की।

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान निगम के पूर्व अध्यक्ष रघुनाथ अनंत माशेलकर का आज जन्मदिन है। उनका जन्म 1 जनवरी 1943 को हुआ था। रघुनाथ अनंत माशेलकर को रमेश माशेलकर के नाम से भी जाना जाता है। रघुनाथ माशेलकर का जन्म कोंकण के माशेल गांव में हुआ था। बचपन मुंबई चला गया। माशेलकर के जीवन को मुंबई के एक म्यूनिसिपल स्कूल के शिक्षकों ने आकार दिया। उसकी माँ, यही उसकी मुख्य प्रेरणा है! माशेलकर की माँ सिलाई करके या जो कुछ भी मिल सकता था, कुछ पैसे कमाती थी। एक बार वह नौकरी मांगने गिरगांव के कांग्रेस भवन में गई थी। रिलेशनशिप के दिन वहीं खड़े रहने के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं दी गई। उस नौकरी के लिए तीसरा पास होना जरूरी था और माशेलकर की मां ने ज्यादा पढ़ाई नहीं की थी। हो सकता है कि झूठ बोलकर उन्हें नौकरी मिल गई हो। इसके बजाय, उसने अपना मन बना लिया। मुझे आज नौकरी नहीं मिली क्योंकि मेरे पास शिक्षा नहीं है, लेकिन मैं अपने बेटे को दुनिया की सबसे ऊंची शिक्षा दूंगा। उन्होंने इस निर्णय को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की।

सर शांति स्वरूप भटनागर, OBE, FRS (२१ फरवरी १८९४ – १ जनवरी १९५५) जाने माने भारतीय वैज्ञानिक थे। इनका जन्म शाहपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। इनके पिता परमेश्वरी सहाय भटनागर की मृत्यु तब हो गयी थी, जब ये केवल आठ महीने के ही थे। इनका बचपन अपने ननिहाल में ही बीता। इनके नाना एक इंजीनियर थे, जिनसे इन्हें विज्ञान और अभियांत्रिकी में रुचि जागी। इन्हें यांत्रिक खिलौने, इलेक्ट्रानिक बैटरियां और तारयुक्त टेलीफोन बनाने का शौक रहा। इन्हें अपने ननिहाल से कविता का शौक भी मिला और इनका उर्दु एकांकी करामाती प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाया था।

सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर (१९ अक्टूबर, १९१०-२१ अगस्त, १९९५) विख्यात भारतीय-अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। भौतिक शास्त्र पर उनके अध्ययन के लिए उन्हें विलियम ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से सन् १९८३ में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। चन्द्रशेखर सन् १९३७ से १९९५ में उनके देहांत तक शिकागो विश्वविद्यालय के संकाय पर विद्यमान थे। जीवन डॉ॰ सुब्रह्मण्याम चंद्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा मद्रास में हुई। 18 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर का पहला शोध पत्र `इंडियन जर्नल ऑफ फिजिक्स' में प्रकाशित हुआ। मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि लेने तक उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके थे। उनमें से एक `प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी' में प्रकाशित हुआ था, जो इतनी कम उम्र वाले व्यक्ति के लिए गौरव की बात।

डॉ शंकर अबाजी भिसे (२९ अप्रैल १८६७ - ७ अप्रैल १९३५) भारत के एक वैज्ञानिक एवं अग्रणि आविष्कारक थे जिन्होने २०० के लगभग आविष्कार किये। उन्होने लगभग ४० आविष्कारों पर पेटेन्ट लिया था। उन्हें "भारतीय एडिसन" कहा जाता है। उन्होने भारतीय मुद्रण प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण योगदान दिया जिससे छपाई की गति पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ायी जा सकी। अन्तरराष्ट्रीय निवेशकों का मानना था कि उनके खोजें वैश्विक प्रिटिंग उद्योग में क्रांति ला देंगी। उन्हें अपने समय के अग्रणी भारतीय राष्ट्रवादियों का सहयोग और प्रशंसा मिली थी। उन्होंने बॉम्बे (वर्तमान में मुंबई) में एक साइंटिफ़िक क्लब खोला था और 20 साल की उम्र तक वो गेजेट और मशीनें बनाने लगे थे जिनमें टैंपर-प्रूफ बोतल, इलैक्ट्रिकल साइकिल कॉन्ट्रासेप्शंस, बॉम्बे की उपनगरीय रेलवे प्रणाली के लिए एक स्टेशन संकेतक शामिल थे।

श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर (तमिल ஸ்ரீனிவாஸ ராமானுஜன் ஐயங்கார்) (22 दिसम्बर 1887 – 26 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया। ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है।

सत्येन्द्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था । उनकी आरंभिक शिक्षा उनके घर के पास ही स्थित साधारण स्कूल में हुई थी। इसके बाद उन्हें न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल में भरती कराया गया। स्कूली शिक्षा पूरी करके सत्येन्द्रनाथ बोस ने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। वह अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाते रहे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता रहा। उनकी प्रतिभा देखकर कहा जाता था कि वह एक दिन पियरे साइमन, लेप्लास और आगस्टीन लुई काउथी जैसे गणितज्ञ बनेंगे। सत्येन्द्रनाथ बोस ने सन्‌ १९१५ में गणित में एम.एस.सी. परीक्षा प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम आकर उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें प्राध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया। उन दिनों भौतिक विज्ञान में नई-नई खोजें हो रही थीं। जर्मन भौतिकशास्त्री मैक्स प्लांक ने क्वांटम सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। उसका अर्थ यह था कि ऊर्जा को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटा जा सकता है। जर्मनी में ही अल्बर्ट आइंस्टीन ने "सापेक्षता का सिद्धांत" प्रतिपादित किया था। सत्येन्द्रनाथ बोस इन सभी खोजों का अध्ययन कर रहे थे। बोस तथा आइंस्टीन ने मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की।

विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सि तंबर 1860 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत के विद्वान थे। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्मस्थान से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलूर के सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। लेकिन यहां उनके पास धन का अभाव था। अत: उन्हें टयूशन करना पड़ा। विश्वेश्वरैया ने 1881 में बीए की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया। इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। 1883 की एलसीई व एफसीई (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया।

भारतीय प्राणि विज्ञानी सुंदरलाल होरा (1896-1955) का जन्म पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) के हाफिज़ाबाद नामक कस्बे में हुआ था। पंजाब विश्वविद्यालय की एम. एस-सी. परीक्षा में आपने प्रथम स्थान प्राप्त किया तथा आपको मैकलैगेन पदक और अन्य सम्मान प्राप्त हुए। सन् 1919 में आप भारत के जूलॉजिकल सर्वे विभाग में नियुक्त हुए। सन् 1922 में पंजाब विश्वविद्यालय और सन् 1928 में एडिनबरा विश्वविद्यालय से आपने डी. एस-सी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं।

वेंकटरामन "वेंकी" रामकृष्णन (तमिल: வெங்கட்ராமன் ராமகிருஷ்ணன்) (जन्म: १९५२, तमिलनाडु) एक जीव वैज्ञानिक हैं। इनको २००९ के रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इन्हें यह पुरस्कार कोशिका के अंदर प्रोटीन का निर्माण करने वाले राइबोसोम की कार्यप्रणाली व संरचना के उत्कृष्ट अध्ययन के लिए दिया गया है। इनकी इस उपलब्धि से कारगर प्रतिजैविकों को विकसित करने में मदद मिलेगी। इसराइली महिला वैज्ञानिक अदा योनोथ और अमरीका के थॉमस स्टीज़ को भी संयुक्त रूप से इस सम्मान के लिए चुना गया। तीनों वैज्ञानिकों ने त्रि-आयामी चित्रों के ज़रिए दुनिया को समझाया कि किस तरह राइबोसोम अलग-अलग रसायनों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, इसके लिए उन्होंने एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफ़ी का सहारा लिया जो राइबोसोम्ज़ की हज़ारों गुना बड़ी छवि सामने लाता है। वर्तमान में श्री वेंकटरामन् रामकृष्णन् ब्रिटेन के प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से जुड़े हैं एवं विश्वविद्यालय की एमआरसी लेबोरेट्रीज़ ऑफ़ म्यलूकुलर बायोलोजी (पेशीय जीवविज्ञान की एमआरसी प्रयोगशाला) के स्ट्रकचरल स्टडीज़ (संरचनात्मक अध्ययन) विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक हैं।

विक्रम अंबालाल साराभाई (१२ अगस्त, १९१९- ३० दिसंबर, १९७१) भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। इन्होंने ८६ वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे एवं ४० संस्थान खोले। इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन १९६६ में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। डॉ॰ विक्रम साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता। यह जगप्रसिद्ध है कि वह विक्रम साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया।

अतुल गुर्टु एक भारतीय उच्च ऊर्जा भौतिक विज्ञानी हैं। उन्होंने १९७१ में टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान, मुम्बई से जुड़ गये और २०११ में एक लम्बे कण भौतिकी शोध के पश्चात् एक वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत हुये।



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